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नौसैनिक अभ्यास: अमेरिका ने किया इशारा, हिंद महासागर हिंदुस्तान का सागर नहीं है

दक्षिण चीन सागर और हिंद महासागर खनिजों की अकल्पनीय संपदा पर बैठे हुए हैं, संभावित तौर पर यह आख़िरी मोर्चा है।
नौसैनिक अभ्यास: अमेरिका ने किया इशारा, हिंद महासागर हिंदुस्तान का सागर नहीं है

अमेरिकी जंगी जहाज़ USS जॉन पॉल 7 अप्रैल को लक्ष्यद्वीप के पास से गुजरा। इस घटना के बाद भारत में चीन से नफ़रत करने वाले लोग गफ़लत में पड़ गए हैं। एक दिग्गज अख़बार ने इस घटना को "क्वाड समूह में दो साझेदारों के बीच दुर्लभ टकराव" बताया। एक चीन विरोधी विशेषज्ञ ने ट्वीट करते हुए कहा कि यह घटना अमेरिकियों की "प्रचार के लिए की गई ढीली-ढाली कवायद" है।

विदेश मंत्रालय ने पूरी घटना पर कानूनी नज़रिया अपनाया, जैसे सरकार दिल्ली हाईकोर्ट में किसी याचिका का जवाब दे रही हो। लेकिन अमेरिका की यह कवायद कुछ गंभीर चीजों की ओर इशारा है। आपस में बेहद करीबी संबंध रखने वाले क्वाड परिवार में यह बेहद दुर्लभ टकराव है। यह सही है कि क्वाड अभी अपनी शैशव अवस्था में है। तब क्या होगा जब राष्ट्रपति जो बाइडेन क्वाड को आगे बढ़ाते हुए इसे अपनी युवावस्था में ले जाएंगे?

कोई गलती मत करिए, यहां जो हुआ, दरअसल वो तेल पर आधिपत्य जमाने की कोशिशों की तरह ही है। अमेरिकी कूटनीतिज्ञ जॉर्ज केन्नन ने फारस की खाड़ी के तेल के बारे में लिखा था कि वे "हमारे (अमेरिका के) संसाधन" हैं। उन्होंने लिखा कि यह संसाधन अमेरिका की संपन्नता में अंतर्निहित हैं, इसलिए अमेरिका को इनका नियंत्रण हासिल करना चाहिए (अमेरिका ने ऐसा किया भी)।

दक्षिण चीन सागर और हिंद महासागर की समुद्री तह में अकल्पनीय खनिज संसाधन मौजूद हैं। संभावित तौर पर यह आखिरी मोर्चा है। USS जॉन पॉल का व्यवहार कुछ ऐसा था, जैसे कोई कुत्ता अपनी हदबंदी कर रहा हो। सिर्फ़ चीन या रूस ही नहीं, बल्कि यूरोपीय देशों के भविष्य में संभावित बड़ी शक्ति बनने की बात अमेरिका को बहुत परेशान करती है। लगता है इन लोगों का औपनिवेशिक इतिहास भारत भूल गया है।

इसलिए 65 साल बाद ब्रिटेन एक बार फिर "स्वेज नहर के पूर्व" में लौट रहा है। 65000 टन का HMS क्वीन एलिजाबेथ ब्रिटेन का नया विमानवाहक युद्धपोत है। यह युद्धपोत अपनी पहली तैनाती में हिंद महासागर की तरफ बढ़ रहा है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन द्वारा पिछले महीने जारी किए गए 114 पेज के विस्तृत दस्तावेज़ का शीर्षक ही सबकुछ कह देता है। इसका शीर्षक है- "ग्लोबल ब्रिटेन इन अ कॉम्पीटीटिव एज: द इंटीग्रेटेड रिव्यू ऑफ़ सिक्योरिटी, डिफेंस, डिवेलपमेंट एंड फॉरेन पॉलिसी (एक प्रतिस्पर्धी युग में वैश्विक ब्रिटेन: सुरक्षा, रक्षा, विकास और विदेश नीति का समग्र पुनर्परीक्षण)।"

यह दस्तावेज़ पेज संख्या 66 से 69 के बीच "हिंद-प्रशांत झुकाव" शीर्षक में लिखता है: "हिंद-प्रशांत दुनिया के विकास का इंजन है: दुनिया के आधे लोगों का घर है; यहां दुनिया की कुल GDP की 40 फ़ीसदी हिस्सेदारी है; कुछ सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था वाले देश यहां मौजूद हैं; यह क्षेत्र नए वैश्विक व्यापार प्रबंधन में अग्रणी पंक्ति में हैं; तकनीकी नवोन्मेष और डिजिटल पैमानों को आत्मसात करने में अग्रणी है; नवीकरणीय और हरित तकनीक में मजबूती से निवेश कर रहा है और हमारे निवेश के लक्ष्यों के साथ-साथ सतत आपूर्ति श्रंखला के लिए भी यह क्षेत्र जरूरी है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र ब्रिटेन के कुल व्यापार में 17.5 फ़ीसदी और आंतरिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में 10 फ़ीसदी की हिस्सेदारी रखता है। हम इसे मजबूत करने के लिए आगे भी काम करेंगे, जिसके लिए नए व्यापार समझौते, आपसी बातचीत और विज्ञान, तकनीक के साथ-साथ आंकड़ों में ज़्यादा गहरी साझेदारियां करेंगे।"

दस्तावेज़ आगे कहता है: "आने वाले दशकों में समुद्री सुरक्षा, नियमों-शर्तों से जुड़ी प्रतिस्पर्धा जैसी वैश्विक चुनौतियों में हिंद-प्रशांत क्षेत्र की अहमियत देखते हुए, हम इस पर पहले से ज़्यादा ध्यान केंद्रित करेंगे।"

अप्रैल के महीने में फ्रांस के विदेश मंत्री जीन य्वेस ले ड्रायन राजनीतिक बातचीत के लिए भारत आएंगे। सबसे अहम 42,500 टन का चार्ल्स डे गाले विमान वाहक पोत एक टुकड़ी का नेतृत्व कर रहा है, जो INS विक्रमादित्य के साथ अरब सागर और हिंद महासागर में दो चरणों में सैन्याभ्यास करने के लिए पहुंचने वाला है। 

इस "बड़ी तस्वीर" पर निगाह डाले बिना भारत तात्कालिक चीजों में उलझता रहेगा। शुक्रवार को अमेरिकी नौसेना के 7वें बेड़े की तरफ से जारी किए गए वक्तव्य से 4 चीजें साफ़ हैं, जो ध्यान खींचती हैं। वक्तव्य के पहले वाक्य से ही पता चलता है कि भारत की पहले से अनुमति के बिना अमेरिकी जंगी जहाज़ ने भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र में "आवाजाही की स्वतंत्रता अभियान" के तहत प्रवेश किया।

दूसरी चीज तो जले में और भी नमक छिड़कने वाली है। वक्तव्य कहता है, "भारत अपने विशेष आर्थिक क्षेत्र में सैन्य अभ्यास या किसी तरह के कार्यक्रम के लिए अनुमति लेने के लिए कहता है, जो अंतरराष्ट्रीय कानूनों के खिलाफ़ है। आवाजाही की स्वतंत्रता के अभियान ने भारत के अतिरेक समुद्री दावों को चुनौती देते हुए, अंतराष्ट्रीय कानून में मान्यता प्राप्त अधिकार, स्वतंत्रता और समुद्र के उपयोग को सही ठहराया है।"

इस चीज को क्या भारतीय नहीं जानते हैं? बिल्कुल हम जानते हैं। लेकिन अमेरिका को पाकिस्तान समेत पूरे हिंद महासागर क्षेत्र और यूरोपीय देशों को बताना था कि भारत की अति महत्वकांक्षाओं को नज़रंदाज नहीं किया जाएगा। 

तीसरा, वक्तव्य कहता है कि हालिया अभियान के ज़रिए "अमेरिका ने बताया है कि जहां तक अंतरराष्ट्रीय कानून अनुमति देगा, हम वहां तक उड़ान भरेंगे, समुद्री यात्रा करेंगे और अपने कार्यक्रम चलाएंगे।" अब तक यह चीन के विरोध में माइक पॉम्पियो की भाषा रही है। 

साफ़ शब्दों में कहें तो यह कोई डराने वाली घटना नहीं है। ऊपर से यह अरब सागर में हुआ है, लेकिन कल को यह बंगाल की खाड़ी में भी हो सकता है; आज एक युद्ध पोत समुद्री यात्रा कर रही है, कल को कोई अमेरिकी लड़ाकू विमान भारतीय आकाश में उड़ान भर सकता है और भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र में अमेरिका का विेशेषाधिकार दोहरा सकता है। 

चौथा, चूंकि भारत अतीत में गंभीरता के साथ "आवाजाही की स्वतंत्रता वाले अभियानों" को नियमित मानने में असफल रहा है, इसलिए अमेरिका की तरफ से यह वक्तव्य जारी किया गया है। पहले भारत इस तरीके के अभियानों को दबाता रहा है। लेकिन यह अभियान "किसी एक देश के बारे में नहीं होते, ना ही इनके ज़रिए कोई राजनीतिक वक्तव्य दिया जाता है।"

साधारण शब्दों में कहें तो अमेरिका भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र को "वैश्विक साझा क्षेत्र" के तौर पर देखता है, जहां वह अपने विशेषाधिकारों का अपने राष्ट्रीय हितों में मनमुताबिक प्रयोग करेगा। अमेरिका का भारत के साथ "21 वीं सदी का निर्धारक समझौता" वाशिंगटन को अपने हितों को पूरा करने से नहीं रोकेगा। 

मुख्य बात यह है कि हिंद महासागर में भारत को अपनी क्षमता से ज़्यादा ताकत नहीं दिखानी चाहिए। यह संयोग नहीं हो सकता कि वाशिंगटन ने यह कड़ा कदम तब उठाया है जब प्रधानमंत्री मोदी ने गुरूवार को सेशल्स के प्रधानमंत्री वेवेल रामकलावन के साथ उच्च स्तरीय आभासी कार्यक्रम में हिस्सा लिया। इस बेहद प्रचारित कार्यक्रम में "भारत द्वारा सेशेल्स में निवेशित कुछ विकास योजनाओं का शुभारंभ हुआ और सेशेल्स कोस्ट गार्ड को तेजी से चलने वाली निगरानी पोत दी गई।" 

मोदी ने नाटकीय ढंग से कलावन की बिहारी पृष्ठभूमि की आड़ में उन्हें "भारत का बेटा" करार दिया। लेकिन वाशिंगटन रामकलावन को दृढ़ निश्चय वाले राष्ट्रवादी नेता के तौर पर देखता है, जो उसके डिएगो गार्सिया द्वीप के गहरे पानी से सिर्फ़ 1894 किलोमीटर दूर है। भारत द्वारा सेशेल्स में बेहद गुप्त सैन्य संपत्ति का निर्माण पहले ही खटास बढ़ाने के लिए काफ़ी था, लेकिन मोदी सरकार की सेशेल्स में सैन्य अड्डा बनाए जाने की कथित योजना बिल्कुल ही अलग बात हो जाती है। (सभी जानते हैं कि इसका खुलासा करने वाली मीडिया लीक पर अमेरिकी गुप्तचर विभाग का ठप्पा था।)

दिल्ली ने पेंटागन की चेतावनी पर उदासीन प्रतिक्रिया दी। अब जब अमेरिकी युद्धपोत हमारी सीमा से दूर जा चुका है, तब हमें आराम से विचार करना चाहिए कि क्वाड (एशियन नाटो) भारत को कहां ले जा रहा है।

दरअसल वैश्विक ताकत के तौर पर चीन के उभार से भारत के सत्ताधारी कुलीनों का विरोध, उनकी विकृत मानसिकता को प्रदर्शित कर रहा है। चीनी टिप्पणीकार लगातार भारत को चेतावनी दे रहे हैं कि हिंद महासागर में भारत की बड़ी ताकत वाली महत्वकांक्षाएं वास्तविक नहीं हैं। वह लोग अनुभव से बोल रहे हैं।

क्वाड का सदस्य बनकर चीन से कुछ छूट ली जा सकती हैं, इस भारतीय धारणा के उलट, चीन को लगता है कि यह संगठन भारत और रूस की भूराजनीतिक समस्या है, लेकिन इसके विरोधभासों को देखते हुए इसका कोई भविष्य नहीं होगा।

चीन के बुद्धिजीवी लगातार कहते रहे हैं कि भले ही अमेरिका-भारत के संबंधों में मुख्यधारा प्रतिस्पर्धा की नहीं, बल्कि सहयोग की है। लेकिन अगर हम "चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ कंटेपरेरी इंटरनेशनल रिलेशन" के अहम बुद्धिजीवी चुन्हाओ लू के हवाले से कहें, तो "हिंद महासागर के विशेष क्षेत्र में दोनों देशों के क्षेत्रीय शक्ति ढांचे पर रणनीतिक विचार गहराई से निर्मित हैं और शक्ति हस्तांतरण के क्रम में यह लगातार खुलकर सामने आते रहेंगे।"  

2012 में "यूएस-इंडिया-चाइना रिलेशन इन द इंडियन ओसियन: अ चाइनीज़ पर्सपेक्टिव" नाम के शीर्षक से लिखे निबंध में चुन्हाओ लू ने लिखा था, "भारत और अमेरिका के सहयोग को प्रोत्साहन देने के लिए हमेशा चीन विरोध का कारक अहम रहेगा, लेकिन 'लोकतांत्रिक शांति सिद्धांत' यथार्थवादी राजनीति के लिए जगह बनाएगा और हिंद महासागर क्षेत्र में भारत और अमेरिका के अलग-अलग हितों का आपस में समावेश मुश्किल होगा।" अब असल मुद्दे सामने आ रहे हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Naval Exercise: Indian Ocean is not India’s Ocean, Signals US

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