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झारखंड: “फ़ादर स्टैन स्वामी मामले पर केंद्र सरकार चुप्पी तोड़ो”, जन हस्ताक्षर अभियान से उठी मांग!

मांग है कि, फ़ादर स्टैन के ख़िलाफ़ हुई साज़िश को लेकर ‘आर्सेनल कंसल्टेंसी’ के खुलासे पर केंद्र की सरकार अपनी चुप्पी तोड़े और विरोध की आवाज़ उठाने वालों को निशाना बनाना बंद करे।
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जन मुद्दों की मुखर आवाज़ कहे जानेवाले वाले वरिष्ठ मानवाधिकार कार्यकर्त्ता फ़ादर स्टैन स्वामी का नाम मौजूदा शासन-सत्ता की दमनकारी नीतियों और मानवाधिकार हनन के ‘नागरिक-प्रतिवाद’ का प्रतीक बन गया है। यही वजह है कि उनकी “न्यायिक हिरासत में हुई मौत” की जांच की मांग के साथ-साथ देश की जेलों में बंद राजनैतिक-मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं तथा फ़र्ज़ी मुकदमों में फंसाए गए गरीबों-आदिवासियों की रिहाई जैसी मांगों का उठना लगातार जारी है।

विशेषकर झारखंड प्रदेश में तो आज भी वहां के वामपंथी और सामाजिक जन संगठनों में इस बात को लेकर गहरा रोष है कि-फ़ादर स्टैन स्वामी को फ़र्ज़ी तरीके फंसाए जाने के साक्ष्य सामने आने के बावजूद केंद्र की सरकार इस पर चुप्पी साधे हुए है। साथ ही फ़र्ज़ी मुकदमों में फंसाकर वर्षों से जेलों में बंद राजनैतिक कार्यकर्त्ताओं के साथ-साथ सैकड़ों “विचाराधीन बंदियों” की रिहाई और उनके इंसाफ़ के सवाल पर जिस तरह का संवेदनहीन रवैया अपनाया जा रहा है, वह लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई वर्तमान सत्ता के फ़ासीवादी होने का ही परिचायक है। जिसके खिलाफ लोकतंत्रपसंद नागरिक समाज सड़कों पर लगातार अपना प्रतिवाद प्रदर्शित कर रहा है।

25 व 26 फ़रवरी को ‘फ़ादर स्टैन न्याय मोर्चा’ के तत्वाधान में राजधानी रांची के विभिन्न स्थलों पर सघन जन हस्ताक्षर अभियान चलाया गया। जिसके माध्यम से एक बार फिर ये पुरज़ोर मांग उठाई गयी कि-फ़ादर स्टैन स्वामी की “संस्थागत हत्या” की जांच हो, दमनकारी यूएपीए व अन्य सभी काले कानून रद्द हों तथा देश की जेलों में बंद सभी राजनैतिक-मानवाधिकार कार्यकर्त्ता-आंदोलनकारियों के साथ-साथ “विचाराधीन कैदी” बनाकर रखे गए आदिवासी व निर्दोष गरीबों की अविलंब रिहाई हो।

उक्त अभियान की एक केंद्रीय मांग यह भी है कि-फ़ादर स्टैन के ख़िलाफ़ हुई साज़िश पर ‘आर्सेनल कंसल्टेंसी’ के खुलासे पर मामले पर केंद्र की सरकार अपनी चुप्पी तोड़े। फ़ादर स्टैन पर लगाए गए सभी फ़र्ज़ी मुक़दमे हटाए और अपनी एजेंसी एनआईए के ज़रिए लोकतांत्रिक विरोध की आवाज़ उठाने वालों को दमन का निशाना बनाना बंद करे।

जन हस्ताक्षर अभियान के दोनों ही दिन प्रबुद्ध नागरिक समाज के लोगों समेत काफी संख्या में छात्र-युवा, महिलाओं व आम लोगों ने मांग-पत्र पर अपने हस्ताक्षर किए। कार्यक्रम के आयोजकों ने बताया कि फ़ादर स्टैन के जागरूक व्यक्तित्व से प्रभावित कई पुलिसकर्मियों ने भी अपने हस्ताक्षर कर जन अभियान को अपना समर्थन दिया। हस्ताक्षर करने वालों ने केंद्र सरकार के लोकतंत्र विरोधी रवैये और देश की न्यायिक कुव्यवस्था के खिलाफ भी अपना क्षोभ व्यक्त किया।

जन हस्ताक्षर अभियान मोर्चा के सदस्यों ने बताया कि फ़ादर स्टैन की जनप्रियता इसी से समझी जा सकती है कि दो दिनों तक चलाए गए कुछ घंटों के अभियान में ही 6000 से भी अधिक लोगों ने अपने हस्ताक्षर कर भारी जन समर्थन का इज़हार किया है। राजधानी रांची से शुरू किया गया यह जन हस्ताक्षर अभियान चरणबद्ध तरीके से पूरे प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में चलाया जाएगा जिसे बाद में एकत्रित कर उसकी प्रतियां सीधे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी जाएंगी।

जिसका एक ख़ास संदर्भ यह भी है कि-गत 26 नवंबर को देश के ‘संविधान दिवस’ के अवसर पर खुद राष्ट्रपति जी ने अपने संबोधन में देश की विभिन्न जेलों में वर्षों से क़ैद हज़ारों बेगुनाह “विचाराधीन आदिवासी बंदियों” की दुरावस्था व्यक्त करते हुए कहा कि केंद्र की सरकार इसे समझे और इसके अनुरूप काम करे। विडंबना ही कही जाएगी कि महामहिम राष्ट्रपति की उक्त व्यथा को प्रधानमंत्री से लेकर उनकी सरकार के किसी भी मंत्री-नेता तक ने कोई महत्व नही दिया है। जिससे मामला जस का तस पड़ा हुआ है और जेलों में बंद हज़ारों बेगुनाह आदिवासी-गरीबों की रिहाई संभव नहीं हो पा रही है।

केंद्र सरकार की चुप्पी फ़ादर स्टैन के ख़िलाफ़ एनआईए द्वारा रची गयी उस साज़िश को लेकर भी लगातार बनी हुई है जिसका पर्दाफ़ाश वैश्विक स्तर तक पर सबके सामने हुआ। जब पिछले वर्ष अमेरिका की जानी मानी संस्था ‘आर्सेनल कंसल्टेंसी’ ने भारत सरकार द्वारा “भीमा कोरे गांव प्रकरण” में देश के प्रधानमंत्री की हत्या के षड्यंत्र में शामिल होने का झूठा आरोप लगाकर सुधा भारद्वाज, वरवर राव व गौतम नौलखा समेत फ़ादर स्टैन और कई अन्य को “देशद्रोही” कहकर जेल में डाल दिया गया। आर्सेनल ने ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ में प्रकशित अपनी रिपोर्ट में पूरी दुनिया के सामने ये खुलासा किया कि “भीमा कोरे गांव मामले” में स्टैन स्वामी इत्यादि को गिरफ्तार करने के लिए “डिजिटल सबूत” उनके कंप्यूटर की हार्ड ड्राइव में बाहर से लगाए गए थे। इस खुलासे पर जहां एनआईए से अपनी सफाई में कुछ कहते नहीं बन रहा था, वहीं भारत सरकार ने पूरी तरह से चुप्पी साध ली।

हस्ताक्षर जन अभियान के माध्यम से इस सवाल को आम लोगों के बीच काफी प्रमुखता से उठाते हुए केंद्र सरकार से ये ज़ोरदार मांग की गई कि आर्सेनल कंसल्टेंसी के खुलासे पर वह अपनी चुप्पी तोड़े। एनआईए का इस्तेमाल कर फ़ादर स्टैन स्वामी जैसों को फंसाने की साज़िशों के खुलासे पर वह सामने आकर अपनी जवाबदेही ले और देश-दुनिया को सच्चाई बताने का काम करे।

फ़ादर स्टैन स्वामी न्याय मंच के तहत नागरिक अभियान चलाने वाले एआईपीएफ़ झारखंड के जेवियर कुजूर और नादिम खान ने हेमंत सोरेन सरकार से पुनः ये मांग की है कि-झारखंड की जेलों में “विचारिधीन कैदी” के रूप में पुलिस द्वारा फर्ज़ी मुकदमों में बंद सभी आदिवासी व गरीबों की जल्द से जल्द रिहाई के ठोस उपाय किए जाएं। लेकिन वहीं दूसरी ओर, 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों के तहत प्रदेश के आदिवासी समुदायों के बीच भाजपा को स्थापित करने की कवायदों में सक्रीय आदिवासी मामलों के मंत्री समेत पार्टी के सभी आदिवासी विधायक व अन्य नेतागण, झारखंड की पहचान बन चुके फ़ादर स्टैन स्वामी और उनके अभियान (जेलों में बंद विचाराधीन आदिवासी कैदियों की रिहाई) को लेकर आज भी कुछ कहने से कतराते देखे जा सकते हैं।

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