Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

मुद्दा : आख़िर क्यों नहीं देश में जेंडर आधारित भेदभाव खत्म हो रहा!

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (डब्लूईएफ) द्वारा जारी ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2022 के मुताबिक भारत दुनिया के अंतिम ग्यारह देशों में शामिल है जहां सबसे ज्यादा लैंगिक असमानता मौजूद है। दक्षिण एशिया में सबसे खराब प्रदर्शन करने वालों में भारत तीसरा देश है।
gender
Image courtesy : UNESCO

महिला सुरक्षा और सशक्तिकरण के तमाम वादोंं और दावों के बीच देश में आधी आबादी के संघर्ष को वैश्विक स्तर पर जारी होती कई रिपोर्ट्स में देखा जा सकता है। हाल ही में जेंडर आधारित भेदभाव पर ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2022 में कुल 146 देशों की सूची में भारत 135वें पायदान पर है। यही नहीं वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (डब्लूईएफ) द्वारा जारी इस इंडेक्स के मुताबिक भारत दुनिया के अंतिम ग्यारह देशों में शामिल है जहां सबसे ज्यादा लैंगिक असमानता मौजूद है। दक्षिण एशिया में सबसे खराब प्रदर्शन करनेवालों में भारत तीसरा देश है। भारत केवल अफगानिस्तान और पाकिस्तान से आगे है। लैंगिक असमानता के मामले में भारत अपने अन्य पड़ोसी देशों बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका, मालदीव और भूटान से भी काफी पीछे है।

बता दें कि दुनिया के 146 देशों की लैंगिक असमानता पर जारी यह रिपोर्ट महिलाओं की शिक्षा, राजनीति, आर्थिक अवसर, स्वास्थ्य जैसे अन्य क्षेत्रों में उनकी स्थिति के आधार पर तैयार की गई है। लैंगिक समानता को 0 से 100 स्केल पर स्कोर दिया गया है। वर्ल्ड इकॉनामिक फोरम के मुताबिक दुनिया भर में मौजूदा लैंगिक असमानता को खत्म करने में 132 साल लग जाएंगे। अगर दक्षिण एशिया में मौजूदा असमानता की बात करें तो यहां इस भेदभाव को खत्म करने के लिए लगभग 197 साल का इंतजार करना होगा।

क्या ख़ास है इस रिपोर्ट में?

इस रिपोर्ट में राजनीति के क्षेत्र में मौजूद जेंडर गैप के बारे में बताया गया है, जहां लैंगिक असमानता सबसे अधिक मौजूद है। राजनीति के क्षेत्र में मौजूद जेंडर गैप को खत्म करने के लिए दुनिया को 155 साल का लंबा समय लग सकता है। हालांकि, पिछले पचाल सालों में सार्वजनिक दफ्तरों, राज्य के प्रमुख के तौर पर महिलाओं की संख्या बढ़ी है। बावजूद इसके अभी भी चुनौतियां कम नहीं हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में मंत्री परिषद में 2006 से 2022 तक महिलाओं की संख्याा 9.9 प्रतिशत से बढ़कर 16.1 प्रतिशत हुई है। बेलजियम के मंत्री परिषद में 57.1 प्रतिशत, निकारगुआ में 58.8 प्रतिशत और स्वीडन में 57.1 प्रतिशत महिलाएं हैं। वैश्विक स्तर पर पार्लियामेंट में महिलाओं की भागीदारी 14.9 से 22.9 प्रतिशत तक पहुंची है। रिपोर्ट में शामिल आधे देशों में आज तक कोई महिला राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के पद तक नहीं पहुंची है। ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2022 में राजनीतिक सशक्तिकरण में भारत 48वें पायदान पर है।

आर्थिक अवसर और अर्थव्यवस्था में जेंडर गैप की बात करें तो, भारत में महिलाओं के लिए आर्थिक अवसर बहुत सीमित है। देश की आर्थिक स्तर पर लैंगिक असमानता में रैंक कुल देशों में 143 है। साल 2022 की रिपोर्ट के अनुसार आर्थिक अवसर और अर्थव्यवस्था का उपसूंचकाक में बढ़ोतरी देखी गई है। यह 58.7 प्रतिशत से बढ़कर 60.3 प्रतिशत बढ़ी है। रिपोर्ट के अनुसार आर्थिक अवसरों में मौजूद असमानता की खाई बहुत व्यापक है इसे पूरा करने में 151 साल का लंबा वक्त लग सकता है।

यदि भारत के परिपेक्ष से बात करें तो आर्थिक अवसरों की असमानता में 146 देशों में से देश 143वें पायदान पर है। यह नंबर भारत में आर्थिक अवसर और अर्थव्यवस्था में महिलाओं की खराब स्थिति को दिखाने के लिए काफी है। रिपोर्ट में मौजूदा सामाजिक संरचना को एक बड़ी बाधा बताया गया है। भारत समेत पूरे दक्षिण एशिया में दुनिया में सबसे ज्यादा आर्थिक स्तर पर असमानता देखी गई है। इस असमानता को केवल 35.7 फीसदी ही खत्म किया गया है।

स्वास्थ्य, शिक्षा और कार्यक्षेत्र में असमानता

भारत स्वास्थ्य के मामले में दुनिया में सबसे बुरी स्थिति में है। दुनिया के 146 देशों में भारत की रैकिंग सबसे निचले पायदान पर है। साल 2021 की रिपोर्ट में भारत 156 देशों में 155 वें स्थान पर था। कोविड-19 महामारी के बाद भारत की स्थिति स्वास्थ्य के क्षेत्र में और खराब हो गई है। भारत में लिंग अनुपात में अंतर इसका सबसे बड़ा कारण बताया गया है। भारत समेत समूचा दक्षिण एशिया क्षेत्र स्वास्थ्य के मामले में विश्व में सबसे खराब स्थिति में है। रिपोर्ट में स्वास्थ्य और उत्तरजीविता के क्षेत्र में लैंगिक अंतर को खत्म करने के समय को अपरिभाषित किया है क्योंकि आंकड़ों के अनुसार समानता की प्रगति रुक गई है।

दुनियाभर में शिक्षा के क्षेत्र में पहले के मुकाबले महिलाओं की स्थिति थोड़ी बेहतर देखी जा रही है। महिलाओं की भागीदारी को लेकर स्थिति बदलती नज़र आ रही हैं। पिछले पांच सालों से वैश्विक स्तर पर तृतीयक शिक्षा यानी माध्यमिक शिक्षा के बाद की शिक्षा जिसमें स्नातक और स्नातकोत्तर जैसी उच्च स्तरीय शिक्षा भी शामिल है, में महिलाओं का नामाकंन बढ़ा है। 2019 से उच्च शिक्षा में लैंगिक अंतर को अलग देखा जा रहा है। रिपोर्ट दिखाती है कि महिलाएं शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं। हालांकि, 2013 और 2019 के बीच इंफॉरमेंशन एंड कम्यूनिकेश टेक्नोलॉजी (आईसीटी) और इंजीनियरिंग एंड मैन्यूफैक्चरिंग जैसे इन दो महत्वूपर्ण क्षेत्रों में आज भी सबसे ज्यादा जेंडर गैप बना हुआ है। शिक्षा से अलग हेल्थ एंड वेल्फेयर फील्ड्स में महिलाओं की भागीदारी कम हुई है।

महिलाओं और पुरुषों में साइंस और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अंतर आज भी बहुत ज्यादा बना हुआ है। कोरोना महामारी के बाद ऑनलाइन शिक्षा में ग्लोबल स्तर पर बढ़ोतरी देखी गई है। पारंपरिक शिक्षा की तरह ऑनलाइन शिक्षा में भी महिलाओं से आगे पुरुष हैं। भारत और सऊदी अरब जैसे देशों में आईसीटी, एसटीईएम गैप पारंपरिक शिक्षा के मुकाबले ऑनलाइन में और भी ज्यादा है। भारत में यह अंतर 23.8 से 24.8 यानी एक प्रतिशत बढ़ा है। ग्लोबल जेंडर रिपोर्ट 2022 के अनुसार शिक्षा के क्षेत्र में दुनिया में मौजूदा असमानता को खत्म करने के लिए लगभग 22 वर्ष का समय लगेगा। शिक्षा प्राप्ति करने के क्षेत्र में 146 देशों में भारत 107वें पायदान पर है। पिछले साल के मुकाबले गिरावट के साथ भारत का स्कोर 0.961 है। साल 2021 में भारत 114वें पायदान पर था।

ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2022 में वैश्विक स्तर पर कार्यक्षेत्र में असमानता को एक उभरता हुआ संकट बताया है। लंबे समय से चले आ रहे संरचनात्मक बंधन, सामाजिक और तकनीकी परिवर्तन के साथ आर्थिक कारणों को मुख्य वजह बताया है। महामारी को इसमें एक अतिरिक्त बाधा बताया गया है। इसके अलावा राजनीतिक और जलवायु परिवर्तनों के वजह से महिलाएं सबसे ज्यादा प्रभावित होती हैं। कार्यक्षेत्र में महिलाओं के समान वेतन और कौशल तकनीक तक उनकी पहुंच को सुगम करने की बात पर जोर देने को कहा गया है।

गौरतलब है कि पिछले साल की तुलना में देखें तो भारत की स्थिति में थोड़ा सुधार जरूर आया है। लेकिन अभी भी वैश्विक स्तर पर इसकी स्थिति खराब हा नज़र आती है। शिक्षा हो या राजनीति देश में हर जगह लैंगिक असमानता बनी हुई है। महामारी से गुजरते समय में भारत की स्वास्थ्य क्षेत्र में सबसे निचली रैंक देश की स्वास्थ्य व्यवस्था की भयानक तस्वीर पेश करती है। मौजूदा समय में सरकार भले ही बेटी बचाओ और महिलाओं की सुरक्षा के दावे करती हो लेकिन ऐसी रिपोर्ट देश में जेंडर गैप की गंभीरता को दिखाती है। ऐसे में बड़ा सवाल है कि क्या सरकार इस मुद्दे पर गंभीरता दिखाएगी या इसे भी भारत की दुनिया में खराब छवि करने की साजिश बताकर सच्चाई से मुह मोड़ लेती है।

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest