ग्राउंड रिपोर्ट : सबक़ सिखाने की होड़ में सामुदायिक भवन से जुड़ी इमारत पर भी चला दिया बुलडोज़र ?
''डेढ़ सौ से लेकर दो सौ तक मजदूर काम कर रहे थे, आज उनके रोटी-पानी के लाले पड़ गए, जो कमाने वाले थे घर पर बैठे गए, मजबूर आदमी को कहां काम मिल रहा है। काम करने वाले सब लोकल (मेवात के) थे। मैंने अपने बेटे का लाइसेंस (बीज भंडार) बनवाया, पढ़ाई-लिखाई करवाई, वो अपने पैरों पर खड़ा हुआ, उसकी लाइसेंस वाली दुकान थी, बोर्ड पर साफ-साफ लिखा था लेकिन तोड़ दी।'' ये कहना है तावडू के हाकिम का।
तावडू
जहां हिंसा हुई थी उससे क़रीब 15 से 20 किलोमीटर दूर सोहना-तावडू हाईवे पर भी बुलडोज़र चला था। हमने देखा कि जितनी भी दुकानों को ध्वस्त किया गया सब की सब मुसलमानों की थीं।
प्रशासन ने अतिक्रमण हटाने और हिंसा में शामिल संदिग्धों के नाम पर मुसलमानों की दुकानों पर बुलडोज़र कार्रवाई की। रिपोर्ट्स के मुताबिक 1,208 इमारतों और दूसरे निर्माण को तोड़ा गया।
हाईवे पर बड़ी गाड़ियां तेज़ी से गुज़र रही थीं, सड़क की हालत कोई ज़्यादा अच्छी नहीं थी, लगातार गुज़र रही गाड़ियां अपने पीछे एक ग़ुबार छोड़े जा रही थीं। जिस जगह हम खड़े थे वहां से सड़क के दूसरी तरफ एक सूखा पेड़ खड़ा था और हमारे साथ बेज़ार मुसलमान मलबे में तब्दील हुई अपनी दुकान के बारे में बता रहे थे। जबकि दूर बुलडोज़र नाम की एक पावर खड़ी नज़र आ रही थी।
बुलडोज़र कार्रवाई के दौरान टूटी हुई ढाबे की चारपाई
''लाइसेंस वाले बीज भंडार पर चला दिया बुलडोज़र''
सड़क के दोनों तरफ दुकानें थी और सभी मुसलमानों की थीं, हाकिम हमें टूटी चारपाइयों का एक ढेर और टूटी पानी की हौज़ दिखाते हैं, वे बताते हैं कि सड़क के जिस तरफ उनकी दुकान थी वहां कुल नौ दुकानों पर बुलडोज़र चला। जिसमें से उनका एक ढाबा, एक परचून की दुकान और एक बीज भंडार था। इसका बकायदा लाइसेंस लिया गया था। उदास हाकिम कहते हैं कि ''मैंने अपने बेटे का लाइसेंस बनवाया, पढ़ाई लिखाई करवाई, वे अपने पैरों पर खड़ा हो गया था। दुकान के बोर्ड पर साफ-साफ लिखा था दुकान लाइसेंस वाली थी लेकिन उसपर भी बुलडोज़र चला दिया गया।''
बिना नोटिस के कार्रवाई का आरोप
वे आगे बताते हैं कि 2010 में उन्होंने अपने गांव के एक आदमी से ज़मीन ख़रीदी थी जिसके सारे कागज़ उनके पास हैं, धीरे-धीरे कर उन्होंने ज़मीन पर दुकान लगाई, उनके ही गांव और आस-पास के लोगों को यहां रोज़गार मिला लेकिन आज सब बेरोज़गार हो गए। हाकिम कहते हैं कि अगर प्रशासन को कार्रवाई भी करनी थी तो पहले कोई नोटिस दे दिया जाता। कम से कम वे अपना सामान तो निकाल लेते। उन्हें तो इतनी भी मोहलत नहीं मिली जिसकी वजह से वे बताते हैं कि उनका 25-26 लाख का नुकसान हो गया।
सबक सिखाने के लिए कार्रवाई ?
हाकिम आरोप लगाते हुए कहते हैं कि ''फिर दूसरे दिन वे (पुलिस) क़रीब दो- ढाई बजे आए। जिस दिन इस पर स्टे लगाया था, 7 तारीख़ को, हम इसमें (मलबे) से सामान निकाल रहे थे वो यहां रखा हुआ था, उसे फिर से तोड़ दिया स्टे लगने के बाद भी।'' हमने हाकिम से पूछा कि ऐसा क्यों किया गया ? तो हाकिम का जवाब था ''ये बोला कि तब तक तुम्हें नहीं छोड़ेंगे जब तक तुम्हें मिट्टी में नहीं मिला देंगे, हमने कहा हमारा अवैध निर्माण नहीं है, हमारी ज़मीन है, तो हमें दूर हटा दिया।''
''हिंदू-मुस्लिम के बीच भाईचारा है''
जिस जगह ये कार्रवाई हुई थी उसके पीछे ही खड़खड़ी गांव है। ये लोग उसी गांव के रहने वाले हैं। कार्रवाई के बाद गांव वाले मिलने और दिलासा देने पहुंच रहे हैं। हाकिम के मुताबिक उनके गांव में हिंदू-मुस्लिम के बीच भाईचारा है, सबका साथ में बैठना है।''
''मुसलमानों की दुकान को टारगेट बनाया''
हमने हाकिम से पूछा कि क्या वे सरकार से कुछ कहना चाहते हैं तो उनका कहना था कि ''मान-सम्मान सबके लिए बराबर होना चाहिए।'' वे आरोप लगाते हुए कहते हैं कि ''यहां से एक किलोमीटर आगे किसी की दुकान को हाथ नहीं लगाया। सिर्फ मुसलमानों की दुकान को टारगेट बनाया गया।''
सड़क के दूसरी तरफ हमें शाकिर मिले, उनकी भी दुकानों पर बुलडोज़र चला था। उनकी दो दुकाने थीं जिनमें से एक बाइक ठीक करने वाली वर्कशॉप थी। वे बताते हैं कि जब बुलडोज़र चला तो सामान भी नहीं निकालने दिया गया जिसकी वजह से ग्राहकों की दो बाइक दब गई जिसका हर्जाना उन्हें भरना होगा।
शाकिर बताते हैं कि ये उनकी पुश्तैनी ज़मीन है जिसके सारे कागज उनके पास थे लेकिन प्रशासन ने कार्रवाई करने से पहले कोई कागज नहीं देखा। वे बताते हैं कि तावडू-सोहना रोड़ पर हुई कार्रवाई में मुसलमानों का लाखों का नुकसान हुआ है।
''बेरोज़गारी फैला दी''
हमने उनसे पूछा कि उन पर कार्रवाई क्यों हुई है तो इसके जवाब में वे कहते हैं कि ''इसका जवाब वही (प्रशासन) दे सकते हैं कि तोड़-फोड़ क्यों कर रहे हैं जो सामान बच गया था टूटने से उसे भी 7 तारीख़ को तोड़कर चले गए। 6 तारीख़ को निकाला था 7 तारीख को आकर तोड़ गया। नोटिस भी नहीं दिया गया।'' मायूस शाकिर कुछ देर के लिए ख़ामोश हो गए और फिर कहने लगे ''थोड़ा बहुत रोज़गार चल रहा था उसे भी ख़त्म कर दिया। बेरोज़गारी फैलाई है, बहुत से लोगों की रोज़ी चलती थी यहां से अब वे घर बैठे हैं।''
तावडू में टूटी हुई दुकान
''कमाने खाने नहीं दे रहे''
शाकिर भी बताते हैं कि जितनी भी दुकानों पर कार्रवाई हुई है वे सभी मुसलमानों की है। वे कहते हैं कि ''500 मीटर आगे हिंदू समाज के लोगों की दुकान है उसे टच भी नहीं किया गया।'' वे आगे कहते हैं कि ''टारगेट किया जा रहा है, कमाने-खाने नहीं दे रहे।''
वे बताते हैं कि जिस हाईवे पर दिन-रात का पता नहीं चलता था वो रात में अब बियाबान लगता है। जब हम उनसे बात कर रहे थे तो उनकी पत्नी कहती हैं कि हमारा गांव में घर था लेकिन हमने ये सोचकर यहां मकान और दुकान बनाई थी कि बच्चों को पढ़ाएंगे-लिखाएंगे बेहतर जिंदगी देंगे लेकिन अब रात को यहां इतना सन्नाटा रहता है कि सोच रहे हैं वापस गांव चले जाएं, क्या पता कब हमें भी यहां से उठा लिया जाए।
हमने शाकिर से भी पूछा कि क्या वे प्रशासन से कुछ कहना चाहते हैं तो उनका कहना था कि ''न्याय मिले, दोषी हैं तो सज़ा मिलनी चाहिए, निर्दोष को मुआवज़ा मिले।''
शाकिर और हाकिम दोनों ही पुलिस-प्रशासन से नाराज़ और डरे हुए हैं लेकिन दोनों को ही देश की अदालतों पर यकीन है। कहते हैं कि अगर प्रशासन हमारा साथ नहीं दे रहा तो कोई बात नहीं हम कोर्ट जाएंगे।
सोहना रोड़, केएमपी पुल जहां बुलडोजर कार्रवाई में इन दोनों की दुकान टूटी वहीं हमें सलीम नाम का एक शख़्स मिला। वे मलबे में बिखरी दवाइयों को दिखाते हुए कहते हैं कि बहुत नुकसान हो गया। सलीम और उनके भाई की आजू-बाजू दुकानें थी। उनकी किराने की दुकान थी और उनके भाई की दवाइयों (केमिस्ट शॉप) की। वे भी बताते हैं कि इस बुलडोज़र कार्रवाई में उनका बहुत नुकसान हो गया। वे भी आरोप लगाते हुए कहते हैं कि ''तावडू से सोहना तक मुसलमानों की दुकानें तोड़ी गई।''
वे कहते हैं कि कोई नोटिस नहीं दिया गया, हमारे नुकसान की जिम्मेदार सरकार है। हमें मुआवजा मिलना चाहिए, सारे डॉक्यूमेंट थे हमारे पास।
हमने सलीम से पता करने की कोशिश की कि जिन लोगों की दुकान तोड़ी गई है क्या उनका नूंह हिंसा में कोई हाथ था तो वे कहते हैं कि ''हमारा उससे कोई लेना-देना नहीं है। वह यहां से करीब 22- 23 किलोमीटर दूर है लेकिन यहां हमें टॉर्चर किया गया।''
सलीम हमें समझाने की कोशिश कर रहे थे कि उनका किसी से कोई वैर नहीं है। वे कहते हैं कि ''यहां पहले जो भाईचारा था वही आज है, आप किसी नॉन मुस्लिम से भी बात कर सकते हो गांव में जाकर। ऐसा नहीं है कि गांव में नॉन मुस्लिम नहीं हैं। गांव में किसी से भी बात कर सकते हैं, गांव में इतना अच्छा भाईचारा है''।
सामुदायिक भवन से जुड़ी इमारत पर भी चला दिया बुलडोज़र
हम इन लोगों से मिलकर उसी रोड पर कुछ ही आगे बढ़े होंगे कि एक बार फिर टूटी हुई दुकानें, छोटी-छोटी गुमटी सी दिखाई देने लगी। हम एक जगह रुके वहां कुछ लोग एक तख़्त पर लेटे हुए थे हमने बात करनी शुरू की तो उन लोगों ने भी अपने नुकसान गिनवाने शुरू कर दिए लेकिन वहां एक इमारत पर नज़र पड़ी जिसके अगले हिस्से पर बुलडोज़र चलने के निशान थे। पता चला वे पंचायत से जुड़ा कोई सामुदायिक भवन है और उसके आगे के हिस्से में जहां बैठने की व्यवस्था है वहां पर बुलडोज़र कार्रवाई शुरू कर दी गई थी। हालांकि पूरे भवन को नहीं तोड़ा गया उससे जुड़े अगले हिस्से पर ही बुलडोज़र चलाना शुरू कर दिया गया था लेकिन जैसे ही पता चला कि वे इमारत पंचायत से जुड़ी है कार्रवाई को रोक दिया गया।
सामुदायिक भवन
जब उस इमारत की तरफ हम बढ़े तो देखा कि अंदर एक सूचना लगी थी जिस पर लिखा था ''दादा सांवलिया पार्क में अमर शहीद स्मारक''
ये कार्रवाई विश्वास से पड़े थी। वहां मौजूद लोगों ने नाराज़गी जाहिर करते हुए बताया कि ''हमने उन्हें बताया था, लेकिन उन्होंने किसी की सुनवाई नहीं की। बहुत बुरा हाल कर दिया था।"
लोगों ने बताया कि ''ये शहीद मीनार 1857 के योद्धाओं का है, जिन्होंने अंग्रेजों से लोहा लिया था, कुर्बानी दी थी। उनकी ये मीनार बनाई गई। 26 जनवरी और 15 अगस्त को यहां झंडा फहराया जाता है।''
टूटी हुई इमारत और अंदर पार्क में लगा शहीद मीनार
लोगों का आरोप है कि कार्रवाई के दौरान उन्होंने बार-बार वहां मौजूद प्रशासन से जुड़े लोगों को ये बताया था कि ये पंचायत से जुड़ी इमारत है लेकिन कोई सुनने वाला नहीं था। वे कह रहे थे या तो हटा या फिर हम गाड़ी में डालेंगे तुम्हें।
लोगों के मुताबिक ''वे तोड़ रहे थे लेकिन जब हमारा पटवारी आया तब उसने रुकवाया।'' हमें लगा कि हो सकता है चारों तरफ धूल की वजह से पंचायत से जुड़ी ये इमारत दिखाई न दी हो इसलिए गलती से बुलडोज़र चल गया हो लेकिन गलती से की गई इस कार्रवाई को भी 10 दिन से ज़्यादा होने जा रहे हैं लेकिन इसे अभी तक रिपेयर क्यों नहीं करवाया गया?
1857 का विद्रोह देश की आज़ादी के लिए लड़ा गया पहला संघर्ष माना जाता है। लेकिन नफरत और पावर के नशे में डूबे लोगों को मेवात के शहीदों से जुड़ी इमारत भी दिखाई देनी बंद हो गई। कल आज़ादी का जश्न मनाया जाएगा, हर साल की तरह शायद यहां भी झंडा फहराया जाएगा लेकिन इस बात का जवाब कौन देगा कि क्यों इस इमारत पर बुलडोज़र चलाया गया?
ये एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब शायद ही किसी के पास हो। इसी जगह पर हमें इस्राइल मिले उन्होंने बताया कि सिर्फ धेनदास की प्याऊ (जिस जगह बुलडोज़र चला) पर ही बुलडोज़र कार्रवाई में क़रीब 70 से 80 दुकानों पर बुलडोज़र चला और उसमें लोगों का क़रीब 20 लाख रुपये का नुकसान हो गया होगा।
इस्राइल कहते हैं कि ''यहां से तो कोई कावड़िया भी जाता है तो हम उसको पानी देते हैं, सेवा करते हैं। ऐसी तो कोई कहानी कभी सामने आई नहीं, जिंदीगी में पहली बार हुआ है ऐसा। जिंदगी में कभी किसी के बीच कोई रोड़ा नहीं रहा। यहां कोई भेदभाव नहीं है भाईचारा रहा है।''
लेकिन जिस तरह से बुलडोजर कार्रवाई की गई लोगों ने आरोप लगाया कि ''सिर्फ एक कौम को दबाने के लिए किया गया है।'' एक स्थानीय ने कहा कि ''दुकान की रजिस्ट्री हुई पड़ी है, लेकिन कोई कागज नहीं देखा। गुंडागर्दी है और कुछ नहीं। लोगों ने आरोप लगाया कि अगर कार्रवाई करनी ही थी तो कम से कम कोई नोटिस दे दिया जाता कोई ऐलान करवा दिया गया जाता तो हम दुकान खाली कर देते।
पिछले कुछ सालों में बाद में जांच, पहले एक्शन की तर्ज पर बुलडोजर नाम की एक पावर सरकारों और प्रशासन के हाथ लग गई है। कई ऐसे मामले सामने आ चुके हैं जहां बुलडोज़र से तोड़े घरों के आरोपी बेगुनाह साबित हुए लेकिन फिर भी बुलडोज़र एक्शन रुकने की बजाए तेज़ी से लोकप्रिय करने की बनाने कोशिश की जा रही है। लेकिन ये संविधान के खिलाफ है, ये बात वे लोग भी जानते हैं जो इसका धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहे हैं।
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