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जेएनयू हिंसा: प्रदर्शनकारियों ने कहा- कोई भी हमें यह नहीं बता सकता कि हमें क्या खाना चाहिए

घटना के विरोध में दिल्ली भर के छात्र सड़क पर उतरे। छात्र, पुलिस मुख्यालय पर विरोध जताने के लिए एकत्रित हुए परन्तु पुलिस ने सभी प्रदर्शनकारियों को अस्थायी हिरासत में ले लिया और चाणक्यपुरी, संसद मार्ग और तुगलक रोड पुलिस थानों में ले जाया गया।
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रविवार रात को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में भोजन को लेकर हुई हिंसा के बाद आज दिल्ली के विभिन्न विश्वविद्यालय के छात्र सड़क पर उतरे और अपना विरोध दर्ज करवाया। जबकि देश के कई अन्य विश्वविद्यालयों के छात्रों ने भी जेएनयू के समर्थन में आवाज़ बुलंद की। दिल्ली में विरोध प्रदर्शन करने वाले छात्रों ने कहा कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छात्र इकाई है। उसके सदस्यों ने परिसर में छात्रों पर मांसहार भोजन रोकने के लिए हिंसा का इस्तेमाल किया। इस हिंसा के कम से कम 16 छात्रों को चोटें आईं। इसी घटना के विरोध में दिल्ली भर के छात्र पुलिस मुख्यालय पर विरोध जताने के लिए एकत्रित हुए परन्तु पुलिस ने सभी प्रदर्शनकारियों को अस्थायी हिरासत में ले लिया और चाणक्यपुरी, संसद मार्ग और तुगलक रोड पुलिस थानों में ले जाया गया।

दूसरी तरफ दिल्ली पुलिस ने एसएफआई, आइसा, डीएसएफ और जेएनयूएसयू की शिकायत पर एबीवीपी के अज्ञात सदस्यों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 323,341, 509,506, 34 के तहत प्राथमिकी दर्ज की है।

सोमवार को प्रदर्शन में शामिल होने आई अम्बेडकर विश्वविद्यालय की एक छात्रा यशिता सिंघी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि इस घटना ने उन्हें राष्ट्रीय राजधानी के अन्य परिसरों के भविष्य को लेकर चिंता में डाल दिया है। उन्होंने कहा, "मैं अंबेडकर विश्वविद्यालय में पढ़ रही हूं और इस घटना ने मुझे अंदर तक डरा दिया कि किसी दिन एक लंपट हमारी टेबल पर आकर तय करेगा कि हमें क्या खाना चाहिए? यह हमारे लिए पूरी तरह से अस्वीकार्य है। मुझे लगता है कि इस तरह की घटनाओं से हमारे स्वतंत्रता के अधिकार को खतरा है।”

दिल्ली विश्वविद्यालय में दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के छात्र असीद करीम हुसैन ने न्यूज़क्लिक को बताया कि इस हमले को चिंता के साथ देखा जाना चाहिए क्योंकि देश के अधिकांश निवासी मांसाहारी हैं। “मैं एक ऐसे राज्य से ताल्लुक रखता हूं, जहां मांसाहारी भोजन की एक समृद्ध विविधता है। हमने जीवन भर मांस खाया है। मुझे लगता है कि यह सवर्ण ब्राह्मणवादी व्यवस्था को लागू करने की कोशिश है। जहां वे एक भोजन और एक संस्कृति को लागू करने का इरादा रखते हैं। हमारा संविधान हमारी इच्छा के अनुसार उपभोग करने की अनुमति देता है। हर विरोधी आवाज को चुप कराने के लिए बेशर्म हिंसा का इस्तेमाल स्वीकार्य नहीं है।"

इससे पहले दोपहर में, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्द्यालय छात्र संघ (जेएनयूएसयू) ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि उसने दोषियों की गिरफ्तारी के लिए दिल्ली पुलिस में औपचारिक शिकायत दर्ज की है। अपना घाव दिखाते हुए, हरेंद्र शेषमा ने कहा कि उन्हें डंडों, पत्थरों और वाइपर से पीटा गया, जबकि दिल्ली पुलिस के अधिकारी हिंसा के दौरान मूकदर्शक बने रहे।

उन्होंने उस दिन के घटनक्रम को बताते हुए कहा, 'रामनवमी के बहाने कावेरी हॉस्टल में सप्लाई देने आए चिकन सप्लायर को एबीवीपी के सदस्यों ने भगा दिया। जब हमने उनसे (एबीवीपी के सदस्यों) कहा कि पहले वो शाकाहारी खाना खा ले और फिर मांसाहारी खाना परोसा जा सकता है, तो उन्होंने इस बात से भी इनकार कर दिया गया। बाद में उन्होंने छात्रों पर हमला करना शुरू कर दिया। मुझ पर भी डंडों से हमला किया गया। उनके दुस्साहस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मेस सचिव पर भी हमला किया। जबकि वार्डन ने भी यह स्पष्ट किया कि मांस परोसने पर कोई प्रतिबंध नहीं है।

शेषमा ने आगे कहा कि 10 अप्रैल 2022 की दोपहर के समय ही कावेरी छात्रावास के मेस समिति के सदस्यों के साथ एबीवीपी के कुछ लोगों द्वारा दुर्व्यवहार करने की जानकारी के वीडियो के आ गया था। जिसमें वे (एवीबीपी) मेस के कामकाज को बाधित करते हुए और मांसाहारी भोजन न पकाने की धमकी देते हुए दिख रहे है।

हिंसा के कई कथित वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आए, जिनमें से एक में एक छात्रा अख्तरिस्ता अंसारी के सिर से खून निकलता दिख रहा है। अधिकारियों ने इन वीडियो की प्रामाणिकता की पुष्टि नहीं की है।

शेषमा एसएफआई जेएनयू की इकाई अध्यक्ष भी हैं। उन्होंने कहा, “10 अप्रैल की रात को, जब रात का खाना परोसा जाना था; केवल शाकाहारी भोजन उपलब्ध कराने की मांग को लेकर एबीवीपी के गुंडे कावेरी छात्रावास के मेस में जमा हो गए थे। जब छात्रों ने अपने भोजन के अधिकार के इस सरासर उल्लंघन का विरोध किया, तो एबीवीपी ने छात्रों को धमकाया और लकड़ी की लाठियों, ट्यूबलाइट और कई अन्य तेज वस्तुओं का उपयोग करके उन पर हिंसक हमला किया। उन्होंने न केवल छात्र कार्यकर्ताओं पर हमला किया, उन्होंने छात्रावास के गेट को बंद कर दिया, बाद में उन्होंने हर उस छात्र की पिटाई की जो उनके सामने आया और खुद को बचाने का प्रयास किया। वे 'भारत में रहना होगा तो जय श्री राम कहना होगा' जैसे सांप्रदायिक नारों का इस्तेमाल कर वहां मौजूद सभी छात्रों को खुलेआम आतंकित कर रहे थे। उन्होंने एम्बुलेंस को घेर लिया और घायल छात्रों को चिकित्सा सहायता के लिए ले जाने नहीं दे रहे थे। यह सब तब हुआ जब दिल्ली पुलिस और साइक्लोप्स सिक्योरिटी दोनों वहां मौजूद थे। लेकिन, गुंडागर्दी में महारत हासिल करने वाली एबीवीपी ने इन दोनों की परवाह नहीं की और छात्राओं को बलात्कार की धमकी दी गई, उनका यौन शोषण किया गया, उन्हें पीटा गया, जबकि इस दौरान दिल्ली पुलिस असहाय बनी हुई थी और चुपचाप सब कुछ देख रही थी। छात्रों ने अपराधियों को पकड़ने के लिए दिल्ली पुलिस से बार-बार अनुरोध किया लेकिन सब व्यर्थ रहा।

अख्तरिस्ता अंसारी (Akhtarista Ansari) जिनके माथे पर कई टांके लगे हुए थे। उन्होंने कहा कि उन्हें हॉस्टल के अंदर एक पत्थर से मारा गया था। उन्होंने आगे कहा, "कई छात्र घायल हो गए और उन्हें एम्स और सफदरजंग अस्पताल में भेजा गया। हमें सूचना मिली थी कि कावेरी हॉस्टल से चिकन सप्लायर को खदेड़ दिया गया है। इसके बाद छात्र रात आठ बजे हॉस्टल के बाहर जमा हो गए, जहां एबीवीपी के सदस्य पहले से मौजूद थे। उन्होंने छात्रों पर पथराव, लाठी और डंडों से हमला करना शुरू कर दिया।

घटना पर टिप्पणी करते हुए जेएनयू प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों ने छात्रों से शांति बनाए रखने की अपील की। विश्वविद्यालय की ओर से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है, 'जेएनयू कैंपस में 10 अप्रैल 2022 को छात्र समूहों के बीच हाथापाई हुई थी। यह सब रामनवमी का अवसर पर हुआ था और कावेरी छात्रावास में छात्रों द्वारा हवन का आयोजन किया गया था और जबकि छात्रों के एक समूह ने इसका विरोध किया था। छात्रों के वार्डन और डीन ने छात्रों को शांत करने का प्रयास किया और हवन शांतिपूर्वक संपन्न हुआ। इसके बावजूद, छात्रों का कुछ समूह इससे खुश नहीं था और रात के खाने के तुरंत बाद वहाँ पर हंगामा खड़ा हो गया और छात्रों के दोनों समूहों के बीच तीखी बहस होने लगी। जब छात्रों के बीच हंगामा हो रहा था तो वार्डन ने मौके पर सफाई दी और नोटिस जारी किया कि मांसाहारी भोजन परोसने पर कोई रोक नहीं है।

हालांकि, प्रकरण पर एसएफआई के सदस्यों द्वारा जोरदार विरोध किया गया था, जिन्होंने कहा था कि जेएनयू प्रशासन द्वारा जारी सर्कुलर झूठ के माध्यम से परिसर के अंदर सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्रचार के हथियार है। सर्कुलर में एबीवीपी की जानलेवा भीड़ द्वारा उनके भोजन की च्वाइस में कटौती का विरोध कर रहे छात्रों पर हिंसक हमलों की गंभीरता को कम करने का प्रयास है। ध्यान भटकाने के लिए उस घटना का ज़िक्र किया जा रहा है जो कभी हुई ही नहीं थी। प्रशासन द्वारा कावेरी छात्रावास के अंदर आयोजित हवन या पूजा में बाधा डालने के आरोप बिल्कुल झूठे हैं। यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि जेएनयू प्रशासन अपने ही विश्वविद्यालय के छात्रों पर किए गए जानलेवा हमलों को रोकने के बजाय धार्मिक अनुष्ठानों में व्यवधान की झूठी खबरों को रोकने के लिए सख्ती से काम कर रहा है।”

हिंसा की निंदा वामपंथी दलों ने एक संयुक्त बयान जारी कर की। जिसमें कहा गया कि भोजन की आदतें और छात्रों पर हमला करना आरएसएस और उसके सहयोगी संगठनों द्वारा देश भर में मुसलमानों और असंतुष्टों को धमकाने का एक पैटर्न है। कर्नाटक हो, जहां मुस्लिम फल विक्रेताओं को निशाना बनाया जा रहा हो या दिल्ली में जहां एसडीएमसी मेयर ने अवैध रूप से नवरात्रि के दौरान सभी मांस और मछली की दुकानों को बंद करने के लिए कहा हो, आरएसएस और भाजपा अपने ब्राह्मणवादी नज़रिए को दूसरों थोपना चाहते हैं। इस देश के सभी नागरिकों को संविधान द्वारा गारंटीकृत भोजन की आदतों और विविधता का सम्मान होना चाहिए।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (जेएनयूटीए) ने भी रामनवमी के दिन रात के खाने में कथित तौर पर मांस परोसने को लेकर रविवार को कावेरी छात्रावास के ‘मेस’ में हुई झड़प की निंदा की और कुलपति से मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है।

जेएनयूटीए ने रविवार देर रात एक बयान में कहा कि वह पूरे घटनाक्रम की जानकारी लेगा तथा तथ्यात्मक विवरण जुटाएगा।

बयान में कहा गया, ‘‘ जेएनयूटीए किसी भी समूह के भोजन की पसंद को दूसरों पर थोपने के किसी भी प्रयास की निंदा करता है। मतभेद की खुन्नस निकालने लिए हिंसा के इस्तेमाल का विश्वविद्यालय समुदाय में कोई स्थान नहीं है।’’

इसमें कहा गया कि छात्रों और विश्वविद्यालय के लिए काम करने वाले कर्मचारियों की सुरक्षा पूरी तरह से सुनिश्चित की जानी चाहिए।

जेएनयूटीए ने कहा, ‘‘ जेएनयू की कुलपति और उनके दल, साथ ही सुरक्षा बलों को इस हिंसा को तुरंत समाप्त कराने के लिए व्यक्तिगत रूप से हस्तक्षेप करना चाहिए और बहुलवाद तथा मत भिन्नता के सम्मान के सिद्धांत को बरकरार रखने की पुन: पुष्टि की जानी चाहिए जिसका यह विश्वविद्यालय प्रतीक है।’’

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