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किसानों की आय दोगुनी करना एक अधूरा सपना बन कर रह गया है

किसानों की आय दोगुनी करने के लिए एक समर्पित फसल विविधीकरण नीति शुरू करने की ज़रूरत है जिसमें किसानों को प्रमुख आदानों की ख़रीद और उनकी उपज के लिए एक सुनिश्चित बाज़ार का समर्थन हासिल हो।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। PTI

केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने केंद्रीय बजट 2023 पेश किया, जो 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले का आखिरी और पूर्ण बजट है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई), संशोधित ब्याज सबवेंशन स्कीम (एमआईएसएस), कल्याणकारी योजनाओं के के तहत राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को दालों के वितरण आदि जैसी अधिकांश प्रमुख योजनाओं के लिए खर्च में मामूली वृद्धि को छोडकर, अन्यथा कृषि क्षेत्र को एक ठंडी प्रतिक्रिया मिली है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएम-जीकेएवाई) के बंद होने के साथ, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं थी कि खाद्य सब्सिडी पर खर्च रुपये के वास्तविक खर्च 2021-22 में 2.89 लाख करोड़ रुपए से 2023-24 के बजट अनुमान (बीई) में 1.97 लाख करोड़ के साथ कम हो गया है। इसके अलावा, सबसे बड़ी सब्सिडी-उर्वरक पर खर्च है, जो किसानों को महत्वपूर्ण इनपुट सहायता प्रदान करता है, को भी 2022-23 में 2.25 लाख करोड़ रुपये के संशोधित अनुमान में 2023-24 में 1.75 लाख करोड़ तह घटा दिया गया है। 

कम और बेमौसम बारिश के कारण 2022 की खरीफ फसल में हुई उथल-पुथल का अनुभव करने के बाद, देश में किसानों को कम से कम यह उम्मीद थी कि मोदी सरकार पीएम-किसान योजना के तहत प्रति परिवार 6,000 रुपये की वर्तमान राशि के मुक़ाबले प्रति परिवार 8,000 रुपये का वार्षिक हस्तांतरण करेगी। लेकिन उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया क्योंकि इस योजना के लिए आवंटन में 2021-22 के लिए 66,825 करोड़ रुपए के मुक़ाबले 2023-24 में इसे 60,000 करोड़ रुपए कर दिया गया है। दुर्भाग्य से, बहुप्रचारित दावों जिसमें 'किसानों की आय दोगुनी करने' की बात कही गई थी उसे बजट में जगह तक नहीं मिली है। 2014-15 से 2022-23 के मोदी काल में 3.47 प्रतिशत की धीमी कृषि वृद्धि के कारण, कृषि से बड़ी आमदनी कमाने का सपना अब दूर की कोड़ी नज़र आता है। 2015-16 के स्तर से किसानों की आय को दोगुना करने के लिए, 2015-16 से 2022-23 तक प्रति वर्ष 10.4 प्रतिशत की दर से आमदनी बढ़ने की जरूरत है। इसके विपरीत, एमओएसपीआई द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, 2012-13 और 2018-19 के बीच किसानों की आय में 3 प्रतिशत प्रति वर्ष की मामूली वृद्धि हुई है। 

उम्मीद की इस आखिरी किरण के बिखरने के बाद, देश में अधिकांश किसान आजीविका के स्रोत के रूप में खेती को जारी रखने से काफी हद तक विमुख हो गए हैं। इसलिए, पर्याप्त सहायता और निरंतर आय सुनिश्चित करके उन्हें खेती के प्रति प्रेरित करने की तत्काल जरूरत है। जबकि पीएम-किसान जैसा प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण कार्यक्रम सही दिशा में एक कदम था, लेकिन हस्तांतरित राशि उनके समर्थन के लिए पर्याप्त नहीं हो सकती है। कीमतों के स्थिर स्तर को बनाए रखने के लिए, न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का लंबे समय से किसानों को उत्पादन समर्थन प्रदान करने के लिए एक नीतिगत साधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। किसानों की आय पर एमएसपी के प्रभाव को नियमित अंतराल पर एनएसएसओ द्वारा आयोजित स्थिति आकलन सर्वेक्षण (एसएएस) के माध्यम से पर्याप्त रूप से दर्ज किया जाता है।

2018-19 के लिए जारी एनएसएसओ (77वें दौर) के स्थिति आकलन सर्वेक्षण (एसएएस) के आंकड़ों से पता चलता है कि प्रभावी खरीद नीतियों वाले राज्यों में कृषि आय बढ़ी है। यह पाया गया है कि ऐसे राज्यों में अधिकांश किसान अपनी उपज एमएसपी से अधिक कीमत पर बेच सकते हैं। उदाहरण के लिए, ऐसे किसान पंजाब में लगभग 70 प्रतिशत, हरियाणा में 73 प्रतिशत और छत्तीसगढ़ में 60 प्रतिशत हैं जिन्हे इन राज्यों में एमएसपी से अधिक कीमत मिली है। यह पाया गया कि फसल के महीनों में चावल की थोक कीमतें 2018-19 में पंजाब और हरियाणा में क्रमश (2383 रुपये) और (2908 रुपये) थीं जहां खरीद केंद्रित है, जबकि  पूर्वी राज्यों, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम में क्रमश (1552 रुपए), (1751 रुपये) और  (1562 रुपये) थी। नतीजतन, पूर्वी राज्यों में कृषि परिवारों की औसत आय, पंजाब और हरियाणा के मुक़ाबले लगभग एक चौथाई थी। इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि सरकार द्वारा एक हिस्से की गई खरीद से प्रभावी मूल्य नीति में थोक मूल्यों को ऊपर उठाने और किसानों की आय पर सकारात्मक प्रभाव डालने की क्षमता है।

किसानों की आय बढ़ाने का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू, धान और गेहूं की मोनोक्रॉपिंग पर किसानों की निर्भरता को कम करने के लिए एक अनुकूल वातावरण बनाना और उन्हें अन्य अनाज और तिलहन की विविधता को तरफ ले लाने में मदद करना है। इसके लिए, एक समर्पित फसल विविधीकरण नीति शुरू करने की जरूरत है जिसमें किसानों को प्रमुख आदानों की खरीद और उनकी उपज के लिए एक सुनिश्चित बाजार के लिए समर्थन हासिल हो। इस तरह की पहल न केवल किसानों की आय के संकट को दूर करेगी बल्कि स्थायी कृषि पद्धतियों और प्राकृतिक संसाधनों के माध्यम से भारत के उत्तर पश्चिमी भाग में पानी आदि की न्यूनतम कमी को दूर करना सुनिश्चित करेगी। विविधीकरण के माध्यम से दालों और खाद्य तेल को बढ़ावा देने से आयात पर देश की निर्भरता भी कम होगी, जिससे बड़े विदेशी मुद्रा संसाधनों की बचत होगी।

आशा थी कि यह बजट, ठोस नीतियों और पर्याप्त आवंटन के माध्यम से किसानों की आय पर नए सिरे से ध्यान देगा। पीएम-जीकेएवाई जैसी प्रमुख योजनाओं पर कम व्यय का इस्तेमाल खरीद और फसल विविधीकरण नीतियों के विस्तार के लिए किया जा सकता है। बड़े क्षेत्रों को सुनिश्चित सिंचाई के तहत लाकर बुनियादी ढांचे में सुधार पर अन्य फोकस क्षेत्र, प्राकृतिक खेती के बड़े पैमाने पर प्रचार, कृषि अनुसंधान और विकास पर खर्च में सुधार से किसानों की विशाल बहुमत की "इतनी अच्छी नहीं" स्थिति में बदलाव आ सकता है। देश के आर्थिक विकास को ऊपर उठाने में कृषि क्षेत्र की क्षमता को कम नहीं आंका जाना चाहिए क्योंकि इसमें देश की एक बड़ी आबादी शामिल होती है।

रॉय आईसीआरआईईआर में रिसर्च फेलो हैं और प्रेरणा तेर्वे एक कृषि-नीति विश्लेषक हैं और तुवई नेचर प्राइवेट लिमिटेड की संस्थापक हैं। व्यक्त किए गए विचार निजी हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।

Doubling Farmers’ Income: An Unrealised Dream

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