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महामारी के साथ अंधविश्वास ने भी पकड़ी रफ़्तार, कहीं पूजा-पाठ तो कहीं गई जान

भारत से कोरोना वायरस को भगाने के लिए भी कुछ राज्यों में पूजा-पाठ और गीतों का सहारा लिया जाने लगा है। बिहार से लेकर असम तक कई राज्यों से ‘कोरोना माई’ के पूजा के साथ-साथ मौत और कथित तौर पर बलि देने की घटनाएं भी सामने आ रही हैं।
महामारी के साथ अंधविश्वास

‘गो कोरोना गो’ का ‘ऐतिहासिक’ नारा लगाने वाले केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले का वायरल वीडियो तो शायद सभी ने देखा होगा। 20 फरवरी को गेटवे ऑफ इंडिया पर चीन के महावाणिज्य दूत तांग गुओकाई और बौद्ध भिक्षुओं के एक प्रार्थना सभा के दौरान चीन में कोरोना वायरस का प्रकोप रोकने के लिए मोमबत्ती जलाकर मंत्री जी द्वारा कोरोनो को भगाने की कोशिश की गई थी। लेकिन अब भारत से कोरोना वायरस को भगाने के लिए भी कुछ राज्यों में पूजा-पाठ और गीतों का सहारा लिया जाने लगा है। बिहार से लेकर असम तक कई राज्यों से ‘कोरोना माई’ के पूजा के साथ-साथ मौत और बली देने की घटनाएं भी सामने आ रही हैं।

क्या है पूरा मामला?

हाल ही में सोशल मीडिया पर बिहार का एक वीडियो वायरल हुई, जिसमें कुछ औरतें झुंड बनाकर पूजा के सामान के साथ कहीं जाते हुए दिखाई देती हैं। जब उनसे पूछा जाता है कि वो कहां जा रहीं हैं तो उनका जवाब होता हैं, “हम लोग पार्क जा रहे हैं, कोरोनामाई की पूजा करने। कोरोना माई की जय हो, बिहार से भाग जाओ। देश से भाग जाओ, जहां से आई हो, वहीं चली जाओ।”

गंगा स्नान और कोरोना पूजन

बताया जा रहा है कि राज्य के कई जिलों में महिलाएं सात गड्ढे खोद कर उसमें गुड़ का शर्बत डालकर के साथ लौंग, इलायची, फूल व सात लड्डू रखकर पूजा करने जुटी हैं, जिससे इस महामारी से छुटकारा मिल जाए। मुजफ्फरपुर के ब्रह्मपुरा स्थित सर्वेश्वरनाथ मंदिर में पिछले कई दिनों से ‘कोरोना माता’ की पूजा हो रही है। बक्सर जिले में कोरोनावायरस बीमारी को भगाने के लिए महिलाओं का जनसैलाब गंगा के किनारे उमड़ पड़ा। बताया जा रहा है कि गंगा में स्नान के बाद औरतों ने 9 पीस लडडू, नौ गुड़हल का फूल, 9 लौंग, 9 अगरबत्ती को पूजा के बाद जमीन में गाड़ दिया। इसे देखने के बाद हर कोई हैरान है।

वैसे ये मामला अब सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रहा है। देश के कई हिस्सों में महिला-पुरुष महामारी के प्रकोप को ख़त्म करने के लिए पूजा कर रहे हैं। उनका कहना है कि ‘कोरोना माई’ उन पर नाराज़ न हों, इसलिए ये ज़रूरी है। अब इस जानलेवा वायरस का अंत करने का एकमात्र तरीका यही पूजा है।

बकरों और मुर्गों की दी गई बलि

नवभारत टाइम्स में छपी ख़बर के मुताबिक झारखंड के कोडरमा जिले के उरवां गांव में बुधवार,10 जून को सुबह से रात तक आस्था के नाम पर अंधविश्वास का खेल चलता रहा। देवी माता के मंदिर में कोरोना को शांत करने के लिए हवन, पूजन, आरती हुई। देवी मां को खुश करने के लिए एक दिन में करीब 400 बकरों और मुर्गों की बलि तक दे दी गई। इस दौरान सोशल डिस्टेंसिंग की भी जमकर धज्जियां उड़ीं।

उरवां गांव के लोगों का मानना है कि बलि देने से कोरोना भाग जाएगा और उनका गांव कोरोना से मुक्त हो जाएगा। हालांकि, किसके कहने पर यह आयोजन किया गया, इसकी कोई जानकारी नहीं मिल पाई है। उधर, जब मामला प्रशासनिक अधिकारियों के पास पहुंचा तो अधिकारियों ने मामले में तत्काल कार्रवाई करने की बात कही है।

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अंधविश्वास ने महिला की ली जान 

वहीं न्यूज़-18 में की रिपोर्ट के अनुसार झारखंड के ही एक अन्य जिले पलामू  में कोरोना वायरस से जुड़े अंधविश्वास ने एक महिला की जान तक ली है। घटना रविवार, 7 जून की बताई जा रही है। कहा जा रहा है कि सिलदिली के टोला सिकनी में प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर एक अफवाह फैल गई। बताया गया कि प्रधानमंत्री ने कोरोना संक्रमण से बचने के लिए कोरोना देवी का व्रत रखने के लिए कहा है और जो औरतें व्रत रखेंगी, उनके अकाउंट में पैसे डाले जाएंगे।

ऐसा सुनकर 20-25 महिलाओं ने व्रत रखा। उनमें से एक थीं वशिष्ठ पासवान की 40 वर्षीय पत्नी वैजयंती देवी। दिनभर भूखा रहने से उनका ब्लड प्रेशर नीचे गिरने लगा। पेट में दर्द होने लगा और लकवे के लक्षण दिखने लगे। परिवार वाले इलाज के लिए उन्हें मोदीनगर ले जाने लगे तब रास्ते में रतनाग गांव के समीप उसकी मृत्यु हो गई।

पांडू ब्लॉक की पुलिस ने शव को पोस्टमॉर्टम के लिए पलामू मेडिकल कॉलेज अस्पताल भेज दिया। इसके बाद थाना प्रभारी ने लोगों से अपील की कि कोरोना एक महामारी है, इससे बचने के लिए किसी तरह के अंधविश्वास में न पड़ें। मास्क का इस्तेमाल करें और दूसरे लोगों से हमेशा कुछ दूरी बनाए रखें।

बाबा की झाड़-फूंक से फैला संक्रमण

दैनिक भास्कर के अनुसार मध्यप्रदेश के रतनाम जिले में मंगलवार, 9 जून को कोरोना मामलों की रिपोर्ट ने सबको हैरान कर दिया। इलाके में आए कुल पॉजिटिव मामलों में सबसे ज्यादा तादाद उन लोगों की थी जो किसी असलम बाबा से झाड़-फूंक करवाने जाते थे। नयापुरा के बाबा की 4 जून को कोरोना से मौत हो गई। जिसके बाद संपर्क में आने वालों के सैंपल लिए। अब तक इसमें कुल 23 लोगों के संक्रमित होने की खबर है। जिसके बाद इलाका अब हॉटस्पॉट बन गया है।

मंगलवार को प्रशासन ने एहतियात के बतौर 29 बाबाओं को क्वारंटाइन किया। प्रशासन का कहना है कि बाबाओं से ख़तरा इसलिए है कि ये झाड़ फूंक करते हैं, व कथित तौर पर मंत्र पढ़ी चीजें भी देते हैं। ऐसे में यदि एक भी बाबा संक्रमित हुआ तो बड़ा ख़तरा है।

आस्था के नाम पर अंधविश्वास भारी

आज तक की रिपोर्ट के अनुसार असम के बिश्वनाथ चाराली से लेकर दरंग और गुवाहाटी जैसे जिलों में भी लोग ‘कोरोना देवी’ की पूजा कर रहे हैं। बिश्वनाथ चाराली में शनिवार,6 जून को महिलाओं के एक समूह ने नदी के तट पर ‘कोरोना देवी’ की पूजा की। समूह में शामिल एक महिला ने कहा कि उनका विश्वास है कि अब इस जानलेवा वायरस का अंत करने का एकमात्र तरीका यही पूजा है।

रिपोर्ट के अनुसार, महिला ने कहा,‘ हम कोरोना माता की पूजा कर रहे हैं। पूजा के बाद हवा आएगी और वायरस को भस्म कर देगी।’

झारखंड के रांची, जमशेदपुर और धनबाद से भी ऐसी ही खबरें आईं। न्यूज 18 में छपी रिपोर्ट के मुताबिक सोशल मीडिया पर एक वायरल वीडियो के हवाले से कहा गया कि दो महिलाओं ने कथित तौर पर एक गाय को महिला में बदलते देखा। गाय से इंसान बनी उस महिला ने कहा कि वो कोरोना माता है। सोमवार और शुक्रवार के दिन पूजा करने से वो चली जाएंगी। इसके बाद से कोरोना माई की पूजा की घटनाएं बढ़ी हैं।

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अंधविश्वास की महामारी से कई राज्य प्रभावित

‘कोरोना देवी’ की पूजा उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम के कई इलाकों में चल रही है। ट्विटर पर भी ऐसे कई वीडियो देखने को मिल रहे हैं। औरतें पूजा करते हुए कोरोना देवी के लिए गीत भी गाती हैं। उन्हें लगता है कि पूजा के बाद एक हवा आएगी और वायरस को ख़त्म कर देगी। इस पूजा के दौरान न तो उनमें से कोई औरत मास्क लगाती है, न ही सोशल डिस्टेन्सिंग का पालन किया जाता है। इससे संक्रमण के फैलने का जोखिम कहीं अधिक बढ़ जाता है।

वैसे हमारे देश में बीमारियों को माता से जोड़ने का इतिहास पुराना है। चेचक को देसी भाषा में आज भी बड़ी माता और छोटी माता कहा जाता है कई जगह शीतला माता भी कहा जाता है। वहीं अंग्रेजी में इन बीमारियों को हम स्मॉल पॉक्स और चिकनपॉक्स के नाम से जानते हैं। दरअसल दोनों अलग-अलग बीमारियां हैं और वायरस से होती हैं लेकिन दिखने में एक जैसी होती हैं। हालांकि स्मॉल पॉक्स की वैक्सीन बनने के बाद इस बीमारी को लगभग जड़ से मिटा दिया गया है। लेकिन चिकनपॉक्स अभी भी लोगों को होता है और शीतला माता की पूजा जारी है। 

हालांकि जानकार मानते हैं कि बीमारी में देवी माता जैसा कुछ नहीं होता, थोड़ा आराम, पोष्टिक आहार और दवाइयों से आप आराम से ठीक हो सकते हैं लेकिन हमारे देश की संस्कृति में इस तरह की प्रार्थना और पूजा की आदत घरों में बचपन से बना दी जाती है, तो ताउम्र हमारे साथ ही रहती है। हमारे यहां लोग प्राकृतिक आपदाओं में भी पूजा-पाठ में लग जाते हैं क्यूंकि हमें बचपन से सभी समयाओं का हाल ईश्वर में बताया जाता है।

“सरकारें चाहती हैं कि लोग अंधविश्वासी बने रहें, सवाल न करें”

बिहार की सामाजिक कार्यकर्ता ऊषा सिंह मानती हैं कि प्रशासन की नाकामी इस अंधविश्वास के फलने-फूलने की सबसे बड़ी वजह है। उनका कहना है कि सरकारें खुद लोगों को अंधविश्वास से मुक्त नहीं देखना चाहती।

ऊषा कहती हैं, “मैंने कहीं पढ़ा की बिहार के सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री नीरज सिंह कह रहे हैं कि ‘आस्था में लोग पत्थर को पूजते हैं, तो कोई क्या कर सकता है? कोरोना माई की जो भी पूजा हो रही है उसकी वजह से ऐसा तो नहीं हुआ कि लोग इलाज कराने नहीं जा रहे।’ मैं हैरान हूं कोई इस महामारी में ऐसा बयान कैसे दे सकता है। सरकार इस अंधविश्वास को नहीं रोकेगी तो कौन रोकेगा। लेकिन हमारी सरकारे तो चाहती ही हैं कि लोग इस पूजा-पाठ और धार्मिक कर्म-कांडो में पड़कर सरकार से सवाल करना छोड़ दें, जो भी हो रहा है इसे कुदरत का कहर मान लें और सरकार पर कोई उंगली न उठे।”

प्रशासन अफवाह फैलाने वालों के साथ सख्ती से निपटें

लखनऊ विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र की प्रोफेसर रहीं अनिता कौल कहती हैं, “सबसे पहले हमें ये सोचना होगा कि आखिर ये पूजा का आइडिया आता कहां से है? दरअसल जब भी हम किसी परेशानी में होते हैं और कोई रास्ता नहीं सूझता इससे निकलने का तो भगवान की शरण में पहुंच जाते हैं। कई बार यही आस्था अंधविश्वास का रूप ले लेती है। कोरोना को लेकर भी यही स्थिति उत्पन्न हुई है। लोग इस महामारी से बचने के लिए आस्था और अंधविश्वास में पहुंच गए हैं।”

अनिता आगे कहती हैं, “इस बीमारी से जुड़े कई पहलुओं जैसे क्वारंटाइन, आइसोलेशन को लेकर लोगों में पहले ही डर, भ्रम और उलझन की स्थितियां बनी हुई हैं। ऐसे में यह अंधविश्वासी सोच इस लड़ाई को और मुश्किल बना देगी। अगर ऐसे ही ये अफवाहें जारी रहीं तो इस महामारी काल में अंधविश्वास भी एक बड़ा लूटने वाला व्यवसाय बन जाएगा, जो बेहद ख़तरनाक है। इसलिए ज़रूरी है कि प्रशासन ऐसे अन्धविश्वास को मानने और इससे जुड़ी अफवाहें फैलाने वालों के साथ सख्ती से निपटें। जिससे रूढ़ीवादी सोच के साथ-साथ इस बीमारी के विस्तार पाने पर भी लगाम लग सके, क्योंकि इस तरह की सामुदायिक पूजा, इस समय सामुहिक आत्मदाह है।”

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी ने कोरोना वॉरियर्स को शुक्रिया कहने के लिए देशवासियों को थाली बजाने के लिए कहा था। बाद में उन्होंने जनता को एकजुटता दिखाने के लिए घरों की लाइट बंद कर दीये, मोमबत्ती और फ्लैशलाइट जलाने के लिए कहा था। उस समय भी यह अंधविश्वास चारों तरफ फैला था कि थालियों की आवाज़ से या मोमबत्तियों की गर्मी से कोरोना वायरस मर जाएगा।

आखिर में केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले के स्लोगन पर फिर लौटते हैं। मंत्री साहब के स्लोगन को ‘ऐतिहासिक’ इसलिए कहा गया क्योंकि खुद मंत्री जी ने ही कुछ दिन बाद में अपने बयान को लेकर कहा था कि “20 फरवरी को जब कोरोना वायरस को लेकर इतनी गंभीर स्थिति नहीं थी, तब मैंने एक स्लोगन दिया ‘गो कोरोना गो’। उस वक्त लोगों ने कहा क्या इस स्लोगन से कोरोना भाग जाएगा। अब हम इस स्लोगन का असर पूरे विश्व में देख रहे हैं।” हालांकि आठवले का स्लोगन खुद उनके गृह राज्य को ही नहीं बचा पा रहा। देश और विदेश की बात तो दूर है।

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