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बाइडेन-पुतिन शिखर सम्मेलन का होहल्ला  ख़त्म

अमेरिकी-रूस के बीच जब भी संबंध की बात आती है तो एक ठहराव का लौट आना अवश्यम्भावी हो जाता है। इसके कुछ आरंभिक संकेत पहले से मौजूद हैं। अफगानिस्तान और म्यांमार को लेकर बाइडेन को रूस से कुछ मदद मिलने की अपेक्षा है।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को बोलते हुए सुनते अमेरिकी सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन। बाइडेन रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन के साथ 16 जून 2021 को स्विटजरलैंड के जिनेवा में शिखर सम्मेलन के बाद मीडिया से मुखातिब हुए।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को बोलते हुए सुनते अमेरिकी सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन। बाइडेन रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन के साथ 16 जून 2021 को स्विटजरलैंड के जिनेवा में शिखर सम्मेलन के बाद मीडिया से मुखातिब हुए।

अमेरिका-रूस शिखर वार्ता की अगली सुबह यह जानना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण था कि पिछले दिन दिखाया गया सौजन्य क्या वास्तविक था, अतिवास्तविक या अवास्तविक था। जो बाइडेन और व्लादीमिर पुतिन के बीच शिखर सम्मेलन संबंधी तथ्यों की छानबीन कर मैंने अगले दिन इसका बेहद सावधानी से आकलन किया।

“क्या बाइडेन ने अमेरिका-रूस संबंधों में ‘‘स्थिरता और संभाव्यता’’ लाने की अपनी परियोजना के साथ आगे बढ़ने के लिए अपनी राजनीतिक पूंजी का निवेश कर दिया है? स्पष्ट है कि इस मोड़ पर यह बताना जल्दीबाजी होगी कि यह शिखर सम्मेलन सफल था या नहीं। इस शिखर वार्ता के संदर्भ में अमेरिका और रूस संबंधों में आगे की प्रगति को देखने के लिए कई सप्ताह और महीने लगेंगे। जिनेवा में हुआ यह एक अकेला शिखर सम्मेलन ही संबंधों को व्यापक रूप से रूपांतरित नहीं कर सकता।” (Takeaways from Biden-Putin summit, Indian Punchline)

इसके तीन दिन बाद, यह शिखर परिघटना अनिश्चितता की चोटी पर पहुंच गई। यह एक ऐसे रासायनिक जलन की तरफ इंगित करता है और जो व्यापक ऊतक क्षति का कारण बन सकता है।

पुतिन को संभवत: इस परिघटना के कुछ पूर्वानुमान थे। उन्होंने मास्को लौटने के तुरंत बाद ही बाइडेन के बारे में विगत बृहस्पतिवार को एक व्यक्तिगत टिप्पणी की और चेतावनी दी “मैं आशा करता हूं कि हम पुराने वर्षों को लौटता हुआ नहीं देखेंगे और उनको (बाइडेन को) ठंडे मन से काम करने का मौका मिलेगा।”

क्रेमलिन को वाशिंगटन से मोलतोल करने का प्रचुर अनुभव है। अत: रूसी विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोव ने शुक्रवार को पहले चेतावनी दी कि अनुभव में पगी उनकी आंखों ने “जिनेवा शिखर सम्मेलन के परिणामों को लेकर वार्ता में मौजूद रहे लोगों समेत अमेरिकी अधिकारियों के आकलन” में एक निश्चित मात्रा में पीछे हटने के भाव को पहले ही ताड़ लिया है।
अपनी विशिष्ट स्पष्टवादिता के साथ लावरोव ने उन लोगों को फटकार लगाई “यह वह रुख-रवैया नहीं है, जिस गरज से दोनों राष्ट्रपतियों ने परस्पर बातचीत की है। मैं चाहता हूं कि जो लोग उनकी शिखर वार्ता के नतीजे पर इस तरह से टीका-टिप्पणी करते हैं, वे कान खोल कर इसे सुन लें: ‘यह एकल रास्ता नहीं है।’ 

हालांकि रविवार को सीएनएन के साथ अपने इंटरव्यू में अमेरिकी सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन ने घोषणा की कि रूसी विपक्षी कार्यकर्ता एलेक्सी नवलनी के  प्रति किए जा रहे व्यवहार के संवेदनशील मसले में क्रेमलिन पर “हम प्रतिबंधों के एक दूसरे पैकेज की तैयारी कर रहे हैं।”  और कि, वाशिंगटन “नोर्ड स्ट्रीम II (गैस पाइप) लाइन के निर्माण में रूसी ईकाई के संलग्न होने के मामले में 90 दिनों का एक प्रतिबंध जारी रखेगा।”  

अमेरिका में रूसी राजदूत अनातोली एंटानोव (जो हाल ही में वाशिंगटन से लौटे हैं) ने तत्काल टिप्पणी (promptly noted) की, “यह वह संकेत नहीं है, जिसे हम सब शिखर वार्ता के बाद उम्मीद कर रहे थे। मैं नहीं सोचता कि प्रतिबंधों के जरिए देशों के बीच संबंध स्थिर और सामान्य होना पाना  संभव है। अभी मौजूदा सबक परस्पर बातचीत को सामान्य बनाने का होना चाहिए। बातचीत की ध्वस्त पड़ी कड़ियों को जोड़ने की व्यवस्था सबसे पहले होनी चाहिए।”

बेशक, सुलिवन के साथ सीएनएन के इंटरव्यू की योजना बेहद सतर्कता से तैयार की गई थी। इसमें भेंटकर्ता ने बेल्टवे (वाशिंगटन डीसी) में व्यापक तौर पर जताए जा रहे इस संशय पर सुलिवन से टिप्पणी मांगी थी कि भोले-भाले बाइडेन ने पुतिन के शब्दों पर भरोसा कर लिया है।
यह अमेरिका में राजनीतिक माहौल का मुख्य परिणाम था, जहां डेमोक्रट्स पार्टी ने पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को क्रेमलिन के इशारे पर नाचनेवाले एक मंचुरियन उम्मीदवार बताते हुए उनके विरुद्ध अभियान चलाया था। रूस अमेरिका की जनचेतना में गहरा धंसा हुआ है और वह उप-भूमि में छिपे हुए रूसीफोबिया से अपनी खुराक लेता है। पुतिन का रूस-अमेरिका की विदेश नीति को लेकर किए जाने वाले विमर्श में सबसे विषाक्त विषय है।

यह अकेली हिलेरी क्लिंटन थीं जिन्होंने पुतिन के साथ राष्ट्रपति बाइडेन की किसी भी तरह की बातचीन का खुला विरोध किया था। क्लिंटन ने इसे व्यक्तिगत आधार देते हुए कहा :

“मैं समझती हूं कि उनका (बाइडेन) वैदेशिक संबंधों को संभालने का लंबा इतिहास रहा है, अपने आठ वर्षों (बराक ओबामा के राष्ट्रपतित्व काल में) के उपराष्ट्रपति के रूप में यह देखा है कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों के क्षेत्र में किन चीजों ने काम किया था और किन चीजों ने काम नहीं किया था। ट्रंप के विध्वंसकारी राष्ट्रपतित्व के दौरान पुतिन को अपनी मर्जी का काम करने के लिए बुनियादी रूप से छूट दे दी गई थी-बेशक उन्होंने एक बार ट्रंप को जिताने में मदद भी की थी-ऐसे में मैं सोचती हूं कि आप इस विषय को एक बिल्कुल अलग नजरिये से देखेंगे।”

हिलेरी क्लिंटन जिनेवा शिखर सम्मेलन के दिन ही बोल रही थीं। पुतिन के रूस के खिलाफ एक कट्टर योद्धा होने के कारण, और सुलिवन एवं विदेश मंत्री अनोतोनी ब्लिंकेन दोनों ही उनके संरक्षित रहे हैं, ऐसे में क्लिंटन के विचार काफी वजन रखते हैं।

आश्चर्यजनक रूप से क्लिंटन की टिप्पणी को अमेरिका के किसी अधिकारी या मंत्री ने खंडन भी नहीं किया है। लेकिन सुलिवन ने बाइडेन को “रूस पर कमजोर” बताने पर माइक पोम्पियो को फटकार ( tore into Mike Pompeo) लगाई थी। फिर आगे क्या होना है? अमेरिकी-रूस के बीच जब भी संबंध की बात आती है तो एक ठहराव का लौट आना अवश्यम्भावी हो जाता है। इसके कुछ आरंभिक संकेत पहले से मौजूद हैं। अफगानिस्तान या म्यांमार को लें तो बाइडेन यहां रूस से कुछ मदद मिलने की अपेक्षा करते हैं।

बृहस्पतिवार को मीडिया से बातचीत करते हुए रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया व्लादीमिरोव्ना ज़खारोवा ने काबुल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के संचालन का जिम्मा तुर्की की सेना को दिए जाने की अमेरिकी कदम का उपहास उड़ाया और सुझाव दिया कि “इस बारे में अंतिम निर्णय अंतर-अफगान राष्ट्रीय समन्वय के लिए उपयुक्त तरीके से और उचित प्रकिया अपनाते हुए लिए जाने चाहिए।” 

काबुल हवाईअड्डे की हिफाजत के लिए वाशिंगटन अब पेंटागन के कान्ट्रेक्टर (भाड़े के लोग) को ढूंढ़ रहा है। लेकिन यह विशेष तौर पर विवादित कदम होगा, जैसा कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने अफगानिस्तानी स्थिति के संदर्भ में पाकिस्तानी सरजमीन पर अमेरिकी सेना की मौजूदगी के विचार को सिरे से नकार दिया है। read more

म्यांमार के मसले पर रूस सक्रिय रूप से चीन के साथ समन्वय कर रहा है, यह करते हुए वह अमेरिका द्वारा उस देश में अस्थिरता पैदा करने की कोशिशों को कुचल देना चाहता है। हाल ही में, म्यांमार के विदेश मंत्री यू वुन्ना मौंग ल्विन ने चीन का दौरा किया था और चीन के स्टेट काउंसिलर एवं विदेश मंत्री वांग यी के साथ 8 जून को मुलाकात की थी।

पढ़ कर सुनाए गए चीनी वक्तव्य (Chinese readout) के मुताबिक वांग ने कहा, “चीन-म्यांमार के बीच राजनयिक संबंध के 71 साल 8 जून को पूरे हो गए। विगत इन 71 वर्षों में चीन के लोग और म्यांमार के लोगों ने एक दूसरे का साथ रहे हैं और एक दूसरे की मदद की है….म्यांमार के प्रति चीन की मित्रवत नीति उसकी घरेलू या बाहरी स्थितियों में हुए बदलावों से प्रभावित नहीं हुआ है। चीन ने म्यांमार के अपने लिए चुने गए विकास पथ का समर्थन किया है, कर रहा है और करता रहेगा, जो उसकी (म्यांमार की) अपनी परिस्थितियों में मुफीद बैठता है। चीन म्यांमार के साथ काम करने के लिए तैयार खड़ा है।”

पेइचिंग म्यांमार में मौजूदा सैन्य नेतृत्व के साथ कारोबार का इरादा रखता है। और मास्को भी कुछ ऐसी ही योजना बना रहा है। दरअसल, म्यांमार सेना के कमांडर मिन आंग हलिंग अभी-अभी पांच दिनों के दौरे पर मास्को में हैं।

बाइडेन प्रशासन की प्रतिष्ठा को कुचलने वाले इन झटकों की अनुगूंज पूरे एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सुनाई देगी। रूस और चीन अपने आसपास के क्षेत्रों जैसे-यूक्रेन, बेलारूस, मॉल्डोवा, हांगकांग, म्यांमार और अफगानिस्तान में अस्थिरता का एक घेरा पैदा करने के अमेरिकी योजना में पलीता लगाने के लिए हाथ मिला लिया है।

अब यहां से अमेरिका कहां जाता है? जाहिर है कि रूस और चीन से निबटने की दोहरी रणनीति पर काम करने के लिए अमेरिका की क्षमता नहीं है। न ही यूरोपीय शक्तियों में रूस एवं चीन से उलझने वाली अमेरिका की ऐसी रणनीतियों में संलग्न होने की कोई आकांक्षा है।

पिछले सप्ताह, जिनेवा से लौट कर सुलिवन ने प्लान बी के बारे में यह कहते हुए संकेत दिया है कि बाइडेन चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ आगे की बातचीत की संभावनाएं खंगालेंगे...अब यह बातचीत कहां और कैसे होगी, यह सवाल बना हुआ है।”

काबुल हवाईअड्डे की हिफाजत के लिए वाशिंगटन अब पेंटागन के कान्ट्रेक्टर (भाड़े के लोग) को ढूंढ़ रहा है। लेकिन यह विशेष तौर पर विवादित कदम होगा, जैसा कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने अफगानिस्तानी स्थिति के संदर्भ में पाकिस्तानी सरजमीन पर अमेरिकी सेना की मौजूदगी के विचार को सिरे से नकार दिया है। read more

म्यांमार के मसले पर रूस सक्रिय रूप से चीन के साथ समन्वय कर रहा है, यह करते हुए वह अमेरिका द्वारा उस देश में अस्थिरता पैदा करने की कोशिशों को कुचल देना चाहता है। हाल ही में, म्यांमार के विदेश मंत्री यू वुन्ना मौंग ल्विन ने चीन का दौरा किया था और चीन के स्टेट काउंसिलर एवं विदेश मंत्री वांग यी के साथ 8 जून को मुलाकात की थी।

पढ़ कर सुनाए गए चीनी वक्तव्य (Chinese readout) के मुताबिक वांग ने कहा, “चीन-म्यांमार के बीच राजनयिक संबंध के 71 साल 8 जून को पूरे हो गए। विगत इन 71 वर्षों में चीन के लोग और म्यांमार के लोगों ने एक दूसरे का साथ रहे हैं और एक दूसरे की मदद की है….म्यांमार के प्रति चीन की मित्रवत नीति उसकी घरेलू या बाहरी स्थितियों में हुए बदलावों से प्रभावित नहीं हुआ है। चीन ने म्यांमार के अपने लिए चुने गए विकास पथ का समर्थन किया है, कर रहा है और करता रहेगा, जो उसकी (म्यांमार की) अपनी परिस्थितियों में मुफीद बैठता है। चीन म्यांमार के साथ काम करने के लिए तैयार खड़ा है।”

पेइचिंग म्यांमार में मौजूदा सैन्य नेतृत्व के साथ कारोबार का इरादा रखता है। और मास्को भी कुछ ऐसी ही योजना बना रहा है। दरअसल, म्यांमार सेना के कमांडर मिन आंग हलिंग अभी-अभी पांच दिनों के दौरे पर मास्को में हैं।

बाइडेन प्रशासन की प्रतिष्ठा को कुचलने वाले इन झटकों की अनुगूंज पूरे एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सुनाई देगी। रूस और चीन अपने आसपास के क्षेत्रों जैसे-यूक्रेन, बेलारूस, मॉल्डोवा, हांगकांग, म्यांमार और अफगानिस्तान में अस्थिरता का एक घेरा पैदा करने के अमेरिकी योजना में पलीता लगाने के लिए हाथ मिला लिया है।

अब यहां से अमेरिका कहां जाता है? जाहिर है कि रूस और चीन से निबटने की दोहरी रणनीति पर काम करने के लिए अमेरिका की क्षमता नहीं है। न ही यूरोपीय शक्तियों में रूस एवं चीन से उलझने वाली अमेरिका की ऐसी रणनीतियों में संलग्न होने की कोई आकांक्षा है।

पिछले सप्ताह, जिनेवा से लौट कर सुलिवन ने प्लान बी के बारे में यह कहते हुए संकेत दिया है कि बाइडेन चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ आगे की बातचीत की संभावनाएं खंगालेंगे...अब यह बातचीत कहां और कैसे होगी, यह सवाल बना हुआ है।”

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Fizz is Gone from Biden-Putin Summit

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