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आम चुनाव 2024: चर्चा में फिर पंजाब के डेरे, नेता लगा रहे हैं फेरे  

पंजाब के डेरों में राजनेताओं की आवा-जाही शुरू हो गई है। यह सिलसिला पिछले साल से ही जारी है। 2024 आते ही इसने रफ़्तार पकड़ ली है।
Dera
फोटो साभार : सोशल मीडिया

चुनाव नज़दीक आते ही पंजाब के धार्मिक और सामुदायिक 'डेरे' विशेष चर्चा में आ जाते हैं। आम लोकसभा चुनाव कुछ हफ़्तों की दूरी पर हैं। सूबे के डेरों में राजनेताओं की आवा-जाही शुरू हो गई है। यह सिलसिला पिछले साल से ही जारी है। 2024 आते ही इसने रफ़्तार पकड़ ली है।

तमाम परंपरागत राजनीतिक दल किसी न किसी रूप में पंजाब के डेरों के संपर्क में हैं। इसलिए कि इन डेरों के पास अपना बड़ा वोट बैंक है। डेरों का रुझान मुख्यधारा के राजनीतिक दलों की दशा-दिशा बदलने की कुव्वत रखता है। अतीत में यह साबित हो चुका है।

पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला का एक शोध बताता है कि पंजाब की कुल जनसंख्या का 70 फ़ीसदी हिस्सा किसी न किसी डेरे में कम या ज़्यादा आस्था रखता है। राज्य में एक हज़ार से अधिक बड़े-छोटे डेरे हैं। उनके अनुयायी व समर्थक सुदूर विदेशों तक फैले हुए हैं। देश-दुनिया में उनकी कुल तादाद करोड़ों में है। ज़्यादातर डेरों का आर्थिक आधार उनके बलबूते टिका हुआ है। रही-सही कसर सियासत और हुक़ूमत पूरी कर देती है।

पंजाब के कई डेरे अथवा धार्मिक केंद्र ऐसे हैं; जिन्हें सरकारों की ओर से पचास करोड़ रुपए तक 'अनुदान' मिलता रहा है-यानी 'सरकारी चढ़वा!' कतिपय डेरेदारों/डेरा प्रमुखों को इसलिए भी विशिष्ट आलीशान जीवन शैली हासिल है और डेरों में फाइव स्टार संस्कृति ने 'डेरा' जमा लिया है। केंद्र और राज्य सरकार ने बेशुमार बाबाओं को वीवीआईपी का दर्ज़ा दिया हुआ है। नतीजतन अमन और सद्भाव का पाठ पढ़ाने वालों के इर्द-गिर्द सख़्त हथियारबंद सुरक्षा घेरा रहता है। कइयों को जेड-प्लस की सुरक्षा छतरी मिली हुई है। यह राजनीति और सत्ता पर डेरों के प्रभाव का तथ्यात्मक उदाहरण है।

सूबे के अधिकांश प्रभावशाली डेरों को संस्थागत सिख धर्म के 'छोटे भाई' कहा जाता है। यही वजह है कि जब-तब इन डेरों को मूलवादियों के हिंसक विरोध का भी सामना करना पड़ता रहा है। पिछले साल आंधी की तरह दुबई से पंजाब आए 'वारिस पंजाब दे' के सर्वेसर्वा व सिख कट्टरपंथी अमृतपाल सिंह के ख़ास निशाने पर डेरे रहे। परंपरागत एवं कमोबेश उदार ऐतिहासिक सिख संस्थाएं भी इन डेरों को बतौर प्रतिद्वंदी देखती आई हैं।

पंजाब के तक़रीबन 20 डेरों का उल्लेखनीय  राजनीतिक प्रभाव रहा है। इनमें डेरा सच्चा सौदा (हालांकि इसका मुख्यालय हरियाणा के जिला सिरसा में है लेकिन अनुयायियों की ज़्यादा तादाद पंजाब में है। बठिंडा जिले के सलाबातपुरा को दूसरा मुख्यालय कहा जाता है), राधा स्वामी डेरा ब्यास, निरंकारी मिशन, दिव्य ज्योति जागृती संस्थान, सचखंड बल्लां, नामधारी समुदाय का केंद्र भैणी साहब, रूमीवाला डेरा, ढक्की साहब, भूरीवाले, डेरा बेगोवाल, बाबा कश्मीरा सिंह डेरा, डेरा हंसली वाले और डेरा भनियारा शुमार हैं।

इन डेरों की राजनीतिक ताकत पंजाब के साथ-साथ पड़ोसी राज्यों हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और दिल्ली तक फैली हुई है। चुनाव के दौरान ये डेरे पंजाब विधानसभा के 70 और हरियाणा के लगभग 32 निर्वाचन क्षेत्रों को सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं। डेरों के एक इशारे पर रातों-रात चुनावी समीकरण बदल जाता है। कुछ डेरों ने प्रत्यक्ष तो शेष ने परोक्ष तौर पर बाकायदा अपने राजनीतिक विंग बनाए हुए हैं। राजनीतिक दल इनके संपर्क में रहते हैं।                                 

ग़ौरतलब है कि पंजाब में राधा स्वामी सत्संग ब्यास का 19 विधानसभा हल्कों में, डेरा सच्चा सौदा का 27, दिव्य जागृति संस्थान नूर महल का 8, संत निरंकारी मिशन का 4, डेरा सचखंड बल्लां का 8, नामधारी संप्रदाय का 2 और डेरा बेगोवाल का 3 क्षेत्रों में निर्णायक प्रभाव है। डेरों के कट्टर अनुयायी एकमुश्त वोट करते हैं। डेरा सच्चा सौदा चुनावी गणित के लिहाज़ से मालवा में असरदार है तो राधा स्वामी डेरा ब्यास माझा में। सचखंड बल्लां दोआबा में ख़ासा असर रखता है तो ढक्की साहब लुधियाना-जगरांव इलाके में। तमाम डेरों की अपनी-अपनी राजनीतिक ज़मीन है!                         

सत्ता और राजनीति बख़ूबी इसे समझती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) केंद्र में काबिज़ भाजपा का पैतृक संगठन है। बीते पांच साल में इसके मुखिया मोहन भागवत जितनी बार भी पंजाब आए; उतनी बार लाज़िम तौर पर राधा स्वामी सत्संग ब्यास के मुख्यालय गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी सहित कई केंद्रीय मंत्री, पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा व पहली क़तार के अन्य पदाधिकारी और भाजपा शासन वाले राज्यों के मुख्यमंत्री ब्यास जा चुके हैं। डेरा प्रमुख गुरिंदर सिंह ढिल्लों आरएसएस मुख्यालय नागपुर विशेष तौर पर जा चुके हैं। दिल्ली जाकर वह प्रधानमंत्री और अन्य केंद्रीय मंत्रियों से अक्सर मिलते रहते हैं।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी और अन्य वरिष्ठ कांग्रेसी नेता भी कई बार राधा स्वामी सत्संग ब्यास के दौरे कर चुके हैं। शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के प्रधान सुखबीर सिंह बादल भी अक़्सर ब्यास जाते हैं। शिअद में दूसरे नंबर की हैसियत रखने वाले बिक्रमजीत सिंह मजीठिया राधा स्वामी प्रमुख के करीबी रिश्तेदार हैं। बाकायदा एजेंडे के तौर पर संघ परिवार ने राधा स्वामी सत्संग ब्यास से नज़दीकियां क़ायम कीं। इस डेरे के अनुयायी समूचे देश में बड़े पैमाने पर हैं। विशेष कर उन राज्यों में जहां भाजपा अपनी पकड़ मज़बूत करने की कवायद में है। ठीक इसी नीति पर कांग्रेस चल रही है। ब्यास डेरे की नज़दीकियां कभी कांग्रेस के साथ जगजाहिर थीं। बेशक डेरा अपने अनुयायियों को किसी राजनीतिक पार्टी के पक्ष में वोट के लिए खुलेआम नहीं कहता लेकिन राजनेताओं की आवा-जाही कहीं न कहीं खुद नैरटिव बुन देती है।

डेरा सच्चा सौदा चुनाव के दौरान खुलेआम दलगत हिमायत करता है। इसका मुखिया गुरमीत राम रहीम हत्या और बलात्कार के जुर्म में जेल की सलाखों के पीछे है लेकिन डेरे का सियासी दबदबा क़ायम है। फ़ौरी तौर पर भाजपा की बदौलत। डेरा सच्चा सौदा ने 2002 के पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का समर्थन किया था और 2007 में भी। इससे पहले वह अकाली-भाजपा गठबंधन का समर्थन करता था। तय माना जा रहा है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में डेरा सच्चा सौदा भाजपा का साथ देगा। जेल में बंद गुरमीत राम रहीम पर हरियाणा की भाजपा सरकार खासी मेहरबान है। यह मेहरबानी यूं ही नहीं है। चुनावी राजनीति में फायदे लेने के लिए डेरा मुखिया को बार-बार पैरोल और फरलो पर तदर्थ रिहाई दी जाती है। भाजपा मंत्री और नेता गुरमीत राम रहीम के वर्चुअल सत्संग में शामिल होते हैं। पंजाब में कांग्रेस, मालवा इलाके में मजबूती के लिए डेरा सच्चा सौदा का अंदरुनी समर्थन चाहती है। इसके लिए कोशिशें की जा रही हैं।                       

तो डेरावाद-जो अब संस्थागत रूप ले चुका है-यकीनन 2024 के लोकसभा चुनाव में अहम भूमिका निभाएगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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