ग्राउंड रिपोर्टः वाराणसी विकास प्राधिकरण का किसानों को ज़मीन ख़ाली करने का फ़रमान

उत्तर प्रदेश के बनारस शहर से फकत 12 किमी दूर है बैरवन गांव। यहां के करीब 6000 लोग घबराए हुए हैं। इन्हें डर है अपने घर से बेघर किए जाने का, जहां वो कई पुश्तों से रह रहे हैं। बैरवन के किसान पिछले आठ बरस से इस फ़ख़्र थे कि पीएम नरेंद्र मोदी उनकी नुमाइंदगी करते हैं तो उनकी जमीन कोई नहीं छीन पाएगा। लेकिन वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) ने उन्हें अपनी जमीन खाली करने का सख्त फरमान सुना दिया है। नतीजा, ‘मोदी भक्त’ बैरवन के किसान अब आजमगढ़ के खिरिया बाग आंदोलन की राह पर चल पड़े हैं।
जीटी रोड के किनारे बसे बैरवन गांव का दर्द भी अजीब है। बीचो-बीच से गुजरने वाली रेलवे लाइन इस गांव का सीना चीरती रहती है। सबसे पहले रेलवे लाइन बिछाने के लिए यहां किसानों की जमीन छीनी गई और अंग्रेजी हुकूमत के डंडे के खौफ से लोग खामोश रहे। बाद में जब एनएच-2 हाईवे बनना शुरू हुआ तो किसानों की 14 एकड़ जमीन फिर जबरिया हथिया ली गई। यह वाकया साल 1994 का है। फिर जीटी रोड का विस्तार हुआ तब भी बैरवन पर ही अधिग्रहण की गाज गिरी। इस गांव से जब नहर गुजरी तब उसके लिए भी बैरवन के लोगों को अपनी जमीन की कुर्बानी देनी पड़ी। बाद में कुछ जमीन चकबंदी में निकल गईं। किसानों के पास जो जमीनें बचीं हैं उसे ट्रांसपोर्ट नगर योजना के नाम पर अब वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) कब्जाने की कोशिश में है। ट्रांसपोर्ट नगर योजना के लिए जितनी जमीनों का अधिग्रहण किया जा रहा है उसमें 80 फीसदी हिस्सा बैरवन के किसानों का है। सबसे बड़ी बात यह है कि अधिग्रहण के दायरे में सर्वाधिक सीमांत किसान हैं, जिनके पास दो-चार बिस्वा से ज्यादा जमीन है ही नहीं। बड़ा सवाल यह है कि अगर एक बार फिर बैरवन के किसानों की जमीनें छीन ली गईँ तो वो अपना ठौर कहां तलाशेंगे?
देश का चर्चित गांव है बैरवन
बैरवन कोई मामूली गांव नहीं है। कुछ दशक पहले तक यहां बेर के बगीचे हुआ करते थे और उसके बीचो-बीच मुट्ठी भर आबादी। किसानों ने अपनी मेहनत के बूते इस गांव को नई पहचान दी। समूचा गांव देश-विदेश में गेंदे के पौधों की सप्लाई करता है। यूपी, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, नई दिल्ली, उत्तराखंड ही नहीं, हिंदुस्तान की सभी नर्सरियों में बैरवन का गेंदा ही लहलहता है। गेंदे के पौधे यहीं से नेपाल की राजधानी काठमांडू और बांग्लादेश के ढाका तक जाते हैं। देश-विदेश के पुष्प उत्पादकों की पहली पसंद है बैरवन ब्रांड गेंदा। बैरवन की समूची आर्थिकी गेंदे पर टिकी है। इस गांव के हुनरमंद किसान सिर्फ गेंदे की नर्सरी लगाते हैं और फूलों की खेती करते हैं। गेंदा से लकदक और गमकते बैरवन पर एक बार फिर विपदा टूट पड़ी है। लैंड पुलिंग स्कीम के तहत वाराणसी विकास प्राधिकरण समूचे बैरवन गांव पर कब्जा कर लेना चाहता है।
करीब दो दशक पहले वीडीए ने ट्रांसपोर्ट नगर बसाने की योजना बनाई थी। इस योजना के लिए बैरवन, मिल्कीचक, करनाडाड़ी और सरायमोहना में 1194 किसानों की कुल 82.159 हेक्टेयर जमीन चाहिए। कुछ बरस पहले 771 किसानों को 34.41 करोड़ का मुआवजा बांटा जा चुका है। फिलहाल 413 किसानों ने अभी तक जमीन का मुआवजा नहीं लिया है। ट्रांसपोर्ट नगर का विरोध कर रहे किसानों को नई भूमि अर्जन नीति के तहत चार गुना रेट से धनराशि चाहिए, जबकि वीडीए की उलझन यह है कि पुराने दर से 45 हेक्टेयर भूमि अर्जित की जा चुकी है। ऐसे में एक ही योजना में दोहरा मापदंड अव्यावहारिक है।
बैरवन के किसान अपनी जमीनें बचाने के लिए आंदोलित हैं। इनका कहना है कि जिस तरह रिंग रोड के लिए पुरानी दर को दरकिनार कर नई दर से भूमि अर्जित की गई, उसी तरह इस योजना के लिए भी जमीनों का अधिग्रहण किया जाए, ताकि वो कहीं और अपने लिए छत का इंतजाम कर सकें। किसानों की डिमांड इसलिए भी जायज है, क्योंकि रिंग रोड और ट्रांसपोर्ट नगर योजना का प्रस्ताव एक ही समय बना था। जमीन बचाने के लिए बैरवन के 267 किसानों ने हाईकोर्ट में एक रिट संख्या-61219/2011 दायर कर रखी है। अपनी जमीनों को बचाने के लिए बैरवन, कन्नाडाडी, मोहनसराय और मिल्कीचक के किसान लगातार आंदोलन, प्रदर्शन और धरना दे रहे हैं। आजमगढ़ के इंटरनेशनल एयरपोर्ट की विस्तार योजना की तरह ट्रांसपोर्टनगर योजना का भी विरोध शुरू हो गया है।
क्या कहते हैं किसान?
वीडीए के भूमि अधिग्रहण की सबसे तगड़ी मार बैरवन के किसानों पर पड़ी है। खेती-किसानी में दक्ष पटेल समुदाय के बहुलता वाले इस गांव के ज्यादातर लोगों के पास जमीनों के छोटे-छोटे टुकड़े हैं, जिनमें गेंदे की नर्सरी लगाकर वो अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं। बैरवन के पूर्व प्रधान कृष्ण प्रसाद उर्फ छेदी लाल के पास चार बीघा जमीन है, जिसकी बदौलत अपने परिवार के दस लोगों का भरण-पोषण करते हैं। वह कहते हैं, "हमारे गांव में 90 फीसदी लोग ऐसे हैं, जिनके पास सिर्फ दो-तीन बिस्वा जमीन है। उसी जमीन में उनका मकान भी है। वाराणसी विकास प्राधिकरण 17 अप्रैल 2003 से बैरवन की जमीनों पर अपना भौतिक कब्जा दिखा रहा है, जबकि मौके पर स्थिति कुछ और है। बैरवन के हर खेत में गेंदे की नर्सरी आज भी लहलहा रही है। हालांकि भूमि अधिग्रहण की तलवार लटके होने की वजह से लड़कों के शादी-विवाह में दिक्कत पैदा हो रही है। किसी को न तो कृषि लोन मिल रहा है और न ही कोई सरकारी अनुदान। तमाम बच्चों की पढ़ाई भी बाधित है।"
बैरवन के डॉ.विजय नारायण वर्मा देश के जाने-माने एथलीट हैं और वह कई नेशनल व इंटरनेशलन प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुके हैं। ट्रांसपोर्ट नगर योजना का मुखर विरोध करने पर तत्कालीन कलेक्टर रविंद्र कुमार के निर्देश पर साल 2011 में पुलिस इनके खिलाफ देशद्रोह और सरकारी कार्य में बाधा डालने की रिपोर्ट दर्ज कर चुकी है। वे कहते हैं, "आए दिन वीडीए के अफसर बैरवन आते हैं और जमीनें खाली करने के लिए धमकाते हैं। कमिश्नर कौशलराज शर्मा और डीएम एम.राजलिंगम ने हाल में किसानों को जमीनें खाली करने का फरमान सुनाया था। तभी से सभी की नींद उड़ी हुई है। रोहनिया के विधायक डॉ.सुनील पटेल भी हमारी नहीं सुन रहे हैं और विपक्ष के वो नेता भी जो पहले घड़ियालवी आंसू बहाने आ जाया करते थे।"
जमीन के एक छोटे से टुकड़े पर गेंदे की नर्सरी से जीवन यापन करने वाले प्रेम कुमार पटले कहते हैं, "हम लोग बहुत गरीब हैं...साहब। खेती-मजदूरी करके घर चलाते हैं। हमारे दादा-परदादा भी यहीं रहते थे, लेकिन अब वीडीए हमें उजाड़ने पर उतारू है। हमें धमकाया जा रहा है और कहा जा रहा है कि जिन लोगों ने मुआवजा ले लिया है उनसे बीस सालों का किराया वसूला जाएगा।" कुछ इसी तरह का दर्द शोभनाथ पटेल को भी है। इनके पास सिर्फ एक बीघा जमीन है और उसी जमीन के दम पर वह अपने परिवार के 17 लोगों का पेट भरते हैं। इनका भी मुख्य व्यवसाय गेंदे की नर्सरी है। बाकी समय में वो मजदूरी करते हैं। रमाशंकर पटेल की स्थिति भी इनसे मिलती-जुलती है। इनके खेतों में गेंदे की नर्सरी ही 16 लोगों का पेट भरती है। बैरवन के किसानों के पास सिर्फ मुट्ठी भर जमीन है, जिसके छिन जाने की आशंका से किसानों की हंसी गायब है।
छिन जाएगा खेत तो कैसे पढ़ेंगे बच्चे?
भूमि अधिग्रहण के चलते बैरवन में सबसे ज्यादा परेशान हैं औरतें और बच्चे। गेंदे की नर्सरी की सिंचाई में जुटीं 40 वर्षीया माधुरी देवी कहती हैं, "हमारा खेत छिन जाएगा तो हम कहां जाएंगे? बच्चों की पढ़ाई और उसके बाद उनकी शादी कैसे होगी?" दरअसल, माधुरी के तीन बच्चों की पढ़ाई का खर्च फूलों की नर्सरी से निकलता है। इनके पास सिर्फ चार बिस्वा जमीन है, जो भूमि अधिग्रहण की जद में है। कुल 12 लोगों का परिवार इसी जमीन की बदौलत पल रहा है। माधुरी देवी के पुत्र रंजीत इलाहाबाद में एग्रीकल्चर से स्नातक कर रहे हैं तो दूसरे पुत्र प्रदीप ने बीएससी नर्सिंग में दाखिला ले रखा है। माधुरी के सामने अपने बच्चों के भविष्य की चिंता है।
बैरवन की पूजा देवी की स्थिति माधुरी जैसी ही है। इनके दो बच्चे हैं, जो स्कूलों में पढ़ रहे हैं। इनके परिवार के पास कुल डेढ़ बीघा जमीन है, जिसकी बदौलत परिवार के 30 लोगों की आजीविका चल रही है। पूजा कहती हैं, "वीडीए के अफसरों ने जब से जमीन खाली करने का अल्टीमेटम दिया है तब से टेंशन बढ़ गई है। हम तो तभी से मुसीबत में हैं, जब डेंगू ने बैरवन पर कहर बरपाया था। पिछले साल अगस्त और सितंबर में डेंगू महामारी बनकर उभरा और समूचे गांव को अपनी चपेट में ले लिया। हालात इतने ज्यादा खराब हो गए थे कि रिश्तेदार तक दूरियां बनाने लगे थे। डेंगू से उबरे तो वीडीए ने हमारी मुसीबतें बढ़ा दी।"
प्रेम कुमार की पत्नी सितारा देवी के पास दस बिस्वा जमीन है। वह कहती हैं, "अपनी जमीन बचाने के लिए हम मुकदमा लड़ेंगे। जान चली जाए, पर जमीन नहीं छोड़ेंगे। अफसरों के धमकाने पर हमारे निरक्षर ससुर ने मुआवजा ले लिया था, जिसे हम सरकार को लौटा देना चाहते हैं।" बैरवन के किसान विनय कुमार पटेल कहते हैं, "डीएम-कमिश्नर के अल्टीमेटम के बाद गांव में मकानों का निर्माण कार्य ठप हो गया है। मकान में कोई मिट्टी डलवाने की स्थिति में नहीं है।" 72 वर्षीय बदल पटेल का 22 लोगों का परिवार सिर्फ गेंदे की नर्सरी के भरोसे जिंदा है। वह कहते हैं, "पौने चार बीघे जमीन में परिवार का गुजारा मुश्किल से होता है। वीडीए ने हमें खदेड़ दिया तो आखिर कहां जाएंगे? अपनी जमीन बचाने के लिए हम लड़ते रहेंगे।"
वीडीए और डेंगू का खौफ बराबर
बैरवन के किसानों में जितना खौफ वाराणसी विकास प्राधिकरण के अफसरों की सायरन बजाती गाड़ियों से है, उतना ही जानलेवा डेंगू से। यह बनारस का इकलौता ऐसा गांव है जहां डेंगू और मलेरिया के मच्छर सबसे ज्यादा पलते हैं। पिछली बारिश में डेंगू ने इस कदर कहर बरपाया कि समूचा गांव इस बीमारी की चपेट में आ गया। करीब ढाई-तीन हजार लोग डेंगू से पीड़ित हुए और किसानों की सारी जमा-पूंजी इस बीमारी की भेंट चढ़ गई। रमाशंकर पटेल का समूचा परिवार डेंगू की चपेट आया तो उपचार में उनके लाखों रुपये खर्च हो गए। रघुबर पटेल की जान तब बची जब उन्हें चार यूनिट प्लेटलेट्स चढ़ाया गया।
डेंगू के कहर ने बैरवन को एक नया रोजगार भी दिया है। डेंगू के मच्छरों का हमला तेज हुआ तो बीमारी से उबरने के लिए गांव के हर परिवार ने बकरियां पाल ली। ग्रामीणों का कहना है कि बकरियों का दूध डेंगू का सबसे कारगर इलाज है। डेंगू के बहाने ही सही, बैरवन में गेंदे की नर्सरी की तरह ही बकरी पालन एक नए व्यवसाय के रूप में फल-फूल रहा है। सेना के हवलदार पद से रिटायर बैरवन के प्रधान लाल बिहारी पटेल कहते हैं, "बैरवन के लोगों को जितना खौफ डेंगू से है, उससे ज्यादा वीडीए के अफसरों से। हम पीएम नरेंद्र मोदी के कट्टर समर्थक हैं। समूचा गांव भाजपा को वोट देता आ रहा है, फिर भी हमारी जमीनें छीनी जा रही हैं। यह सच है कि कुछ किसानों ने मुआवजा लेकर गलती की है, लेकिन मकान, पंपसेट और पेड़ों के अधिग्रहण के बाबत अभी कोई अधिसूचना जारी नहीं हुई है। जिला भूमि अध्याप्ति अधिकारी मीनाक्षी पांडेय कहती हैं, "जो लोग कह रहे हैं कि वे चार पुश्तों से गांव में रह रहे हैं, उनके पास अभी वक्त है। अगर जमीन का मुआवजा ले लिया है तो जमीन से कब्जा छोड़ दें, अन्यथा प्रशासन मुआवजा वसूलेगा।"
काल्पनिक किसान अदालत
बनारस के कचहरी स्थित अंबेडकर प्रतिमा के समक्ष 21 जनवरी 2023 को "काल्पनिक किसान अदालत" लगाई गई, जिसमें न्यायधीश की भूमिका पूर्व जिला जज जस्टिस कृष्ण कुमार सिंह के अलावा सेंट्रल बार के अध्यक्ष प्रभुनरायण पांडेय और वरिष्ठ अधिवक्ता मिलिंद श्रीवास्तव ने अदा की। अदालत में किसान संघर्ष समिति के मुख्य संरक्षक विनय शंकर राय "मुन्ना" ने भूमि अर्जन एवं पुनर्वास कानून 2013 के खण्ड 24, धारा 5(1) और सेक्शन 101 का साक्ष्य देते हुए कहा कि अगर पांच बरस में कोई भी योजना विकसित होकर चालू नहीं होती है तो स्वतः निरस्त मानी जाएगी। विशेष भूमि अध्याप्ति अधिकारी ने जनसूचना के जवाब में साफतौर पर कहा है कि बैरवन समेत सभी गांवों में निर्मित मकान, पंपिंग सेट, पेड़ और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों का न मुआवजा दिया गया है न नोटिफिकेशन में एवार्ड है। ऐसे में हजारों लोग बेघर और बेरोजगार हो जाएंगे। यह स्थिति पुनर्वास कानून 2013 का खुला उल्लंघन है।
किसान अदालत
मुन्ना ने कहा, "भूमि अर्जन एवं पुनर्वास कानून 2013 के आधार पर मोहनसराय ट्रांसपोर्ट नगर योजना रद्द कर किसानों की जमीन अवमुक्त करने और डिनोटिफाई के लिए 26 जुलाई 2021 को वाराणसी के कलेक्टर ने राजस्व परिषद के निदेशक को अपनी संस्तुति भेजी थी। पुराने 1998 के अधिसूचना के आधार पर कब्जे की प्रक्रिया अपनाना, किसानों से बीस वर्ष का किराया वसूलने की धमकी देना अनुचित है।" बनारस बार के पूर्व महामंत्री नित्यानंद राय ने कहा कि भूमि अर्जन एवं पुनर्वास कानून की अनदेखी कर अपने प्रशासनिक पद का दुरूपयोग करने वाले जिम्मेदार अधिकारियों की जबाबदेही तय कर वैधानिक कार्रवाई होनी चाहिए।
अधिवक्ता शैलेंद्र राय ने किसानों का पक्ष रखते हुए दावा, साक्ष्य और सबूत पेश किया और कहा, "भूमि अर्जन कानून 2013 के सेक्शन 2, 24, 101 का हवाला देते हुए किसानो की जमीन वैधानिक रूप से अवमुक्त कर वीडीए का नाम काटा जाए। अधिवक्ता संजीव सिंह ने कहा कि वाराणसी जिला प्रशासन कानून के रक्षक की जगह भक्षक बन गया है जो दुर्भाग्यपूर्ण है। राष्ट्र के विकास में किसान का महत्वपूर्ण योगदान है। सड़क, हाईवे से लेकर कल-कारखाने इत्यादि के लिए जमीन किसान ही देता है और उसके साथ असंवैधानिक कार्य राष्द्रोह है।"
अपने खेत से फूल तोड़ता किसान
प्रशासन का पक्ष रखते हुए अधिवक्ता दीपक राय "कान्हा" ने कहा, "विकास के लिए जमीन अधिग्रहण करना जरूरी है। ट्रांसपोर्टरों का पक्ष रखते हुए अधिवक्ता रविंद्र यादव ने कहा कि यह योजना रिंग रोड के बाहर बननी चाहिए। मोहनसराय में ट्रांसपोर्टनगर बसाने के लिए जमीन का अधिग्रहण गैर-जिम्मेदाराना और अव्यावहारिक है। किसान मेवा पटेल, प्रेम शाह, अमलेश पटेल, दिनेश तिवारी, छेदी पटेल, हृदय नरायण उपाध्याय ने अपने उत्पीड़न का जिक्र करते हुए अपनी मुश्किलों पर रोशनी डाली।
अपने खेत से गेंदे के फूल तोड़ती महिला
बहस और जिरह सुनने के बाद तीन जजों की पीठ ने साक्ष्य व सबूतों का परीक्षण कर गुण दोष के आधार पर किसानों के पक्ष में फैसला सुनाया और कहा कि भूमि अर्जन एवं पुनर्वास कानून 2013 के आधार पर मोहनसराय ट्रांसपोर्ट नगर योजना या तो रद्द हो अथवा सरकार वर्तमान सर्किल दर का चार गुना मुआवजा दे। जमीन पर निर्मित भवन, व्यावसायिक प्रतिष्ठान, पंपसेट, पेड़ आदि का मुआवजा नए कानून के आधार पर दिया जाए। प्रशासन कानून का गला घोंट रहा है। सरकार अफसरों की जबाबदेही तय करे। काल्पनिक अदालत में मुंसी जीतलाल ने पुकार लगाई।
किसान अदालत में मौजूद अधिवक्ताओं ने अंबेडकर प्रतिमा के समक्ष किसानों को न्याय दिलाने का संकल्प लिया। किसान अदालत के बाद सेंट्रल बार के अध्यक्ष प्रभु नरायण पाण्डेय, वरिष्ठ अधिवक्ता मनोज यादव, शैलेंद्र राय, पूर्व महामंत्री नित्यानंद राय, दीपक राय और मिलिंद श्रीवास्तव ने कहा कि किसानों का पक्ष वैधानिक रूप से मजबूत है। मोहनसराय ट्रांसपोर्ट नगर योजना से प्रभावित किसानों के हक-हकूक की लड़ाई मुफ्त में लड़ेंगे। काल्पनिक अदालत से पहले किसानों ने अंबेडकर पार्क में गगनभेरी नारे भी लगाए।
सरहद पर पहरा देंगे किसान
ट्रांसपोर्ट नगर योजना का विरोध कर रही किसान संघर्ष समिति ने बैरवन गांव में 22 जनवरी 2023 को बैठक कर आंदोलन की रणनीति तय की। किसानों ने निर्णय लिया है कि समिति खुद अपनी जमीनों की निगरानी करेगी। इस दौरान जमीन को वैधानिक रूप से वापस लेने का संकल्प लिया गया और तय किया गया कि निगरानी समिति के सदस्य ट्रांसपोर्ट नगर योजना से प्रभावित चारों गांवों के सरहद पर पहरा देंगे। इसकी जिम्मेदरी 125 सदस्यों को दी गई। किसान संघर्ष समिति के मुख्य संरक्षक विनय शंकर राय, महामंत्री दिनेश तिवारी, प्रेम साव, छेदी पटेल, हृदय नारायण उपाध्याय और रमेश पटेल ने कहा कि बातचीत के लिए शासन-प्रशासन को एक सप्ताह का मौका दिया गया है। इस बीच आजमगढ़ की तर्ज पर किसानों का आंदोलन-प्रदर्शन जारी रहेगा। किसानों ने आंदोलन को धार देने के लिए आजमगढ़ के खिरिया की बाग की तर्ज पर मोहनसराय किसान संघर्ष संरक्षक मंडल, मार्गदर्शक मंडल, महिला मोर्चा, निगरानी मोर्चा का गठन किया गया है, जिसमें 52 लोगों को शामिल किया गया है।
भूमि अधिग्रहण के खिलाफ मुहिम चला रहे किसान संघर्ष समिति के संरक्षक विनय शंकर राय "मुन्ना" कहते हैं, "बनारस की सरकार जान-बूझकर किसानों को उजाड़ने पर तुल गई है। भूमि अधिग्रहण एवं पुनर्वास कानून 2013 की धारा 91(1) के तहत ट्रांसपोर्ट नगर योजना निरस्त करने के लिए शासन स्तर पर डिनोटिफाई की प्रक्रिया चल रही थी। इसी बीच प्रशासन ने दोबारा ट्रांसपोर्टनगर बसाने के लिए तुगलकी फरमान जारी कर दिया। बैरवन, सरायमोहन, कन्नाडाडी और मिल्कीचक के किसान किसी भी सूरत में जमीन छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं, क्योंकि बेघर होने पर उनके सामने आजीविका का जबर्दस्त संकट पैदा हो जाएगा। ट्रांसपोर्ट नगर योजना रद कराने के लिए किसान हर कदम उठाने के लिए तैयार हैं।"
बकरी पालन करते किसान
"भूमि अधिग्रहण से प्रभावित गांवों में सत्तारूढ़ दल और विपक्ष के नेताओं की इंट्री बंद की जाएगी। भाजपा और अपन दल के सैकड़ों सदस्य इस्तीफा देंगे। भूमि अधिग्रहण कानून 2013 के तहत हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में नई याचिकाएं डाली जाएंगी। आखिर में करो-मरो के संकल्प के साथ बनारस जिला मुख्यालय पर घेरा डालो-डेरा डालो अभियान शुरू किया जाएगा। किसान अपने घरों का ताला बंदकर जच्चा-बच्चा, चूल्हा-चौकी, सतुआ-पिसान, गाय-बकरी, भैस, कुत्ता, मुर्गा-मुर्गी के साथ बेमियादी धरना देंगे। जरूरत पड़ने पर अनशन भी किया जाएगा। पुश्तैनी बहुफसली जमीन पर वीडीए का नाम कटवाकर और अपना नाम चढ़वाकर ही मानेगा।"
(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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