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नीलगायों के आतंक से किसान परेशान, नुक़सान का नहीं मिलता मुआवज़ा

"इस पर सरकार की तरफ़ से कोई पहल नहीं की गई। हमारे सारण ज़िले का क़रीब दो-तिहाई हिस्सा नीलगाय से प्रभावित है। ये किसी भी तरह की फ़सल को नहीं छोड़ती है।"
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बिहार में नीलगाय की बढ़ती संख्या से एक तरफ जहां किसान परेशान हैं वहीं दूसरी तरफ इसके चलते सड़कों पर राहगीर हादसों के शिकार हो रहे हैं। ये झुंड में आते हैं और खेतों में खड़ी फसलों के चट कर जाते हैं जिससे किसानों के सामने फसल बचाने की समस्या पैदा हो गई है। पूरे बिहार का यही हाल है। इसको लेकर किसानों ने कई बार शासन-प्रशासन से गुहार लगाई। सरकार की ओर से नीलगायों को नियंत्रित करने के लिए नसबंदी समेत कई तरह की कार्रवाई की बात सामने आई थी लेकिन स्थिति फिलहाल जस की तस बनी हुई है। इसके झुंड फसलों को खाने के साथ साथ ये पूरे खेत को रौंद देते है जिससे फसलें नष्ट हो जाती है।

कोई मुआवज़ा नहीं मिलता

सारण जिले के किसान शिवशंकर कहते है, "इस [नीलगाय] को लेकर सीपीआइएम के विधायक दल के नेता व विभूतिपुर के विधायक अजय कुमार ने सदन में इस साल मार्च महीने में सवाल उठाया था। उन्होंने बखूबी इस मुद्दे को उठाया लेकिन सरकार की ओर से इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। सरकार कार्रवाई करने की बात कह कर निकल गई लेकिन इस पर सरकार की तरफ से कोई पहल नहीं किया गया। हमारे सारण जिला का करीब दो-तिहाई हिस्सा नीलगाय से प्रभावित है। ये किसी भी तरह के फसल को नहीं छोड़ती है। कोई भी फसल इससे बच नहीं पाता है, किसान परेशान हैं। दूसरी ओर हमारे यहां लोग धार्मिक भावनाओं से ओत-प्रोत है जिसके चलते इसको मार कर खाने वालों के लिए भी समस्या है। धार्मिक दृष्टि से इस पर अड़ंगा लग जाता है और सामाजिक द्वेष पैदा करने का काम किया जाता है। नीलगायों से किसानों की जिस तरह फसलें बर्बाद हो रही है ऐसे में सरकार की ओर से इसका शिकार करने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। इस मामले अब तक सरकार और प्रशासन की ओर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। ये पशु किसानों का जब फसल बर्बाद कर देते हैं तो सरकार की ओर से कोई मुआवजा भी नहीं मिलता है। किसानों की दशा पहले से बदतर है। ऐसे में इस तरह सरकार की तरफ से की जा रही उदासीनता से उनकी हालत और बदतर हो रही है। किसानों को उनकी फसल की लागत का आधा भी उन्हें नहीं मिल पाता है। अगर उत्पादन सही सलामत हो जाए तो हर एक किसानों की हालत सुधर जाएगी। किसान किसी का मोहताज नहीं रहेगा।"

सरकार के पास कोई योजना नहीं

वैशाली जिले के किसान और सामाजिक कार्यकर्ता संजीव बताते है, "सरकार इस पर कोई कार्रवाई नहीं कर रही है। एक तरह से कहा जाए तो ये सरकार द्वारा प्रायोजित आतंक है। इससे किसान लूटे जा रहे हैं। नीलगाय के चलते किसान सही तरीके से खेती नहीं कर पाते हैं। इसको नियंत्रित करने के लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं है। साल 2019 में सरकार की ओर से कुछ कार्रवाई की गई थी। नीलगायों को मारने के लिए सरकार का आदेश आया था। इसको लेकर कुछ शूटर बहाल किए गए थे। लेकिन सरकार की मंशा थी कि इसको विवाद में डाल दिया जाए। जिला के भगवानपुर थाना क्षेत्र में एक जिंदा नीलगाय प्रशासन की निगरानी में दफना दिया गया था। इसका वीडियो भी वायरल हुआ था जिसके बाद विवाद बढ़ गया। इसको लेकर मानवाधिकार के लोग सक्रिय हुए और मामला ठंडे बस्ते में चला गया।"

नीलगायों की नसबंदी

इस साल मार्च महीने में ये बात सामने आई थी कि सरकार नीलगायों की नसबंदी कराएगी जिससे इसकी संख्या में वृद्धि रुकेगी। बिहार में हाथी व सुअर जैसे जानवरों से होने वाले फसलों के नुकसान का मुआवजा देने का प्रावधान है लेकिन नीलगाय से होने वाले नुकसान पर मुआवजा देने का प्रावधान नहीं। ऐसे में बिहार सरकार नीलगायों को पकड़ेगी और उनकी नसबंदी कराएगी। 4 मार्च को विधान परिषद को वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के मंत्री नीरज कुमार सिंह ने इस संबंध में जानकारी दी था। उस दौरान विधान परिषद में चल रही कार्यवाही के दौरान मंत्री ने कहा था कि फसल के नुकसान होने की स्थिति में नीलगायों और सूअरों को मारने के निर्देश दिए जाते हैं। वन प्रमंडल पदाधिकारी को 100 और वन संरक्षक को 500 नीलगायों को मारने की अनुमति देने का अधिकार है। प्रभावित किसान द्वारा नीलगायों को मारने के लिए आवेदन दिया जाता है। आवेदन के बाद विभाग द्वारा मारने की कार्रवाई की जाती है।

तीन दिनों में क़रीब 250 नीलगायों को मारा गया

बिहार के मोकाम टाल इलाके में जून 2016 तीन दिनों में करीब 250 गायों को मारा गया था। इसको लेकर तत्कालीन केंद्रीय मंत्री ने कहा था कि जिस तरह से नील गायों को मारा गया है उसके लिए पर्यावरण मंत्री और प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जिम्मेदार हैं। उन्होंने कहा था कि बिहार में नीतीश सरकार ने ही 250 से अधिक बेजुबान नीलगायों को मरवाया। उन्होंने जो किया वो बेहद शर्मनाक है।

बता दें कि मोकामा टाल क्षेत्र में फसलों की बर्बादी को बढ़ता देख वहां के किसान शूटरों की मदद से नीलगायों का सफाया करना शुरू किया था। इन नीलगायों को मारने के लिए हैदराबाद से शूटरों की टीम बुलाई गई थी। वहीं हजारों से अधिक नीलगायों को जंगली क्षेत्रों में भगाया गया था। एक अनुमान के मुताबिक मोकामा टाल क्षेत्र में करीब दस हजार से अधिक नीलगाय थें।

साल 2013 में नीतीश सरकार ने नीलगायों को संरक्षित जीवों की सूची से बाहर कर दिया था। केंद्र सरकार से नीलगायों को मारने की इजाजत मांगी गई थी।

नीलगायों से हादसे में मौत

करीब दो हफ्ते पहले छपरा के इसुआपुर इलाके के रामचौरा गांव के एक 22 वर्षीय युवक की मौत मोटरसाइकिल पर नील गाय के कूदने से हो गई। वह इसुआपुर बाजार से मोटरसाइकिल से अपने घर लौट रहा था कि रास्ते में एक नीलगय उसके मोटरसाइकिल पर कूद गया जिससे वे सड़क पर गिर पड़ा और गंभीर रूप से घायल हो गया। उसे इलाज के लिए छपरा से पटना ले जाया गया जहां उसकी मौत हो गई।

उधर 5 अक्टूबर को समस्तीपुर जिले में नील गाय की ठोकर से बाइक सवार समेत तीन लोग जख्मी हो गए। इस हादसे में एक महिला की स्थिति गंभीर हो गयी थी। महिला अपने पोते व बहु के साथ बाइक से ही समस्तीपुर इलाज कराने जा रही थी। इसी दौरान उजियारपुर प्रखंड के अंगारघाट थाना क्षेत्र में रेबाड़ी ढाला के पास पहुंचने पर अचानक नीलगाय का झुंड सड़क पर एक ओर से दूसरी ओर गुजरने लगा तभी ये हादसा हुआ।

3 अक्टूबर को बिहार के मोतिहारी में राजमार्ग 27 पर एक कार नीलगाय से टकरा गयी थी जिससे कार अनियंत्रित हो कर पलट गई। संयोगवश इस घटना में कार सवार बाल बाल बच गए। वहीं नीलगाय की मौत हो गई।

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