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भारतीय कैंपस के होस्टलों में ट्रांसजेंडर छात्रों के लिए अब भी जगह नहीं

जेंडर स्पेसिफिक छात्रावास की ग़ैरमौजूदगी का मतलब ट्रांसजेंडर छात्रों को आवास सुविधाओं से वंचित कर दिया जाना होता है, और इस वजह से उनमें से कई छात्र कॉलेज छोड़ने के लिए मजबूर हो जाते हैं।
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अन्य छात्रों के साथ चंडीगढ़ स्थित पंजाब यूनिवर्सिटी में वीसी दफ़्तर के सामने विरोध प्रदर्शन कर रहीं याशिका।

याशिका को चंडीगढ़ स्थित पंजाब यूनिवर्सिटी (PU) के हॉस्टल में एक कमरा दिलाने में छह महीने लग गये, नौ चिट्ठियां लिखनी पड़ीं, कई बैठकें और दो धरना-प्रदर्शन तक करने पड़े।

दिल्ली की एक दलित ट्रांसजेंडर महिला याशिका इस यूनिवर्सिटी के सेंटर फ़ॉर ह्यूमन राइट एंड ड्यूटीज़  में पहले साल की छात्रा हैं। हालांकि, उन्होंने सितंबर, 2021 में हॉस्टल में एक कमरे के लिए दरख़्वास्त दी थी, लेकिन इस मामले की जांच के लिए एक समिति का गठन इस साल जनवरी में तब जाकर हो पायी,जब याशिका ने चंडीगढ़ यूटी प्रशासन से इस मामले को लेकर शिकायत की।

यशिका का नाम अनुसूचित जाति श्रेणी के तहत मिलने वाली होस्टल सुविधा की मेरिट सूची में होने के बावजूद यह समिति हॉस्टल को आवंटित करने में देरी करती रही।

याशिका ने बताया, "समिति की उन बैठकों में वे लोग हॉस्टल का इंतज़ाम किये जाने को लेकर बात करने के बजाय मेरे लिंग पर चर्चा कर रहे थे। मैंने उस समिति में एक ट्रांसजेंडर को शामिल करने के लिए कहा था, लेकिन ऐसा करना तो दूर, उन्होंने समिति से मेरे विभाग के अध्यक्ष को ही हटा दिया।ऐसा इसलिए किया गया,क्योंकि वह क़ानूनों और नीतियों का हवाला देकर मेरा समर्थन कर रही थीं।" साल 2014 के एनएएलएसए बनाम भारत संघ के फ़ैसले में ट्रांसजेंडरों को 'थर्ड जेंडर' घोषित किया गया था और सभी को अपने ख़ुद के लिंग को निर्धारित करने का अधिकार दिया गया था, जिसे क़ानूनी तौर पर मान्यता दी जायेगी, भले ही इसके लिए उन्होंने कोई चिकित्सा प्रक्रिया ही क्यों न अपनायी हो।

उस फ़ैसले के बाद विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने तमाम विश्वविद्यालयों को बाथरूम सहित ट्रांसजेंडर छात्रों के लिए कैंपस में बाक़ी सुविधायें मुहैया कराने का निर्देश दे दिया था। ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 भी ट्रांसजेंडर व्यक्ति के ख़िलाफ़ शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले से इनकार करने, बाधा पहुंचाने या उनके साथ अनुचित व्यवहार किये जाने को प्रतिबंधित करता है। हालांकि, इनमें से किसी भी प्रावधान से याशिका को मदद नहीं मिली।

आवास के लिए संघर्ष

हालांकि, विश्वविद्यालय की कक्षायें 1 मार्च से चालू हो गयी थीं, लेकिन 27 साल की इस छात्रा को अभी तक छात्रावास का कमरा नहीं मिल पाया था। रहने के लिए कोई जगह नहीं होने के बावजूद उन्होंने चंडीगढ़ जाने का फ़ैसला किया। उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया, "मैं विश्वविद्यालय के अधिकारियों से मिली, लेकिन उन्होंने फिर से वही जवाब दिया कि वे इस पर काम कर रहे हैं। उनका पूरा नज़रिया ही इतना ट्रांसजेंडर विरोधी था कि वे इशारा करते रहे कि मैं एक पुरुष हूं।"

उसी दिन याशिका ने कुलपति के दफ़्तर के सामने रात भर धरने पर बैठने का फ़ैसला कर लिया। उनके साथ कई दूसरे छात्र और छात्र संगठनों के लोग भी शामिल हुए। एक सीनेटर ने यशिका को कैंपस के एक गेस्ट हाउस में ठहराया, लेकिन उन्हें अगले ही दिन उस कमरे से बाहर कर दिया गया। उन्होंने फिर से एक विरोध प्रदर्शन किया और बाद में उन्हें बाक़ी छात्रों से दूर पंजाब यूनिवर्सिटी के फ़ैकल्टी गेस्टहाउस में एक कमरा आवंटित कर दिया गया। उन्होंने बताया,"हालांकि यह एक अच्छा और सुरक्षित कमरा है, लेकिन मैं अलग-थलग महसूस करती हूं। इसमें एकमात्र सकारात्मक बात इतनी ही है कि मैं सड़क पर नहीं हूं, लेकिन यह बेहतर समाधान तो नहीं है।"  

इस मुद्दे के बारे में पूछे जाने पर पंजाब विश्वविद्यालय के डीन (छात्र कल्याण, महिला) डॉ मीना शर्मा ने कहा, "यह हमारे लिए एक नया मामला है, और हम भी समय के साथ ख़ुद को थोड़ा-थोड़ा खोल रहे हैं, यही कारण है कि कमरे के आवंटन में इतना लंबा समय लग गया। बेहतर से बेहतर जो कुछ भी हो सकता था,हमने वही किया है। हमारे लिए सभी छात्रों को अपने साथ लेकर चलना ज़रूरी है।"

यह पूछे जाने पर कि क्या महिला छात्रावास में याशिका को एक कमरा आवंटित करने को लेकर अन्य छात्रों की ओर से आपत्ति है, उन्होंने इस पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। हालांकि, पंजाब फ़ेमिनिस्ट यूनियन ऑफ़ स्टूडेंट्स के सदस्यों का दावा है कि इसे लेकर कुछ अधिकारियों की टिप्पणी यह थी कि यशिका के इस महिला हॉस्टल में रहने पर हॉस्टल में रहने वाले बाक़ी छात्राओं के माता-पिता को आपत्ति होगी। इस यूनियन की सदस्य हरपुनीत कौर ने बताया, "लेकिन, मुद्दा यह है कि इनके माता-पिता लड़कियों के छात्रावासों में दाखिल होने के समय के बढ़ाये जाने पर भी आपत्ति जता रहे हैं। वे अपनी बेटियों पर लगाम लगाना चाहते हैं। अगर विश्वविद्यालय उन माता-पिता की बात सुनता है, तो ज़ाहिर है कि पहले से ही हाशिए पर रह रही इन छात्राओं को आगे भी हाशिये पर रखा जाता रहेगा।"  

याशिका ने अब पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर कर दी है, जिसमें लिंग को लेकर तटस्थ रहने वाले छात्रावास के लिए निर्देश देने की मांग की गयी है। उनका कहना है,"हर एक ट्रांसजेंडर छात्र अपने अधिकारों के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन से लड़ पाने में सक्षम नहीं होगा। उन्हें ट्रांसजेंडर, दो लिंगों के बाहर के लिंग के लोगों और अन्य समलैंगिक छात्रों के लिए लिंग को लेकर तटस्थ छात्रावास बनाने एक नीति बनाने और इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए ऐसी समिति गठित किये जाने की ज़रूरत है,जिसमें ट्रांसजेंडरों की नुमाइंदगी हो।"

हाल ही में इसी तरह की एक और याचिका कर्नाटक हाई कोर्ट में भी दायर की गयी थी। मणिपाल के कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज के महिला छात्रावास में याचिकाकर्ता, डॉ त्रिनेत्र हलदार गुम्माराजू को एक कमरा दिये जाने से तब इन्कार कर दिया गया था, जब वह चार साल पहले वहां पढ़ रही थीं।

गुम्माराजू ने राज्य के सभी उच्च शिक्षा संस्थानों को दाखिले और छात्रावास के फ़ॉर्म में 'ट्रांसजेंडर' के रूप में लिंग पहचान के विकल्प को शामिल करने का निर्देश दिये जाने के आदेश की मांग की है, और उन्होंने इस बात की भी मांग की है कि  उच्च शिक्षा में ट्रांसजेंडर छात्रों को अपनी स्व-निर्धारित लिंग पहचान के मुताबिक़ समायोजित किया जाये और ट्रांसजेंडर छात्रों के लिए अलग से छात्रावास की सुविधा मुहैया करायी जाये। उस याचिका में कहा गया है, "छात्रावास में उनकी लिंग पहचान के आधार पर कमरे आवंटित किये जाने से इनकार से अक्सर इन ट्रांसजेंडर छात्रों को उच्च शिक्षा से बाहर होने के लिए मजबूर होना पड़ता है, क्योंकि उन्हें उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है, क्योंकि उन्हें विपरीत लिंग वाले छात्रावासों में रखा जाता है, क्योंकि कई छात्राओं के पास इतने पैसे भी नहीं होते कि वे विश्वविद्यालय के बाहर एक सुरक्षित निजी कमरा ले सके।" कर्नाटक हाईकोर्ट ने अब इस सिलसिले में राज्य सरकार, यूजीसी और मेडिकल काउंसिल ऑफ़ इंडिया को नोटिस जारी कर दिया है।

रहने की सुविधा में ट्रांसजेंडर छात्रों की सुविधा को शामिल किये जाने का यह मामला पूरे भारत के लिहाज़ से एक गंभीर मुद्दा रहा है। तमिलनाडु में इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने वाली पहली ट्रांसजेंडर ग्रेस बानो याद करती हैं कि उन्हें किस तरह 2017 में कॉलेज जाने के लिए हर दिन 120 किमी का सफ़र तय करना पड़ता था। उन्होंने बताया,"हालांकि, मेरे कॉलेज का माहौल बहुत अच्छा था, लेकिन इसमें मेरे लिए कोई छात्रावास का कमरा नहीं था। उस समय मैं किसी नीति या क़ानून का हवाला भी नहीं दे सकती थी। लोगों को यह समझने की ज़रूरत है कि ट्रांसजेंटर बाक़ियों के मुक़ाबले ज़्यादा संकटग्रस्त इसलिए होते हैं, क्योंकि हमें उच्च मानसिक तनाव, वित्तीय परेशानियों और परिवार के समर्थन के अभाव से जूझना होता है।  जब भी हम अपने अधिकारों के लिए विरोध प्रदर्शन करते हैं, तो सत्ता में रह रहे सिसजेंडर,यानी हमसे अलग जेंडर वाले लोग हमारे अधिकार देने के बजाय कुछ टुकड़े हमारी तरफ़ फेंक देते हैं। हम सभी लिंगों के लिए सुरक्षित गुंज़ाइश  बनाने की ज़रूरत है।"

कैंपस से बाहर का आवास आमतौर पर महंगा, असुरक्षित होता है, और ट्रांसजेंडरों के लिए उनकी पहचान की वजह  से आसानी से उपलब्ध भी नहीं होता है। 2019 में इंटरनेशनल कमीशन ऑफ़ ज्यूरिस्ट्स की ओर से प्रकाशित एक रिपोर्ट में उन ट्रांसजेंडरों को लेकर विवरण दिया गया है, जिन्होंने किराये के आवास पर भेदभाव और उत्पीड़न का सामना किया है। कई चिंताओं में यौन हिंसा का डर, उच्च किराया दर, वहां रहने की सुरक्षा की कमी, अनुचित मांग और निजता में मकान मालिकों की दखलंदाज़ी शामिल थे। 

डेटा से पता चलता है कि ज़्यादतर ट्रांसजेंडर छात्र नियमित कक्षाओं में दाखिला लेने के बजाय दूरस्थ शिक्षा का विकल्प चुनना पसंद करते हैं। बानो ने बताया, "किराये पर कमरा मिलना मुश्किल होता है, क्योंकि ज़्यादतर मकान मालिक विपरीत लिंगी, उच्च जाति के लोग होते हैं, जिनमें से ज़्यादातर ट्रांसजेंडर विरोधी भावना से ग्रस्त होते हैं। हमें छात्रवृत्ति और वज़ीफ़े की ज़रूरत है,ताकि हम कमरे का किराया या छात्रावास शुल्क वहन कर पाने में सक्षम हों। हमें शिक्षा हासिल करने में यही मददगार हो सकता है।"

साल 2019 में लोकसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने कहा था कि 2014 के बाद से इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (IGNOU) में 814 ट्रांसजेंडर छात्रों को छोड़कर किसी भी सेट्रल यूनिवर्सिटी में एक भी ट्रांसजेंडर छात्र का नामांकन नहीं हुआ है। इन विश्वविद्यालयों में कोई ट्रांसजेंडर टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ़ तक नहीं था।

याशिका ने कहा, "पारिवारिक समर्थन की कमी और सामाजिक भेदभाव से हम में से कई लोग कैंपस से बाहर रहने के लिए मजबूर हो जाते हैं। मुझे यह भी लगता है कि इन विश्वविद्यालयों में कई और ट्रांसजेंडर छात्र हों, लेकिन वे भेदभाव के डर से अपनी पहचान का ख़ुलासा ही नहीं करना चाहते।" वह आगे बताती हैं, "इस समुदाय के लिए एक दोस्ताना माहौल और बुनियादी ढांचा होने से हममें और ज़्यादा आत्मविश्वास पैदा होगा और हमें प्रोत्साहन मिलेगा।"

अगुवाई करते छोटे-छोटे कैंपस

मुंबई स्थित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज (TISS) 2018 में लिंग को लेकर एक तटस्थ छात्रावास वाला पहला शैक्षणिक संस्थान था। क्वीर कलेक्टिव नामक अनौपचारिक छात्रों के एक निकाय के लंबे संघर्ष के बाद इस संस्थान ने इन छात्रों के लिए बिना किसी लिंगगत पहचान के एक महिला छात्रावास के गाउंड फ़्लोर को ख़ास तौर पर आवंटित कर दिया। पटियाला स्थित राजीव गांधी नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ लॉ और हैदराबाद स्थित नेशनल एकेडमी ऑफ़ लीगल स्टडीज़ एंड रिसर्च (NALSAR) ने भी लिंग को लेकर तटस्थ रहने वाले छात्रावास शुरू किये हैं।

एनएएलएसएआर में क्वीयर कलेक्टिव के एक सदस्य शिवम शर्मा ने कहा, "हमारे पास इस तरह के तक़रीबन 80 छात्र हैं और पिछले दो सालों से लिंग को लेकर तटस्थ छात्रावास की मांग कर रहे हैं। लड़कियों के छात्रावास की एक फ़्लोर को अब लिंग तटस्थ छात्रावास के नाम से आवंटित कर दिया गया है। अब हम लिंग और लिंगगत अल्पसंख्यक को शामिल करने के लिए एक ट्रांसजेंडर नीति पर काम कर रहे हैं। मुझे लगता है कि इस तरह के एक विधि विश्वविद्यालय के प्रशासन को अपनी बातों को समझा पाना आसान है, क्योंकि यह एक ऐतिहासिक फ़ैसला है और अब हमारा पक्ष लेता एक क़ानून है। कुछ शिक्षक भी हमारे साथ थे।"

द वेस्ट बंगाल नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ ज्यूरिडिकल साइंस में पहले से ही ट्रांसजेंडर और लिंगगत आधार पर विशिष्ट लोगों  के अधिकारों के लिए एक नीति है। इसमें कहा गया है कि विश्वविद्यालय यह सुनिश्चित करेगा कि छात्रावास व्यक्तियों की पसंद के मुताबिक़ आवंटित किये जायें और मौजूदा छात्रावासों में लिंग को लेकर तटस्थ क्लस्टर, ब्लॉक और फ़्लोर बनाये जायें।

हालांकि, भेदभाव के विशाल महासागर में आशा के ये ऐसे छोटे-छोटे टापू हैं, जहां पहुंचने के लिए इन ट्रांसजेंडरों को उस विशाल महासागर को पार करना होता है। साल 2017 में पंजाब यूनिवर्सिटी सिंडिकेट ने ट्रांसजेंडरों के लिए एक छात्रावास बनाने का प्रस्ताव भी पारित कर दिया था, लेकिन उस मोर्चे पर अभी तक कोई प्रगति नहीं हुई है।

2016-18 के दौरान पढ़ाई करने वाले इस विश्वविद्यालय के एक पूर्व ट्रांसजेंडर छात्र, धनंजय चौहान याद करते हैं कि उस समय के दौरान कितनी सारी ऐसी पहल हुई थी, जिनमें ट्रांसजेंडर छात्रों के लिए मुफ़्त शिक्षा और थर्ड जेंडर के लिए शौचालय का निर्माण भी शामिल था, लेकिन छात्रावास को लेकर ऐसी कोई पहल नहीं हो पायी।

चौहान आगे बताते हैं, "इस विश्वविद्यालय में मेरे अलावा तीन और ट्रांसजेंडर छात्र थे। हालांकि, मैं एक स्थानीय शहर का रहने वाला था, बाकी छात्र दूसरे सूबों से थे और उन्हें रहने के लिए मकान की ज़रूरत थी। अधिकारियों की ओर से इस दिशा में किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं होने से दो छात्रों को बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़ देनी पड़ी, जबकि तीसरा पढ़ाई करता रहा। लेकिन,वह हिजड़ों के डेरे में रहता था और सप्ताहांत पर समारोहों में नाचने और बधाई देने के लिए जाया करता था। ज़्यादातर ट्रांसजेंडर को उनके परिवार नहीं अपना पाते हैं।ऐसे में  सस्ते और सुरक्षित छात्रावास ही हमें अपनी पढ़ाई में मददगार होने में एक लंबा सफ़र तय करवा पायेगा।"

मनु मौदगिल चंडीगढ़ स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। उनका ट्विटर एकआंट @manumoudgil है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

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