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महंगे आटे और भूख में जंग के बीच अपनी आर्थिक नीतियों के बचाव में बाजार में उतरी मोदी सरकार!

'प्याज और दाल के बाद अब सस्ता आटा भी बेचेगी मोदी सरकार'
Modi

'प्याज और दाल के बाद अब सस्ता आटा भी बेचेगी मोदी सरकार' , जी हां ये वही मोदी जी हैं जो अपनी आर्थिक नीतियों के बाबत कहा करते थे कि सरकार को कारोबार में नहीं रहना चाहिए और दूसरा वे लोगों को खैरात पर निर्भर रखने के बजाय उन्हें आत्म-निर्भर बनाना चाहते हैं। अब चूंकि मोदी को केंद्र की सत्ता में आए साढ़े नौ साल हो चुके हैं, इसलिए सरकार की कथनी करनी पर सवाल लाजिमी है कि किस तरह, महंगाई से जूझने के लिए अपनी आर्थिक नीतियों के बचाव में सरकार, बात-बात में, सीधे बाजार में बनिया बनकर उतर आती है। सरकार का काम प्रशासन करना होता है न कि आटा- प्याज बेचना। इस सब से तो यही लगता है कि सरकार को महंगाई कम, चुनाव की चिंता ज्यादा सता रही है।"

खास है कि आवक घटने से गेहूं के दामों में हुई लगातार बढ़ोतरी के चलते रोटी यानी आटे का दाम आसमान छूने लगा है, हालात यह है कि एक किलो आटा 35 रुपए से ऊपर बिक रहा है, ऐसे में हल्के या सामान्य ब्रांड का 5 किलो का पैकेट भी 175 रुपए से कम नहीं मिलता है। वहीं थोड़े अच्छे ब्रांड का वही 5 किलो आटे का पैकेट का दाम 200 रुपए को पार कर जा रहा है। ऐसे में आम नागरिक और मध्यमवर्गीय परिवार का बजट महज आटे ने बिगाड़ दिया है, क्योंकि हर माह काम से काम 15-20 किलो आटा एक घर में उपयोग हो ही जाता है। 

देखें तो छह माह पहले 190 से 210 रुपये (प्रति पांच किलो) का मिलने वाला ब्रांडेड आटा इन दिनों 240 से 260 रुपये (प्रति पांच किलो) हो गया है। गेहूं की कीमतों में भी छह माह में लगभग तीन सौ से छह सौ रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आई है। 2,700 से 4,400 रुपये प्रति क्विंटल मिलने वाले गेहूं के आटे की कीमत वर्तमान में 3,000 से 5,000 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गई है। 

इसी से वर्तमान में अलग-अलग ब्रांड का आटा 35 से 50 रूपये किलो के भाव से बिक रहा है। उपभोक्ता मामलों के विभाग के भी अनुसार, देश में आटे की औसत कीमत 35 से 50 रुपए किलो है। ऐसे में जिसकी जैसी हैसियत है, वो वैसा आटा खरीदता है। पहले लोग पूरे साल के लिए गेहूं खरीदकर रखते थे और फिर चक्की पर जाकर गेंहूं पिसवा लाते थे। अब न गेंहूं खरीदकर भंडारण की क्षमता बची है और न चक्की तक जाने का हौसला, सो मजबूरन अडानी- अंबानी आशीर्वाद ब्रांड आटे पर निर्भर रहना पड़ता है। यानी साफ है कि देश में एक तरफ अडानी का फार्च्यून आटा आम जनता का खून पी रहा तो दूसरी तरफ अडानी की दाल। जी हां, बाजार पर इन्हीं अडानी- अंबानी जी का कब्जा है। ये दोनों महानुभाव आटा-दाल से लेकर हर माल पर हावी हैं लेकिन इनकी चाबी सरकार के पास भी नहीं है। ऐसे में जनता को राहत देने के लिए मोदी सरकार बनिया बनकर सीधे बाजार में उतर आई है। जी हां, सरकार ने मोदी ब्रांड सस्ता "भारत आटा" और अरहर की दाल बेचने का समानांतर इंतजाम किया है। 

सरकार बताती है कि मोदी ब्रांड भारत आटा बनाने के लिए ढ़ाई लाख मीट्रिक टन गेहूं का आवंटन विभिन्न सरकारी एजेंसियों को किया गया है। दूसरी ओर, सरकार देश की 80 करोड़ आबादी को पहले ही मुफ्त का राशन दे रही है। अब जो शेष 60 करोड़ लोग बचे वे मोदी ब्रांड सस्ता भारत आटा और दाल खरीदकर अपना जीवन यापन आसानी से कर सकते हैं। अब अपने आपको सच्चा भारतीय साबित करने के लिए सस्ता भारत आटा खाने से सस्ता दूसरा क्या रास्ता हो सकता है?

गेहूं की लगातार बढ़ती कीमत की वजह से त्योहारी सीजन में आटे की कीमत में तेजी को देखते हुए सरकार ने सस्ते दाम पर आटा बेचने का फैसला किया है। वैसे भी महंगाई से जूझने के लिए सरकार, आजकल सीधे बाजार में बनिया बनकर उतर आती है। ये दुस्साहस का काम है अन्यथा सरकार का काम प्रशासन करना होता है न कि दाल-आटा बेचना। पिछले दिनों जब प्याज मंहगी हुई तो सरकार प्याज बेचने लगी थी। दाम बढ़ने से रोकने की बजाय खुद ही उस जिंस को बेचना ज्यादा आसान काम है। हमारी सरकार हमेशा आसान काम को प्राथमिकता देती है।

सवाल फिर वही कि अचानक सरकार को आटा बेचने की बात क्यों सूझी? इसके पीछे महंगाई चिंता है या कुछ और। सरकार का कहना है कि ऐसा आवश्यक चीजों के दामों को स्थिर करने के लिए किया जा रहा है, लेकिन जानकार इसके पीछे चुनावी कारण ज्यादा देख रहे हैं। जी हां, इसकी वजह कुछ महीनों के बाद होने वाला आम चुनाव है। चुनाव में महंगाई एक बड़ा मुद्दा ना बने, इसके लिए सरकार ने एहतियाती कदम उठाया है।

सवाल है कि आर्थिक नीतियों पर बात करते समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दो खास कथन रहा है। एक तो यह कि सरकार को कारोबार में नहीं रहना चाहिए और दूसरा यह कि वे लोगों को खैरात पर निर्भर रखने के बजाय उन्हें आत्म-निर्भर बनाना चाहते हैं। अब चूंकि मोदी को केंद्र की सत्ता में आए साढ़े नौ साल हो चुके हैं, इसलिए जब कभी उनकी सरकार इस सोच के खिलाफ काम करती दिखती है, तो उचित ही है कि उस पर सवाल उठाए जाते हैं। ऐसे ही प्रश्न सरकार के आटा बेचने के फैसले से उठे हैं। 

केंद्र ने नाफेड के जरिए कम दाम पर आटा बेचने की शुरुआत कुछ महीने पहले की थी। उस समय ‘भारत आटा’ नाम की योजना प्रायोगिक पहल रूप में शुरू की गई थी। अब इसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू कर दिया गया है। यह आटा केंद्रीय भंडार, नाफेड और एनसीसीएफ के केंद्रों और मोबाइल वैनों के जरिए जगह-जगह बेचा जाएगा। धीरे-धीरे इसे सहकारी केंद्रों और खुदरा दुकानों तक भी पहुंचाने की योजना है। प्रायोगिक पहल के समय इसका दाम 29.50 रुपये प्रति किलो था।

अब कीमत दो रुपए और घटा दिया गया है। यानी सरकार इसे 27.50 रु. प्रति किलो की दर से बेचेगी। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस समय खुले बाजार में आटा औसतत 35.99 प्रति किलो के दाम पर बिक रहा है। हालांकि अच्छी क्वालिटी का आटा इससे काफी महंगा (50 रूपये किलो तक) है। साफ है कि अचानक सरकार को आटा बेचने की बात क्यों सूझी? अनुमान लगाया जा सकता है कि इसकी वजह कुछ महीनों के बाद होने वाला आम चुनाव है। चुनाव में महंगाई एक बड़ा मुद्दा ना बने, इसके लिए सरकार ने एहतियाती कदम उठाए हैं। 

नई फसल आने में पांच माह का समय

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि गेहूं की नई फसल आने में अभी करीब पांच माह का समय है। उधर, कारोबारियों का कहना है कि मांग की तुलना में आवक कमजोर होने के कारण गेहूं की कीमतें बढ़ रही हैं।

महंगाई की चिंता

सरकार 27.50 रुपये प्रति किलो की दर पर आटा बेचेगी। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस समय खुले बाजार में आटा औसत 35.99 प्रति किलो के दाम पर बिक रहा है। यानी अगर सरकार अपने आटे की अच्छी उपलब्धता सुनिश्चित कर सके तो इससे आम लोगों को काफी राहत मिल सकती है। इसके लिए सरकार ने एफसीआई के गोदामों में पड़े गेहूं में से ढाई लाख मेट्रिक टन गेहूं को अलग कर दिया है। उसी को आटा बना कर कम दाम पर बेचा जाएगा। बहरहाल, सरकार को उम्मीद है कि इससे महंगाई दर पर थोड़ा नियंत्रण होगा।

हालांकि सरकार ने पायलट के नतीजे साझा नहीं किये हैं जिससे यह पता चलता कि योजना को आम लोगों के बीच कैसी प्रतिक्रिया मिली थी। अब देखना यह है कि राष्ट्रीय स्तर पर, आटे की महंगाई रोकने को योजना कितनी असरदार साबित हो पाती है।

साभार : सबरंग 

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