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खाद्य सुरक्षा के ढांचे को मज़बूत करने के बजाय, सरकार उसे ध्वस्त रही है

हालांकि पीडीएस और एनएफएसए के तहत सार्वजनिक बुनियादी ढांचे ने और इनसे जुड़ी योजनाओं ने इस कठिन समय में बचाव का काम किया है उपलब्ध डेटा से पता चलता है कि महामारी के दौरान वितरित किया गया खाद्यान्न केंद्रीय पूल में उपलब्ध अनाज का एक छोटा सा हिस्सा भर है। 
खाद्य सुरक्षा
छवि: केवल प्रतिनिधि उपयोग के लिए।

कोविड-19 महामारी के संक्रमण को भारत में एक साल से अधिक समय बीत चुका है और याद रहे कि 24 मार्च, 2020 को प्रधानमंत्री मोदी ने झंझट और कठिनाइयों से भरे लॉकडाउन की घोषणा की थी। लॉकडाउन की अचानक घोषणा से मज़दूर और कामकाजी लोगों को शहरों से अपने गाँवों को पलायन करने पर मजबूर होना पड़ा। शहरों में रह रहे प्रवासी मजदूरों की स्थिति काफी खराब हो गई थी। इसलिए, सख्त और संपूर्ण लॉकडाउन ने उनके जीवन को असंभव बना दिया था।

जिस देश की बड़ी आबादी भूखी रहती है और दुनिया में भूख के मामले में शुमार है (भारत वैश्विक भूख सूचकांक 2020 में 107 देशों में से 94 वें स्थान पर है), इस बारे में जायज चिंताएं व्यक्त की गईं कि प्रशासन को कैसे शहरी और ग्रामीण गरीबों की जरूरतों को पूरा करने के लिए योजना बनानी चाहिए, खासकर तब जब वे अनिश्चितकालीन लॉकडाउन के तहत अपने घरों में बंद थे। ऊपर से वेतन के बकाए का भुगतान न होना, नौकरियों का चले जाना, अर्थव्यवस्था के अचानक से बंद होने के परिणामस्वरूप हालात अधिक बिगड़ गए थे। 

असाधारण विपत्ति के समय गरीबों को राशन की तत्काल जरूरतों को पूरा करने के लिए, भले ही अस्थायी तौर पर, सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए मदद करने पर और उसकी वकालत करने वाले विभिन्न राजनीतिक दल, प्रमुख अर्थशास्त्री और नीति निर्माताओं के बीच आम सहमति थी। अप्रैल 2020 में, अमर्त्य सेन, रघुराम राजन और अभिजीत बनर्जी जैसे प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों ने सभी परिवारों को अस्थायी राशन कार्ड जारी करने की जरूरत पर ज़ोर दिया था, जो छह महीने तक की न्यूनतम अवधि के दौरान मासिक राशन ग्रहण कर सकते थे।

उपजे हालात से निपटने के लिए, सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के तहत खाद्यान्न वितरण के अलावा एक अन्य अभियान भी चलाया। मार्च 2020 में, सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) की शुरुआत की थी। इस योजना के तहत, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लगभग 80 करोड़ एनएफएसए लाभार्थियों को अप्रैल और जून के बीच के दौरान प्रति माह पांच किलोग्राम अनाज और एक किलो दाल पाने का अधिकार था। बाद में, इस योजना को नवंबर 2020 तक यानि पांच महीनों के लिए बढ़ा दिया गया था।

मई 2020 में, सरकार ने आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तौर पर आत्मनिर्भर भारत योजना (ANB) लॉन्च की थी। इस योजना के तहत, देश भर में लगभग आठ करोड़ प्रवासी मजदूरों को कुल आठ लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) अनाज वितरित किया जाना था (लॉन्च के समय के अनुमान के अनुसार)। इसके अलावा, सरकार ने गैर-एनएफएसए लाभार्थियों को खाद्यान्न की आपूर्ति की भी मंजूरी दी थी, उन्हे जिनके पास राशन कार्ड थे वे अप्रैल और जून 2020 के बीच 21 रुपये प्रति किलोग्राम गेहूं और 22 रुपये प्रति किलोग्राम चावल खरीद सकते थे। इसके लिए  खाद्यान्न का कुल आवंटन और उठान लगभग 9.65 लाख मीट्रिक टन था।

खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग के सचिव सुधांशु पांडे ने तर्क दिया कि देश के पीडीएस में अप्रैल से नवंबर 2020 के बीच 80 करोड़ से अधिक लाभार्थियों को लगभग दोगुना अनाज बांटने में काफी तेजी से वृद्धि हुई है।" दुनिया में कहीं भी भारत जैसी व्यापक पीडीएस व्यवस्था नही है, ”उन्होंने जोर देकर उक्त बात कही।

हालांकि यह बात सच है कि पीडीएस और एनएफएसए के तहत बनाए गए सार्वजनिक बुनियादी ढांचे ने इस सख्त जरूरत में बचाव का काम किया है, लेकिन इस पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि महामारी के दौरान वितरित किए गया अनाज केंद्रीय पूल में उपलब्ध अनाज के स्टॉक का छोटा सा अनुपात है। नीचे दी गई तालिका अप्रैल और नवंबर 2020 के बीच विभिन्न योजनाओं के तहत कुल आवंटन, उठान और वितरण की जानकारी देती है।

टेबल 1

स्रोत: फूडग्रेन बुलेटिन

टेबल 2

* अप्रैल, नवंबर, 2020 के दौरान पीएमजीकेवाई के तहत आवंटन 

** मई, जून, 2020 के दौरान एएनबी (आत्मनिर्भर भारत) के तहत आवंटन। 

Sources: https://dfpd.gov.in/writereaddata/Portal/Magazine/FoodgrainBulletinforFebruary2021.pdf

Annavitran : Welcome

https://pqars.nic.in/annex/252/AU1509.pdf

मई के महीने को छोड़कर, केंद्रीय पूल में कुल स्टॉक पिछले साल अप्रैल और नवंबर के बीच का बफर स्टॉक तय मानदंडों से कम से कम दो गुना अधिक था। फिर भी, खाद्यान्नों का वितरण मई के 33 प्रतिशत के अलावा वितरण के लिए उपलब्ध कुल स्टॉक का 25 प्रतिशत से से कम था। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के गोदामों और राज्य एजेंसियों में खाद्यान्न के स्टॉक में मौजूद प्रचुर मात्रा में अनाज उपलब्ध होने के बावजूद देश के लोगों के लिए स्टॉक नहीं खोले गए थे। यह इस तथ्य के बावजूद है कि विकास के नवउदारवादी मॉडल के प्रस्तावक लगातार सरकार को बड़े स्टॉक जमा करने के बारे में शिकायत करते रहे हैं, जबकि सरकार इसे 'प्रचुरता की समस्या' कहती आई है। उनके मुताबिक इस समस्या का समाधान पीडीएस का विस्तार नहीं है ताकि छूटे लोगों को सस्ते राशन के लिए कवर किया जा सके। इसके बजाय, वे सरकार को किसानों से सुनिश्चित कीमतों (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर खरीद कम करने की सलाह देते हैं।

लाभार्थियों की संख्या की जांच करने पर पता चलता है कि इस दौरान आत्मनिर्भर योजना के तहत 5,48,08,120 प्रवासियों को कुल 24.72 लाख मीट्रिक टन अनाज वितरित किया गया था। इसका मतलब है कि प्रत्येक व्यक्ति को प्रति माह औसतन 2.5 किलोग्राम अनाज मिला जबकि मिलना पाँच किलोग्राम था। इसी समय, पीएमजीकेवाई के तहत वितरण पर डेटा की मिली जानकारी, जिसे राज्यसभा के एक जवाब हासिल किया गया है, क्रमिक महीनों में लाभार्थियों की संख्या में गिरावट आई है, जैसा कि तालिका 3 में दिखाया गया है। लाभार्थियों पर डेटा केवल सितंबर, 2020 महीने तक उपलब्ध है। जबकि इस योजना के तहत कुल 80 करोड़ लाभार्थियों को प्रति व्यक्ति प्रति माह पांच किलोग्राम अनाज (गेहूं या चावल) का वितरण करने की परिकल्पना की गई थी, यदपि डेटा से पता चलता है कि वितरित किए गए लाभार्थियों की संख्या 16.22 करोड़ और अनाज की संख्या 8.36 लाख मीट्रिक टन रह गई थी। 

टेबल 3

स्रोत: राज्य सभा के सवाल 

अनाज के अपर्याप्त वितरण के अलावा, प्रक्रिया में वंचित तबकों को पीडीएस के दायरे से एक बड़े हिस्से को अलग रखा गया। वर्तमान में, एनएफएसए अनुमानित 80 करोड़ लाभार्थियों को अनाज प्रदान करता है, जो घर प्राथमिकता या अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई) राशन कार्ड के तहत आते हैं। हालाँकि, यह कवरेज 2011 की जनगणना के अनुमानों पर आधारित है और इसके दायरे से लगभग 9.5 करोड़ पात्रता वाले लाभार्थियों को बाहर रखा गया है। फरवरी 2020 में, एनएफएसए के तहत राष्ट्रीय ग्रामीण-शहरी कवरेज अनुपात को 70-50 से घटाकर 60-40 करने की सिफारिश करते हुए, सरकारी थिंक-टैंक नीति आयोग, ने एक चर्चा पत्र में, कथित तौर पर कहा था कि यदि जनगणना 2011 को जनसंख्या को मौजूदा स्तर पर अपडेट किया जाता है तो वर्तमान स्तर पर एनएफएसए के तहत लाभार्थियों के कुल कवरेज का विस्तार मौजूदा 81.35 करोड़ से बढ़कर 89.52 करोड़ तक हो जाएगा।

योजना से बाहर किए गए लोगों में एनएफएसए के वे लाभार्थी भी शामिल हैं जिनके राशन कार्ड आधार कार्ड के साथ सम्मिलित नहीं हैं। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा पोर्टल के अनुसार - 7 अप्रैल, 2021 तक - कुल 79.26 करोड़ लाभार्थियों में से, 70.54 करोड़ लाभार्थियों के राशन कार्ड को उनके आधार कार्ड के साथ सम्मिलित कर दिया गया है। करीब 8.72 करोड़ लाभार्थियों का अंतर है जिनके पास आधार कार्ड के साथ एनएफएसए का कार्ड नहीं है। इसके अलावा, पोर्टल पर उपलब्ध मार्च 2021 के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले साल जून से कुल 2.89 लाख आधार कार्ड जोड़े गए हैं जबकि 3.79 लाख कार्ड हटाए गए हैं। इसका मतलब है कि जून 2020 के बाद से लगभग 90,000 कार्डों को एएवाय लाभार्थियों की संख्या से हटा दिया गया है। अभी हाल ही में, मार्च 2021 में, केंद्र सरकार द्वारा आधार कार्ड से लिंक नहीं होने पर लगभग तीन करोड़ राशन कार्ड रद्द करने को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी।

इसी दौरान आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन जोकि तीन कृषि कानूनों के पैकेज का एक हिस्सा भर हैं, अनाज, दालों, तिलहन, खाद्य तेलों, प्याज और आलू जैसी 'आवश्यक वस्तुओं' के स्टॉक और भंडारण पर लगी मौजूदा सीमा को हटा दिया है। सितंबर 2020 में सरकार द्वारा  तीन कृषि-कानूनों को पारित करने से पहले से ही यह आशंका बढ़ गई थी कि भारत में सार्वजनिक खरीद और सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर हमला हो रहा है। अब जब देश कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर की चपेट में आने लगा है, तो गरीबों को खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के बजाय, सरकार विपरीत दिशा में आगे बढ़ रही है और यहां तक कि मौजूदा ढांचे को भी ध्वस्त भी कर सकती है, जो ढांचा इस मुश्किल घड़ी में गरीब और वंचित तबकों को राहत प्रदान कर सकता है। 

लेखक, न्यूज़क्लिक के साथ बतौर लेखक और शोधकर्ता है। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं। उनसे  @ShinzaniJain ट्विटर संपर्क किया जा सकता है। 

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Instead of Strengthening Infra for Food Security, Govt. Moves in Opposite Direction

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