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आईआईटी दिल्ली: छात्रों के प्रदर्शन के आगे झुका प्रशासन, फीस वृद्धि आंशिक तौर से वापस

आईआईटी दिल्ली ने विद्यार्थियों के विरोध पर शिक्षण शुल्क 30 फीसदी घटा दिया है। हालांकि छात्र इसे महज़ थोड़ी राहत बताकर, पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं।
IIT delhi

“...हम लड़ेंगे साथी, हम लड़ेंगे कि लड़े बग़ैर कुछ नहीं मिलता...”

कवि अवतार सिंह पाश की ये पंक्तियां फिलहाल सरकारी संस्थानों और विश्वविद्यालयों की फीस बढ़ोतरी के खिलाफ छात्रों के संघर्ष पर एक दम सटीक बैठती हैं। हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली ने एमटेक छात्रों की फीस दोगुनी से अधिक बढ़ा दी थी। छात्रों ने प्रशासन के इस फरमान के खिलाफ परिसर के भीतर ही मौन प्रदर्शन शुरू कर दिया। जिसके बाद चौतरफा किरकिरी के चलते आईआईटी दिल्ली को इस मामले में रिव्यू के लिए एक कमेटी गठित करनी पड़ी। अब संस्थान ने आंशिक रूप से बढ़ी हुई फीस वापस लेने और विद्यार्थियों के शिक्षण शुल्क (ट्यूशन फीस) में 30 प्रतिशत की कटौती करने का ऐलान किया है।

बता दें कि अभी पिछले महीने ही फीस वृद्धि के खिलाफ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बाम्बे के छात्रों ने भी भूख हड़ताल की थी। यहां भी स्टूडेंट्स का कड़ा विरोध देखने को मिला था। जिसके बाद मजबूरन संस्थान को कुछ नए बदलाव कर फीस में की गई वृद्धि को वापस लेना पड़ा था। इससे पहले भी जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, आईआईटी बीएचयू, भारतीय जनसंचार संस्थान समेत कई संस्थानों के छात्र फीस बढ़ोतरी को लेकर सड़कों पर उतर चुके हैं। सबकी एक ही चिंता है कि अगर सरकारी जगहों पर ऐसे धड़ल्ले से फीस बढ़ेगी, तो वंचित और हाशिए पर खड़े छात्र पढ़ाई से दूर हो जाएंगे।

क्या है पूरा मामला?

जानकारी के मुताबिक आईआईटी दिल्ली के बोर्ड ने शैक्षणिक वर्ष 2022-23 के लिए एमटेक कार्यक्रम की फीस 24,650 रुपये से बढ़ाकर 53,100 रुपये और पूर्ण-कालिक पीएचडी छात्रों के लिए 20,150 रुपये से बढ़ाकर 30,850 रुपये कर दी थी। पिछले साल तक एमटेक के छात्रों के प्रोग्राम की हर सेमेस्टर की फीस 10 हजार रुपये थी। लेकिन 2022-23 एकेडमिक सेशन में ये फीस बढ़ाकर 25 हजार रुपये कर दी गई। इसके अलावा इंस्टीट्यूट में हॉस्टल फीस भी बढ़ाई गई है। पहले ये हर सेमेस्टर में 10 हजार 500 रुपये होती थी, अब इसे बढ़ा कर 13 हजार 250 रुपये कर दिया गया था।

न्यूज़क्लिक से बातचीत में कई एमटेक छात्रों ने बताया कि उन्होंने नए सत्र में दाखिला लेकर इंस्टीट्यूट पिछले महीने ही ज्वाइन किया है। एडमिशन के वक्त उन्हें इस फीस स्ट्रक्चर को मानना पड़ा था, क्योंकि तब वो इसे चैलेंज करने की स्थिति में नहीं थे। लेकिन अब एडमिनिस्ट्रेशन के साथ मीटिंग करने के बाद उन्हें मजबूरन मौन प्रदर्शन पर बैठना पड़ा था। छात्रों का साफ शब्दों में कहना है कि फीस में वृद्धि न केवल उनकी करिअर योजनाओं को प्रभावित करेगी, बल्कि इससे दूसरे सार्वजनिक इंजीनियरिंग संस्थानों में भी फीस वृद्धि का सिलसिला शुरू हो जाएगा।

प्रदर्शन में शामिल कई छात्रों ने उन्हें मिलने वाले स्टाईपेंड यानी वज़ीफे की राशि का मुद्दा भी उठाया। उनका कहना था कि प्रशासन द्वारा ट्यूशन फीस 150 प्रतिशत तक बढ़ा दी गई, लेकिन उन्हें हर महीने मिलने वाले स्टाईपेंड में कोई बदलाव नहीं किया गया। वो अभी भी 12 हजार 400 रुपये ही रखा गया है। इसलिए आंशिक वापसी के बावजूद बढ़ी हुई फीस उनके ऊपर लगातार एक भारी वित्तीय बोझ बनी हुई है। इसके अलावा, फीस में इज़ाफे से ये चिंताएं भी पैदा हो गई हैं कि कहीं इस बढ़ोतरी के चलते आर्थिक रूप से कमज़ोर और शोषित-वंचित समुदाय के छात्रों को मजबूरन कहीं अपने संबंधित कार्यक्रमों से पीछे न हटना पड़े।

देशभर के छात्र संगठनों ने आईआईटी दिल्ली में चल रहे प्रदर्शन का किया समर्थन

मालूम हो कि फीस वृद्धि को वापस लेने के संस्थान के निर्णय से पहले, देशभर के छात्र संगठनों ने आईआईटी दिल्ली में चल रहे प्रदर्शन के प्रति समर्थन का इज़हार किया था। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ (जेएनयूएसयू) के पूर्व अध्यक्ष आइशी घोष ने भी विरोध के समर्थन में एक बयान जारी कर कहा था कि आईआईटी दिल्ली में हुई फीस वृद्धि का सबसे अधिक असर नए दाख़िला लेने वालों पर पड़ेगा। अगर इस समय छात्रों की मांग पर ग़ौर नहीं किया गया, तो कम आय और हाशिए पर रहने वाले समूहों से ताल्लुक़ रखने वाले बहुत से छात्रों को मजबूरन अपने संबंधित कार्यक्रमों से पीछे हटना पड़ेगा, जो संस्थान के लिए एक शर्म की बात होगी।

गुरुवार, 1 सितंबर को आईआईटी बॉम्बे के छात्रों की ओर से जारी एक बयान में कहा गया, "पिछले कुछ सालों में बहुत से आईआईटीज़ और विश्वविद्यालयों में फीस में अच्छा-ख़ासा इज़ाफा होता आ रहा है। इससे पता चलता है कि बहुत सी जगहों पर सस्ती सार्वजनिक शिक्षा पर हमला हो रहा है। अगर इन महत्वपूर्ण सार्वजनिक संस्थानों में शिक्षा महंगी होती रही, तो आबादी का एक बड़ा हिस्सा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित हो जाएगा… हम फीस वृद्धि के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे आईआईटी दिल्ली के छात्रों के प्रति अपने समर्थन को फिर से दोहराते हैं।"

प्रशासन का क्या कहना है?

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक आईआईटी दिल्ली के अधिकारियों ने बताया कि इंस्टिट्यूट के बोर्ड ने फीस बढ़ाने का फैसला लिया था। इस फैसले को इस साल जनवरी में लागू किया गया था। हालांकि इस प्रदर्शन के बाद बीओजी (शासक मंडल) अध्यक्ष ने उस कमेटी की सिफारिशों को अपनी मंज़ूरी दे दी है, जिसे निदेशक ने फीस वृद्धि के मुद्दे को देखने के लिए गठित किया था और जिनके अनुसार ये फैसला किया गया है कि नए छात्रों के लिए 2021-22 के दूसरे सेमेस्टर से प्रभावी फीस में की गई वृद्धि को संशोधित किया जाएगा।

संस्थान ने अपने एक बयान में कहा, ‘‘दूसरा सेमेस्टर 2021-22 या उसके बाद पाठ्यक्रम में शामिल होने वाले विद्यार्थियों के लिए फीस कम कर दी गई है। शिक्षण शुल्क और अन्य शुल्क काफी कम कर दिए गए हैं। एम.टेक पूर्णकालिक शिक्षण शुल्क 25,000 रुपये प्रति सेमेस्टर से घटाकर 17,500 प्रति सेमेस्टर कर दिया गया है।’’

बयान में आगे कहा गया है कि अन्य स्नातकोत्तर (पीजी) कार्यक्रमों का शिक्षण शुल्क भी कम कर दिया गया है। इसके अलावा शुल्क के अन्य घटकों में भी कटौती की गई है। छात्रों के मुताबिक नए फीस स्ट्रक्चर यानी की आंशिक रूप से वृद्धि वापसी के बाद एमटेक छात्रों को अब क़रीब 40,000 रुपये और पीएचडी छात्रों को लगभग 26,000 रुपये सालाना बतौर फीस अदा करने होंगे। कुछ छात्र प्रशासन के इस निर्णय को मान चुके हैं लेकिन ज्यादातर इससे असंतुष्ट नज़र आ रहे हैं। उनका कहना है कि ये कटौती महज़ नाम भर की है, इससे कोई बहुत राहत नहीं मिलती। वहीं छात्र पहले ही बढ़ी हुई फीस जमा करा चुके हैं और इसके लिए प्रशासन की ओर से अभी तक किसी रिफंड की घोषणा नहीं की गई है।

गौरतलब है कि शिक्षा सभी का अधिकार है, और इसलिए ये हर किसी को मुफ्त में मिलनी चाहिए। क्योंकि हमारा आधारभूत ढांचा इतना मज़बूत नहीं है, इसलिए प्राइमरी स्कूल के बाद विशेष परिस्थितियों को छोड़कर सभी को आगे की पढ़ाई के लिए फीस चुकानी ही पड़ती है। हमारे देश में सरकारी स्कूल, कॉलेज में सस्ती शिक्षा का मकसद ही सब तक इनकी पहुंच को बनाए रखना है।

अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने का सपना देखने वाले कई माता-पिता केवल सरकारी विश्वविद्यालयों और संस्थानों की ही फीस मुश्किल से जुगाड़ कर पाते हैं। ऐसे में अगर ये सस्ती शिक्षा भी उनकी पहुंच से दूर हो गई, तो समाज में हाशिए पर खड़ा समुदाय और पीछे खिसक जाएगा। सरकार को इसके बज़ट बढ़ोतरी की ओर ध्यान देना चाहिए क्योंकि ये खर्च नहीं उज्ज्वल भविष्य का निवेश है।

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