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विमर्श: 'समान नागरिक संहिता और उसका सामाजिक-राजनीतिक प्रभाव'

समान नागरिक संहिता शांति भंग कर धार्मिक ध्रुवीकरण के मक़सद से लाया जा रहा है। 
UCC

विषय प्रवेश करते हुए समाजिक कार्यकर्ता अनिल कुमार राय ने कहा " समान नागरिक संहिता  राम मंदिर और धारा 370 की तरह लाया गया है। इसका कैसा प्रभाव पड़ेगा इसे देश को ठीक से समझना होगा। क्या संविधान के इस धारा को लागू करने के लिए हालात अनुकूल हैं। विविधताओं वाले हमारे समाज में जाति के आधार के पर विवाह, तलाक, गोद लेना और उत्तराधिकार के लिए अलग-अलग कानून है। ये कानून हिंदू विवाह अधिनियम,मुस्लिम पर्सनल लॉ आदि धार्मिक ग्रंथों और रीति रिवाजों के आधार पर बनाए गए हैं। बौद्ध, सिक्ख, ईसाई, मुसलमान, पारसी और हिंदू विभिन्न जनजातियां अलग -अलग  पारिवारिक कानूनों या रीति-रिवाजों के आधार पर बनाए गए हैं।" 

अनिल जी ने यह बात 'समान नागरिक संहिता और उसका सामाजिक-राजनीतिक प्रभाव' विषय पर केदारभवन  में आयोजित विमर्श में कही। इस विमर्श का आयोजन पटना के तीन संगठनों , '  केदारदास  श्रम एवं समाज अध्ययन संस्थान, एसोसिएशन फॉर स्टडी एंड एक्शन (आसा) और अभियान सांस्कृतिक संघ द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया।

अधिवक्ता खुर्शीद आलम ने कहा " जब संविधान में  धार्मिक स्वतंत्रता को बुनियादी अधिकार माना गया है तब समान नागरिक संहिता लाकर आप कैसे उसे कमजोर कर सकते हैं।  विवाह, तलाक, उत्तराधिकार जैसे मामले नागरिक मसलों के अंतर्गत आते हैं। कहा जाता है हिंदू, मुस्लिम, सिख ईसाई सभी के  लिए एक तरह का कानून होना चाहिए जबकि हिन्दू समाज में भी अलग अलग कानून हैं। एक दूसरे से मेल न खाने वाले व्यवहार हैं। यहां तक कि दुनिया में समान नागरिक संहिता कहीं नहीं है। अमेरिका और सउदी अरब में भी बहुत सारे समुदायों के कानून में छेड़छाड़ नहीं किया गया है। अगर इसे लाते हैं तो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा। नगालैंड, गोवा, आदि जगहों में धारा 371 लाया गया है। यदि हम इस संहिता को लाते हैं तो अल्पंख्यकों को मिली संवैधानिक  सुरक्षा खत्म हो जायेगी । इसके लिए संविधान के मूलभूत ढांचे में तब्दीली लानी होगी और नया संविधान  बनाना होगा।  समान नागरिक संहिता क्या नेचुरल जस्टिस के खिलाफ नहीं है।" 

पूर्व प्रशासनिक अधिकारी व्यास जी मिश्रा ने संविधान के कई अनुच्छेदों का उदाहरण देते हुए कहा " यदि इस संहिता को  लाने का मकसद धर्म के आधार पर बांटना है तो इसका विरोध भी यदि धार्मिक आधार पर हो तो इसका फायदा ध्रुवीकरण करने वालों को होगा। मुस्लिम पर्सनल बोर्ड ने इसका विरोध कर दिया।  संविधान के आधार पर बात करनी  चाहिए। कहा जा रहा है एक परिवार के लिए एक कानून होना चाहिए। यदि हां एक परिवार है तो एक सदस्य अनपढ़ और एक पढ़ा लिखा कैसे रहेगा? जब आदिवासी समूहों ने विरोध किया तब  कहा गया को इन लोगों को छूट देनी होगी। अनुच्छेद 44 में इस संबंध में बातें कही गईं हैं। इक्कीसवीं विधि आयोग ने भी कहा की यूनिफॉर्म सिविल कोर्ट संभव नहीं है। हमने देश को सोशलिस्ट, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक बनाया तो अनुच्छेद के पहले धारा 38 और 39 है उसका ध्यान रखना होगा।  साथ ही धर्म का अधिकार भी पाबंदियों के बिना नहीं है। हमें जेंडर  जस्टिस के आधार पर भी पर्सनल लॉ को परखना होगा। महिलाओं के समानता अधिकार को उठाना होगा इस संदर्भ में। इसके लिए विभिन्न तबकों के बीच सर्वसम्‍मति कायम करनी होगी।"

सीपीआई नेता रामबाबू कुमार ने कहा " समान नागरिक संहिता नीति निर्देशक सिद्धांतों के तहत आता है। संविधान सभा में भीम राव अंबेडकर ने कहा था कि इसे हम अनिवार्य नहीं बना सकते। जबरदस्ती इसे नहीं लाया जा सकता और आगे आने वाली पीढ़ियां इसको अपनी सुविधा के अनुसार तय करेंगी। यह एक तरह का निर्गुण अवधारणा है। इसको लाने के पीछे वन नेशन, वन लॉ और वन पार्टी की अवधारणा को सामने लाने की बात की जाती है। भाजपा ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में इसे डाला था तबसे यह लगातार सामने आ रहा है। शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को जब निरस्त किया तभी से कामन सिविल कोड को लाने की बात करते हैं।"

साहित्यकार मीरा मिश्रा ने सभा को संबोधित करते हुए कहा " समान नागरिक संहिता खास राजनीतिक पार्टी द्वारा 2024 के चुनाव को ध्यान में रखकर ध्रुवीकरण का लक्ष्य रखकर लाई गई है। यदि हम महिलाओं के नजर से देखें तो हिंदू एवं मुस्लिम पर्सनल लॉ में स्त्री- पुरुष समानता की नजर से सही नहीं हैं।  शरीयत तथा अन्य पर्सनल कानून में स्त्रियों के प्रति अच्छे दृष्टिकोण नहीं है। बौद्ध, जैन तथा हिंदुओं में भी  अलग- अलग है। इसके साथ साथ संविधान में शिक्षा का अधिकार, रोजगासमान नागरिक संहिता शांति भंग कर धार्मिक ध्रुवीकरण के मकसद से लाया गया है। र के अधिकार की बात की गई है क्या वह पूरा हो गया है। अलग से संहिता लाने की जरूरत नहीं है बल्कि मौजूदा कानून में बदलाव लाने की जरूरत है। गोवा में कानून है कि स्त्री को यदि 25साल एक भी बच्चा न हो तो पुरुष दूसरी शादी कर सकता है।" 

पूर्व राज्यसभा सांसद अली अनवर ने अपने विचार प्रकट करते हुए  कहा " भाजपा-आर. एस. एस की हमेशा ऐसी कोशिश रहती है कि हिंदू समाज को ध्रुवीकृत किया जा सके। समान नागरिक संहिता के बहाने हमलोगों को उनके ट्रैप में नहीं आना चाहिए। ऐसा हमलोगों ने नागरिकता संशोधन कानून के वक्त देखा था। मुसलमानों में आशंका घर कर गई थी। संभव है बहुमत के आधार बिना विचार विमर्श के इस संहिता को लागू करें। शाहबानो के वक्त मैं 'जनशक्ति' का रिपोर्टर था जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला बदल दिया गया। वामपंथियों ने उस समय सही स्टैंड लिया था लेकिन मुल्ला-मौलवियों ने इतना हंगामा किया तो उसकी प्रतिक्रिया हुई। आज भी धार्मिक नेताओं को नहीं बोलना चाहिए अन्यथा उनके ट्रैप में पड़ जाएंगे। ये राजनीतिक मसला है इसी स्तर पर निपटना चाहिए।"

सभा को एटक अध्यक्ष गजनफर नवाब और जवाहर लाल नेहरू विश्विद्यालय के अवकाश प्राप्त प्रोफेसर सुबोध नारायण मालाकर ने संबोधित किया।

प्रतिवाद मार्च का भी आयोजन

इस विमर्श के बाद मणिपुर की घटना पर केंद्रित एक  प्रतिवाद मार्च का आयोजन किया गया। तीनों  संगठनो द्वारा आयोजित यह मार्च केदारभवन से निकलकर इनकम टैक्स  चौराहा तक गया फिर वहां से जुलूस जनशक्ति भवन तक आया। 

आगत अतिथियों का स्वागत अजय कुमार और संचालन जयप्रकाश ने किया। 

विमर्श के दौरान प्रमुख लोगों  में थे जब्बार आलम, अरुण मिश्रा, सतीश कुमार, डीपी यादव, नंदकिशोर सिंह, विजय नारायण मिश्रा, गोपाल शर्मा, अनीश अंकुर, सुमंत शरण, अशोक कुमार सिन्हा, अमरनाथ, अक्षय कुमार, गजनफर नवाब, सुनील सिंह , जितेंद्र कुमार , रामलला सिंह, जानकी पासवान, रवींद्र नाथ राय, राजकुमार चौधरी, उमाकुमार, राजकुमार चौधरी , रामजी पासवान आदि। 

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