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आरक्षित पदः नॉट फाउंड सुटेबल कंडिडेट?

राज्य शिक्षा मंत्री डॉ. सुभाष सरकार ने राज्यसभा में 20 जुलाई 2022 को एक सवाल के जवाब में बताया है कि देश के केंद्रीय उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों के अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के 3,532 आरक्षित पद खाली पड़े हैं।
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प्रतीकात्मक तस्वीर

द्रौपदी मुर्मु के देश का राष्ट्रपति चुने जाने पर सभी देशवासियों को हार्दिक बधाई। द्रौपदी मुर्मु आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली पहली व्यक्ति हैं जो इस पद तक पहुंची है। द्रौपदी मुर्मु भाजपा की सदस्य हैं और भाजपा समर्थित उम्मीदवार थीं। एक तरफ तो ये खुशी की बात है कि देश को पहली आदिवासी राष्ट्रपति मिली है, तो दूसरी तरफ अफसोस की बात है कि एक आज़ाद देश और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में आदिवासी समुदाय से किसी व्यक्ति को इस पद तक पहुंचने में 75 साल लग गए।

इसमें कोई दो राय नहीं कि इस ऐतिहासिक घटना का श्रेय भाजपा को जाता है। लेकिन भाजपा इसे प्रचारित कर रही जैसे कि इससे आदिवासियों के प्रतिनिधित्व का मसला हल हो गया है?

ये भी देखना होगा कि बाकी जगहों पर प्रतिनिधित्व की क्या स्थिति है? आरक्षण की क्या स्थिति है? आरक्षित पदों की क्या स्थिति है? क्या आरक्षण का ढंग से पालन किया जा रहा है? द्रौपदी मुर्मु के राष्ट्रपति बनने की खुशी मनाते हुए हमें इन सवालों को भी याद रखना चाहिये।

इन सवालों का जवाब जानने के लिए हम एक बार केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में आरक्षित पदों की स्थिति पर नज़र डालते हैं और देखते हैं कि उनमें से कितने पदों पर भर्ती की गई, कितने खाली पड़े हैं और कितनों पर कहा गया है कि “नॉट फाउंड सुटेबल कंडिडेट”? इन संस्थानों में प्रतिनिधित्व की वास्तविक स्थिति को समझने के लिए हमें चतुर्थ श्रेणी नहीं बल्कि ये देखना होगा कि प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों की क्या स्थिति है?

केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों के आरक्षित पदों की स्थिति

राज्य शिक्षा मंत्री डॉ. सुभाष सरकार ने राज्यसभा में 20 जुलाई 2022 को एक सवाल के जवाब में बताया है कि देश के केंद्रीय उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों के अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के 3,532 आरक्षित पद खाली पड़े हैं। इन संस्थानों में केंद्रीय विश्वविद्यालय, आईआईटी, आईआईआईटी, आईआईएम, एनआईटी और अन्य दूसरे उच्च शिक्षा के केंद्रीय संस्थान शामिल हैं। शिक्षकों के सबसे ज्यादा आरक्षित पद केंद्रीय विश्वविद्यालयों में खाली हैं। केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अनुसूचित जाति के 988 और अनुसूचित जनजाति के 576 पद खाली पड़े हैं। इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलोजी यानी IITs में अनुसूचित जाति के 583 और अनुसूचित जानजाति के 299 आरक्षित पद खाली पड़े हैं। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलोजी यानी NITs मेंअनुसूचित जाति के 480 और अनुसूचित जनजाति के 321 आरक्षित पद खाली पड़े हैं। देश के बाकी केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में भी कमोबेश स्थिति ऐसी ही है।

शिक्षकों के सबसे ज्यादा आरक्षित पद दिल्ली विश्वविद्यालय में खाली पड़े हैं। डीयू में प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर के अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 138 पद और अनुसूचित जनजाति के 70 पद खाली पड़े हैं। ओबीसी के लिए आरक्षित पदों की स्थिति भी ऐसी ही है। केंद्रीय विश्विद्यालयों में ओबीसी के लिए शिक्षकों के 1,761 आरक्षित पद खाली पड़े हैं।

शिक्षक के पेशे को समाज में सम्मानित पेशा माना जाता है और विश्वविद्यालय में प्रोफेसर होना तो और भी सम्मान की बात है। क्या दलित और आदिवासी इस सम्मानित पेशे में उचित प्रतिनिधित्व का अधिकार नहीं रखते? द्रौपदी मुर्मु के राष्ट्रपति बनने को भाजपा इस तरह प्रोजेक्ट कर रही है जैसे कि भाजपा दलितों और आदिवासियों की मसीहा बन गई है। तो फिर केंद्रीय विश्वविद्यालयों में दलितों और आदिवासियों के शिक्षकों के आरक्षित पद खाली क्यों पड़े हैं?

नॉट फाउंड सुटेबल कंडिडे

आमतौर पर इन आरक्षित पदों पर भर्ती करते हुए इन पदों को खाली छोडने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं। जिनमें से सबसे तगड़ा फार्मूला है “नॉट फाउंड सुटेबल कंडिडेट”। यानी कहा जाता है कि उपयुक्त या उचित उम्मीदवार ही नहीं मिला। जबकि इस बात को लेकर हमेशा विवाद की स्थिति रही है। कई मामले कोर्ट तक गये हैं और ये आरोप लगता रहा है कि आरक्षित पदों को अनारक्षित श्रेणी में बदल कर भर्ती करने के लिए ऐसा हो रहा है।

20 जुलाई 2022 को राज्यसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने बताया कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित शिक्षकों के पदों में पिछले पांच सालों के दौरान 380 पदों को “नॉट फाउंड सुटेबल कंडिडेट” की श्रेणी में डाल दिया गया है। अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित शिक्षकों के पदों की इस श्रेणी में संख्या 266 है तथा ओबीसी के लिए आरक्षित शिक्षों के 330 पदों के बारे में भी कहा गया है कि “नॉट फाउंड सुटेबल कंडिडेट” और भर्ती के बावजूद पद खाली छोड़ दिये गये। अगर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी इन तीनों कैटेगरी को मिला लें तो पिछले पांच सालों में 976 पदों को नॉट फाउंड सुटेबल कंडिडेट की श्रेणी में डाला गया है।

कब तक होगी भर्ती

शिक्षा मंत्री ने राज्यसभा में बताया है कि सभी केंद्रीय शिक्षण संस्थानों को कहा गया है कि वो मिशन मोड में रिक्त पदों पर भर्ती करें। उन्होंने ये भी बताया कि संस्थानों को कहा गया है कि 5 सिंतबर 2021 से लेकर 5 सितंबर 2022 तक एक साल के अंदर सभी पदों पर भर्ती पूरी कर ली जाए। लेकिन वास्तविक स्थिति क्या है? अभी वर्ष 2022 का जुलाई महीना ख़त्म होने को हैं और एक साल की मियाद में मात्र दो महीने बचे हैं। जबकि स्थिति ये है कि अगस्त 2021 से लेकर अब तक केंद्रीय विश्वविद्यालयों के शिक्षकों के 4,807 पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन निकाले गए हैं और अब तक सिर्फ 375 पदों पर ही भर्ती हुई है। मात्र 4,807 पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन निकाले गये हैं जबकि सभी केंद्रीय संस्थानों को छोड़ दीजिये सिर्फ केंद्रीय विश्वविद्यालयों में ही मात्र आरक्षित वर्ग के शिक्षकों के कुल खाली पदों की संख्या 4,297 है।

शिक्षा मंत्रालय का एक साल में सभी केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों के सभी पद भरने की मियाद के मात्र दो महीने बचे हैं। देखना ये है कि क्या सरकार इन दो महीनों में सभी पदों पर नियुक्तियां कर देगी या एडऑक, ठेका और विजिटिंग फैकल्टी के नाम पर खानापूर्ति करके पल्ला झाड़ लेगी?

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रेनर हैं। आप सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते हैं।)

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