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उनके बारे में सोचिये जो इस झुलसा देने वाली गर्मी में चारदीवारी के बाहर काम करने के लिए अभिशप्त हैं

यह आंकड़ें बताते हैं कि अथाह गर्मी से बचने के लिए एयर कंडीशनर और कूलर की बाढ़ भले है लेकिन बहुत बड़ी आबादी की मजबूरी ऐसी है कि बिना झुलसा देने वाली गर्मी को सहन किये उनकी ज़िंदगी का कामकाज नहीं चल सकता। अगर उनकी ज़िंदगी को गरिमापूर्ण जीवन जीने का माहौल दिया जाए तो उनकी बहुत बड़ी मदद की जा सकती है।  
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बढ़ते तापमान का हाल ऐसा है कि अगर दिन भर चारदीवारी से बाहर रहना पड़े तो जीवन मरने के करीब पहुंच सकता है। भारत में गर्मी का मौसम कहर बनकर बरप रहा है।  ऐसे मौसम में जरा उनके बारे में सचिये जो चारदीवारी के बाहर काम करते है। शरीर के लिए बने किसी भी तरह कृत्रिम आश्रय के बाहर जिनका रोजागर है।  उनके ऊपर बढ़ता तापमान किस तरह कहर बरपाता होगा ? यह सोचकर ही एयर कंडीशन में रहने वाले सिहर उठते होंगे। अगर अपने विशेषाधिकार का एहसास होता होगा तो थोड़ा शर्मसार भी होते होंगे।  तो चलिए इसका पता लगाते हैं कि झुलसाती हुई  गर्मी में  कितने लोग चारदीवारी से बाहर काम कर रहे हैं।

जैसा कि खबरों से सामने आ रहा है कि भारत के कई इलाके हीटवेव से झुलस रहे हैं। इलाकों के मुताबिक़ हीटवेव की घोषण की जाती है।  अगर मैदानी इलाके में तापमान 40 डिग्री से ऊपर चला जा रहा है, पहाड़ी इलाके में तापमान 30 डिग्री से ऊपर जा रहा है तो इसे हीटवेव की श्रेणी में रखा जाता है। अगर तापमान 45 डिग्री से 47 डिग्री के बीच में हो तब इसे हीटवेव से लेकर गए गंभीर हीटवेव की श्रेणी में रखा जाता है। अगर किसी इलाके का सामान्य तापमान 4.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है तो इसे हीटवेव की श्रेणी में रखा जाता है। अगर यह सामान्य तापमान 6.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है तो इसे गंभीर हीटवेव की श्रेणी में रखा जाता है। भारतीय मौसम विज्ञान के मुताबिक 28 अप्रैल से लेकर 1 मई तक भारत के 520 वेदर स्टेशन का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से उपर। मध्य भारत से लेकर उत्तर भारत बढ़ते तापमान में झुलसता रहा। आने वाले दिनों में गर्मी का और अधिक कहर बरपेगा। जब मानसून नजदीक आएगा तो आद्रता बढ़ेगी। वातावरण से वाष्पीकरण की प्रक्रिया धीमे हो जाएगी। इस तरह से मौसम उन लोगों के लिए और अधिक बेकार हो जाएगा जो चारदीवारी से बाहर करते हैं।

साल 2018 -19 के पीरियोडिक लेबर फाॅर्स डेटा को खंगाल कर हिंदुस्तान टाइम्स के एडिटर रोशन किशोर और अभिषेक झा ने यह बताया कि भारत के कितने प्रतिशत कामगार चारदीवारी से बाहर करते है? कितने प्रतिशत मजदूर झुलसा देने वाली गर्मी को सहन करते होंगे।

पीरिऑडिक लेबर फोर्स के आँकड़े जुटाते समय यह भी आंकड़ा जुटाया जाता है कि कौन कहाँ पर काम कर रहा है? तकरीबन 10 श्रेणियों में बांटकर यह सवाल पूछा जाता है कि कौन ग्रामीण इलाके में काम करता है? कौन शहरी इलाके में काम करता है? किसके पास  काम करने की स्थायी जगह नहीं है? इस तरह के सवालों से यह जवाब मिलता है कि तकरीबन 10.8 प्रतिशत शहरी कामगार खुले में काम कर रही है और तकरीबन 10.7 प्रतिशत ग्रामीण कामगार खुले में काम कर रही है। कृषि क्षेत्र में काम में लगे लोगों से यह सर्वे यह सवाल नहीं पूछता कि वह कहाँ काम करते हैं? मानकर चलता है कि कृषक और कृषि कामगार बाहर काम करते हैं। इस तरह से तकरीबन 38 प्रतिशत कामगारों से उनके काम करने की जगह से जुड़ा सवाल नहीं पूछा गया। यह मानकर चला गया कि वह आउटडोर काम करते हैं।

कृषि क्षेत्र के अलावा क्रंस्टक्शन सेक्टर में सबसे अधिक लोग चारदीवारी के बाहर काम करते हैं। तकरीबन 62.4 फीसदी कंस्ट्रक्शन सेक्टर का हिस्सा आउटडोर काम करता है। खनन और उत्खनन क्षेत्र का तकरीबन 14.8 फीसदी बाहर काम करता है। व्यापार, होटल, यातायात और संचार का तक़रीबन 10 फीसदी हिस्सा बाहर काम करता है। शिल्प और इससे जुड़े कामों का तक़रीबन 27 फीसदी हिस्सा बाहर काम करता है। इन सबको मिला दिया जाए तो किसी भी तरह का काम कर रही कुल आबादी में तकरीबन 49. 4 फीसदी आबादी चारदीवारी के बाहर काम कर रही है। अगर गिनती में कहें तो तकरीबन 23 कामगार बाहर काम कर रहे हैं।  इनमे से तकरीबन 68 फीसदी हिस्सा अगर छुट्टी लेता है तो उस दिन पैसा काट लिया जाता है। मतलब अगर गर्मी ने बुखार में धकेल दिया तो काम से छुट्टी लेने पर किसी तरह का पैसा नहीं मिलेगा। यहाँ समझने वाली बात यह भी है कि यह कोई ऐसी आबादी नहीं है जिसकी कमाई बहुत ज्यादा है। वर्ल्ड इनक्वॉलिटी डेटाबेस के आंकड़े बताते है कि भारत की तकरीबन 90 फीसदी आबादी की कमाई महीने के 25 हजार से कम है। मतलब चारदीवारी के बाहर काम करने वालों की कमाई भी 25 हजार महीने से अधिक नहीं होगी।

यह आंकड़ें बताते हैं कि अथाह गर्मी से बचने के लिए एयर कंडीशन और कूलर की बाढ़ भले है लेकिन बहुत बड़ी आबादी की मज़बूरी ऐसी है कि बिना झुलसा देने वाली गर्मी को सहन किये उनके जिंदगी का कामकाज नहीं चल सकता। अगर उनकी जिंदगी को गरिमापूर्ण जीवन जीने का माहौल दिया जाए तो उनकी बहुत बड़ी मदद की जा सकती है।  

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