गुजरात: बजट आवंटन के बावजूद सरकार ने पिछले 10 साल में नहीं किए 1.06 लाख करोड़ रुपये खर्च
गुजरात में पिछले 10 सालों में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने बजट में वादा करने के बावजूद 1.06 लाख करोड़ रुपये खर्च ही नहीं किये।
वर्ष 2012-13 से 2021-22 के प्रत्येक वर्ष के राज्य के बजट दस्तावेजों के अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि इन 10 सालों में बीजेपी ने कुल 1,06,860 करोड़ रुपये बजट आवंटन में वादा करने के बावजूद खर्च नहीं किया है। खर्च नहीं की गयी धनराशि कितनी ज्यादा है इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि खर्च के अंतर की राशि वर्तमान वर्ष 2022-23 के कुल बजट (2.18 लाख करोड़ रुपये) की आधी है।
और यदि हम 10 सालों की इस अवधि को पांच-पांच वर्ष के अंतराल में बांटे तो यह सामने आता है कि 2012-13 से 2016-17 के बीच राज्य सरकार ने 50,501 करोड़ रुपये तथा 2017-18 से 2021-22 के रिवाइज्ड बजट के आंकड़ों तक बीजेपी ने 56,359 करोड़ रुपये खर्च ही नहीं किये हैं। बजट के इन आंकड़ों से स्पष्ट पता चलता है कि राज्य सरकार के इन दो कार्यकालों के 10 वर्षों में सबसे अधिक बजटीय कटौती वर्तमान सरकार के कार्यकाल में हुई हैं।
नीचे दिए गए चार्ट में वर्ष 2007-08 से 2021-22 के मध्य प्रत्येक वर्ष कुल बजट आवंटन एवं वास्तविक खर्चे के बीच अंतर् दिया गया है।
कुल बजट आवंटन एवं वास्तविक खर्च में अंतर् की स्थिति
स्रोत- राज्य वित्त : बज़ट अध्ययन, रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया
इस लेख में हमने कुल बजट आवंटन और वास्तविक खर्चे में अंतर के आंकड़ों के विश्लेषण के साथ-साथ ही विकास व्यय(Development Expenditure), सामाजिक और आर्थिक सेवाओं पर किये गए वास्तविक खर्च एवं बजट आवंटन में किये गए वादों का विश्लेषण भी किया है।
विकास की मदों में शिक्षा स्वास्थ्य, ग्रामीण एवं शहरी विकास, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग, कृषि एवं उद्योग आदि शामिल किये जाते हैं
राज्य सरकार के पिछले दो कार्यकालों में विकास की मदों पर किये जाने वाले वादे और वास्तविक खर्च की स्थिति
स्रोत- राज्य वित्त : बज़ट अध्ययन, रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया
उपरोक्त दी गयी सारणी में वर्ष 2016-17 से 2021-22 के मध्य दस वर्षों में बजट आवंटन और वास्तविक खर्चों के अंतर् को दर्शाया गया है। इन आंकड़ों में हम स्पष्ट तौर पर देख सकते है कि विकास की मदों पर वास्तविक खर्चों में भारी कटौती की गयी है। दिए गए आंकड़ों में पिछले कार्यकाल से वर्तमान सरकार के कार्यकाल में विकास पर व्यय में कमी दिखाई दे रही हैं। परन्तु यह कमी इसलिए भी है क्योंकि वर्ष 2021-22 के आंकड़े पुनरीक्षित अनुमान से लिए गए हैं। इस वर्ष के वास्तविक खर्चे के आंकड़े अगले वर्ष के बजट में प्रस्तुत होंगे, जिसमें संभवतः अंतर् की यह राशि बढ़ी हुई होगी ।
इसके साथ सामाजिक एवं आर्थिक सेवाओं में किये गए बजट आवंटन की वृद्धि दर बताती है कि वर्ष 2012-13 से आवंटित धनराशि की वृद्धि दर लगातार घटी है। वर्ष 2012-13 में सामाजिक सेवाओं में पिछले वर्ष से वृद्धि दर 26.7 फ़ीसदी थी जो की 2021-22 में घटकर मात्र 1.4 फ़ीसदी रह गयी और आर्थिक सेवाओं में तो वृद्धि दर 2021-22 में नेगेटिव में चली गयीं है। वर्ष 2022-23 में वृद्धि दर बढ़ी है और उसका एकमात्र कारण है कि यह चुनावी साल है।
सामाजिक आर्थिक सेवाओं की विभिन्न मदों पर बजट आवंटन में वृद्धि दर
स्रोत- राज्य वित्त : बज़ट अध्ययन, रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया
बजट के आंकड़ों से पता चलता है कि वर्तमान सरकार ने अपने पिछले कार्यकालों में बड़े स्तर पर वादा करने के बावजूद भी बड़े स्तर पर वास्तविक खर्चों में कटौती की है। ऐसे में यह समझना जरूरी है कि इन चुनाव में किये जा रहे वादे क्या वास्तव में धरातल पर उतरेंगे या बस चुनावी जुमला ही बनकर रह जायेंगे।
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