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...उन्हें मलाला से भी आपत्ति है

झारखंड के एक सरकारी विद्यालय में पाकिस्तान की समाजसेवी मलाला यूसुफ़जई की तस्वीर लगाई गई थी लेकिन उसे कुछ लोगों के विरोध के बाद शनिवार को हटा दिया गया।
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झारखंड के रामगढ़ जिले में मांडू के एक सरकारी विद्यालय ने स्थानीय ग्रामीणों के विरोध के चलते अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त समाजसेवी नोबल पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई की तस्वीर हटा दी।

पुलिस ने बताया कि झारखंड के एक सरकारी विद्यालय में पाकिस्तान की समाजसेवी मलाला यूसुफजई की तस्वीर लगाई गई थी लेकिन उसे कुछ स्थानीय लोगों के विरोध के बाद शनिवार को हटा दिया गया है।

विद्यालय प्रशासन का कहना है कि छात्राओं को प्रेरित करने के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता की तस्वीर लगाई गयी थी। पुलिस के अनुसार जिले के मांडू ब्लॉक के कोल बेल्ट कुजू स्थित सरकारी विद्यालय में मलाला की तस्वीर लगाई गई थी। इसके बाद गांव के मुखिया जय कुमार ओझा ने पंचायत प्रतिनिधियों और स्थानीय लोगों के साथ इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया।

विद्यालय के प्रधानाचार्य रवींद्र प्रसाद ने बताया कि विद्यालय की एक शिक्षिका ने छात्राओं को प्रेरित करने के लिए उनसे मलाला की तस्वीर लगाने की अनुमति मांगी थी जिसके बाद उन्होंने यह तस्वीर लगाने के लिए अनुमति दी थी। उन्होंने कहा कि लेकिन जब पंचायत और स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया तो मलाला की तस्वीर हटा दी गयी।

ख़बरों के मुताबिक मलाला की पोस्टर लगाने वाली शिक्षिका मनीषा धवन का कहना है कि उन्होंने छात्राओं की प्रेरणा के लिए तस्वीर लगाई थी। तस्वीर लगाने का उद्देश्य शिक्षा के क्षेत्र में लड़कियों को मोटिवेट करना था। उन्होंने कहा कि जब पूरी दुनिया में मलाला के कार्याें की सराहना हुई और उन्हें नोबेल पुरस्कार भी मिला, तो इस पर विवाद नहीं खड़ा करना चाहिए।

तस्वीर साभार: नवभारत टाइम्स

उधर इसका विरोध करने वाले ओझा ने बताया कि पूरा विश्व जानता है कि पाकिस्तान भारत के खिलाफ आतंक फैलाने का काम करता है और भारत ने पाकिस्तान के कारण ही सीमाओं पर भारी कीमत चुकाई है, इसलिए पाकिस्तानियों से शांति सीखने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कहा कि ‘‘इसलिए स्थानीय लोगों के साथ मिलकर हमने इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था।’’

हालांकि आपको बता दें कि मलाला यूसुफजई सिर्फ़ पाकिस्तान की समाजसेवी नहीं हैं, बल्कि वे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लड़कियों की शिक्षा की प्रेरणा हैं और बच्चों व महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करती हैं। 2014 में नोबेल पुरस्कार के अलावा 2013 में उन्हें संयुक्त राष्ट्र का मानवाधिकार सम्मान भी मिला था। इसके अलावा भी उन्हें कई सम्मान प्राप्त हैं। वह पाकिस्तान के ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा के स्वात इलाके की रहने वाली हैं। तालिबान के फरमान के बावजूद उन्होंने लड़कियों को शिक्षित करने का अभियान चला रखा था जिससे नाराज़ होकर 2012 में स्कूल से लौटते समय तालिबानियों ने उन्हें गोली मार दी थी। बड़ी मुश्किल से उनकी जान बचाई जा सकी। तभी से वे पूरी दुनिया में लड़कियों की शिक्षा के लिए संघर्ष की मिसाल बन गईं। अब ऐसी शख्सियत से भी किसी को पाकिस्तानी होने की वजह से आपत्ति हो तो कुछ नहीं कहा जा सकता। आपको बता दें कि हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और संविधान निर्माता डॉ. अंबेडकर की मूर्तियां विश्व के कई देशों में लगी हैं।

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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