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झारखंड: हेमंत सोरेन ने हासिल किया विश्वास मत

लंबी सियासत के बीच मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने विश्वासमत हासिल कर लिया है, हालांकि इस दौरान राज्यपाल दिल्ली में थे, अब देखना होगा कि वापस आने के बाद उनकी प्रतिक्रिया क्या होती है?
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‘’हमें डराने-धमकाने से काम नहीं चलेगा। जब देश का प्रधानमंत्री ही अपने देश राज्यों से लड़ रहा हो तो देश का विकास क्या ख़ाक होगा।‘’

उक्त बातें हेमंत सोरेन ने आहूत विधानसभा के विशेष सत्र में मतविभाजन के दौरान विश्वासमत हासिल करने के दौरान कही। पिछले कई दिनों से राज्य में क़ायम राजनितिक गतिरोध को दुरुस्त करने के लिए ही विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया गया था, जिसमें विपक्ष के सभी विधायकों के सदन से वॉकआउट के बीच हेमंत सोरेन ने फिर से विश्वास मत हासिल किया। सत्ताधारी दल के तीन विधायक जो अवैध रुपयों के साथ पश्चिम बंगाल में गिरफ्तार हुए थे, उन्हें मतविभाजन प्रक्रिया में शामिल होने की अनुमति नहीं थी। विश्वासमत के बाद विधानसभा अध्यक्ष ने सत्र को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने की घोषणा कर दी।

सियासी चर्चाओं और “मीडिया ट्रायल” के अनुसार प्रदेश के राज्यपाल महोदय जिन्हें चुनाव आयोग के दिए फैसले को सार्वजनिक कर देना था, वे फिलहाल राजधानी दिल्ली में विराजमान हैं। खबरों के अनुसार वे गृह मंत्री से मिलेंगे फिर झारखंड लौटकर आगे की कोई घोषणा करेंगे। जिसे लेकर यही कयास लगया जा रहा है कि संभवतः हेमंत सोरेन की विधायकी को अयोग्य ठहराने सम्बन्धी अधिसूचना सार्वजनिक हो सकती है।

उक्त सन्दर्भ में झारखंड बार कौंसिल से जुड़े हाईकोर्ट के वरिष्ठ कानून विशेषज्ञ एडवोकेट एके राशिदी का साफ़ कहना है कि- दरअसल, इन दिनों झारखंड की राजनीती में जो कुछ भी हो रहा है, प्रदेश के राज्यपाल महोदय द्वारा अपनी “नियोक्ता” केंद्र की सरकार के इशारे पर। वहां के निर्देशनुसार ही ये यहां डमरू बजाकर सबको नचा रहें हैं, जो कि देश की लोकतांत्रिक संघीय व्यवस्था के लिए बेहद खतरनाक है।

क्योंकि एक लोकतान्त्रिक ढंग से चुनी गयी सरकार को गिराने की जो कवायद की जा रही है, देश के बहुदलीय लोकतंत्र के लिए बेहद घातक है। दूसरे, हेमंत सोरेन की विधायकी को लेकर कुछ भी संज्ञान लेना झारखंड राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। देश का चुनाव आयोग ही इस मामले में आधिकारिक तौर से कोई निर्णय ले सकता है। जिसे लागू कराने मात्र का दायित्व राज्यपाल महोदय को निभाना होगा।

लेकिन गोदी मीडिया राज्यपाल को लेकर ऐसा हौवा बनाए हुए है मानो वे ही मुख्य कर्त्ता-धर्त्ता हैं और हेमंत सरकार की किस्मत का फैसला इन्हीं के हाथों में है।

झारखंड विधानसभा के विशेष सत्र को लेकर भी झारखंड गोदी मीडिया के अनुसार झारखंड के सियासी गलियारे में ‘रिसॉर्ट पॉलिटिक्स’ का समापन होने का कयास लगया गया था। जो पूरी तरह बेईमानी ही निकला और हेमंत सोरेन ने सदन में एक बार फिर से विश्वासमत हासिल करके साबित कर दिया कि राज्य में भाजपा विरोधी महागठबंधन की सरकार की सेहत पूरी तरह से ठीक है।

इस विशेष सत्र के शुरू होने से पहले ही भाजपा विधायकों ने सदन के द्वार पर खड़े होकर सरकार विरोधी पोस्टर लहराए और नारे लगाये। सदन में नहीं जाकर सत्र का पूरी तरह से बायकाट किया।

सत्र को संबोधित करते हुए हेमंत सोरेन ने अपने वक्तव्य में केंद्र की सरकार और प्रधान मंत्री की झारखंड सरकार विरोधी अलोकतांत्रिक भूमिका को लेकर तीखा विरोध प्रकट किया। काफी तल्खी भरे अंदाज़ में कहा कि- आदिवासी महिला को राष्ट्रपति बनाकर आदिवासी मुख्यमंत्री की कुर्सी छीनना, ‘मुंह में राम बगल में छुरी’ जैसा ही है। भाजपा पर खुला आरोप लगाते हुए कहा कि- ये लोग हमारी सरकार बनने के दिन से ही अस्थिर करने में लगे हुए हैं। हमारे विधायकों के खरीद फ़रोख्त के मुख्य आरोपी इन्हीं की पार्टी के असम के मुख्यमंत्री हैं। ये ऐसी स्थिति पैदा कर रहें हैं कि यह देश दूसरे विरोधी देश से क्या लड़ेगा जब देश के अन्दर राज्यों को ही आपस में लड़वाया जा रहा है।

इनके पास देश की जनता को देने के लिए पैसा नहीं है, लेकिन व्यापारियों के लाखों-करोड़ों के क़र्ज़ माफ़ कर देते हैं। उस पर से गैर भाजपा राज्य सरकारों पर “रेवड़ी” देने का आरोप लगाते हैं। देश की सभी संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग कर गैर भाजपा सरकारों को परेशान किया जा रहा है। प्रदेश भाजपा पर बोलते हुए कहा कि- विपक्ष के मनानीय नेताओं से मेरा अनुरोध है कि वे आएं और शांत होकर सदन की चर्चा में हिस्सा लें। विपक्ष के साथी कह रहें हैं कि सरकार के पास बहुमत है तो प्रस्ताव की क्या ज़रूरत है। तो ये बताएं कि जब चुनाव आयोग कहता है कि हमने अपना मंतव्य राज्यपाल को भेज दिया है तो क्यों राज्यपाल शांत बैठे हुए हैं। महामहिम को तो स्थिति स्पष्ट कर देनी चाहिए। यह सब न करके सरकार को अस्थिर करने की कोशिश की जा रही है, इसीलिए यह प्रस्ताव लाया गया है। विशेष सत्र में बोलते हुए भाकपा माले विधायक भी अपना विरोध दर्ज़ करते हुए कहा कि पिछले 15 दिनों से इस प्रदेश में एक अस्थिरता का माहौल बना दिया गया है। एक चुनी हुई सरकार को अपने विधायकों को खरीद-फरोख्त से बचाने के लिए भागकर बाहर जाना पड़ रहा है। अपने वक्तव्य में उन्होंने सरकार को भी याद दिलाया कि प्रदेश की जनता ने भाजपा को विदा कर झामुमो को मौका दिया है। तो आपने जनता से जो वादे किये हैं उन मुद्दों पर आगे बढ़ें और उन वादों को पूरा करने की दिशा में काम करें। सदन में सत्ता पक्ष से जुड़े कई अन्य विधायकों ने भी अपने विचार प्रकट किये। विधायक प्रदीप यादव ने भाजपा पर बोलते हुए कहा कि जब चोरी पकड़ी गयी है तो चोर मचाये शोर।

कई विधायकों ने राज्य में एक सही ‘स्थानीयता नीति’ बनाने की पुरजोर मांग उठाते हुए कहा कि- जब भी झारखंड के लोगों के जीवन पर कोई बाहरी हस्तक्षेप हुआ है तो यहां के लोगों ने ‘उलगुलान’ किया है।

बहरहाल, सत्ता पक्ष ने तो विशेष सत्र में अपनी सरकार का बहुमत एक बार फिर से सिद्ध करके लोकतान्त्रिक प्रक्रिया का पालन कर दिया है, लेकिन राज्य के राज्यपाल महोदय की लगातार चुप्पी और दिल्ली में बैठे आलाकमान के पास जाना किस प्रकार के लोकतंत्र का संकेत है, इस सवाल का उठना भी वाजिब ही है।

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