NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu
image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
जीएसटी राज्यों पर असर डालेगा; हिमाचल पहले से ही इस असर की ताप को महसूस कर रहा है
केन्द्र की तरफ़ से कर्ज़ के सहारे राज्यों को हुई जीएसटी राजस्व में कमी की भरपाई से उस हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे राज्य पर असर पड़ना तय है, जिसकी ज़्यादा परिसंपत्तियां राष्ट्रीयकृत हैं।  
टिकेंदर सिंह पंवार
10 Sep 2020
जीएसटी
फ़ोटो, साभार: द फ़ाइनेंशियल एक्सप्रेस

अब जबकि भारत सरकार ने जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) के राजस्व संग्रह में कमी के चलते राज्यों को हुए नुकसान की भरपाई नहीं करने का फ़ैसला कर लिया है, तो यह सब और ज़्यादा साफ़ हो गया है कि कुछ छोटे राज्यों को इसका सबसे कठोर ख़ामियाजा भुगतना पड़ेगा। हालांकि केंद्र सरकार इस घाटे का भुगतान करने के लिए बाध्य है, क्योंकि जीएसटी अधिनियम के तहत ऐसा करना उसका एक संवैधानिक दायित्व है, लेकिन संवैधानिक प्रावधानों को कमज़ोर करना सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए कोई बड़ी बात तो है नहीं।

मुआवज़े का भुगतान नहीं किये जाने का स्पष्ट कारण जीएसटी संग्रह में होने वाली कमी को बताया जा रहा है। हालांकि, जब देश में जीएसटी लागू किया गया था और राज्य सरकारों की अप्रत्यक्ष करों को लागू करने की शक्तियां केंद्र द्वारा वापस ले लिया गया था, तो राज्यों से किये गये वादों में से एक वादा यह भी था कि उन्हें अनुमानित राजस्व संग्रह में 14% की वृद्धि के साथ 2020 तक पर्याप्त रूप से मुआवज़ा दिया जायेगा।

अब ऐसी स्थिति में जबकि जीएसटी राजस्व 2.35 लाख करोड़ रुपये तक गिर गया है, राज्यों को मुआवज़ा देने का सबसे अच्छा तरीक़ा पैसा उधार देना और वादा किये गये बक़ाये का भुगतान करना होता। हालांकि, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इन पैसों को राज्यों को देने से इनकार कर दिया है, और इसके बजाय राज्यों को उधार लेने के लिए कहा है।

यह देखना महत्वपूर्ण है कि हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे और पहाड़ी राज्य के लिए इस तरह के क़दम का क्या मतलब है, जिनकी प्रमुख परिसंपत्तियां राष्ट्रीयकृत है और राजस्व के मुख्य स्रोतों को केंद्र ने अपने कब्जे में ले लिया हुआ है-ये स्रोत राज्य के वन और जल विद्युत उत्पादन हैं।

हिमाचल पर असर

हिमाचल प्रदेश ने पहले से ही इस फ़ैसले की ताप को महसूस करना शुरू कर दिया है। जीएसटी परिषद में राज्य मंत्री (भाजपा) ने भी केंद्र को राज्य को पर्याप्त रूप से मुआवज़ा देने के लिए कहा था।

केंद्र द्वारा दिया गया उधार का विकल्प न सिर्फ़ त्रुटिपूर्ण है, बल्कि हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे राज्य के लिए विनाशकारी भी है। सार्वजनिक ऋण और दूसरे इक़रारनामे सहित राज्य की कुल देनदारियों में 50,000 करोड़ रुपये (50,772.88 करोड़ रुपये) की बढ़ोत्तरी हुई है। आगे भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) या बाज़ार से उधार लेते हुए बड़े कर्ज़ के बोझ तले यह राज्य वित्तीय संस्थानों के एक पूरक क्षेत्र में बदलकर रह जायेगा।

पैसे उधार देने वालों और उधार लेने वालों के बीच के रिश्तों पर कई अफ़साने हैं और उन सभी अफ़सानों में बिना किसी अपवाद के कर्ज़ लेने वाले बर्बाद होते हैं। शेक्सपियर का नाटक, द मर्चेंट ऑफ वेनिस, कर्ज़ के फंदे की हक़ीक़त को याद दिलाने वाला एक जीती-जागती ताक़ीद है। ये नये व्यापारी, जो राज्यों को कर्ज़ लेने की सलाह दे रहे हैं, उन्हें यह महसूस करना चाहिए कि एक बार कर्ज़ के फ़ंदे में फंस जाने के बाद राज्य कभी उस फ़ंदे से बाहर नहीं आ पायेंगे।

आइए हम इस बात पर ग़ौर करें कि हिमाचल प्रदेश की वास्तविक स्थिति क्या है और यह स्थिति लोगों के जीवन पर किस तरह से असर डाल सकती है। वैट (मूल्य वर्धित कर) की जगह जीएसटी अपनाने के बाद, हिमाचल ने 2020-21 तक 3,855.14 करोड़ रुपये के राजस्व सृजन का अनुमान लगाया था। यह राज्य के कुल कर राजस्व का तक़रीबन 42.41% है। केंद्र से इन पैसों के नहीं दिये जाने की स्थिति में और ऐसी स्थिति,जहां मार्च के बाद से ये पैसे नहीं दिये गये है, राज्य की राजकोषीय सेहत पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।

राज्य के बजट प्रस्ताव में अनुमानित राजस्व के दूसरे मुख्य स्रोत ख़ास तौर पर शराब की बिक्री पर लगने वाला उत्पाद शुल्क, और वैट है। उत्पाद और वैट की यह राशि क्रमश: 1,625.37 करोड़ रुपये (19.67%) और 1,491.39 करोड़ रुपये (18.54%) हैं।

इस साल 25 मार्च से देश में घोषित एकतरफ़ा लॉकडाउन के चलते राज्य के ख़ुद के राजस्व-राज्य जीएसटी, उत्पाद शुल्क और वैट यानी इन तीनों शीर्ष राजस्व में भारी कमी आयी है।

राज्य के प्रमुख क्षेत्रों में से एक आतिथ्य उद्योग(Hospitality industry),जिसका उत्पाद शुल्क में योगदान होता है, वह तबाह हो चुका है। इसी तरह, वैट राजस्व काफ़ी गिर गया है। सीमेंट उत्पादन और कारों की बिक्री केवल दो ही ऐसे क्षेत्र हैं, जो राज्य के जीएसटी में योगदान देते हैं। हालांकि,लॉकडाउन के चलते सीमेंट की मांग भी घट गयी थी। मार्च से जून तक इन दोनों क्षेत्रों से भी शायद ही कोई राजस्व हासिल हुआ हो। सिर्फ़ जुलाई और अगस्त में ही राज्य में लगभग 300 करोड़ रुपये प्रति माह जीएसटी सृजित हो पाया था।

15वें वित्त आयोग के मुताबिक़, एक बड़ी देनदारी वाला राज्य राजस्व घाटा अनुदान के सहारे ही बचा रह सकता है, लेकिन वह भी इस साल ख़त्म होने जा रहा है। यह तक़रीबन 11,400 करोड़ रुपये है।

लंबे समय तक राज्य सरकार में वित्तीय विभाग में अपनी सेवा दे चुके एक सेवानिवृत्त नौकरशाह कहते हैं, "यह एक गंभीर स्थिति है"। राज्य में 2020-21 के लिए वेतन को लेकर देनदारी 44,545.05 करोड़ रुपये है, इसके साथ ही 7,266 करोड़ रुपये की पेंशन और 4,931.92 करोड़ रुपये की उधारी पर ब्याज़ का भुगतान करना है। ये तीनों मिलकर राज्य में कुल व्यय का 51.49% होता है; वेतन-26.66%, पेंशन-14.79% और ब्याज़ भुगतान-10.04% है।

राज्य के सकल घरेलू उत्पाद या जीएसडीपी का कुल कर्ज़ 42% तक पहुंच चुका है और 1,82,020 करोड़ रुपये का अनुमानित यह जीएसडीपी पहुंच से अब बाहर है।

पिछले साल कृषि में 4% की नकारात्मक बढ़ोत्तरी दर्ज की गयी थी और सेवायें राज्य की अर्थव्यवस्था की बढ़ोत्तरी में योगदान देने वाला प्रमुख क्षेत्र थीं, लेकिन इस क्षेत्र पर भी बहुत ही गंभीर असर पड़ा है। मौजूदा 2020-21 के लिए राज्य की राजस्व आय में तक़रीबन 20% की कमी आयी है।

राजकोषीय घाटे का अनुमान,अनुमानित जीएसडीपी के 4.35% से बढ़कर 6.42% होने का रहा है, और अगर राज्य को ज़्यादा उधार लेने के लिए कहा जाता है, तो इससे स्थिति और बदतर हो जायेगी। राज्य को यह सुनिश्चित करने के लिए कि राज्य कम से अपने कर्मचारियों को समय पर वेतन देने में सक्षम है,इसके लिए राज्य को लगभग 5,000 करोड़ रुपये का उधार लेना पड़ सकता है। पर्यटन और परिवहन जैसे कुछ विभाग पहले से ही पिछले तीन से चार महीनों से वेतन का भुगतान करने में असमर्थ हैं।

सवाल है कि राज्य पर भारी कर्ज़ जमा होता जा रहा है, उसका भुगतान कौन करेगा? या फिर राज्य सरकार किसी दिन यह कह दे कि वह अपने कर्मचारियों के वेतन में एक निश्चित प्रतिशत की कटौती करने के लिए तैयार है, क्योंकि राज्य इन्हें चुकाने में असमर्थ है?

ज़ाहिर है, हिमाचल प्रदेश के सामने जो चुनौतियां मुंह बाये खड़ी है, उसे हल करने की क्षमता राज्य के वश की बात नहीं रह गयी है। केंद्र के फ़रमानों को आंख बंद करके मंज़ूर करने के बजाय, भाजपा की अगुवाई वाली राज्य सरकार को मुखर रूप से अपनी आवाज़ उठानी चाहिए, और अतीत में मिले 'विशेष श्रेणी के दर्जा' की माँग करनी चाहिए।

केरल, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे अन्य राज्यों के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश को भी केंद्र सरकार के जीएसटी की इस हुक़म के ख़िलाफ़ आवाज़ उठानी चाहिए और इसे इस अधिनियम के मुताबिक़ ही काम करना चाहिए। इस बात को याद रखना ज़रूरी है कि सत्तारूढ़ सरकार राज्य के अधिकारों का एक मात्र संरक्षक होती है और इसके हित लोगों के हितों में निहित होते हैं। सरकारें आती हैं और जाती हैं,मगर राज्य और उसके लोगों के हित सर्वोच्च होते हैं।

(नोट: इस लेख में उल्लिखित आंकड़े हिमाचल प्रदेश के आर्थिक सर्वेक्षण और 2020-21 के राज्य बजट से लिए गये हैं।)

लेखक हिमाचल प्रदेश के शिमला के पूर्व डिप्टी मेयर हैं। इनके विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

GST Will Implode States; Himachal is Already Feeling the Heat

GST Compensation to states
State GST
Nirmala Sitharaman
Himachal Pradesh
Himachal Pradesh GST
Lockdown
GDP
fiscal deficit

Trending

पश्चिम बंगाल चुनाव: नए दलों के मुकाबले में उतरने से ये चुनाव राष्ट्रीय चरित्र अख्तियार कर सकते हैं
तमिलनाडु : मेडिकल छात्रों का प्रदर्शन 50 दिन के पार; प्रशासन ने विश्वविद्यालय बंद कर छात्रों का खाना-पानी रोका
कार्टून क्लिक : ट्रैक्टर परेड की हिंसा से केंद्र अपना पल्ला झाड़ रहा है?
किसान आंदोलन: ठंड से एक महिला किसान की मौत, अब तक 150 से अधिक प्रदर्शनकारियों की मौत
धारणाओं की जंग में तब्दील होता किसान आंदोलन
क्या है देश के किसानों का असली हाल ?

Related Stories

लेबनान : कोविड-19 से संबंधित सख्त लॉकडाउन के बीच हज़ारों लोगों ने आर्थिक सहायता की कमी को लेकर प्रदर्शन किया
पीपल्स डिस्पैच
लेबनान : कोविड-19 से संबंधित सख्त लॉकडाउन के बीच हज़ारों लोगों ने आर्थिक सहायता की कमी को लेकर प्रदर्शन किया
28 January 2021
बुधवार 27 जनवरी को लेबनान के दूसरे सबसे बड़े शहर त्रिपोली में सुरक्षा बलों द्वारा गोलीबारी में कई प्रदर्शनकारी घायल हो गए। देश के दूसरे सबसे बड़े श
हिमाचल प्रदेश को राज्य का दर्ज़ा हासिल हुए 50 वर्ष: उपलब्धियों एवं चुनौतियों पर एक नज़र 
टिकेंदर सिंह पंवार
हिमाचल प्रदेश को राज्य का दर्ज़ा हासिल हुए 50 वर्ष: उपलब्धियों एवं चुनौतियों पर एक नज़र 
25 January 2021
अब जैसा कि हिमाचल प्रदेश 25 जनवरी के दिन को राज्य का दर्जा हासिल करने के 50वीं वर्षगाँठ के रूप में मना रहा है, ऐसे में हमें चाहिए कि हम इसके राज्य
घरेलू श्रम के मूल्य पर फिर छिड़ी बहस
कुमुदिनी पति
घरेलू श्रम के मूल्य पर फिर छिड़ी बहस
16 January 2021
महिलाओं द्वारा किये जा रहे घरेलू काम पर बहस सर्वोच्च न्यायालय के हाल के फैसले के माध्यम से एक बार फिर चालू हो गई है। आखिर हर महिला, वह नौकरीपेशा हो

Pagination

  • Next page ››

बाकी खबरें

  • तमिलनाडु : मेडिकल छात्रों का प्रदर्शन 50 दिन के पार; प्रशासन ने विश्वविद्यालय बंद कर छात्रों का खाना-पानी रोका
    श्रुति एमडी
    तमिलनाडु : मेडिकल छात्रों का प्रदर्शन 50 दिन के पार; प्रशासन ने विश्वविद्यालय बंद कर छात्रों का खाना-पानी रोका
    28 Jan 2021
    छात्रों का आरोप है कि राज्य सरकार के उच्च शिक्षा मंत्रालय के तहत आने के बावजूद, कॉलेज के कुछ कोर्स में फ़ीस, तमिलनाडु सरकार के नियंत्रण वाले दूसरे मेडिकल कॉलेजों की तुलना में 30 गुना और स्वपोषित निजी…
  • Famers protest
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    गाज़ीपुर धरना स्थल खली करने के आदेश, पुलिस और किसान आमने सामने; राकेश टिकैत ने कहा धरना जारी रहेगा
    28 Jan 2021
    गाज़ीपुर बॉर्डर पर पिछले 60 से अधिक दिनों से शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे किसानों को गाज़ियाबाद पुलिस ने आज रात में धरना स्थल छोड़ने की चेतवानी दी है। इससे पहले कल बुधवार रात को वहां की बिजली काट दी गई थी…
  •  किसान
    जितेन्द्र कुमार
    ‘देवो हिंसा हिंसा न भवतिः’
    28 Jan 2021
    उदारीकरण के बाद मीडिया व मध्यम वर्ग की सोच व विचार पर गौर करें तो हम पाते हैं कि मीडिया व मध्यमवर्ग, खासकर शहरी मध्यमवर्ग पूरी तरह श्रम व श्रमिक विरोधी हो गया है।
  • किसान आंदोलन
    सत्यम श्रीवास्तव
    धारणाओं की जंग में तब्दील होता किसान आंदोलन
    28 Jan 2021
    धारणाओं के खेल में बाजी उसके हाथ लगती है जिसके पास प्रचारतंत्र होता है। कहानी गढ़ने वाले होते हैं और उन गढ़ी हुई कहानियों को आधार बनाकर क़ानूनी कार्यवाहियों के अधिकार होते हैं।
  • क्या है देश के किसानों का असली हाल ?
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या है देश के किसानों का असली हाल ?
    28 Jan 2021
    न्यूज़क्लिक से ख़ास बातचीत में कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा ने बताया की देश के किसान की हालत दशकों से ख़राब है, उन्होंने बताया की आज पंजाब के किसान 1 लाख करोड़ के कर्ज़ में हैं | देविंदर शर्मा का…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें