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हाइब्रिड काम का माॅडल कर्मचारियों के लिए कितना हितकर

जैसा की नाम से ही साफ है कि हाइब्रिड यानी मिला-जुला। कोरोना के दौर में वर्क फ्रॉम होम चलता था। अब कोरोना अलविदा कह रहा है तो कंपनियां कुछ दिन घर और कुछ दिन दफ़्तर से  काम करने का नियम बना रही हैं। इस नियम पर कर्मचारियों की क्या प्रतिक्रिया है?
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प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : India Today

महामारी का प्रकोप कम होने के साथ-साथ आई टी कम्पनियां अपने कर्मचारियों को वापस ऑफिस बुला रही हैं। विप्रो ने अपने भारतीय कर्मियों को ऑफिस  से काम करने के लिए नोटिस भेजी है। टीसीएस ने भी 85 प्रतिशत कर्मचारियों को सप्ताह में 3 दिन ऑफिस आने को कहा है। सीनियर एक्सिक्यूटिव्स को 5 दिन। इन्फोसिस की ओर से भी इसी प्रकार का फरमान जारी किया गया है। पर कर्मचारियों का एक बड़ा हिस्सा वापस आने के लिए इच्छुक नहीं है। उसे लग रहा है कि कम्पनियां हाल में सामने आए ‘मूनलाइटिंग’(एक कम्पनी में काम करते हुए दूसरी कम्पनी के लिए काम करना) की समस्या पर ज़रूरत से ज़्यादा रिएक्ट कर रहे हैं। पिछले दिनों विप्रो ने 300 कर्मचारियों को मूनलाइटिंग के लिए कम्पनी से बाहर कर दिया। कहा जा रहा है कि घर से काम करने वाले कर्मियों के लिए मूनलाइटिंग करना आसान हो जाता है। शायद यही वजह है कि ‘हाइब्रिड माॅडल’ के तहत काम करने की बात चल पड़ी है। आखिर क्या है यह हाइब्रिड माॅडल?

काम का हाइब्रिड माॅडल

हम याद करें कि हज़ारों आई टी कर्मी महामारी के दौर में कार्यस्थल नहीं आ पा रहे थे और बाद में शहर छोड़कर घर चले गए थे क्योंकि उन्हें कम्पनियों ने ‘वर्क प्राॅम होम’, यानि घर से काम करने का विकल्प दे दिया था। केवल 20 प्रतिशत कर्मी कार्यस्थल से काम कर रहे थे। अभी कोविड के मामले पूरी तरह खत्म नहीं हुए हैं, इसलिए कार्यस्थल पर अधिक भीड़ नहीं बढ़ाया जा रहा है। फिर भी यह मानते हुए कि अधिकतर लोग टीका लगवा चुके होंगे, ऑफिस सिस्टम को चालू रखने के लिए कुछ नए प्रयोग किये जा रहे हैं। इसमें से एक प्रयोग है ‘हाइब्रिड वर्क माॅडल’।

नाम से ही आप समझ गए होंगे कि यह मिले-जुले कामकाज की पद्धति है-कुछ दिन ऑफिस में और कुछ दिन घर से काम करने की। इसमें भी दो तरह से काम करने की बात है। पहला-कुछ दिन, मसलन 2-3 दिन ऑफिस आना होगा और बाकी दिनों में घर से काम करना होगा (वर्क प्राॅम होम या रिमोट वर्क)।

या फिर कुछ कर्मी ऑफिस आएंगे और कुछ घर से काम करेंगे और काम के बारे में अपडेट देते रहेंगे। किस दिन ऑफिस आना है यह ज़्यादातर मामलों में प्रबंधक तय करेंगे ताकि उन्हें अधिक से अधिक आउटपुट मिल सके। ह्यूमन रिसोर्सेज़ (एच आर) विशेषज्ञों का कहना है कि ‘‘हाइब्रिड सिस्टम लागू करने की जल्दबाज़ी कम्पनियों की मूनलाइटिंग पर आवेशपूर्ण प्रतिक्रिया है। इसी चिंता से कर्मचारियों को सप्ताह में तीन दिन ऑफिस से काम करने को कहा जा रहा है, जबकि घर से काम करने पर कंपनियों को किसी प्रकार की आर्थिक हानि नहीं हुई है। बल्कि कर्मचारी ज़रूरत से अधिक काम कर रहे हैं।’’

माइक्रोसाॅफ्ट सर्वे

माइक्रोसाॅफ्ट ने हाल में यानि जुलाई-अगस्त में 11 देशों से करीब 20,000 आईटी कम्पनी प्रबंधकों और कर्मचारियों के बीच सर्वे किया और खरबों माइक्रोसाॅफ्ट 365 उत्पादक संकेतों का विश्लेषण किया। उन्होंने पाया कि मैनेजरों में 53 प्रतिशत और कर्मचारियों में 50 प्रतिशत अपने काम से खुश नहीं थे। उनका कहना है कि वे ‘बर्न आउट सिन्ड्रोम’ से गुज़र रहे हैं, यानि उनकी ऊर्जा पूरी तरह से खत्म होती जा रही है। काम से वे जुड़ाव नहीं महसूस करते, हर समय थका-थका महसूस करते हैं और उनका काम में ज़रा भी मन नहीं लगता।

महामारी के बाद से एक बहस यह भी चल रही है कि कर्मचारी चुपचाप काम छोड़ रहे हैं। यहां तक कि एक जुमला -‘द ग्रेट रेज़िग्नेशन’ प्रचलन में आ गया है-यानि लोग त्यागपत्र देकर जा रहे हैं क्योंकि उन्हें काम में किसी प्रकार की संतुष्टि नहीं मिल पा रही। न ही उनकी तनख्वाह बढ़ रही है, न उन्हें प्रमोशन मिलता है, न ही वे कुछ नया सीख पा रहे हैं और न उन्हें बेहतर काम के अवसर मुहय्या हो रहे हैं। एचआर विशेषज्ञों का कहना है कि ऑफिस आने पर बाध्य करने से अधिक-से-अधिक कर्मचारी कम्पनी छोड़कर चले जाएंगे; उन्हें काम पर बनाए रखना मुश्किल हो जाएगा।

माइक्रोसॉफ्ट की रिपोर्ट के मुताबिक 87 प्रतिशत कर्मचारियों का कहना है कि वे उत्पादकता संकेत बढ़ा रहे हैं। पर कम्पनियों और उनके क्लाइंटों को अर्थिक मंदी का भूत सता रहा है इसलिए वे दबाव बना रहे हैं कि ऑफिस से काम हो। ऑफिस लौटने से बचने के लिए कर्मियों को दूना काम करना पड़ रहा है। वर्क फ्राॅम होम में क्योंकि तैयार होकर ऑफिस आने और जाने का समय बचता है, उनसे अपेक्षा होती है कि वे अधिक कार्य करें।

रिपोर्ट के अनुसार काम के औसत घंटे और प्रति सप्ताह ली जा रही मीटिंगों की संख्या बढ़ती जा रही है; मसलन माइक्रोसाॅफ्ट टीम के प्रयोगकर्ताओं में 153 प्रतिशत बढ़ोत्तरी है। इसके बावजूद प्रबंधन को लग रहा है कि उनके कर्मी पहले जैसे उत्पादक नहीं रह गए। दरअसल 85 प्रतिशत प्रबंधकों को लग रहा है कि हाइब्रिड माॅडल में वे कर्मचारियों पर पूरा भरोसा नहीं कर पा रहे, क्योंकि उनके सामने नहीं देख पाते जैसा कि महामारी से पहले थे।

तब वे हाॅल में कर्मचारियों पर नज़र रख पाते थे और उन्हें सीधे भौतिक रूप से काम सौंप देते थे। माइक्रोसाॅफ्ट की रिपोर्ट के मुताबिक ऑफिस में उपस्थित होकर प्रबंधन करने वालों में 36 प्रतिशत को लगा कि काम करवाने के लिए उन्हें मशक्कत करने पड़ती है, जबकि हाइब्रिड मैनेजरों में 49 प्रतिशत को लग रहा था कि वे काम करवाने के लिए कष्ट झेल रहे हैं। दूसरी बात कि 38 प्रतिशत मैनेजरों का कहना था कि वे कर्मचारियों के काम को देख पाते हैं जबकि 56 प्रतिशत का कहना था कि वे देख ही नहीं पाते कि क्या काम हो रहा है ?  माइक्रोसाॅफ्ट की रिपोर्ट यह भी बताती है कि 81 प्रतिशत कर्मी कहते हैं कि प्रबंधकों को उन्हें इस मामले में सहायता करनी चाहिये कि वे अपने काम की प्राथमिकताएं कैसे तय करें? केवल 31 प्रतिशत का मानना है कि प्रबंधक उन्हें सही तरीके से गाइड करते हैं। 48 प्रतिशत कर्मचारी और 53 प्रतिशत प्रबंधक कहते हैं कि उनका बर्न आउट हो चुका है। 43 प्रतिशत कम्पनिया एम्प्लायी फीडबैक लेते ही नहीं और 53 प्रतिशत केवल कभी-कभार। पर फीडबैक पर कार्यवाही होने से 90 प्रतिशत कर्मचारी संतुष्ट होते हैं। और कार्यवाही न होने से दूनी संख्या में कम्पनी छोड़ देना चाहते हैं (16 प्रतिशत बनाम 7 प्रतिशत)।

माइक्रोसाफ्ट 365 ऐण्ड फ्यूचर ऑफ़ वर्क के सीईओ कोलेट स्टाॅलबाॅमर का कहना है, ‘‘पिछले दो वर्ष काफी कठिन रहे हैं और लोग बुरी तरह से थक चुके हैं। महामारी के बाद अपेक्षाएं बदल गई हैं। अब कर्मचारी कम्पनियों में तभी टिक सकेंगे जब उन्हें अपने कार्य कौशल को बढ़ाने का और कुछ नया सीखने का मौका मिलेगा। 76 प्रतिशत 18-26 वर्षीय युवा वर्ग (जेन ज़ेड) और 27-41 वर्षीय लोग (मिलेनियल्स) का यही सपना है और वे खुद अपने बाॅस बनना चाहते हैं। तो उन्हें अपने साथ रखने के लिए कम्पनियों को उत्पादकता के नए मापदंड बनाने होंगे जो परिणाम पर आधारित हों, न कि इसपर कि कौन कितने धंटे खट रहा है।’’

माइक्रोसाॅफ्ट की रिपोर्ट बताती है कि 90 प्रतिशत कर्मचारी ऑफिस से काम करने के लिए इच्छुक हैं, यानि ऑफिस वापसी की ओर इशारा करती है। पर एक बड़ी टेक कम्पनी में काम कर रही साॅफ्टवेयर इंजीनियर रूही जैन का कहना है कि जिन दिनों घर पर काम करना होता है, प्रबंधक हमारा ‘माइक्रोमैनेजमेंट’ करते रहते हैं। ऐसा लगता है कि उन्हें विश्वास ही नहीं होता कि हम रिमोट स्थान पर रहकर जिम्मेदारी से काम करते हैं, जबकि हम ऑफिस के घंटों से कहीं ज़्यादा काम कर रहे होते हैं। वे बार-बार फोन करते हैं, हर 15 मिनट में मेसेज करते हैं और दिन में 3 मीटिंग रख देते हैं। काम से अधिक तो प्रबंधन में समय ज़ाया होता है। शायद यही कारण है कि 3 दिन ऑफिस बुलाने की बात चल रही है। आगे ऑफिस के दिन और बढ़ाए जाएंगे।’’

दूसरी ओर पल्लवी रहेजा अन्य कारणों से खुश है कि अब आफिस के दर्शन होंगे। इसमें काम की चिंता से अधिक उसका कहना है, ‘‘हम घर से काम करके बोर हो चुके हैं। काम ज़्यादा रहता है और बाहर निकलने का मौका ही नहीं मिलता। जबकि ऑफिस जाने के कई फायदे हैं-दोस्तों से मिलना, स्विमिंग पूल जाना, जिम जाना, खेल-कूद में भाग लेना और लाॅन में ‘चिल’ करना। हाईब्रिड से फायदा होगा कि ‘बेस्ट ऑफ बोथ वल्र्ड्स’ मिलेगा।’’

पर भारत से विदेशों की स्थिति भिन्न है। शाॅम्पा दास लंदन में एक बड़ी आईटी कम्पनी के सेल्स विभाग में कस्टमर रिलेशनशिप मैनेजर है और काफी वरिष्ठ हैं। उनका कहना है, ‘‘यहां तो वर्क फ्राॅम होम में उतनी दिक्कतें नहीं रही हैं और हाइब्रिड वर्क माॅडल भी अच्छा है क्योंकि हम ऑफिस को काफी मिस करते रहे हैं। कलीग्स से मिलना और काम के बारे में चर्चा करना ऑफिस के प्रोफेश्नल माहौल में काम करना और मुख्यतः घर से बाहर निकलना अच्छा लगता है।

घर पर काम रिलैक्स करता है पर करते समय भी प्रोफेश्नल रहना जरूरी है। इसलिए घर के काम और बच्चों को देखने के लिए किसी हेल्पर को रखना चाहिये, जो हम यहां करते हैं। पर मेरे भारतीय दोस्त बताते हैं कि उन्हें घर पर काफी ‘डिस्ट्रैक्शन’ होता है। बच्चों को स्कूल भेजना। वे लौटें तो खाना देना।  होमवर्क कराना। बूढ़े सास-ससुर की देख-भाल करना और कोई आए तो बैठाना आदि। छोटे शहरों के कुछ कर्मचारी बताते हैं कि उनके घरों में पावर बैकअप नहीं है तो बिजली जाने से या इंटरनेट न चलने से काम बाधित होता है। तंग घरों में रहने के कारण बाहर की आवाज़ें आती हैं और बच्चों को मीटिंग के दौरान चुप रखना असंभव हो जाता है। इसलिए हाइब्रिड माॅडल से उन्हें कुछ दिन तो राहत मिलेगी।’’

लेकिन हाईब्रिड माॅडल की बात आने से ऋषभ सैनी कुछ परेशान हैं। वह एचसीएल में कार्यरत है और दो साल से घर पर रहकर काम कर रहे थे। उनका कहना है कि ‘‘मंगलवार और बृहस्पतिवार को ऑफिस बुलाने की बात चल रही है। अब मैं तो बनारस में रहता हूं और ऑफिस नौएडा में है। तो क्या दो दिन ऑफिस जाने के लिए मैं पीजी का 10 हज़ार रुपये किराया भरूंगा? पीजी में दिन का भोजन भी नहीं मिलता तो यदि आप वर्क फ्राॅम होम (यानि वर्क फ्राॅम पीजी) करते हैं तो खाना बाहर से मंगवाना पड़ता है। 200रु से कम में एक मील नहीं खा सकते। तो 4000 रु और जोड़ लें, यानि 14000रु फ़ालतू खर्च होंगे।

यदि सोमवार और मंगल ऑफिस होता तो मैं दो दिन दोस्त या बहन के यहां रुक जाता और बुद्ध से रविवार तक अपने घर बनारस रहता। एक बार आने-जाने का भाड़ा कम होगा। पर मंगल और बृहस्पतिवार का लाॅजिक समझ में नहीं आता।’’ ऋषभ के एक-दो दोस्त नौएडा में ही रहते हैं तो उन्हें हाइब्रिड माॅडल ठीक लगता है। उन्हें लगता है कि जब हार्डवेयर संबंधित कोई काम होता है या मीटिंग होती है तो ‘इन पर्सन’ यानि व्यक्तिगत रूप से हाज़िर रहना बेहतर होता है।

रिमोट स्थान से दूसरे को गाइड करना मुश्किल होता है और ऑनलाइन मीटिंग में सभी टीम सदस्य हाज़िर नहीं होते। तो 2-3 दिन जाना ठीक है। रूही कहती हैं, ‘‘फिर कम्पनी की ऑनबोरडिंग प्रक्रिया भी रिमोट तरीके से मैनेज करना मुश्किल होता है। नए कर्मियों को जाॅइन करने के बाद काफी मेटरिंग की ज़रूरत होती है। उन्हें काम भी समझाना पड़ता है क्योंकि प्राॅजेक्ट पहले से चल रहे होते हैं। ऑफिस में हम 9 घंटे से अधिक रहतेे हैं तो मिल जाते हैं, पर घर से काम करते समय किसी को कुछ बताने का समय नहीं रहता और साथ मिल-बैठकर काम की दिक्कतों को सुलझाना नहीं हो पाता। तो ठीक ही कहा जा रहा है कि कुछ दिन ऑफिस आना होगा। कम्पनी को भी फायदा होगा कि वह कभी भी ज़रूरत पड़ने पर पूरी तरह वर्क फ्राम होम या पूरी तरह आफिस में काम पर स्विच कर सकती है।’’

पर कई विवाहित महिलाएं अपने बच्चों को समय देना चाहती हैं क्योंकि वे छोटे हैं। कोविड के आने के बाद इतनी अनिश्चितता आ गई है कि लोगों को एक-एक पल की कीमत समझ में आ रही है। तो ये महिलाएं नौकरी छोड़कर भी अपने बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बिताना चाहती हैं। वे ऑफिस आने के लिए तैयार नहीं हैं और जहां बेहतर विकल्प मिलेगा। वहां काम की तलाश में चली जाएंगी। उनका कहना है कि आने-जाने में इतना समय ज़ाया होता है कि हमें बुरा लगता है कि उस समय को हम अपने बच्चों को दे सकते थे। लौटकर थकान भी होती है। फिर भी दो दिन जाना पड़े तो तैयार हैं-थोड़ी आउटिंग और मेल-जोल हो जाएगा, पर इससे अधिक नहीं।

सबकुछ देखते हुए भी हाइब्रिड वर्क के लिए अभी प्रयोग का दौर ही कहा जा सकता है। हमेशा ऑफिस से कार्य करने की पद्धति के हिसाब से इंफ़्रास्ट्रक्चर और तकनीक का प्रयोग चलता रहा है। इसलिए हाईब्रिड की ओर स्थाई बदलाव करने के लिए कार्यपद्धति में काफी परिवर्तन करना होगा। ऑफिस में सीटिंग व्यवस्था बदलनी होगी और मीटिंग रूम तैयार करना होगा।

टीम को आपस में और मैनेजर के साथ बातचीत करने के लिए समय तय करना होगा। नवागंतुकों की ऑनबोर्डिंग  प्रक्रिया को सुगम बनाने के लिए ट्यूटोरियल विडियोज़ तैयार करने होंगे। कैलेंडर और प्लानर के हिसाब से काम सजाना होगा ताकि ऑफिस में सबकी उपस्थिति कारगर हो। दूसरी ओर घर पर काम करने वालों के साथ जूम मिटिंगों का प्रावधान, काम के बारे में अपडेट्स लोड करने के लिए इंस्टाग्राम शिड्यूलर और काम पर नज़र रखने के लिए ‘एम्प्लायी ऐप’ की ज़रूरत भी होगी। पदोन्नति के लिए अवसर प्रदान करने होंगे और साथ ही कर्मचारियों को कैरियर विकास के लिए नए अवसर उपलब्ध कराने होंगे।
 
कर्मचारी रिमोट कार्य करते समय अपने टीम सदस्यों और प्रबंधकों से आसानी से सम्पर्क में रह सकें इसकी भी व्यवस्था करनी होगी और बर्नआउट से बचाने के लिए काम के घंटे निर्धारित करने होंगे। माइक्रोमैनेजमेंट से बचना होगा और कर्मचारियों पर भरोसा करना होगा। केवल ऐसी स्थिति में जब उत्पादकता का स्तर गिर रहा हो और परिणाम अपेक्षित से कम हों, कम्पनी को कुछ ऐसे कदम उठाने होंगे जिनसे कर्मचारी की मेंटरिंग या मदद की जा सके। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कर्मचारी को छूट हो कि अपना काम पूरा करने के बाद बिना कम्पनी की सुरक्षा भंग किये, वह किसी और काम में अपना खाली समय खर्च कर सके और परिवार के साथ समय बिता सके। क्योंकि एक ही किस्म का काम और ज़िन्दगी काफी उबाऊ हो सकते हैं। लम्बे अंतराल में वह कर्मचारी के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं। आगे देखने की बात है कि कम्पनियां हाइब्रिड माॅडल की ओर ट्रांजिशन कितने बेहतर तरीके से कर पाती हैं और कैसे कर्मचारियों को संतुष्ट रख सकती हैं।

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