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केरल की “फर्स्ट बेल”: डिजिटल शिक्षा के लोकतंत्रीकरण के लिए व्यापक जन-आन्दोलन की शुरुआत

राज्य फ़िलहाल ऐतिहासिक जन आन्दोलन से रूबरू है, जो हमें सार्वजनिक शिक्षा को बचाने के साथ-साथ वर्चुअल शिक्षण के लोकतंत्रीकरण के बारे में भी महत्वपूर्ण सबक सिखाने में मददगार साबित हो सकता है।
Kerala’s “First Bell”: A Mass Movement

केरल में जून की शुरुआत ही मलप्पुरम में एक 14 वर्षीय बालिका की आत्महत्या की झकझोर देने वाली खबर के साथ हुई थी। इस घटना के पीछे की वजह कथित तौर पर राज्य सरकार द्वारा आयोजित आभासी कक्षाओं में अपनी भागीदारी के लिए जिन आवश्यक संसाधनों की आवश्यकता होती है, का न हो होना रहा था। केरल में कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने के लिए पिछले दो महीनों से कड़े प्रतिबंधों को अमल में लाया जा रहा था। इसकी क्षतिपूर्ति के लिए सरकार के शिक्षा मंत्रालय की ओर से सार्वजनिक स्कूल के विद्यार्थियों के लिए ऑनलाइन कक्षाएं आरंभ कर दीं गईं थी। पायलट सीरीज के तौर पर इसकी शुरुआत इस महीने की पहली तारीख को कर दी गई थी।

14 वर्षीय मृतका के पिता ने मीडिया से बातचीत के दौरान स्पष्ट किया था कि "घर पर टेलीविजन मौजूद है, लेकिन इन दिनों वह ख़राब पड़ा हुआ था। बेटी ने मुझसे इसकी रिपेयरिंग के लिए कहा था, जिसे मैं न करा सका। इसके साथ ही मैं स्मार्टफोन खरीद पाने की स्थिति में भी नहीं था।" अनुसूचित जाति की पृष्ठभूमि से आने वाले इस परिवार में पिता दिहाड़ी मजदूरी कर घर का पालन पोषण करते हैं।

उस दिन बाद में जाकर मुख्यमंत्री ने एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान सरकार की पूर्व घोषणा को ही एक बार फिर से दोहराया था। उनके अनुसार पाठ्यक्रम के जिस हिस्से को फिलहाल पढाया जा रहा है, उसे ट्रायल क्लासेस के तौर पर संचालित किया जा रहा है। इस ट्रायल हफ्ते भर बाद एक बार फिर से टेलीकास्ट किया जाएग। दूसरे राज्यों के विपरीत केरल ने इस सारी प्रक्रिया के लोकतंत्रीकरण के तौर पर एक कदम आगे बढ़कर चीजों को करने का फैसला किया था। इस ऑनलाइन शिक्षण व्यवस्था को सरकार द्वारा संचालित चैनल के जरिये सभी केबल टीवी नेटवर्क के माध्यम से टीवी पर प्रसारित करने की व्यवस्था की गई है। इसके जरिये इस बात को सुनिश्चित किया गया है कि इन्टरनेट के अलावा भी दूसरे विकल्पों के माध्यम से इन क्लासेस तक अधिक से अधिक लोगों तक इसकी पहुँच को बनाया जा सके।

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शैक्षणिक वर्ष 2020-21 के लिए केरल के वर्चुअल स्कूल शिक्षा कार्यक्रम को “फर्स्ट बेल” नाम दिया गया है। राज्य शिक्षा विभाग के अंतर्गत आने वाली विभिन्न एजेंसियों- केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड टेक्नोलॉजी फॉर एजुकेशन (केआईटीई), स्टेट काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एससीइआरटी), समग्र शिक्षा केरल (एसएसके) और स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ़ एजुकेशनल टेक्नोलॉजी (एसआईइट) द्वारा इसे संयुक्त रूप से कार्यान्वयन में लाया जा रहा है। सारे राज्य में पूर्व निर्धारित दैनिक टाईमटेबल, जिसका प्रचार-प्रसार व्यापक पैमाने पर किया जा रहा है, के जरिये इन कक्षाओं को केआईटीई- द्वारा संचालित विक्टर्स चैनल पर टेलीकास्ट किया जाता है। इसके अलावा इन क्लासेस को यू ट्यूब और अपने खुद के वेबसाइट पर भी अपलोड किया जा रहा है। कक्षा I से लेकर XII तक की कक्षाओं के लिए सप्ताह भर के लिए बाकायदा सत्र शुरू हो चुके हैं। यदि कोई चाहे तो इन क्लासेस को आसानी से डाउनलोड कर स्टोर करके बाद में देखने के लिए रख सकते हैं। राज्य सरकार द्वारा संचालित संसाधन केंद्र के तौर पर स्थापित अक्षय केंद्रों पर भी ये कक्षाएं उपलब्ध हैं, जिनकी भूमिका विभिन्न क्षेत्रों में राज्य और जनता के बीच में विभिन्न प्रकार की गतिविधियों और कार्यों को संचालित करने की रहती है।

इन ट्रायल कक्षाओं को शुरू करने से पहले एसएसके की ओर से व्यापक सर्वेक्षण संचालित किये गए थे। इन सर्वेक्षणों से इस बात की गणना की जानी थी कि ऐसे कितने सरकारी और सरकारी मदद से चलने वाले स्कूल हैं जिनके छात्रों के पास अपना खुद का इन्टरनेट कनेक्शन या टीवी उपलब्ध नहीं था। एक अनुमान के अनुसार इनमें 2,61,754 लाख से अधिक परिवार थे जिनके पास ये दोनों ही साधन उपलब्ध नहीं थे। यह कुल आबादी के लगभग 6% के बराबर  है। ब्रॉडकास्ट इंडिया सर्वे 2018 के अनुसार केरल में टीवी 93% घरों तक अपनी पहुँच बना सका था। बाद में जाकर यह समझ बनी कि जिस 14 वर्षीया बालिका को आत्महत्या जैसे कदम को अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ा था, उसका परिवार भी उक्त एसएसके सूची में आता था।

तकरीबन मार्च के आसपास से ही शिक्षकों को इस प्रयोग को सफल बनाने के लिए कड़ी ट्रेनिंग के दौर से गुजरना पड़ा था, और बाद में जाकर तकरीबन 82,000 शिक्षक इस परीक्षा में उत्तीर्ण हो सके थे।

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त्रिवेंद्रम में छात्र एक कक्षा में भाग लेते हुए| बी पी दीपू

केरल के शिक्षा मंत्री सी. रवीन्द्रनाथ का कहना था “1 जून से अगले शैक्षणिक वर्ष की शुरुआत हो जाती है और हम सब इस बात से अच्छी तरह से वाकिफ थे कि महामारी की वजह से इस बार छात्रों और अध्यापकों का स्कूल जा पाना असंभव होने जा रहा है। इस स्थिति से निपटने के लिए सरकार ने कई विकल्पों को लेकर अपनी पड़ताल की थी। उन सभी विकल्पों में आभासी कक्षाओं के संचालन का काम सबसे महत्वपूर्ण तौर पर निकलकर सामने आया है।”
उन्होंने आगे बताया कि "पहला सप्ताह एक ट्रायल पीरियड के बतौर चलाया जाएगा। हम लोगों इस बात की अपेक्षा करते हैं कि वे इन सात दिनों के दौरान हासिल अनुभवों के आधार पर हमें इस माध्यम की खामियों और संभावनाओं के बारे में अवश्य सूचित करेंगे। इसके साथ ही यह भी जानने को मिलेगा कि कितने लोग इस सुविधा से वंचित रह जा रहे हैं। हमें इस अभियान को सफल बनाने के लिए लोगों की सम्पूर्ण भागीदारी और समर्थन की आवश्यकता है।”

इस आत्महत्या की घटना ने केरल को पूरी तरह से झकझोर कर रख दिया था। इसके बाद तो प्रगतिशील संगठनों ने, जिन्होंने पहले से ही इस बात का फैसला कर रखा था कि वर्चुअल शिक्षा में अपने सहयोग के तौर पर वे समूचे राज्य में टेलीविजन सेट और अन्य उपकरणों के वितरण का काम करेंगे, ने अपने प्रयासों को तेज कर दिया था। डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया (डीवाईएफआई) और स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) जैसे युवा और छात्र संगठनों के कार्यकर्ताओं एवं तकनीकी क्षेत्र में केरल में मौजूद समूहों ने इसे जोरदार तरीके से आगे बढ़ाना शुरू कर दिया है। जल्द ही सरकारी और गैर-सरकारी एजेंसियों ने भी इस मसले में अपनी पहलकदमी लेनी शुरू कर दी थी, और स्थानीय विधायकों और सांसदों ने पार्टी लाइन से परे जाकर इस अभियान में बढ़चढ़कर हिस्सा लेना आरंभ कर दिया।

नागरिक समाज भी इसमें शामिल हो चुका था – और देखते ही देखते दूर-दराज के इलाकों तक में कॉमन स्टडी रूम बनकर तैयार होने लगे थे। जिन विद्यार्थियों के पास अपने कोई इलेक्ट्रॉनिक उपकरण नहीं थे, जिससे कि वे वर्चुअल कक्षाओं से सूचना ग्रहण के साथ-साथ कक्षा में उपस्थित हो सकते थे, उनके लिए लाइब्रेरीयों को इसके अनुरूप तब्दील कर दिया गया था।

मीडिया के समक्ष अपनी बातचीत में वित्त मंत्री और अर्थशास्त्री टीएम थॉमस इसाक ने कहा “शिक्षा के क्षेत्र में केरल ने जो प्रगति की है उसके बारे में सबसे अनूठी बात यह है कि इसे व्यापक तौर पर लोगों का भरपूर समर्थन मिल रहा है। हमारी ओर इसे इस बात के प्रयास लगातार चल रहे हैं जिससे कि हाशिए पर खड़े इलाकों और सामाजिक समूहों से आने वाले विद्यार्थियों को शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ने की नौबत न आये। हम सभी को इसे यहाँ पर सामूहिक तौर पर सुनिश्चित करना चाहिए। आम जन को पंचायत के अधिकारियों के साथ मिलकर अवश्य ही उन परिवारों की संख्या का पता लगाना चाहिए, जिनके पास अपने खुद के टीवी सेट तक नहीं हैं और उस इलाके में अभी तक स्थानीय स्टडी रूम स्थापित नहीं हो पाए हैं।”

इसके बाद जाकर सरकार की ओर से टेलीविज़न सेट और लैपटॉप के वितरण के काम को आर्थिक तौर पर समर्थन देने के प्रस्ताव की घोषणा सुनने को मिली थी। सार्वजनिक क्षेत्र की चिट-फण्ड और ऋण मुहैय्या कराने वाली कंपनी, द केरल स्टेट फाइनेंसियल इंटरप्राइजेज (केएसऍफ़ई) और स्थानीय स्व-शासन निकायों को यह जिम्मेदारी सौंपी गई कि वे प्रत्येक इलाके के मुद्दों को हल करने की जिम्मेदारी को वहन करें। इसाक के अनुसार, जिन उपकरणों की खरीद की आवश्यकता है, विशेष रूप से टेलीविज़न सेटों की खरीद के लिए केएसऍफ़ई की ओर से स्थानीय स्व-शासन निकायों के कोष में लगभग 75% का योगदान किया जाएगा।

इसके अलावा राज्य सरकार की ओर से विधायकों को कह दिया गया था कि वे अपने स्थानीय विकास निधि को टीवी और लैपटॉप की खरीद पर खर्च करें। कुदुम्बश्री को भी मदद पहुँचाने के लिए तैयार किया गया है। इसके अतिरिक्त स्कूलों को लैपटॉप, प्रोजेक्टर और टीवी सेट उपलब्ध कराए गए हैं, ताकि इन्हें उन लोगों को दिया जा सके जिन्हें इनकी जरूरत पड़ सकती है।

4 जून को केरल के उद्योग मंत्रालय की ओर से एक "टीवी चैलेंज" का शुभारम्भ किया गया, जिसमें आमजन को अपनी ओर से नए टेलीविज़न सेट भेंट करने के लिए आमंत्रित किया गया था। इन टीवी सेटों को बाद में उन विद्यार्थियों के बीच में वितरित किया जाना था जो खुद से अपने लिए इसे नहीं खरीद सकने की स्थिति में थे। उद्योग मंत्री, ईपी जयराजन ने लिखा "अभी भी कई ऐसे बच्चे हैं जो सरकार के वर्चुअल पाठ्यक्रम का हिस्सा बन पाने में खुद को असमर्थ पा रहे हैं। इस चुनौती में शिक्षा विभाग को लगभग 2000 नए टीवी सेट उपलब्ध कराने की चुनौती है।" कुछ ही दिनों के भीतर कई स्थानीय व्यवसायी अपने नजदीकी जिला उद्योग केन्द्रों में टीवी सेटों में अपने योगदान को लेकर आगे आये। वहीँ कांग्रेस पार्टी के कोच्चि के सांसद हिबी एडेन ने अपने निर्वाचन क्षेत्र में एक "टैबलेट चैलेंज" को हरी झण्डी देने का काम किया है।

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 दिलचस्प तथ्य यह है कि यह सब एक ऐसे समय में हो रहा है जब देश के बाकी हिस्सों में छात्रों की ओर से ऑनलाइन शिक्षा और परीक्षाओं की विशेष प्रकृति को लेकर विरोध प्रदर्शन देखने को मिल रहे हैं। नई दिल्ली स्थित प्रगतिशील छात्रों और शिक्षकों के संगठनों की ओर से "डिजिटल डिवाइड" के खतरों का हवाला देते हुए, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा परीक्षाओं को अब ऑनलाइन कराने के फैसले का विरोध हो रहा है और मुखरता से इसके खिलाफ प्रचार अभियान संचालित किये जा रहे हैं। 20 मई को समूचे देश भर में छात्र संघों और संगठनों की ओर से एक ऑनलाइन प्रोटेस्ट "सार्वजनिक शिक्षा को बचाओ" का आयोजन किया गया था।

एक ऐसे समय में जब आज भी आबादी के बड़े हिस्से के पास इन्टरनेट तक पहुँच नहीं बन सकी है, ऐसे में केंद्र सरकार द्वारा शिक्षा के ऑनलाइन हस्तांतरण पर जोर दिए जाने वाले प्रयासों का भी विरोध करना होगा। वहीँ दूसरी ओर केरल में चल रहे प्रयोग के इन सबसे भिन्न होने के पीछे की वजह यह है कि यहाँ पर शिक्षा को जहाँ एक ओर वर्चुअल माध्यम में स्थानांतरित किया जा रहा है, वहीं साथ ही इस बात के भी सचेत प्रयास जारी हैं कि विकेंद्रीकृत प्रक्रिया के माध्यम से इस बदलाव को सभी के लिए सर्वसुलभ बनाया जा सके। कक्षाध्यापकों और प्रधानाध्यापकों को इस बात की जिम्मेदारी दी गई है कि वे उन विद्यार्थियों के बारे में जानकारी मुहैय्या कराकर दें, जिनके पास इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों तक पहुंच नहीं बन पाई है। केरल सरकार ऑनलाइन परीक्षा आयोजित किये जाने के पक्ष में भी नहीं है क्योंकि इसके लिए कई अन्य तैयारियों की आवश्यकता पड़ेगी।

केरल के डिजिटल और वर्चुअल जगत को देखें तो यहाँ हाल के दिनों में बड़ी तेजी के साथ कई प्रगतिशील क़दम उठाये गए हैं। इंडियन कल्चरल फोरम के साथ अपनी बातचीत में मीना टी पिल्लई का कहना था कि "डिजिटल क्षेत्र में उसके लोकतांत्रिक संभावनाओं के दोहन के संबंध में केरल ने जिस दूरदर्शी उत्साह को बढाने वाले प्रयास किये हैं, उसे देखते हुए वह शेष भारत से काफी आगे निकल चुका है। वर्ष 2019 में ही राज्य की ओर से इन्टरनेट को न्यूनतम मानवाधिकार के तौर पर घोषित कर दिया गया था, जो कि शेष राष्ट्र की तकनीकी आकांक्षाओं से काफी आगे की चीज साबित हो चुकी थी।“ पिल्लई केरल विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं और वे उन चंद लोगों में से हैं जिन्होंने इस विषय पर गहन अध्ययन कर रखा है।

वे आगे कहती हैं "शायद ऐसा इसलिए संभव हो सका क्योंकि एक समाजवादी समझ के मुताबिक वंचितों और साधनहीन का भी डिजिटल पर उतना ही अधिकार है जितना कि किसी अन्य का, और यह कि जीवन और आजीविका को डिजिटल लोकतंत्र की अवधारणा के भीतर पुनरावलोकन की आवश्यकता है, जिसने राज्य को नए प्रतिमानों को हासिल करने के लिए प्रेरित करने का काम किया है।""

वायनाड जिला अपने आप में केरल के उत्तर में स्थित जिलों में से एक है। सर्वेक्षण के मुताबिक बिना टीवी या अन्य उपकरणों वाले परिवारों की संख्या यहाँ पर सबसे अधिक है। यहां इनकी संख्या 21,653 होने का अनुमान है, जोकि जिले में कुल छात्रों की संख्या का 15% है। कलपेट्टा के स्थानीय विधायक सीके ससीन्द्रन और अन्य की मदद से यहाँ पर लगभग 9,200 कॉमन स्टडी सेंटर स्थापित किए जा चुके थे। समूचे राज्य में यदि सबसे बड़ी संख्या में जनजातीय परिवार कहीं हैं, तो उनकी बसाहट यहीं पर है। ससीन्द्रन के अनुसार इन घरों में बिजली कनेक्शन और टीवी सेट की उपलब्धता को भी सुनिश्चित कराया गया है। सुखद पहलू यह है कि राज्य के कई हिस्सों में बिना किसी सरकारी मदद के भी ऐसे कई कॉमन स्टडी रूम आमजन की पहलकदमियों के चलते खुल चुके हैं। इसी प्रकार के कदम तटीय क्षेत्रों में मत्स्यफेड या सरकार द्वारा संचालित मत्स्य पालन सहकारी संघ द्वारा भी उठाये गए हैं। इसाक के अनुसार इसकी शुरुआत परिवारों की गिनती के साथ हुई थी, जिसे समूचे तटीय क्षेत्र में बिना पर्याप्त सुविधाओं के केएसएफई के समक्ष प्रस्तुत करना शामिल था।

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एक कॉमन क्लासरूम

पिल्लई कहते हैं "100% साक्षरता का बहुप्रतीक्षित सपना पाले, जिसने केरल को इतना अनूठा बना डाला है से लेकर हर घर में इंटरनेट कनेक्टिविटी की नई आकांक्षाओं को लिए, बीस लाख गरीब परिवारों के लिए मुफ्त इंटरनेट के लक्ष्य ने केरल फाइबर ऑप्टिक नेटवर्क की स्थापना को परवान चढाने का काम किया है। यह केरल स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड (केएसइबी) और केरल स्टेट आईटी इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड के बीच का एक संयुक्त उद्यम है। यह, केरल द्वारा स्थानीय प्लानिंग को ध्यान में रखकर उसके साथ ही विकेंद्रीकरण के निरंतर प्रयासों के तहत उम्मीद की जानी चाहिए कि यह सामाजिक विभाजन को समतल करते हुए डिजिटल तौर पर विभाजित दूरी को सार्वजनिक शिक्षा के माध्यम से जोड़ने में मदद कर सकता है”।

आज सारे केरल में करीब 43-45 लाख छात्र अपने दैनिक पाठ्यक्रम के लिए काईट विक्टर्स को ट्यून इन कर रहे हैं। लेकिन इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि वर्चुअल/दूरस्थ शिक्षा कभी भी क्लासरूम शिक्षा का विकल्प नहीं बन सकती, क्योंकि क्लासरूम के भरेपूरे माहौल वाली बात कभी भी वर्चुअल शिक्षा में नहीं हो सकती है। राज्य में कई विद्यार्थियों के बीच में उपरोक्त प्रयास पहुँचने अभी बाकी हैं और इसमें अभी और समय लग सकता है। प्रगतिशील छात्र संगठनों ने इस बात को दुहराया है कि सरकारों का प्राथमिक उद्देश्य देश में गहराई से जड़ जमाये डिजिटल विभाजन को ध्यान में रखते हुए और अधिक स्कूलों, कक्षाओं और बेहतर शिक्षा के क्षेत्र में बुनियादी ढांचे को खड़ा करने पर होना चाहिए।

इंडियन कल्चरल फोरम ने केन्द्रीय विश्वविद्यालय केरल में शिक्षा के प्रोफेसर अमृत जी कुमार से बात की, जिनका कहना था "यह मानकर चलना कि डिजिटल दूरी को डिजिटल टूल्स के जरिये खत्म किया जा सकता है, खामखयाली से अधिक कुछ नहीं है। इसमें उपकरणों की गुणवत्ता, बिजली की उपलब्धता, इंटरनेट कनेक्टिविटी, माता-पिता का तकनीकी ज्ञान, लम्बे समय तक संपर्क बनाए रखने की क्षमता भी इसके हिस्से के तौर पर है। डिजिटल दूरी अपनेआप में एक जटिल और आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और क्षेत्रीय विभाजन जटिल सम्मिश्रण है।

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सी रवींद्रनाथ | वेणुगोपाल/डेक्कन क्रॉनिकल

मलप्पुरम में स्कूली छात्रा की आत्महत्या के दिन, सीएम पिनाराई विजयन ने मीडिया से मुखातिब होते हुए इस बात को दोहराया था कि ऑनलाइन की ओर झुकाव "अस्थायी" है और सरकार को उम्मीद है कि जल्द से जल्द स्कूलों को एक बार फिर से खोल दिया जायेगा।

पहुंच बना सकने के मुद्दे के साथ ही इस माध्यम ने डिजिटल स्पेस से जुडी विशिष्टताओं से सम्बन्धित कुछ अन्य सामाजिक-राजनैतिक समस्याओं को भी पैदा किया है। ट्रायल क्लासेस के प्रसारण के एक दिन बाद ही कुछ महिला शिक्षकों के खिलाफ साइबर उत्पीड़न के कई मामले प्रकाश में आने लगे थे। नव निर्मित “फैन पेज” के माध्यम से महिलाओं के स्क्रीनशॉट लेकर प्रसारित किये जाने लगे थे। सामाजिक न्याय विभाग की ओर से इस मामले पर स्वतः संज्ञान लिया जा चुका है।

इंडियन एक्सप्रेस के साथ अपनी बातचीत में काईट के सीईओ के अनवर सादात ने बताया "शुरू से ही हम इस तथ्य को लेकर पूरी तरह से स्पष्ट थे कि यह स्कूल का विकल्प नहीं हो सकता। इसका मकसद विद्यार्थियों को शैक्षणिक वर्ष में प्रवेश करने से पहले उस अंतर को भरने में मदद करना भर है।"

हालांकि एक ऐसे समय में जब देश के तमाम भागों में अधिकांश स्कूली छात्रों के लिए पठन-पाठन का काम पूरी तरह से ठप पड़ा हुआ है, जबकि केंद्र सरकार बिना किसी पर्याप्त आधारभूत ढाँचे को खड़ा किये सपनों के महल खड़े किये जा रही है, ऐसी स्थिति में केरल निश्चित तौर पर बेहद अच्छी स्थिति में खड़ा नजर आता है। राज्य फिलहाल एक ऐतिहासिक जन आंदोलन के बीच से गुजर रहा है, जो हमें सार्वजनिक शिक्षा को बचाने के साथ-साथ वर्चुअल शिक्षा के लोकतंत्रीकरण के बारे में महत्वपूर्ण सीख दे सकता है।

मुकुलिका आर इंडियन कल्चरल फोरम के एडिटोरियल कलेक्टिव की सदस्य हैं।

सौजन्य: इंडियन कल्चरल फोरम

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें-

Kerala’s “First Bell”: A Mass Movement to Democratise Digital Education

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