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झारखंड : 1 जनवरी को आज भी शोक दिवस के रूप में मनाते हैं कोल्हान के आदिवासी

आज के दिन आदिवासी समाज के लोग अपने अपने घरों और खरसांवां शहीद स्मारक पर इकट्ठे होकर इस दिन हुए सभी शहीदों की स्मृति को नमन  करते हैं।
झारखंड

 .... 2021 के 1 जनवरी को इस बार भी झारखंड प्रदेश स्थित कोल्हान क्षेत्र ( पुराना दक्षिण छोटानागपुर ) के आदिवासी समाज के लोग एक दूसरे से न तो ‘ हैप्पी न्यू ईयर’ कह रहे हैं और ना ही कोई जश्न मना रहे हैं। 1 जनवरी भले ही देश – दुनिया के लोगों के लिए उमंग और उत्साह का दिन होता है लेकिन उनके लिए यह भारी शोक का दिवस होता है।

कोल्हान क्षेत्र स्थित खरसांवां – सरायकेला के आलवे पूर्वी व पश्चिम सिंहभूम तथा चाईबासा जिलों के सभी आदिवासी समाज के लोग अपने अपने घरों और खरसांवां शहीद स्मारक पर इकट्ठे होकर इस दिन हुए सभी शहीदों की स्मृति को नमन  करते हैं। हालांकि यह पूरा इलाका हो आदिवासी बाहुल्य है लेकिन यहाँ कई छोटे आदिम जनजाति समुदायों समेत मुंडा – संताल – उरांव आदिवासी समुदाय के सारे आदिवासी 1 जनवरी पूरी सामाजिक एकजुटता के साथ शोक दिवस मनाते हैं । 

सनद रहे कि 1 जनवरी 1948 के दिन ही खरसांवा हाट बाज़ार में आज़ाद देश का पहला भयावह जनसंहार - गोलीकांड हुआ था। जिसमें बच्चे – बूढ़े और महिलाओं समेत सैकड़ों निहत्थे आदिवासियों को आज़ाद देश की पुलिस ने अंधाधुंध गोलियां चलाकर मार डाला था । इसे आज़ाद भारत का पहला जलियाँवाला बाग कांड भी सम्बोधन दिया जाता है ।    

 जानकारों के अनुसार उस समय आज़ाद देश में नए सिरे से राज्यों का पुनर्गठन किया जा रहा था और कोल्हान क्षेत्र के खरसांवा – सरायकेला इलाके में बसनेवाले तमाम आदिवासी इस पूरे इलाके को ओड़ीसा राज्य में विलय किए जाने का तीखा विरोध कर रहे थे । पूरा इलाका आदिवासी बाहुल्य होने के कारण उनकी मांग थी कि उन्हें भी एक स्वायत्त अथवा अलग राज्य दिया जाये । बताया जाता है कि उस समय भी अलग झारखंड राज्य का नारा गूंजा था । लेकिन खरसांवा और सरायकेला स्थानीय रियासतों के तत्कालीन राजाओं तथा वहाँ बसे रसूखदार और गैर आदिवासी ओड़िया भाषी समूहों तथा ओड़ीसा सरकार की साँठगांठ से इस पूरे इलाके को जबरन ओड़ीसा राज्य के अंतर्गत शामिल करा लिया । फलतः समस्त आदिवासी समुदाय में इसके खिलाफ तीखा आक्रोश व्याप्त हो गया । वे इसका मुखर विरोध कर तत्कालीन बिहार राज्य में ही रहने अथवा अपने लिए अलग से पृथक राज्य की मांग को लेकर आंदोलित हो उठे । केंद्र तथा ओड़ीसा सरकार के इस फैसले के विरोध में जगह जगह छोटी – बड़ी सभाओं का आयोजन कर गाँव गाँव से लोगों को लामबंद किया जाने लगा।

उसी क्रम में तय हुआ कि जिस 1 जनवरी से ये फैसला लागू होना है उसी दिन खरसांवा हाट में सभी लोग इकट्ठे होकर सभा करेंगे। जिसे विशेष तौर से उस समय देश के प्रख्यात हॉकी खिलाड़ी और आदिवासियों की मुखर आवाज़ जयपाल सिंह मुंडा संबोधित करेंगे । जिसने व्यापक आदिवासियों को इस कदर आंदोलित किया कि कोल्हान क्षेत्र के अलावे आस पास के कई अन्य क्षेत्रों के आदिवासी भी अपने पारंपरिक हथियरों और नगाड़ा – माँदर लेकर हजारों की तादाद में जुटने लगे।

उस दिन खरसांवा का साप्ताहिक हाट बाज़ार भी था। हाट से सटे मैदान में लोग शांतिपूर्ण तरीके से आ आकार सभा में शामिल हो रहे थे। सभा के मंच से आदिवासी गीत – नृत्य और भाषणों का कार्यक्रम जारी था। लेकिन कार्यक्रम के दो दिन पहले से ही खरसांवा राजा के बुलावे पर यहाँ पहुंचे ओड़ीसा सैन्य पुलिस की टुकड़ियों ने पूरे इलाके को छवानी में तब्दील कर पूरे माहौल को तनावपूर्ण बना रखा था।

बताया जाता है कि खरसांवा राजमहल जाने वाले जुड़े मुख्य मार्ग के बीचो बीच स्टेनगन रखकर उसके आगे एक सफ़ेद रखा खींच दी गयी थी और किसी के भी उधर आने जाने पर प्रतिबंध लगा से दिया गया था। हालांकि स्थानीय पुलिस मामले की नज़ाकत और आदिवासियों के मिजाज को जानने समझने के कारण चुपचाप थी और सबकुछ शांतिपूर्वक चल रहा था। लेकिन अचानक ओड़ीसा पुलिस सैन्यबल ने बिना किसी पूर्व चेतावनी के सभा में जुटी हजारों आदिवासियों की भीड़ पर मशीनगनों से अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। जिससे देखते ही देखते पूरा हाट बाज़ार निहत्थे आदिवासियों की लाशों और घायलों से पट गया। पूरे इलाके की नाकेबंदी कर गोली से घायल हुए लोगों को इलाज़ तक के लिए नहीं ले जाने दिया गया । यह भी बताया जाता है कि हाट – बाज़ार के बीच में बने विशाल कुंए में ही सभी लाशों और घायलों को डालकर उसे मिट्टी से पाट दिया गया । बाद में लोगों ने इसी कुंआ पर शहीद स्मारक बनाया। जानकार यह भी बताते हैं कि आज़ाद देश में सबसे पहली बार कर्फ़्यू यहीं लगा। इस कांड के विरोध में तत्कालीन संसद में जोरदार हंगामे के कारण सरकार ने एक उच्चस्तरीय जांच कमेटी की घोषणा की थी लेकिन उस कमेटी ने क्या जांच की अथवा क्या निष्कर्ष रिपोर्ट दिया आज तक किसी को कुछ पता नहीं है।

आदिवासी समुदाय में आज भी इस बात का गहरा दर्द है कि जालियाँवाला बाग कांड के दोषी जनरल डायर को तो सामाजिक निंदा और सज़ा तो मिली लेकिन इस कांड के ‘ डायर ’ को साफ बचा लिया गया।                             

आदिवासी भाषा – संस्कृति की वरिष्ठ शोधार्थी इंदिरा बिरुआ भी 1 जनवरी के दिन को अपने समाज के लिए एक काला दिवस मानते हुए मुख्यधारा के इतिहास में खरसांवा गोली कांड के शहीद आदिवासियों का वास्तविक इतिहास नहीं दर्ज़ किए जाने को आदिवासीविरोधी और मानुवादि सोच का परिचायक कहतीं है । उनकी कड़ी आलोचना है कि आज तक किसी भी सरकार ने नयी पीढ़ी के आदिवासी छात्र – युवाओं को उनके पुरखों की संघर्ष गाथा जानने – पढ़ने लायक कोई पुस्तक तक नहीं प्रकाशित कर सकी है ।

1 जनवरी को इस बार भी खरसांवा शहीद स्मारक पर सुबह से शाम तक लोगों का जमावड़ा लगा रहेगा। जहां आकर सभी अश्रुपूरित मन से अपने पुरखा शहीदों को नमन करते हुए फूल और तेल अर्पित करते हैं।

इस बार भी राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने यहाँ आकर खरसांवा के शहीदों को श्रद्धांजली दी है। 2017 में तत्कालीन भाजपा मुख्यमंत्री रघुवर दास के इस यहाँ आने पर आदिवासी समाज ने भारी विरोध प्रदर्शित करते हुए उन्हें जूते दिखाये थे तो यह स्थल आम लोगों के लिए बंद कर दिया गया था। लेकिन हेमंत सोरेन सरकार आने के पर पुनः यह स्मारक खोल दिया गया। 

1 जनवरी खरसांवा शहादत दिवस को याद करते हुए इसी क्षेत्र के निवासी तथा झारखंड आदिवासी बुद्धिजीवी मंच के वरिष्ठ आदिवासी प्रवक्ता प्रेमचंद मुर्मू जी की वर्तमान की हेमंत सरकार से भी काफी पीड़ा है। उनका कहना है कि भले ही झारखंड के आदिवासियों ने पिछली आदिवासी विरोधी भाजपा सरकार को राज्य की सत्ता से हटा दिया है। लेकिन हेमंत सरकार ने अपने एक बरस शासन के बाद भी आदिवासी समाज के अबुआ राज की आकांक्षाओं को पूरा करने का कोई ऐसा उल्लेखनीय कार्य नहीं किया है जिससे विश्वास कायम हो। आज भी शासन – प्रशासन का आदिवासी विरोधी नज़रिया और रवैया बदस्तूर जारी है। ऐसे में 1 जनवरी का खरसांवा शहीद कांड तो हमारे पुराने ज़ख़्मों को ही फिर से ताज़ा ही कर जाता है ..... !

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