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हलाल बनाम झटका: आख़िर झटका गोश्त के इतने दीवाने कहां से आए?

यह बहस किसी वैज्ञानिक प्रमाणिकता को लेकर कतई नहीं है। बहस का केन्द्र हिंदुओं की गोलबंदी करना है।
Halal vs Jhatka
सांकेतिक तस्वीर। साभार गूगल

भारत में अहिंसा की बात काफी वाजे तौर पर होती रही है, जीव हत्या पाप भी बताई गई है, इस विचार का समर्थन किया जाना लाजमी है, उसे सम्मान मिलना ही चाहिए लेकिन सन् 2018 में बालमुरली नटराजन और सूरज जैकब द्वारा की गई एक स्टडी की रिपोर्ट बताती है कि भारत में 80 पर्सेंट से ज्यादा लोग यानी करीब 90 करोड आबादी गोश्त खाती हैं, और एक अरसे दराज से गोश्त खाती आ रही है। थोड़ा बहुत इधर-उधर होने के अलावा इस डेटा में बहुत ज्यादा फेर-बदल नही हुआ।

दूसरी बात तो और काबिले गौर है वो यह है कि हिंदुस्तान के ज्यादातर हिस्सों में हलाल गोश्त ही खाया जाता रहा है। वो चाहे हिंदू हो, मुसलमान, ईसाई, पारसी, या किसी भी मज़हब से जुड़ी मिली जुली दलित जातियां सभी हलाल गोश्त खाती रही है, हां झटका गोश्त सिर्फ सिख समुदाय ही खाता है, और वह भी वाजे तौर पर, उनका कहना है कि उनका मजहब इसकी ही इजाजत देता है। उनकी बात का पूरा एहतराम होना चाहिए।

लेकिन बाकी कहीं भी इस बात को लेकर कभी कोई विवाद नही रहा है। इस लिए ये बात समझना भी लाजमी हो जाता है कि अचानक हर शोबे में झटका मीट खाने की वकालत करने वाले दीवाने कहां से निकल आए। न सिर्फ निकले बल्कि बड़े वलवला अंगेज अंदाज में हर तरफ गोया नमूदार होते चले गए। देखने में ऐसा सहज, आसान सा कुछ न लगा। लिहाजा ये सोचना लाजमी हो गया कि आखिर ये क्या है कि अचानक कुछ नौजवान इस बात पर आमादा हैं कि उन्हें अब हलाल गोश्त नही खाना है। यूँ तो खाना-पीना हर इंसान का अपना चुनाव होता है, उसे कोई दूसरा इंसान या तंजीम तय नही कर सकती, न उसे रोक सकती है, न ही जबरन खिला सकती है। मामला थोड़ा पेचीदा और काबिल-ए-गौर दोनो ही है। इस लिए पहले देखना होगा कि हलाल और झटका आख़िर क्या है?

हलालः हलाल, जिसे हल्लाल भी कहा जाता है यह अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है न्यायसंगत, वैध या शास्त्रानुसार। कुरान में हलाल शब्द हराम (वर्जित) के व्यतिरेक रूप में इस्तेमाल है। यह इस्लामी न्यायशास्त्र के वर्गीकरण में विस्तारित किया गया जिसे पांच कर्तव्य के रूप में जाना जाता है। फ़र्ज़ (अनिवार्य), मुस्तहब (अनुशंसित), मुबाह (तटस्थ), मकरूह (निंदात्मक) और हराम (निषिद्व) ।

वैसे हलाल इस्लामी आहार कानूनों से भी जुड़ा है। कमाई के ताल्लुक से भी हलाल-हराम का इस्तेमाल होता है। हलाल और हराम शब्द कुरान में प्रयोग की जाने वाली सामान्य शर्ते हैं जो कानूनन या अनुमत और गैरकानूनी या निषिद्व4 की श्रेणियों को नामित करती है।

यह हिब्रू शब्दों म्यर (अनुमत, शिथिल) और असुर (निषिद्व) के समानांतर भी है, यहां भी इसका इस्तेमाल खास तौर पर आहार नियमों के सम्बन्ध में किया जाता है। कुरान में, रूट ह ल वैधता को दर्शाता है। हलाल जिसे अल्लाह ने वैध, जाएज (lawful) कहा अपनी किताब कुरान में हराम (forbidden) अर्थात जिसे करने से प्रतिबन्धित किया गया।

हलाल खान-पान के सम्बन्ध में भी कुरान में प्रयोग किया गया है, कमाई के संबंध में भी और पति-पत्नी के रिश्तों के सम्बन्ध में भी। उदाहरण के लिए खाने-पीने में कौन सी वस्तु हलाल है अर्थात जिसे खाया जा सकता है या वह वैध है तथा कौन सी वस्तु हराम है अर्थात जिसे खाने की मनाही है। जाएज तरीके से ही धन कमाने की बात भी कही गई है, उसी तरह पति-पत्नी के रिश्तों में एक बार तलाक हो जाने के बाद वह पत्नी अपने पति पर व पति अपनी पत्नी पर हलाल नहीं रह जाते, अर्थात उनका अब आपसी सम्बन्ध वैध नही रह जाता, उनका सम्बन्ध अब हराम, निषिद्व अथवा नाजायज़ (unlawful) हो जाता है।

जहां तक हलाल गोश्त का ताल्लुक है तो इस्लामी शरीयत कहती है कि जानवर की गर्दन को धीरे-धीरे काटा जाए और उससे उसके पूरे बदन का खून धीरे-धीरे रिस कर बाहर आ जाए। उसके बाद उस जानवर को सफाई से धो कर खाने योग्य बनाया जाए। इस्लामी तरीका मरे हुए जानवर का गोश्त खाने की भी मनाही करता है।

झटका: इसमें जानवरों की गर्दन को एक झटके में काट कर धड़ से अलग कर दिया जाता है। इसमें जानवर के बदन का खून रिस कर बाहर नहीं निकलता उसके थक्के जम जाते हैं, इसी झटके से काटने की प्रक्रिया के नाम पर ही इस गोश्त का नाम झटका गोश्त पड़ा।

हलाल और झटका गोश्त के बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि गोश्त को नरम और रसदार बनाए रखने के लिए काटने के बाद उसका पीएच स्तर6 लगभग 5.5 होना चाहिए, हलाल में तो यह रहता है लेकिन झटका गोश्त में यह पीएच स्तर लगभग 7 हो जाता है। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि हलाल तरीका अपनाने में जानवरों को धीरे-धीरे मारा जाता है, इससे उनके जिस्म में मौजूद पूरा खून निकल जाता है। इसमें झटका की तुलना में अधिक पोषण होता है, जानवरों के शरीर में मौजूद बीमारी खत्म हो जाती है, और गोश्त खाने लायक बन जाता है।

जानना यह भी जरूरी है कि ये बहस कैसे इतनी आगे बढ़ी और किस मुकाम तक पहुँच गई। वैसे इस बारे में हल्की-हल्की सुगबुगाहट 2006 से शुरू हुई जब दिल्ली में रहने वाले एक पत्रकार रवि रंजन सिंह ने झटका गोश्त के सवाल पर कुछ न कुछ लिखना शुरू किया और उस वक्त संसद में एक अर्जी देकर संसद भवन की कैंटीन में हलाल गोश्त का विकल्प रखने की मांग की। उस वक्त तो उनकी बात खास तवज्जो न पा सकी। लेकिन ऐसा लगता है कि कहीं न कही इंतेहापसंद ताकतों ने उस बात को अपने दस्तावेज में सहेज कर रख लिया, शायद ये मुद्दा काफी मुफीद लगा हो मुस्तक्बिल की सियायत के लिए। लेकिन अंदर खाने ये सवाल धीरी रफ्तार से चलता ही रहा। नतीजतन 2014 में जब देश में बीजेपी की सरकार आई, यह मुद्दा कुछ-कुछ अपनी जगह बनाने लगा। इसे स्थापित करने में लगे लोग गोश्त कारोबारियों को झटका गोश्त का फ्यूचर प्लान समझाने में लगे रहे। यहां तक कि रवि रंजन सिंह ने झटका मीट के लिए झटका सर्टिफिकेशन अथॉरिटी नाम का संगठन भी बना लिया। यहां यह बताना जरूरी है कि सरकार के पास अभी भी हलाल या झटका गोश्त के सर्टिफिकेशन का कोई नियम नही है। हलाल गोश्त का सर्टिफिकेशन भी जमीयतुल-उलमा-ए-हिंद नाम के एक संगठन द्वारा ही दिया जाता है। इस मौके का पूरा इस्तेमाल करने के लिए अब झटका सर्टिफिकेशन अथारिटी भी सामने आ गई।

रवि के संगठन का दावा है कि उन्होंने 2014 से अब तक तकरीबन 25 कंपनियों को झटका सर्टिफिकेट दिया है। वो ये भी कह रहे हैं कि बहुत जल्द ही देश में तकरीबन 20 बड़ी कंपनियां या तो झटका प्रोसेसिंग प्लान्ट खोलने जा रही हैं या तो वो हलाल से झटका गोश्त पर शिफ्ट हो रही है। उनके तीन बडे प्लांट दिल्ली, चंडीगढ़ और मुम्बई में रहेंगे।

यह बहस किसी वैज्ञानिक प्रमाणिकता को लेकर कतई नहीं थी। बहस का केन्द्र हिंदुओं की गोलबंदी करना और उन्हें ये समझाना था कि किस तरह उन पर जबरन हलाल गोश्त थोपा जाता है। जबकि मुसलमान हिंदू की दुकान से कभी भी झटका गोश्त नहीं खरीदते। एक तरफ हिंदुत्व के नाम पर मुल्क में आग दहक ही रही थी कि गोश्त की बहस भी उसमें शामिल कर ली गई। यह बहस किसी खास इरादे और मक्सद की तरफ इशारा जरूर करती है। सोचना ये भी होगा कि वही 80 फीसद हिंदू जो एक जमाने से हलाल गोश्त खा रहा था उसे अचानक क्या कुछ हो गया? या यूँ कहें कि वो हर चीज जो मुस्लिम कल्चर से आती है उससे नफ़रत करना सीख गया। जो भी हुआ, जैसे भी हुआ लेकिन होता नजर तो आया। वो सुगबुगाहट धीरे-धीरे तपिश देने लगी।

अब हलाल गोश्त के बारे में नकारात्मक बातें गाहे-बेगाहे उठाई जाने लगीं। 2015 में इशविंदर सेठी ने झटका मीट ब्रांड पंजाब एण्ड मराठा बनाया। उनका कहना है कि उन्होंने 2015 में जब इस नाम से कारोबार शुरू किया वह तमाम फास्ट फूड चेन और रेस्टोरेंट चलाने वालों से मिले तो लोगों ने खास दिलचस्पी नहीं दिखाई। उनका ये कारोबार मुंबई में स्थित है। वो लगे रहे अपने तर्क लोगों को समझाने में और अब वो पाते हैं कि लोगों में झटका के बारे में जागरूकता बढ रही है, उनके पास कारोबारियों से इन्क्वायरी आना भी शुरू हो गई है।

कर्नाटक में हालिया कुछ संगठनों ने हलाल गोश्त का बहिष्कार करने की अपील की, इसका असर ये हुआ कि अब तक जो खाद-पानी इस मुद्दे को दिया जा रहा था उसमें कोपलें आने लगी। कट्टरता फैलाने वाले हिंदू संगठनों ने हिंदुओं को होसातोदाकू के दिन हलाल मीट न खरीदने की भी अपील की। होसातोदाकू का मतलब क्षेत्रीय भाषा में होता है नया साल। झटका गोश्त का कारोबार जो अब तक लगभग ठंडा ही रहा उसने हल्की रफ्तार पकड़ ली।

कर्नाटक बीजेपी के महासचिव सीटी रवि ने हलाल गोश्त को आर्थिक जिहाद तक कह डाला, उन्होंने आगे ये भी कहा कि जब मुसलमान हिंदू से गैर-हलाल गोश्त नहीं खरीदते तो हिंदुओं को उनसे हलाल गोश्त खरीदने पर क्यों जोर दिया जाए। वो कहते हैं कि यह कहा जाता है कि हलाल मीट खाना चाहिए तो यह कहने में क्या हर्ज है कि हलाल मीट नहीं खाना चाहिए। संगठन से जुड़े हरिंदर सिंह का कहना है हलाल हम पर थोपा जाता है। वहीं पवन कुमार कहते हैं कि अब तो भुजिया सीमेंट कॉस्मेटिक्स तक को हलाल बनाने का फैशन बन गया है। भुजिया या साबुन को हलाल प्रमाणित करने का कोई तुक नही बनता।

कर्नाटक की किसान कल्याण राज्य मंत्री शोभा करंदलाजे भी इसमें पीछे न रहीं, उन्होंने कहा कि हलाल मीट समाज के एक वर्ग के लिए है, हिंदुओं को खाने की जरूरत नहीं है। ये राज्य की मंत्री हैं, उस राज्य में जहां सभी धर्मों के लोग रहते है। इतने पर भी मामला थम जाता तो बेहतर होता उसके बाद इस धधकती आग को और हवा देने का काम किया मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने। उन्होंने कहा कि हलाल मीट को लेकर जो भी आपत्तियां सामने आई हैं वो काफी गंभीर है। मुख्यमंत्री से लेकर राज्य मंत्री व बीजेपी का मामूली कार्यकर्ता किसी ने कहीं भी कोई वैज्ञानिक कारण तलाशने की बात नहीं की, न ही मुख्यमंत्री ने वैज्ञानिकों डाक्टरों से इस संबंध में कोई राय लेना जरूरी समझा। बस पूरी गोलबंदी हिंदू-मुसलमान के इर्द-गिर्द ही रही। जो नफ़रत को तूल देती रही।

जो लोग यह कहते हैं कि हलाल का विकल्प दिया जाए, वो एक दूसरे नजरिए और नीयत से यह भी कहने लगे कि हिंदुओं और सिखों को मजबूरी में हलाल गोश्त खाना पड़ता है। वैसे अहिंसा पर आधारित धर्म के मानने वालों को गोश्त खाने की जरूरत ही क्या? और अगर खा भी रहे हैं तो बस खाएं, अभी तक कोई ऐसा दस्तावेज नही मिलता जिसमें हिंदुओं ने अभी तक हलाल गोश्त न खाने या उसे न काटे जाने के लिए कोई मुहिम चलाई हो, या कोई बड़़ा विरोध सरकारों के सामने दर्ज किया हो। या कोई ज्ञापन दिया हो। ये बड़ा डेवलपमेंट 2014 के बाद से ही नज़र आता है।

सुलगाई गई चिंगारी 2020 से 2022 तक बारूद बनना शुरू हो गई। झटका का बाजार खड़ा करने और उसे स्थापित करने को रवि हलालोनॉमिक्स कहते है, इसी गणित के फेर में अब कुछ लोग आने लगे थे। बेंगलूरू के सुदर्शन बूसुपल्ली झटका मीट बेचने का इरादा बनाने लगे। उन्होंने अपना स्टार्ट-अप ऑनलाइन शुरू किया। केाविड में इतनी सफलता नहीं मिली, और झटका गोश्त को लेकर पब्लिक में इतनी खास दिलचस्पी नहीं दिखी। लेकिन जैसे-जैसे हलाल पर बवाल बढ़ने लगा बूसुपल्ली का कहना है कि उनकी बिक्री लगभग 27 फीसदी बढ़ गई है। उनके ऐप मीमो के डाउनलोड डबल हो गए है। उनका कहना है कि यह गोश्त केवल संवेदनशील लोगों के लिए है।

बढ़ाए गए बवाल का फायदा उठाने के लिए फौरन ही बिग बास्केट सामने आया और अपना एक सर्वे कराया। सर्वे के नतीजे में 2020 में उन्हें ये पता चला कि अगर यह अलग कैटेगरी शुरू की तो यह केवल दिल्ली, पंजाब में ही बिजनेस कर सकती है हर जगह नहीं। लेकिन 2022 तक तो कर्नाटक सहित देश के बहुत से हिस्सों में झटका दौड़ लगाने लगा। यह सब नफ़रतज़दा बयानों की मेहरबानी का असर रहा।

बाजार में जारी हलचल का फायदा इस वक्त सभी लेना चाहते हैं। बूसुपल्ली उत्साहित है वो जुलाई तक दिल्ली एनसीआर और चंडीगढ़ में कारोबार शुरू करने वाले हैं। और अपने साथ असंगठित झटका बूचर कम्युनिटी को जोड़ने की तैयारी में हैं। जिससे वह छोटे शहरों में भी अपने कारोबार को पहुँचा सकें। यह काम तभी हो सकता है जब हलाल पर बवाल बना रहे, तभी देश के छोटे इलाकों में यह फैल सकता है।

मुहिम का असर और बढ़ा और 2020 में बीजेपी नेतृत्व वाली दक्षिण दिल्ली नगर निगम की स्थाई समिति ने अपनी बैठक में यह प्रस्ताव पास कर दिया कि क्षेत्र के किसी भी रेस्टोरेंट या दुकान को हलाल या झटका मीट की जानकारी देना अनिवार्य होगा।

जनवरी 2021 में मिनिस्ट्री ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री के अधीन आने वाले एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (APEDA) ने रेड मीट मेनुअल से हलाल शब्द हटा दिया है। इससे झटका मीट को एक्सपोर्ट करने का रास्ता भी खुल गया।

नवंबर 2021 में न्यूजीलैंड क्रिकेट सीरीज के दौरान बीसीसीआई ने अपने खिलाडियों को ये सलाह दी थी कि उन्हें सिर्फ हलाल मीट ही खाना चाहिए। उस वक्त ये न सोचा होगा कि ये सलाह बला बन जाएगी।

1 अप्रैल 2022 को कर्नाटक पशुपालन विभाग ने बेंगलूरू महानगर पालिका को एक चिट्ठी लिख कर कहा कि शहर में जितने भी बूचड़खाने और मुर्गे की दुकाने हैं वहां पर जानवरों को बिजली का करंट देने की व्यवस्था की जाए। अब यह व्यवस्था सरकार तो करने वाली नहीं यह काम उसी गरीब दुकानदार पर अतिरिक्त पड़ने वाला है।

क्या है गोश्त के अन्तर्राष्टीय व्यापार की स्थिति, इस पर एक नज़र

गोश्त के निर्यात में भारत का दूसरा नंबर है। पिछले पांच सालों में भारत ने सवा लाख करोड़ का गोश्त निर्यात किया है। स्टेट ऑफ द ग्लोबल इकोनॉमिक्स की 2020-21 की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में सबसे ज्यादा हलाल मीट का निर्यात ब्राजील करता है और भारत का नंबर दूसरा है। जहां 2020-21 में ब्राजील ने 16.2 अरब डालर का हलाल गोश्त निर्यात किया वहीं भारत ने 14.2 अरब डालर का हलाल गोश्त निर्यात किया। भारत सरकार के पास कोई ऐसा डेटा नहीं है जो यह बता सके कि उसने कितना हलाल और कितना झटका गोश्त एक्सपोर्ट किया है। हां एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी(APEDA) की रिपोर्ट ये जरूर बताती है कि भारत से 70 देशों को गोश्त या एनिमल प्रोडक्ट निर्यात किया जाता है। मुल्क में 111 यूनिट ऐसी हैं जहां तय मानकों और गाइडलाइन के हिसाब से जानवरों को काटा जाता है।

(APEDA) के मुताबिक देश में 10 करोड से ज्यादा भैंस, 15 करोड बकरियां और 7.5 करोड भेड़ हैं। इन्हीं का गोश्त दूसरे मुल्कों में भेजा जाता है, भारत ने गाय के गोश्त के निर्यात पर पाबंदी लगा रखी है।

दुनिया में सबसे ज्यादा मांग भैंस के गोश्त की है। भारत में भी सबसे ज्यादा भैंस का गोश्त की इस्तेमाल होता है। (APEDA) के मुताबिक जितना भी गोश्त भारत से निर्यात होता है उसमें 90 फीसदी भैंस का ही गोश्त होता है। हांगकांग, मलेशिया, इजिप्ट, और इंडोनेशिया में ज्यादा गोश्त निर्यात हुआ 2020-21 में।

भारत कितना गोश्त बाहर बेचता है

*आंकडे अप्रैल 2021 से जनवरी 2022 तक , इनमें भैंस, भेड़, बकरी के अलावा प्रोसेस्ड मीट और दूसरा मीट भी शामिल है। स्रोत- APEDA/DGCIS

झटका गोश्त के समर्थन में जो लॉबी खड़ी की जा रही है उनका एक तर्क ये भी है कि यूरोप के कई देशों जैसे स्वीडन, नार्वे, डेनमार्क, स्विटजरलैंड ने नैतिकता के आधार पर हलाल मीट पर रोक लगा दी है। इशारा इस ओर भी है कि भारत में भी हलाल मीट पर रोक लगे, इससे जो बड़ा मंसूबा है यानी 90 फीसदी गोश्त कारोबारी (बड़े 5-6 एक्सपोर्टर को छोड़ कर) मुसलमान हैं जो मध्यम और निम्न वर्गीय परिवारों से आते हैं, उनके कारोबार को खत्म कर उन्हें मजदूर या भिखारी बना देना है।

सच्चर कमेटी की रिपोर्ट पहले ही बता चुकी है कि मुसलमान आर्थिक रूप से पिछड़ा है, उसे बैंक लोन तक नहीं देते हैं। अब अगली शामत इस राम-राज्य में गोश्त कारोबारी की है।

झटके का बड़ा झटका देने का मंसूबा साफ है। ये पूरी कवायद हलाल बनाम झटका इसी लिए शुरू की गई। दूसरी बात यहां से खाड़ी देशों को बड़ी तादाद में गोश्त सप्लाई होता है, और वहां झटका खरीदा नहीं जाएगा, तो भारत से खाड़ी देशों को गोश्त का व्यापार भी बंद हो जाएगा। इस नई नफरत को धर्म के लबादे में लपेट कर फैलाने के काम में लगाए गए नौजवानों के कंधों पर एक और काम सौंप दिया गया है जो उन्हें उनके दूसरे अहम कामों से दूर बनाता जाए और वो अपने मंसूबे में कामयाब होते जाएं। यही है इस झटके की दीवानगी का कुल लब्बो लुबाब। अच्छा होता कि नौजवान इस फरेब को समझ पाता और खुद को इससे दूर कर लेता। ये उसके और मुल्क दोनो के लिए मुफीद होता।

संदर्भ

1 www. ichowk.in search date 25 april 2020\2

2 हराम एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ है प्रतिबंधित (www.islam.com searched date 20 april 2022)

3 encyclopedia of islam (2009) editor : Juan Eduardo campo, inforbase publishing

4 Encyclopedia of islam and politics : editor Emad El-Din Shahin, Oxford University Press, dedused date 20 april 2022

5 Lowry, joseph E. (2006) " Lawful and unlawful" Encyclopaedia of Quran : editor , Jane Dammen

McAuliff , Brill. searched dated 25 april 2022.

6पावर ऑफ हाइड्रोजन यानी हाइड्रोजन की शक्ति। हाइड्रोजन के अणु किसी चीज़ में उसकी अम्लीय या क्षारीय प्रवृत्ति तय करते हैं।

(लेखिका एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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