हिंदी को उच्च शिक्षण संस्थानों में अध्ययन की भाषा न बनाया जाए : माकपा नेता
राज्यसभा में शुक्रवार को मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के एक सदस्य ने मांग की कि हिंदी को आधिकारिक उद्देश्य तक ही रखा जाए, उसे उच्च शिक्षण संस्थानों में अध्ययन की भाषा न बनाया जाए।
आधिकारिक भाषा समिति ने हाल ही में राष्ट्रपति को अपनी 11वीं रिपोर्ट सौंपी है। राष्ट्रपति स्वयं उस प्रदेश से हैं जहां की भाषाई संस्कृति अत्यंत समृद्ध है। उन्होंने कहा कि हिंदी के प्रचार-प्रसार से क्षेत्रीय भाषाएं धीरे धीरे नदारद हो जाएंगी।
माकपा सदस्य जॉन ब्रिटस ने कहा कि हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है लेकिन हमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि हम हिंदी को आधिकारिक उद्देश्य तक रखें, उसे उच्च शिक्षण संस्थानों में अध्ययन की भाषा न बनाएं।
ब्रिटास ने कहा ‘‘कल्पना कीजिये कि अल्फाबेट कंपनी के सीईओ और उसकी सहायक कंपनी गूगल एलएलसी के सीईओ सुंदर पिचई केवल हिंदी में बात करते हुए, हिंदी में परीक्षा देते हुए क्या उस पद तक पहुंच पाते, जिस पद पर वह अभी हैं?
उन्होंने कहा, ‘‘उत्तर भारत के कई छात्र दक्षिण भारत में पढ़ रहे हैं। अगर उन्हें तमिल, मलयालम या कन्नड़ जैसी दक्षिण भारतीय भाषा में पाठ्यक्रम मिले तो उनकी क्या स्थिति होगी। यही स्थिति उत्तर भारत में आ कर पढ़ने वाले दक्षिण भारतीय छात्रों की हो सकती है। इसलिए हिंदी को उच्च शिक्षण संस्थानों में अध्ययन की भाषा नहीं बनाया जाना चाहिए।’’
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