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मध्य प्रदेश :  नए क़ानूनों से छह महीने में ही दफ़्न हो गईं 70 फीसदी कृषि मंडियां

अक्टूबर में मध्य प्रदेश की मंडियों में फ़सलों की कोई  ख़रीद-फ़रोख़्त नहीं हुई। सितंबर में भी 41 मंडियों में कोई कामकाज नहीं हुआ। राज्य में फ़सलें न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से आधे पर बिक रही हैं। 
मध्य प्रदेश

मोदी सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ सड़कों पर उतरे किसानों का डर अकारण नहीं है। इस साल मई में मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की बीजेपी सरकार कृषि उपज मंडियों और एमएसपी पर अनाज खरीदने की व्यवस्था खत्म करने लिए एक मॉडल कृषि कानून ले आई। इस कानून ने राज्य के किसानों को कॉरपोरेट कंपनियों के रहमोकरम पर छोड़ दिया।

इस कानून को लागू हुए छह महीने हो चुके हैं। इसके नतीजे अब दिखने लगे हैं। अक्टूबर में राज्य की 269 मंडियों में से 47 में कारोबार बिल्कुल ठप रहा। जून ( जब केंद्र सरकार तीन कृषि कानूनों के लिए अध्यादेश लेकर आई) और अक्टूबर के बीच इनमें से 143 मंडियों का कारोबार 50 से 60 फीसदी घट गया। ये आंकड़े राज्य सरकार की वेबसाइट ई-अनुज्ञा के हैं। मंडी बोर्ड के अधिकारियों का कहना है कि बाकी की 79 मंडियां इसलिए चल रही हैं कि फलों और सब्जियों की आवक बनी हुई है।

47 मंडियों में से दस मंडियां ग्वालियर में हैं। इनमें शिवपुरी की भी सात मंडियां शामिल हैं। इनमें सितंबर में ही काम बंद हो गया था। सितंबर में इंदौर की छह मंडियों में कोई काम नहीं हुआ। इसी तरह जबलपुर के सिवनी की छह मंडियों में उस महीने कोई खरीद-फरोख्त नहीं हुई। अक्टूबर में सागर जिले की 15 मंडियों में कोई काम नहीं हुआ। जबलपुर में 14 और रीवा की नौ मंडियों में भी कोई काम नहीं हुआ। इन आंकड़ों से यह भी पता चला कि राज्य में 298 उप-मंडियां हैं, जिनमें सीजन के मुताबिक फसलों की खरीद-फरोख्त होती है लेकिन पिछले छह महीनों में उनमें भी कोई कारोबार नहीं हुआ है और ये बंद होने के कगार पर पहुंच गई हैं। मंडी बोर्ड पिछले कई महीनों से अपने कर्मचारियों को वेतन और पेंशन नहीं दे पा रहा है। 

मंडियों में कारोबार घटने से बोर्ड का टैक्स कलेक्शन भी पिछले साल की तुलना में 64 फीसदी घट गया है। वित्त वर्ष 2019-20 ( 1 अप्रैल 2019  से 31 मार्च, 2020 ) के दौरान बोर्ड का टैक्स कलेक्शन 1200 करोड़ रुपये था। लेकिन छह महीने से यानी जब से अध्यादेश लागू हुआ है, बोर्ड टैक्स से सिर्फ 220 करोड़ ही जुटा सका है। पिछले साल की समान अवधि में जुटाए गए टैक्स का यह 36 फीसदी ही बैठता है। 

मध्य प्रदेश राज्य मंडी बोर्ड एक स्वायत्त निकाय है। यह निकाय मध्य प्रदेश कृषि मंडी अधिनियम,1972 के तहत बने नियमों पर चलता है। मंडी बोर्ड रजिस्टर्ड व्यापारियों से 1.5 फीसदी टैक्स लेता है। इसमें से वह 0.5 फीसदी राज्य सरकार को देता है। सरकार इस फंड का इस्तेमाल विकास और कल्याणकारी योजनाओं में करती है। बाकी बचे एक फीसदी टैक्स से बोर्ड अपने कर्मचारियों को वेतन और पेंशन देता है। इसके साथ ही वह इस पैसे का इस्तेमाल मंडी के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित करने पर भी खर्च करता है। राज्य में 45 हजार रजिस्टर्ड व्यापारी हैं। 

इस बीजेपी शासित राज्य में सरकार ने कृषि व्यापारियों के दबाव में मंडियों पर लगाया जाने वाला टैक्स 1.5 फीसदी से घटा कर 0.5 फीसदी कर दिया। मंडियों पर यह एक और चोट थी। नए कृषि कानूनों की वजह से ये पहले ही घाटे में चल रही थीं। इस नए कदम ने इनकी हालत और पतली कर दी। नए कृषि कानूनों में बिना किसी लाइसेंस या फीस के प्राइवेट मंडियां खोलने की इजाजत हैं। किसान यहां अपनी फसल बेच सकते हैं। 

संयुक्त संघर्ष मोर्चा, मध्य प्रदेश मंडी बोर्ड के संयोजक बीबी फौजदार करते हैं, “  नए कानूनों ने राज्य की 269 मंडियों में से 190 कृषि उपज मंडियों पर ग्रहण लगा दिया है। पिछले कुछ महीनों में राज्य की बी, सी, डी ग्रेड की 47 मंडियों में कोई टैक्स कलेक्शन नहीं हुआ है। जब से नए कानून आए हैं तब से बाकी 143 मंडियों के कारोबार में भी 50 से 60 फीसदी की भारी गिरावट आई है।

इसके अलावा सिर्फ सीजन में काम करने वाली 298 उप-मंडियों में भी पिछले छह महीनों में कोई खरीद-फरोख्त नहीं हुई है। ये तो बस अब बंदी के कगार पर हैं। 

मध्य प्रदेश के सात डिविजनों में 269 मंडियां और 298 उप-मंडियां हैं। इनमें 6500 कर्मचारी काम करते हैं। इन कर्मचारियों में 1500 महिलाएं, 2500 पेंशनर्स हैं। लगभग 9000 रजिस्टर्ड मजदूर हैं। लेकिन नए कानूनों ने सबको संकट में डाल दिया है। 

फौजदार मंडी बोर्ड के पूर्व कार्यपालन यात्री ( प्रथम श्रेणी अधिकारी) रह चुके हैं। उनका कहना है, वर्ष 2019-20 में बोर्ड ने 1200 करोड़ रुपये का टैक्स कलेक्शन किया था। इसमें से 446 करोड़ रुपये इसने राज्य सरकार को दिए थे। इसके अलावा बोर्ड अब तक सरकार को 1248.64 करोड़ रुपये दे चुका है। लेकिन नए कानून बना कर राज्य सरकार इसे बंद करना चाहती है ताकि व्यापारियों और कॉरपोरेट घरानों को फायदा हो सके।

मध्य प्रदेश सरकार के नए कानून के खिलाफ 3 अक्टूबर ( 2020) को राजधानी भोपाल में राज्य मंडी बोर्ड के हजारों कर्मचारियों ने बड़ा प्रदर्शन किया। केंद्र के नए कृषि कानूनों की तर्ज पर राज्य सरकार जो मॉडल मंडी बिल लाई है उसके खिलाफ कर्मचारियों ने वल्लभ भवन पर धरना देने की कोशिश की।  

राज्य में व्यापारियों के संगठन सकल अनाज दलहन-तिलहन व्यापारी महासंघ समिति के अध्यक्ष गोपालदास अग्रवाल कहते हैं,  जो नया कानून बना है वह व्यापारियों के लिए तो अच्छा है लेकिन किसानों और मौजूदा मंडियों के लिए बुरा। व्यापारी अब मंडियों के बाहर से अनाज खरीद रहे हैं। यही वजह है कि राज्य की मंडियों से टैक्स कलेक्शन घट गया है।

अग्रवाल कहते हैं, अब कोई व्यापारी अच्छा-खासा टैक्स चुका कर मंडी में फसल खरीदने क्यों आएगा? उसे जब बगैर टैक्स दिए और बिना लाइसेंस के मंडी के बाहर अनाज खरीदने की सुविधा मिल रही है तो वह टैक्स चुकाने मंडी क्यों जाएगा?  व्यापारियों ने मंडी व्यवस्था को विकसित करने के लिए जो पैसा लगाया था वह भी अब पानी में चला गया। अब इन मंडियों का अस्तित्व खतरे में हैं। 

अग्रवाल कहते हैं, अब यह बात साफ है कि नए कानून में किसानों के लिए कोई सुरक्षा नहीं है, जबकि व्यापारियों को खुली छूट मिल गई है।

एमएसपी पर कोई खरीद नहीं

मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार और इसके मंत्री एमएसपी खत्म करने और मंडी बोर्ड बंद होने की बात नकारते आ रहे हैं। उनका दावा है कि ऐसा कुछ नहीं हुआ है। यह सिर्फ प्रोपगंडा है। लेकिन 5 जून के बाद से सरकार अपने दावों के समर्थन में सुबूत भी नहीं दे पाई है। 

हरदा के किसान नेता केदार सिरोही कहते हैं, जब से नए कृषि कानून लागू हुए हैं तब से बीजेपी शासित मध्य प्रदेश सरकार ने एक भी फसल की खरीद एमएसपी पर नहीं की है। चाहे सोयाबीन हो ( एमसएपी -3,850 रुपये प्रति क्विंटल), मक्का हो ( एमएसपी- 1,825 रुपये प्रति क्विंटल) या फिर मूंग ( एमएसपी – 7050 रुपये प्रति क्विंटल)। हर फसल मंडियों से बाहर एमएसपी से कम रेट पर बिक रही है।

इस साल राज्य सरकार ने एमएसपी पर सिर्फ गेहूं खरीदा है। मार्च से मई के बीच खरीदे गए गेहूं की कीमत 1925 रुपये प्रति क्विंटल लगाई गई थी। इस साल सबसे ज्यादा गेहूं मध्य प्रदेश ने ही खरीदा है। राज्य ने 129 लाख टन का रिकार्ड गेहूं खरीदा। गेहूं खरीद में इसने इस बार पंजाब को भी पीछे छोड़ दिया।  

ऑल इंडिया किसान संघर्ष को-ऑर्डिनेशन कमेटी ( AIKSCC)  के राज्य संयोजक बादल सरोज ने कहा कि सरकार कह रही है कि मंडियां ठीक से चल रही हैं और एमएसपी पर फसलों की खरीद भी चालू है। लेकिन यह झूठ है ।

वह कहते हैं, जब से नए कृषि कानून लागू हुए हैं तब से राज्य सरकार  ने न तो एमएसपी पर कोई फसल खरीदी और न मंडियों को कोई मदद दी है।सरोज कहते हैं मंडियों का टैक्स कलेक्शन घट गया है। फसलों की कीमत गिर गई है। चाहे मंडी के भीतर हो या फिर बाहर फसलें एमएसपी से आधी कीमतें पर बिक रही हैं। सरकार के पास इसका रिकार्ड है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और कृषि मंत्री कमल पटेल रोज किसानों से झूठ बोल रहे हैं।

पीएम नरेंद्र मोदी नए कृषि कानून लाकरवन नेशन, वन मंडीका नारा बुलंद कर रहे हैं। लेकिन सीएम चौहान ने पिछले दिनों कहा, मैंने यह फैसला किया है कि राज्य के किसान जो भी उगाएंगे सरकार उसे खरीदेगी लेकिन किसी पड़ोसी राज्य का कोई व्यक्ति यहां अपनी फसल बेचने आएगा तो उसका ट्रक जब्त कर लिया जाएगा। उसे जेल की हवा खानी पड़ेगी। चौहान ने यह ऐलान 3 दिसंबर को सिहोर जिले के नसरुल्लागंज की एक किसान रैली में किया था। 

लेकिन इस मामले में सवाल पूछने की गरज से बार-बार संपर्क करने के बावजूद न तो स्टेट मंडी बोर्ड के मैनेजिंग डायरेक्टर संदीप यादव ने कोई जवाब दिया और न ही कृषि मंत्री कमल पटेल ने फोन उठाया। 

किसान नेता का ऐलान, संघर्ष और तेज करेंगे 

राज्य के 500 किसान संगठनों के संघ संयुक्त किसान मोर्चा ने केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन और तेज करने का फैसला किया है।

कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलकारी किसान डटे हुए हैं। केंद्र ने कहा कि किसानों को गुमराह किया जा रहा है। वे किसी की शह पर आंदोलन कर रहे हैं। केंद्र ने कानून में बदलाव के पेशकश की लेकिन पांच दौर की बातचीत के बावजूद कोई नतीजा नहीं निकल सका है। केंद्र का रुख किसानों को संतुष्ट नहीं कर पाया है। लिहाजा उन्होंने 8 दिसंबर को भारत बंद का ऐलान किया है।

राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ (RKMM),  के संयोजक शिवकुमार शर्मा कक्का जी इस आंदोलन में राज्य के किसानों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। वह कहते हैं, हमने केंद्रीय मंत्रियों और अधिकारियों से पांच बैठकें की और अपनी बिल्कुल सीधी मांगें रखी। हमने कहा कि सिर्फ व्यापारियों और कॉरपोरेट कंपनियों के फायदे के लिए जल्दबाजी में लाए गए तीनों कृषि कानूनों को खत्म करें। साथ ही कानून बना कर एमएसपी के नीचे फसलों की खरीद को अपराध घोषित कर दें। जब तक सरकार हमारी मांगें नहीं मानती, हम आंदोलन का रास्ता नहीं छोड़ेंगे। अपने आंदोलन को हम और तेज करने जा रहे हैं। 

अंग्रेजी में प्रकाशित मूल लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें। 

New Laws Paralyse 70% of MP’s Mandis in Six Months

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