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ग्राउंड रिपोर्ट पार्ट-2: बुलडोज़र एक्शन के शिकार ग़रीब मुसलमान !

मेवात हिंसा के बाद नगीना में भी अतिक्रमण हटाने के नाम पर लोगों के घरों पर बुलडोज़र चला। गांव वालों का आरोप है कि जिन घरों पर बुलडोज़र चला वे ग़रीबी रेखा के नीचे हैं।
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...फिरोज़पुर झिरका से आगे हम नगीना पहुंचे, जहां गांव वालों के मुताबिक अतिक्रमण हटाने के नाम पर प्रशासन ने 4 अगस्त को 12 से 14 घरों पर बुलडोज़र चलाया। जितने भी घरों पर बुलडोज़र चलाए गयए सभी BPL ( पीले और गुलाबी) कार्ड वाले बताए जा रहे हैं, इनमें तीन विधवा महिलाएं भी हैं।

नगीना

नगीना गांव जाने के लिए जैसे ही हम बड़कली चौक पहुंचे, सुरक्षा बल की तैनाती दिखाई दी, मेन सड़क पर सिर्फ एक मोबाइल की दुकान खुली दिखी। हालांकि गांव के अंदर राशन की दुकान पर लोग दिखे। माहौल कुछ भारी लग रहा था हर तरफ एक खामोशी पसरी थी। पहाड़ी की तलहटी में बसे गांव में कुछ लोग मलबा समेट रहे थे, हमने कुछ औरतों से बात की तो एक औरत फूट-फूट कर रोते हुए बताने लगी ''हमें कुछ भी सामान निकालने नहीं दिया, हमारा सारा सामना दबा दिया।'' कुछ स्थानीय लोग जमा हो गए और उन्होंने बताया कि ''अधिकारियों ने खड़े होकर कार्रवाई करवाई, एक मिनट का वक़्त नहीं दिया। जिनके घर तोड़े गए उनमें विधवा महिलाएं भी शामिल हैं, BPL कार्ड वाले हैं। ये तो ऐसा लग रहा है कि गरीबों को उजाड़ा जा रहा है''।

गांव के बुजुर्ग और बच्चे

गांव में हमें एक महिला मिली अकबरी। अकबरी हमारा हाथ पकड़ कर अपने घर ले गई। उनके घर का आधा हिस्सा तोड़ दिया गया था जबकि आधा बाकी था। तिनका-तिनका जोड़कर बनाए गए घर की शक्ल बिगड़ चुकी थी। टूटी दीवारों से घर की सजावट के लिए बनाए गए ताक वीरान हो चुके थे। अपने टूटे घर को देखकर मायूस अकबरी कहती हैं कि ''हमारे पास कुछ नहीं है, न अपनी ज़मीन, न कुछ और। हम BPL ( Below Poverty Line) वाले हैं, हमें नहीं पता कि हमारे घर पर बुलडोज़र क्यों चला, न पहले से कोई नोटिस न कोई ख़बर।'' हमने अकबरी से पूछा कि घर पर बुलडोज़र क्यों चला? जिसके जवाब में वहां जमा हुए कुछ लोगों ने जवाब दिया ''हमें नहीं पता ये कार्रवाई क्यों हुई है लेकिन ऐसा लगता है कि जो लड़ाई-झगड़ा हुआ उसकी वजह से की गई है, वर्ना अभी तक हमें घर तोड़ने की कोई जानकारी नहीं, कोई नोटिस नहीं मिला, ये साजिश के तहत तोड़े गए हैं।''

अकबरी आगे कहती हैं कि ''हम टेंशन में जी रहे हैं कि कहां जाएंगे, हमें क्या पता हमारे घर क्यों तोड़ दिए गए। रही बात लड़ाई-झगड़े की तो हमें अपनी मेहनत मजदूरी से ही फुर्सत नहीं मिलती, हम मेहनत करते हैं, पेट भरते हैं, बस इसी में लगे रहते हैं। हमारे घर में आटा नहीं है, कोटा का राशन लेने गए तो वहां इंटरनेट नहीं चल रहा तो लोग राशन भी नहीं बांट पा रहे हैं, 20 किलो आटा चक्की वाले से उधार लेकर आई हूं।''

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हमें गांव में वे दो बेवा महिलाएं भी मिलीं। दोनों ने बताया कि उन्हें सरकार की तरफ से 2700 रुपये मिलते हैं, दोनों का ही BPL कार्ड बना है, इनके भी घर पर अतिक्रमण के नाम पर बुलडोज़र चला, दोनों ही बच्चों को लेकर खुले में पड़ी हैं। इन्होंने हमें बताया कि भैंस पालकर किसी तरह बच्चों को बड़ा कर रही थीं, लेकिन अब कहां जाएं इन्हें नहीं पता, बारिश के मौसम में खेतों के किनारे अपने घर के मलबे को दिखाती इनमें से एक महिला ने कहा ''हमसे कुछ भी नहीं कहा बस बुलडोज़र चला दिया, न हम टीन (घर की छत) हटा पाए, न सामान निकाल पाए''।

गांव वालों ने आरोप लगाया कि जितने भी घर टूटे हैं सब मुसलमानों के हैं।

जिस वक़्त हम इन महिलाओं से बात कर रहे थे, सिर पर बड़ा सा घास का बोझ लेकर लौट रही एक महिला दिखी। ये मैमूना थीं। मैमूना सिर का बोझ तुरंत फेंक कर हमें अपने उस घर को दिखाने ले गई जिसकी टूटी दीवार पर लिखा था 'प्रियदर्शनी आवास योजना' उन्होंने बताया कि उनका ये घर सरकारी योजना के तहत बना था लेकिन इस पर भी बुलडोज़र चला दिया गया। वे कहती हैं कि ''डंडे ले-लेकर खड़े थे, उन्होंने दीवार पर लिखा कुछ नहीं पढ़ा, हम समान भी नहीं निकाल पाए, रिक्शा चला कर घर चलाते हैं, खुले में पड़े हैं, बारिश आ जाए तो सब भीग जाएगा, हम बहुत ही ज़्यादा गरीब हैं, जब घर टूट रहा था हम बहुत रोए, लेकिन वे हमें भगा रहे थे।''

जिन लोगों के घर टूटे उन्होंने कहा कि गांव का कोई लड़ाई-झगड़े या पत्थरबाजी में शामिल नहीं था। हमारे सरपंच तो मामले को शांत करवाने की कोशिश कर रहे थे और देखिए उनके ही गांव में प्रशासन ने कार्रवाई कर दी। हमसे तो कोई मिलने भी नहीं आया, बस सरपंच ही आए थे। हम बस यूं ही पड़े हैं। कोई हमारा दुख पूछने नहीं आया। एक बुजुर्ग ने कहा कि "बहुत दुखी है यहां का मुसलमान, हमने तो कोई झगड़ा-फसाद नहीं किया लेकिन फिर भी हमारे ऊपर ये जुल्म ढाया गया।''

गांव के लोगों से बातचीत करते हुए सूरज ढल गया था और हमने देखा सामने से पुलिस की गाड़ी और एक बस गांव में दाखिल हो रही थी, लोगों ने गांव में डर के माहौल के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा कि ''रात में आदमी घर पर नहीं रहते, डर की वजह से नहीं रहते हैं।'' हमने उनसे पूछा कि जब आपने कुछ नहीं किया तो डर क्यों रहे हैं तो उनका जवाब था, ''किया नहीं लेकिन ये वो नहीं पहचान रहे।''

बड़कली चौक

न सिर्फ नगीना गांव के लोगों ने ये आरोप लगाया कि गांव के लड़कों को उठाया जा रहा है बल्कि कुछ और लोगों ने भी ऐसे ही आरोप लगाए जिनके बारे में अगली रिपोर्ट में ...

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