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“बिना पैसे कैसे होगी रिसर्च”, फेलोशिप हाइक के लिए रिसर्च स्कॉलर्स ने चलाया ट्विटर कैंपेन!

“शोधार्थी केंद्र सरकार के डीएसटी को तीन बार पत्र लिख चुके हैं, ट्वीटर पर कई बार कैंपेन भी कर चुके हैं लेकिन फेलोशिप हाइक तो दूर की बात है, अभी तक हमारी मीटिंग की मांग भी पूरी नहीं हुई है।”
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फेलोशिप बढ़ोतरी समेत अपनी कई अन्य मांगों को लेकर देश के आईआईएसईआर, आईआईटी और एनआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के रिसर्च स्कॉलर्स एक बार फिर अपने इंस्टीट्यूट से लेकर सोशल मीडिया तक संघर्षरत हैं। ये रिसर्च स्कॉलर्स बीते लंबे समय से फेलोशिप हाइक और मीटिंग को लेकर सरकार से गुहार लगा रहे हैं। ऑल इंडिया रिसर्च स्कॉलर्स एसोसिएशन (AIRSA) की ओर से इस संबंध में भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग यानी डीएसटी और उच्च शिक्षा विभाग को कई पत्र भी लिखे गए हैं, जिस पर अभी तक कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया है। ऐसे में इन शोधार्थियों का कहना है कि सरकार यदि ऐसे ही उनकी मांगों की अनदेखी करती रही, जो जल्द ही प्रयोगशालाओं का काम छोड़ ये लोग राजधानी के जंतर-मंतर में बड़ा आंदोलन करने को मजबूर होंगे।

बीते शुक्रवार यानी कल 19 मई को इन रिसर्च स्कॉलर्स ने फेलोशिप हाइक को लेकर एक ट्वीटर कैंपेन भी चलाया, जिसमें डीएसटी, केंद्रीय मंत्री डॉक्टर जितेंद्र सिंह और शिक्षा मंत्रालय तक को टैग कर फेलोशिप हाइक को लेकर 'धैर्य' खत्म होने की बात भी कही गई। ध्यान रहे कि ये शोधार्थी ऐसा कैंपेन पहले भी कर चुके हैं, जिस पर इसी महीने की शुरुआत में डीएसटी ने रिस्पांस करते हुए अपने आधिकारिक ट्विटर से ट्वीट कर कहा था कि छात्र धैय रखें, फेलोशिप का मुद्दा उनकी प्राथमिकता में शामिल है। हालांकि आरोप है कि डीएसटी ने अब तक न तो AIRSA के पत्रों का कोई जवाब दिया है और ना ही उन्हें मिलने या मीटिंग का कोई आश्वासन दिया है।

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"फेलोशिप हाइक तो दूर की बात है, अभी तक मीटिंग के लिए भी नहीं मानी सरकार"

ऑल इंडिया रिसर्च स्कॉलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष लाल चंद्र विश्वकर्मा ने न्यूज़क्लिक को बताया कि "शोधार्थी केंद्र सरकार के डीएसटी को तीन बार मीटिंग के लिए पत्र लिख चुके हैं, ट्वीटर पर कई बार कैंपेन भी कर चुके हैं लेकिन फेलोशिप हाइक तो दूर की बात है, अभी तक हमारी मीटिंग की मांग भी पूरी नहीं हुई है। सरकार पिछले कई महीनों से केवल बड़ी-बड़ी बातें ही कर रही है, लेकिन वास्तव में रिसर्च स्कॉलर्स के अभी तक किया कुछ भी नहीं है।"

लाल चंद्र के मुताबिक, "रिसर्च स्कॉलर्स की फेलोशिप कई एजेंसी से फंडेड होती है, जिसके चलते किसी के चार तो किसी की पांच महीने बाद पैसे आते हैं। ऐसे में परिवार की तो छोड़िए स्कॉलर्स अपनी बेसिक जरूरतें भी पूरी नहीं कर पाते। संस्थानों में गाइडों द्वारा उनका शोषण अलग से होता है, जिसकी नतीजा है की बीते महीनों में कई शोधार्थियों ने आत्महत्या कर ली है। अब अगर जल्द ही सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया, तो शोध छात्र बड़ा प्रदर्शन कर सकते हैं और इसके लिए ज़िम्मेदार सिर्फ़ सरकार होगी।

बिना पैसे रिसर्च कैसे होगी?

ट्विटर पर कई शोधार्थियों ने लिखा है कि “पीएचड़ी, दुनिया की सबसे बड़ी डिग्री मानी जाती है, लेकिन सरकार की इसके प्रति गंभीरता ज़ीरो दिखाई देती है। सरकार ने जेआरएफ की सीटें कम कर दीं। एचआरए घटा दिया, रिसर्च स्कॉलर्स की फेलोशिप छह महीने-साल भर में मिलती है, ये उन्हें आर्थिक तौर पर परेशानी देती है। इसके अलावा एचआरए, मेडिकल और तमाम सुविधाओं तक उनकी कठिन पहुंच, उन्हें मानसिक तौर पर प्रभावित भी करती हैं।”

AIRSA के ट्विटर हैंडल से अलग-अलग संस्थानों के शोध छात्रों ने अपने हाथों में प्लेकार्ड लेकर कई तस्वीरें पोस्ट कीं, जिसमें “Highest Degree With Lowest Pay”, “बिना पैसे रिसर्च कैसे होगी”, “मेरे और मेरे परिवार के खर्चों का क्या”, “फेलोशिप बढ़ाओं, देश का भविष्य बचाओ” जैसे अनेक स्लोगन लिखे हुए थे।

बता दें कि फेलोशिप या ग्रांट केंद्र सरकार उन छात्रों को देती है, जो शोध और विकास के काम में जुटे हैं, और उन्हें भी जिनका चयन जूनियर रिसर्च फेलोशिप द्वारा किया जाता है इनमें खासकर वे छात्र शामिल होते हैं जो बेसिक साइंस में पोस्ट ग्रेजुएट हैं। इस फेलोशिप में वे छात्र भी शामिल हैं जो नेट (नेशनल एलिजिबिलिटी टेस्ट) और गेट (ग्रेजुएट एप्टीट्यूड टेस्ट इन इंजीनियरिंग) की परीक्षा को पास कर किसी प्रोफेशनल कोर्स या फिर पोस्ट ग्रेजुएट या स्नातक की पढ़ाई कर रहे हैं।

क्या मांगें हैं रिसर्च स्कॉलर्स एसोसिएशन की?

* बढ़ती महंगाई और वित्तीय स्थिरता के मद्देनज़र भारत सरकार पूरे देश के पीएचडी शोधार्थियों की फेलोशिप में 62 प्रतिशत की वृद्धि करे।

* बिना किसी व्यवधान के पीएचडी शोधार्थियों को पूरे पांच साल हर महीने फेलोशिप दी जाए। इसके साथ ही टीचिंग असिस्टेंटशिप की राशि भी सुनिश्चित हो और एचआरए यानी हाउस अलाउंस भी वर्तमान दर से लागू किया जाए।

* पीएचडी शोधार्थियों का उत्पीड़न बंद हो। सुपरवाइज़र द्वारा रिसर्च के अलावा कोई अन्य घरेलू, व्यक्तिगत कार्य न दिया जाए। सुपरवाइज़र/संस्थान प्रबंधन द्वारा पीएचडी शोधार्थियों के किसी भी तरह के शोषण पर तुरंत कार्रवाई हो और उन्हें तत्काल प्रभाव से सस्पेंड किया जाए।

गौरतलब है कि शिक्षा मंत्रालय के अनुसार साल 2014-21 में आईआईटी, एनआईटी, केंद्रीय विश्वविद्यालयों और अन्य केंद्रीय संस्थानों के 122 छात्रों ने आत्महत्या की। ये आंकड़े ख़तरनाक इसलिए भी हैं क्योंकि इन संस्थानों तक पहुंचने के लिए छात्र दिन-रात कड़ी मेहनत करते हैं, ऐसेे में इनकी मानसिक स्थिति को संस्थान का वातावरण किस तरह प्रभावित करता है, इस पर सरकार को ध्यान देना होगा। इसके अलावा शिक्षा पर सरकार को अपना बजट भी बढ़ाने की ज़रूरत है, जिससे ज़्यादा से ज़्यादा छात्र शोध कर सकें।

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