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महाराष्ट्र: क्यों घाटे का सौदा साबित हुई हल्दी की खेती?

जिस तरह से पिछले कुछ वर्षो में हल्दी की मांग आसमान छूकर बुरी तरह से गिरी है उससे हल्दी उत्पादक किसानों की आर्थिक स्थिति चरमरा गई है। ये किसान अधिकतम लाभ को ध्यान में रख कर ही पूरी तरह हल्दी की खेती पर निर्भर रहे थे।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। PTI

हल्दी उत्पादन और गुणवत्ता के मापदंड पर देश के अग्रणी राज्यों में शामिल महाराष्ट्र के हल्दी उत्पादक किसान इन दिनों परेशानियों से गुजर रहे हैं। राज्य के पश्चिम अंचल और खास तौर से सांगली जिला हल्दी पट्टी के नाम से मशहूर है और यहां से देश और दुनिया में हल्दी की आपूर्ति होती है। लेकिन, कोरोना काल में हल्दी की बढ़ी मांग अब कम हो गई है। दरअसल, पिछले कुछ वर्षो से हल्दी की मांग अधिक होने से उत्साहित किसानों ने बड़े पैमाने पर हल्दी की खेती की थी। लेकिन, इस वर्ष मांग अचानक कम होने पर हल्दी के दामों में भी गिरावट आई है। यही वजह है कि उनके लिए लागत निकाल पाना मुश्किल हो रहा है और किसानों के लिए हल्दी की यही खेती अब घाटे का सौदा हो गई है।

कटाई के बाद स्थिति यह है कि बाजार में आने वाली हल्दी की कोई अपेक्षित कीमत नहीं है। इससे यहां के हल्दी उत्पादक किसानों के चेहरों पर मायूसी छायी हुई है।

दूसरी तरफ, हल्दी का निर्यात भी स्थिर बना हुआ है। अक्षय तृतीया से महाराष्ट्र के पश्चिम अंचल में हल्दी की खेती शुरू हो जाती है। लेकिन, जो हालात बन रहे हैं उनसे स्पष्ट है कि अगले वर्ष हल्दी की खेती के रकबे में बड़ी कमी आने की आशंका है।

कैसे टूट गई हल्दी उत्पादकों की कमर?

इसके पीछे के कारणों और पड़ताल में जाएं तो कोरोना काल में यह प्रचार किया गया था कि हल्दी का अत्यधिक सेवन करने से व्यक्ति की इम्युनिटी बढ़ती है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए देश भर के बाजार में हल्दी की मांग में भारी बढ़ोतरी हो गई थी। लिहाजा, किसानों ने बड़े स्तर पर हल्दी की खेती में निवेश किया था। लेकिन, इस वर्ष इसकी मांग कम हो गई है। मांग घटने से हल्दी का बाजार भी मंदा पड़ गया है। लिहाजा, इसका असर हल्दी की कीमत पर पड़ा है और हल्दी के भाव में भारी गिरावट ने हल्दी की चमक फीकी कर दी है।

महाराष्ट्र में हल्दी की कटाई का सीजन मुख्यत: फरवरी से शुरू होता है। हल्दी की कटाई अप्रैल के अंत तक पूरी हो जाती है। इस सीजन की हल्दी बाजार में आ गई है। हालांकि, हल्दी 7,000 रुपए प्रति क्विंटल के भाव बिक रही है। पिछले दो वर्षो में यही भाव 10,000 रुपए प्रति क्विंटल तक चला गया था। जाहिर है कि किसानों को उम्मीद के मुताबिक दाम नहीं मिला है। यही वजह है कि कई किसान या तो हल्दी की खेती से मुंह मोड़ सकते हैं या हल्दी की खेती के लिए अपेक्षा से कम जमीन उपयोग में ला सकते हैं।

सांगली जिले में गणेश विनायक नाम के हल्दी उत्पादक किसान बताते हैं कि इस वर्ष हल्दी के दाम 7,000 रूपए प्रति क्विंटल तक गिरने से उनकी आर्थिक स्थिति गड़बड़ा गई है। आमतौर पर एक एकड़ तक हल्दी उत्पादन करने में एक लाख 20 हजार से 1 लाख 40 हजार रुपए का खर्च आता है। एक एकड़ में करीब 35 क्विंटल सूखी हल्दी की पैदावार होती है। गणेश की मानें तो हल्दी की खेती किसानों के लिए तभी लाभदायक हो पाती है जब इस हल्दी की कीमत कम से कम दस हजार रुपये प्रति क्विंटल मिले। मौजूदा भाव तीन हजार रूपए प्रति क्विंटल घटने से किसानों को नुकसान हो रहा है।

किस हद तक घटेगा हल्दी का रकबा?

महाराष्ट्र के सतारा, सांगली, कोल्हापुर जिलों में अक्षय तृतीया से हल्दी की खेती शुरू हो गई है। वहीं, मराठवाड़ा में कुछ जगहों पर जून के अंत तक हल्दी की खेती जारी रहेगी। लेकिन, देखा जा रहा है कि कटी हुई हल्दी को अपेक्षित मूल्य नहीं मिल रहा है जिससे खेती प्रभावित हुई है। दूसरी तरफ, इस सीजन में हल्दी के बीज की मांग में करीब पचास फीसदी की कमी आई है। इससे बीज का भाव भी 1,200 रुपए से घटकर 1,300 रुपए प्रति क्विंटल रह गया है। इसलिए अनुमान है कि इस सीजन में देश में हल्दी के रकबे में कमी आएगी।

जैसे सांगली का हल्दी का बाजार प्रसिद्ध है वैसे ही हल्दी के बीज का बाजार भी प्रसिद्ध है। पश्चिमी महाराष्ट्र, मराठवाड़ा और कर्नाटक के सीमावर्ती क्षेत्रों के किसान बीज खरीदने के लिए सांगली आते हैं। इसलिए सांगली मंडी समिति में हर वर्ष हल्दी के बीज की करीब 700 (एक गाड़ी में 16 टन बीज) गाड़ी का कारोबार होता है। पिछले साल हल्दी बीज का भाव 4,000 से 4,200 रूपए प्रति क्विंटल था। इस सीजन में महज 400 से 500 गाड़ी बीज की ही बिक्री हुई है।

इसी तरह, किसानों को उत्पादन लागत के बराबर भुगतान नहीं होने के कारण यह अनुमान लगाया गया है कि महाराष्ट्र में हल्दी की खेती के क्षेत्रफल में औसतन बीस से पच्चीस प्रतिशत की कमी आएगी। देश में हल्दी का रकबा करीब तीन लाख हेक्टेयर है। इनमें प्रदेश में करीब एक लाख हेक्टेयर में हल्दी की खेती होती है। सांगली के हल्दी अनुसंधान केंद्र के प्रभारी अधिकारी डॉ. मनोज माली ने भी इस वर्ष हल्दी की खेती में बीस प्रतिशत तक की कमी का अंदेशा जताया है, जबकि बाजार के जानकार हल्दी की खेती में पचास प्रतिशत तक की कमी की आशंका जाहिर कर रहे हैं।

हल्दी उत्पादन में भारत कहां?

भारत दुनिया में हल्दी का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक देश है तो इसमें महाराष्ट्र की अहम भूमिका है। देखा जाए तो हल्दी की खेती चीन, म्यांमार, नाइजीरिया और बांग्लादेश में भी की जाती है। विश्व में हल्दी के क्षेत्रफल पर विचार करें तो मुख्य क्षेत्रफल भारत है और विश्व में कुल खेती का 82 प्रतिशत अकेले भारत में होता है। उससे नीचे चीन की 8 फीसदी, म्यांमार की 4 फीसदी, नाइजीरिया की 3 फीसदी और बांग्लादेश की 3 फीसदी है। वहीं, हल्दी महज भोजन के लिए ही नहीं बल्कि आयुर्वेद में चिकित्सा पद्धति में भी बड़ी मात्रा में प्रयोग के लिए लायी जाती है।

वहीं, कोरोना महामारी के दौरान प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए आयुर्वेदिक औषधि के रूप में भी हल्दी का उपयोग पारंपरिक इलाज के तरीकों के साथ-साथ कई देशों में बढ़ गया था। भारत में हल्दी की ज्यादा खपत के पीछे कई सामाजिक और सांस्कृतिक आयाम भी हैं। यहां कई सारी रीति-रिवाजों में भी हल्दी प्रयोग में लायी जाती है और शुभ मानी जाती है। लिहाजा, हल्दी का व्यापक रूप से दैनिक आहार, दवा, सौंदर्य प्रसाधन, जैविक कीटनाशकों में उपयोग किया जाता है। जाहिर है कि भारतीय जीवन शैली में हल्दी एक अनिवार्य घटक है।

लेकिन, जिस तरह से पिछले कुछ वर्षो में हल्दी की मांग आसमान छूकर बुरी तरह से गिरी है उससे हल्दी उत्पादक किसानों की आर्थिक स्थिति चरमरा गई है। ये किसान अधिकतम लाभ को ध्यान में रख कर ही पूरी तरह हल्दी की खेती पर निर्भर रहे थे। लेकिन, बाजार के हालात ने जिस तरह से उन्हें धोखा दिया है उससे उभरने में उन्हें कुछ वर्ष लगेंगे।

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