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झारखंड : पत्रकार रूपेश सिंह पर 2 और मामले दर्ज, इनमें एक मामला एनआईए का

रूपेश पर लगाए गए दो नए मामलों में से एक में वह "अज्ञात" हैं, यानी उन्हें नामज़द नहीं किया गया। दूसरा मामला एनआईए ने दर्ज किया है। रूपेश को 17 जुलाई को सरायकेला-खरसावां पुलिस ने गिरफ्तार किया था।
Rupesh Kumar Singh
Image Source: Gaon Savera.com

झारखंड के स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह को 17 जुलाई को उनके घर से गिरफ्तार किया गया था। 17 जुलाई के बाद से रूपेश पर 2 अन्य मुकदमे भी दर्ज कर दिये गए हैं। दो नए मामलों में से एक मामला एनआईए का है। रूपेश को 17 जुलाई को सरायकेला-खरसावां पुलिस ने कई घंटों तक उनके घर की तलाशी लेने के बाद गिरफ्तार किया था।

रूपेश पर लगाए गए दो नए मामलों में से एक में वह "अज्ञात" हैं, यानी उन्हें नामज़द नहीं किया गया था। ये एफ़आईआर संख्या 16/22 30 जून 2022 को झारखंड के बोकारो ज़िले के जागेश्वर बिहार थाने में दायर की गई थी। लैक्चरार और रूपेश की पत्नी इप्सा ने बताया कि उन्हें 11 अगस्त को इस मामले में पेश किया गया, इससे पहले उन्हें इसकी कोई जानकारी ही नहीं थी।

इस एफ़आईआर में प्रतिबंधित संगठन माओवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों को नामज़द किया गया था। इन पर आईपीएस की धारा 147, 148, 149, 307 और 353, आयुध अधिनियम, 1959 की धारा 27, विस्फोटक अधिनियम की धारा 4 और 5, यूएपीए की धारा 10 और 13 और दंडविधि (संशोधन) अधिनियम की धारा 17 के तहत मामला दर्ज किया गया था। न्यूज़क्लिक को मिली एफ़आईआर के अनुसार इन माओवादी कम्युनिस्ट पार्टी के लिए इलाक़े में लेवी लेने, और किसी बड़ी घटना को अंजाम देने की साज़िश करने के आरोप लगाए गए हैं।

इस एफ़आईआर में रूपेश का नाम नहीं है। सोशल मीडिया पर बयान जारी करते हुए इप्सा ने बताया था, "Rupesh Kumar Singh को एक और केस में फंसा दिया गया है, मामला क्या है यह अभी तक न रूपेश को पता है न ही मुझे। बोकारो जिला के तेनुघाट के जागेश्वर बिहार थाना के केस सं - 16/22 में आज रूपेश की पेशी कराई गई। इस केस में रूपेश नामजद नहीं हैं। फिर भी इन्हें घसीटा जा रहा है।

मुझे तो शुरूआत से ही लग रहा था कि सत्ता के खिलाफ लिखने, बोलने की कीमत रूपेश को बुरी तरह से चुकानी पड़ेगी।अब यह और स्पष्ट हो रहा है कि सत्ता रूपेश को फिर से बाहर की दुनिया में देखना नहीं चाह रही है, और इसके लिए वो एड़ी चोटी का जोड़ लगा रही है।बहुत संभावना है कि रूपेश को ऐसे कई और केस में फंसाकर जेल में रख देने की पूरी कोशिश की जाएगी। और हम बस मूकदर्शक बने रहेंगे।"

एक अन्य मामला जो एनआईए का है, वह एनआईए का मामला संख्या 19/22 है, जो 26 अप्रैल 2022 को दायर किया गया था। इसमें रूपेश के साथ 4 अन्य लोग नामज़द हैं जो माओवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य हैं। यह एनआईए, दिल्ली में दर्ज किया गया था। यह मामला भी माओवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों द्वारा बिहार और झारखंड में लेवी इकट्ठा करने, काडर रिक्रूट करने से संबन्धित है। यह एफ़आईआर पहले बिहार के रोहतास में दर्ज हुई थी, जिसके बाद एनआईए ने इसे टेकओवर कर लिया था।

इस मामले के अनुसार रूपेश पर आईपीएस की धाराएँ 121 (A), 122(A), 124, 120(B) और 34 और यूएपीए की धाराएँ 10, 13, 16, 18, 19, 20 और 38 के तहत मामला दर्ज किया गया है।

एफ़आईआर के अनुसार यह घटना 12 अप्रैल को हुई थी।

12 अप्रैल को रूपेश कहाँ थे?

5 मई 2022 को रूपेश ने कई पत्रकारों को एक ईमेल लिखा था। जिसमें उन्होंने कहा था कि "मैं आज यानी 5 मई, 2022 को यह स्टेटमेंट आने वाले दिनों के लिए इसलिए जारी कर रहा हूँ, क्योंकि मुझे शक है कि केन्द्र की मोदी सरकार के इशारे पर NIA मेरे खिलाफ एक बड़ी साजिश कर रही है।"

रूपेश ने 12 अप्रैल के बारे में कहा था, मैं 12 अप्रैल को विरा साथीदार स्मृति समन्वय समिति, नागपुर (महाराष्ट्र) द्वारा 12-13 अप्रैल, 2022 को आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए नागपुर के कविवर सुरेश भट्ट सभागृह, नागपुर में मौजूद था, वहाँ मैंने अपने फेसबुक पर लाइव भी किया था।"

इप्सा द्वारा साझा किए गए इस ईमेल के अनुसार रूपेश ने यह भी कहा था कि वह कभी रोहतास गए ही नहीं हैं। "रोहतास के पड़ोसी जिला कैमूर में मैं कैमूर मुक्ति मोर्चा के द्वारा कैमूर बाघ अभ्यारण्य के खिलाफ 26-28 मार्च, 2022 के तीन दिवसीय पदयात्रा को एक पत्रकार होने के नाते कवर करने जरूर 27 मार्च को गया था, जिससे संबंधित एक रिपोर्ट भी न्यूज वेबपोर्टल ‘जनचौक’ पर 29 मार्च को प्रकाशित हुई है।"

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए रूपेश के वकील श्याम ने कहा, "यह एक पैटर्न है जो पूरे झारखंड में देखा जा रहा है। कि मुकदमों में कुछ नामज़द होते हैं, और बाक़ी को अज्ञात कह दिया जाता है, उसके बाद किसी को भी उस अज्ञात की श्रेणी में डाल कर मामला दर्ज कर दिया जाता है।"

श्याम का कहना है कि यह सब लंबे समय तक किसी को अंडर ट्रायल रखने के लिए किया जा रहा है।

झारखंड सरकार के ऐसे रवैये पर श्याम कहते हैं, "यह आदिवासियों और कॉर्पोरेट के बीच की लड़ाई है, सरकारें तो हमेशा ही कॉर्पोरेट का साथ देती हैं। जनता से तो वादे किए जाते हैं, मगर उन वादों का क्या होता है यह हम 2014 से देख ही रहे हैं। हर सरकार कॉर्पोरेट के मुनाफ़े को ही सरमाथे पर रखती है।"

आपको बता दें कि 17 जुलाई से जेल में बंद रूपेश को बाक़ी बंदियों से अलग रखा गया है। रूपेश ने जेल प्रशासन के सामने 3 मांगें रखी थीं, जिनके पूरा न होने पर उन्होंने 15 अगस्त को भूख हड़ताल शुरू कर दी थी। हालांकि कल सुपरिटेंडेंट ने आकर उनसे बात की और तीनों मांगों को मानते हुए संबंधित सुधार का वादा किया और जेल के बड़े जमादार को निर्देश दिया। हालांकि 24 घंटे बाद भी इस पर कोई अमल नहीं हुआ है।

इप्सा के अनुसार :

  • जगह बदलने पर सुपरिटेंडेंट का कहना था उस जगह को ठीक कर वहां और भी कैदियों को शिफ्ट कर देंगे ताकि आप और भी लोगों से बातचीत कर सकें।
  • काॅपी, कलम मैंने 13 अगस्त को पहुंचाया था पर रूपेश को उन्होंनें दिया नहीं था, पर अब उसे देने की बात कही गई है।
  • खाने लायक खाना और जेल मेन्युल के हिसाब से खाने मांग को मानते हुए बड़ा जमादार को ध्यान रखने को कहा गया है।

रूपेश की गिरफ्तारी पर इप्सा कहती हैं, "मैं शुरूआत से ही कह रही हूं कि 2019 में रूपेश को डराने के लिए किडनैप और फिर गिरफ्तार किया गया था, पर जेल से निकलने के बाद रूपेश ने पहले से ज्यादा तीखे तेवर के साथ सरकार और प्रशासन की जनविरोधी नीति और कार्यशैली पर सवाल उठाना शुरू किया। और गिरफ्तारी के तुरंत पहले इन्होंने गिरिडीह में कारखानों से निकलती गन्दगी जिससे आस पास के हवा पानी में जहर घुल गया तथा आम लोगों का जीना मुश्किल हो गया है, पर स्टोरी की है।

एक ऐसे पत्रकार जो ग्राउंड पर जाकर रिपोर्टिंग कर रहे थे। ऐसे पत्रकार जो आदिवासी मुख्यमंत्री के आने के बावजूद हर तरह का दमन झेल रहे आदिवासियों की जमीनी हकीकत को तमाम कठिनाईयों के बावजूद सामने लाने का काम रह रहे थे। ऐसे जनपक्षीय पत्रकार के पीछे देश की तमाम एजेंसियां लगा दी गई है। जैसे पत्रकारिता के पेशे के साथ न्याय करना, एक पत्रकार के होने की शर्तों को पूरा करना ही अपराध हो। मेनस्ट्रीम मीडिया ऐसी खबरों से हमेशा ही एक दूरी बनाकर चलती है, इसलिए रूपेश कुमार सिंह ने स्वतंत्र पत्रकारिता को चुना क्योंकि हर मीडिया हाउस की अपनी सीमा होती है।"

रूपेश कुमार सिंह लगातार आदिवासी समुदाय से जुड़ी खबरों पर रिपोर्ट करते रहे हैं। उनकी गिरफ्तारी का विरोध हो ही रहा है और लोग इसे पत्रकारिता पर दमन के तौर पर भी देख रहे हैं।

पत्रकारिता पर दमन की बात करें तो 2021 में Committee to Protect Journalists की एक रिपोर्ट ने बताया था कि पत्रकारों पर उनके काम की वजह से सबसे ज़्यादा हमले भारत में होते हैं।

मानसून सत्र के दूसरे दिन गृह मंत्रालय ने संसद में यह कह दिया कि सरकार के पास गिरफ्तार किए जा रहे पत्रकारों का कोई आंकड़ा नहीं होता है।

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