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खाद्यान्न उत्पादन बढ़ रहा है, लेकिन ख़रीद में कमी से पीडीएस संकट में

ऐसा लगता है कि सरकार सब्सिडी वाले खाद्यान्न वितरण यानी राशन प्रणाली को कमज़ोर करने की ओर बढ़ रही है।
foodgrain
फ़ोटो साभार: PTI

पिछले हफ्ते, कृषि मंत्रालय ने घोषणा की थी कि, भारत के चालू कृषि वर्ष में 3,305 लाख टन (एलटी) की रिकॉर्ड खाद्यान्न फसल हासिल करने की उम्मीद है। पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष लगभग 150 लाख टन अधिक गेहूं और चावल का उत्पादन होगा। देश के अधिकांश लोगों के लिए यह खुशी का कारण होना चाहिए था– क्योंकि पिछले एक वर्ष से गेंहू के दाम ऊंचे चल रहे थे जिन्हें अब नीचे आना चाहिए था, किसानों को बेहतर रिटर्न मिलना चाहिए था और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि लगभग 80 करोड़ लोग जो सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से सब्सिडी वाले खाद्यान्न से लाभान्वित होते हैं (या 'राशन' प्रणाली) उनके लिए उपलब्ध मात्रा में कुछ वृद्धि की उम्मीद की जानी चाहिए थी।

हालांकि, देश में लगातार बढ़ते खाद्यान्न उत्पादन की चमक को धूमिल करते हुए, सरकार की नीति एक अलग दिशा में आगे बढ़ रही है। जबकि किसानों के लिए कीमतें नीचे बनी हुई हैं, जिससे वे असंतुष्ट हैं, यहां तक कि वर्षों से निर्मित खाद्य सुरक्षा व्यवस्था भी अब खतरे में आई लगती है। यहां देखे कैसे।

ख़रीद में गिरावट

पूरी खाद्यान्न वितरण प्रणाली, जोकि कानून द्वारा अनिवार्य है, इस बात पर निर्भर करती है कि सरकारी एजेंसियां किसानों से कितनी खरीद कर रही हैं। जैसा कि नीचे दिया गया चार्ट दिखाता है, पिछले कुछ वर्षों में गेहूं और चावल की खरीद में स्पष्ट कमी आई है। चावल की खरीद 2020-21 में 602 एलटी के उच्च स्तर पर पहुंच गई थी, जिसके बाद यह 2021-22 में घटकर 576 एलटी और 2022-23 में 533 एलटी हो गई है। मानसून के बाद खरीफ की फसल के आने के बाद 2023-24 के लिए खरीद शुरू हो जाएगी। खरीद डेटा भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) से लिया गया है।

गेहूं की खरीद को और भी अधिक नुकसान हुआ है, 2021-22 में 433 लाख टन के उच्च स्तर से गिरकर यह 2022-23 में केवल 188 लाख टन हुआ और चालू वर्ष में 30 मई तक कुछ बढ़कर 262 लाख टन हो गया था। उत्पादन में गिरावट, लेकिन मुख्य रूप से यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद वैश्विक मांग बढ़ने की उम्मीद के साथ निर्यात की प्रत्याशा में व्यापारियों ने भारी स्टॉक को उठा लिया था।

सरकार ने निर्यात की रणनीति को तब तक मजबूती से बढ़ाया, जब तक कि उन्हें पता नहीं चल गया कि स्थानीय बाजार में गेहूं की कीमतें बढ़ गई हैं और इसलिए उन्हें आनन-फानन में निर्यात पर प्रतिबंध लगाना पड़ा था।

यह ध्यान देने की जरूरत है कि चालू वर्ष में ऐसा कोई अचानक यू-टर्न नहीं लिया गया है, निर्यात प्रतिबंध अभी भी लागू है, लेकिन खरीद स्पष्ट रूप से धीमी हो गई है। यह 2021-22 में निर्धारित बड़ी खरीद से लगभग 40 प्रतिशत नीचे है। बेशक, रबी विपणन सीजन जारी है और जून में अनाज मंडियों में अधिक गेहूं की आवक देखने को मिलेगी। लेकिन अब पूरी बात इस बात पर निर्भर करती है कि सरकार खरीद के लिए कितना जोर लगाने को तैयार है। कोई भी कमी केवल केंद्र और राज्य सरकार की खरीद एजेंसियों की ओर से की जा रही ढिलाई के कारण होगी।

पिछले वर्षों में एफसीआई के राज्यवार आंकड़ों के अनुसार, चालू वर्ष और 2021-22 के बीच गेहूं की खरीद की तुलना से पता चलता है कि 30 मई, 2023 तक उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में बड़ी कमी मौजूद है। पंजाब और हरियाणा जो गेहूं के दो प्रमुख उत्पादक हैं, इस वर्ष की खरीद अभी भी 2021-22 के स्तर से क्रमशः 11 एलटी और 20 एलटी कम है। लेकिन यूपी में यह कमी 33 लाख टन से अधिक है, एमपी में यह 57 लाख टन से अधिक है और राजस्थान में यह लगभग 19 लाख टन है। अगर ये राज्य सरकारें कदम नहीं उठाती हैं और कटे हुए गेहूं की खरीद नहीं करती हैं तो इसके परिणाम काफी कठोर होंगे – नतीजतन, किसानों को घोषित एमएसपी से नीचे बेचने पर मजबूर होना पड़ेगा और उपभोक्ताओं को पीडीएस वितरण में कमी का सामना करना पड़ेगा। ध्यान दें कि नई विधान सभाओं के चुनाव के तहत इस साल के अंत में राजस्थान और एमपी दोनों में चुनाव होने जा रहे हैं।

पीडीएस के लिए आवंटन में आ रही कमी

कम खरीद के स्वाभाविक परिणाम के मद्देनज़र, पीडीएस के माध्यम से वितरण के लिए कम आवंटन की प्रवृत्ति नज़र आती है, जो बदले में उठाव या वितरण को प्रभावित करती है। कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के आधार पर पिछले कई वर्षों के लिए गेहूं और चावल का आवंटन नीचे दिए गए चार्ट में दिखाया गया है। 2020-21, 2021-22 और 2022-23 की महामारी के दौरान, केंद्र सरकार ने विभिन्न योजनाओं के माध्यम से अधिक खाद्यान्न आवंटित किया था, जिनमें से एक बड़ा हिस्सा मुफ्त था। इससे उन परिवारों को मदद मिली थी जो भरण-पोषण के लिए पीडीएस पर निर्भर थे।

हालांकि, इस साल की शुरुआत में सरकार ने मुफ्त राशन योजना को बंद कर दिया गया था। अतिरिक्त आवंटन को छोड़कर (जैसा कि नीचे दिए गए चार्ट में पैटर्न वाले अनुभागों में दिखाया गया है), आवंटन में धीमी और स्थिर गिरावट की प्रवृत्ति दिखाई दे रही है।

पिछले साल (2022-23) में, हालांकि खरीद में भारी गिरावट आई, लेकिन सरकार अपने विशाल स्टॉक का इस्तेमाल करके पीडीएस आवंटन को बनाए रखने में सक्षम रही थी। अब स्टॉक बहुत कम है - पिछले साल 640 लाख टन और उससे पहले के साल में 838 लाख टन के मुकाबले मई में 540 लाख टन होने का अनुमान है। तो, वह मदद अब नहीं है, या यह काफी कम है।

संभावना इस बात की है कि इस वर्ष आवंटन में और कमी की जाएगी या पीडीएस में मोटे अनाज (बाजरा) का वितरण या गेहूं के बदले चावल के साथ गेहूं का वितरण करने जैसे कुछ अन्य हथकंडे अपनाए जा सकते हैं, जैसा कि पिछले साल भी सीमित पैमाने पर किया गया था।

ऐसे में लोग खुले बाजार से गेहूं और शायद चावल भी खरीदने को मजबूर होंगे। बढ़ती महंगाई/मुद्रास्फीति के कारण, यह पिछले कुछ वर्षों में जरूरी वस्तुओं की उच्च कीमतों के प्रभाव से पहले से ही प्रभावित परिवार के बजट के लिए एक बड़ा झटका होगा।

क्या यह सिर्फ कुप्रबंधन है या यह पीडीएस को धीरे-धीरे खत्म करने की सोची समझी नीति है? या शायद यह दोनों का संयोजन है? भारत सरकार कई वर्षों से अपने सब्सिडी वाले खाद्यान्न खरीद कार्यक्रम को कम करने के लिए पश्चिम के दबाव में रहा है। लेकिन इसने इस दबाव का विरोध किया है, यह अच्छी तरह से जानते हुए कि अगर पीडीएस के साथ छेड़छाड़ की गई तो इसकी भारी राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ेगी।

दूसरी ओर, नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली भारतीय जनता पार्टी सरकार वह सरकार है जिसने 2020 में संसद में तीन कृषि कानूनों को पारित करा लिया था, जो कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी) प्रणाली को समाप्त करने के लिए लाए गए थे, जहां सरकारी एजेंसियां किसानों से खाद्यान्न खरीदती हैं। इन कानूनों को बदलने के लिए निजी बाजारों के विकास के लिए कानून लाए गए थे। यह सरकारी खरीद कार्यक्रम को झटका देने का एक स्पष्ट प्रयास था। हालांकि, किसानों द्वारा चलाए गए साल भर के प्रतिरोध आंदोलन के कारण सरकार को 2021 में कानूनों को निरस्त करने पर मजबूर होना पड़ा, जो किसान आंदोलन के दबाव में सरकार को पीछे हटने का कारण बना।

शायद, सत्ता पक्ष खरीद को धीरे-धीरे बंद करके उसी लक्ष्य को हासिल करने की कोशिश कर रहा है। इस साल के अंत में होने वाले प्रमुख विधानसभा चुनावों और 2024 में होने वाले आम चुनावों के साथ, यह कदम एक गंभीर प्रतिक्रिया का कारण बन सकता है।

इस लेख को मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें -

Foodgrain Production Rising, But Procurement, PDS in Doldrums

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