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मणिपुर से जान बचाकर निकलने वाले कुकी समुदायों को नहीं मिल रहा उचित मुआवज़ा

वर्षों से शांतिपूर्ण तरीके से साथ-साथ रह रहे मैतेई और कुकी समुदाय के लोगों का मानना है कि राजनीति ही इस हिंसा के लिए ज़िम्मेदार है।
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3 मई को, मणिपुर के कई जिलों में मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग के विरोध में एक 'आदिवासी एकजुटता मार्च' निकाला गया था। ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर ने इसे आयोजित किया और नतीजतन रैली आगजनी और तोड़फोड़ की खबरों के साथ चुराचांदपुर, मोइरांग, मोटबंग और मोरेह में हिंसक हो गई थी।

पांच दिन बाद मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने इंफाल में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि हिंसा में 60 लोग मारे गए, 231 घायल हुए, 1,700 घरों को जला दिया गया और 35,000 लोग विस्थापित हुए हैं।

सैकड़ों घरों को जला दिया गया और लूट लिया गया, हेब्रोन वेंग और पड़ोसी कॉलोनियों में कुकी समुदाय के अधिकांश लोग विभिन्न जिलों या राज्यों में अपने रिश्तेदारों के यहां भागने को मजबूर हो गए।

यह घर कथित तौर पर एक पूर्व मंत्री का है जो कुकी समुदाय से हैं

चुराचांदपुर रैली का हिस्सा रहीं लीजा ने न्यूज़क्लिक को घटनाओं के बारे में बताया। “रैली समाप्त होने के बाद सभी लोग अपने गांव लौट गए थे। शाम को, एंग्लो सेंटेनरी कुकी गेट के सामने तीन जले हुए टायर दर्शाते हुए एक सोशल मीडिया पोस्ट प्रसारित हुई। जल्द ही, रैली में भाग लेने वाले कई लोग मौके पर पहुंच गए।'

लीज़ा का घर घटनास्थल से बमुश्किल एक किलोमीटर की दूरी पर था। उनको यकीन था कि स्थिति नियंत्रण में रहेगी। “लेकिन जब पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने का आदेश दिया, तो मैतेई लोगों ने कुकी गेट पर ‘तोड़फोड़’ का विरोध कर रहे आदिवासियों को पीटना शुरू कर दिया। जैसे ही यह खबर जंगल की आग की तरह फैली, कुकी और मैतेई ने एक-दूसरे की दुकानों और घरों को जलाना शुरू कर दिया। आखिरकार, पुलिस ने हिंसा को तब रोक दिया।”

हालांकि लिजा के मुताबिक, पुलिस के जाने के बाद हिंसा और बढ़ गई। चश्मदीदों का कहना है कि शुरुआत में कुकी बहुल चुरचंदपुर और मैतेई बहुल बिष्णुपुर के बीच के एक पड़ोसी गांव कांगवई को निशाना बनाया गया था।

स्थानीय डाकघर में कार्यरत टोपई उस दिन शाम करीब छह बजे घर लौट रहे थे। रात के खाने के बाद, उन्होंने "जन लामबंदी के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला विशेष मैतेई शोर" को सुना। "मैतेई अपने समुदाय को लामबंद करने के लिए अक्सर भारी वस्तुओं से बिजली के खंभों को पीटते हैं।"

टोपई को पता था कि उन्हें अपने पांच लोगों के परिवार की रक्षा करनी है, जिसमें उनकी 70 वर्षीय मां भी शामिल है, जो गठिया की मरीज हैं। परिवार ने गेट बंद कर दिए, खिड़कियां बंद कर दीं, लाइट बंद कर दी और चुपचाप बैठ गए। वे नारेबाजी और गोलियों की आवाज सुन रहे थे।

रात करीब 10.30 बजे परिवार को एहसास हुआ कि भीड़ करीब है क्योंकि डरावनी आवाजें तेज हो गईं थी। उन्होंने आवाज़ें सुनीं कि, "वे कह रहे थे कि 'कुकी लोग मणिपुरी नहीं हैं' और 'उन सभी को मार डालो।"

जब उनके घर के सामने की इमारत में आग लगा दी गई तो परिवार ने भागने का फैसला किया। जैसे ही परिवार पिछले दरवाजे की ओर भागा, उन्होंने देखा कि अन्य घरों में तोडफ़ोड़ की जा रही है। “हम जानते थे कि हमारे घर में तोड़फोड़ की जाएगी या उसे जला दिया जाएगा। हेब्रोन वेंग कॉलोनी के अन्य कुकियों की तरह टोपई और उनके परिवार ने अपने धान के खेतों में रात बिताई।

टोपई ने कहा कि, परिवारों ने सुबह करीब 86 बटालियन के सीआरपीएफ कैंप में शरण ली। “भीड़ ने घरों को लूटा और उन्हें जला दिया। निकटतम पुलिस स्टेशन केवल पांच मिनट की दूरी पर होने के बावजूद अग्निशमन विभाग और पुलिस ने हमारा फोन नहीं उठाया।”

फोटोग्राफर ब्रेट और उनका परिवार, जिसमें उनकी पांच महीने की गर्भवती बहन भी शामिल है, भी हिंसा शुरू होने पर अपने घरों के अंदर बंद थे।

ब्रेट ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, “वे मेरे घर पर पथराव कर रहे थे, जब हम पीछे के गेट से और धान के खेतों से होते हुए स्प्रिंग वैली कॉलोनी तक पहुंचे, जहां एक पूर्व कुकी कमांडर ने हमें रात बिताने के लिए पनाह दी। मैं दूर से भीड़ को घरों को आग के हवाले करते और हमलावर सशस्त्र भीड़ को देख सकता था।"

अगला दिन यानी 4 मई, हेब्रोन वेंग और वैफेई एन्क्लेव और स्प्रिंग वैली जैसे पड़ोसी आवासीय इलाकों के निवासियों के लिए अधिक भयावह और दर्दनाक दिन था। चश्मदीदों ने कहा कि चर्चों में तोड़फोड़ की गई और घरों में लूटपाट की गई और आग लगा दी गई क्योंकि पुलिस कथित तौर पर मूक बनी रही। चौंकाने वाली बात यह है कि भीड़ में वे लोग भी शामिल थे जिनसे कुकी रोजाना मिलते थे।

ब्रेट और उनके परिवार ने एक एस्कॉर्ट की व्यवस्था की और सीआरपीएफ कैंप के लिए रवाना हो गए। रास्ते में, ब्रेट ने देखा कि परिवारों को भागने से रोकने के लिए अवरोधक लगाए गए हैं। “कैंप में पहले से ही सैकड़ों लोग मौजूद थे। मुझे अपनी गर्भवती बहन के लिए तंबू के अंदर एक बिस्तर मिल गया था।”

ब्रेट ने कहा कि, उसने देखा कि कि उसकी सात महीने की गर्भवती भाभी शिविर में मौजूद थी। "भीड़ के हमले के दौरान उसे रिम्स अस्पताल से बचाया गया था। जब हमें पता चला कि हमारे घर में आग लगा दी गई तो अगले दिन उसकी मौत हो गई। मुझे घटना का एक वीडियो मिला है।”

शिविर में "दयनीय स्थिति" का उल्लेख करते हुए, टोपई ने कहा कि, "सुबह का खाना नहीं मिला था। बाद में, इस्तेमाल की जा चुकी पॉलीथिन की थैलियों में केवल मुट्ठी भर अधपके चावल और दाल परोसे गए।

जो खाना टोपई और उसका परिवार शिविर के अन्य लोगों के साथ पॉलिथीन बैग पर खा रहे थे।

चूंकि मच्छर काट रहे थे इसलिए हम खुले में सो रहे थे। ”नाम न छापने की शर्त पर कई परिवारों ने आरोप लगाया कि सीआरपीएफ कर्मियों की उपस्थिति के बावजूद रहने की जगह काफी अस्वच्छ थी।

टोपई और उनका परिवार मिजोरम में रहता है जबकि ब्रेट और उनकी बहन अपने माता-पिता के साथ बेंगलुरु में रहते हैं। इंफाल से गुवाहाटी के लिए महंगी उड़ान टिकटों पर पैसे खर्च करने के बारे में बताते हुए टोपई ने कहा कि, “पांच टिकटों की सामान्य कीमत 15,000 रुपये होती थी। लेकिन हमें अपने कुछ रिश्तेदारों और दोस्तों की मदद से 54,000 रुपये देने पड़े। वंचित लोग ऐसी उड़ानों का खर्च नहीं उठा सकते हैं?”

मैतेई और कुकी वर्षों से शांति से रह रहे थे। लगभग सभी हिंसा प्रभावित लोगों ने न्यूज़क्लिक को बताया कि राजनीति के कारण मतभेद पैदा हुए हैं। कुकीज़ के अनुसार, उनके "मैतेई दोस्तों ने उनकी मदद की" और "समुदाय के ज़्यादातर लोग बुरे नहीं हैं"। कुकी लोगों ने राज्य सरकार पर समुदाय की अनदेखी करने का आरोप लगाया।

उदाहरण के लिए, एक मैतेई मित्र जो रिम्स अस्पताल में डॉक्टर है, उन्होंने शिविर में टोपई को बिस्कुट और पानी दी। इसी तरह, जब ब्रेट अपनी गर्भवती बहन की मदद करने के लिए संघर्ष कर रहे थे और अपने इलाके के बारे में जानकारी हासिल करने की कोशिश कर रहे थे, तब उनके मैतेई और नागा दोस्तों ने उनकी मदद की।

नागाओं, जिनके चर्च भी जलाए गए थे, को डर है कि वे अगले निशाने पर होंगे। हेब्रोन वेंग के सबसे अधिक प्रभावित इलाके के निवासी रॉबिन ने कहा कि, “हिंसा ने लगभग सभी कुकी घरों को नष्ट कर दिया है। एक पैटर्न है- वे अपने पिक-अप ट्रक लेते हैं, घरों को लूटते हैं और फिर आग लगा देते हैं। कुकी घरों को नष्ट करने के बाद, वे जल्द ही हमें निशाना बना सकते हैं। इलाके में करीब 100 नागा परिवार हैं और हम जल्द ही यहां से चले जाएंगे।'

न्यूज़क्लिक ने चुरचंदपुर के मैतेई लोगों से भी बात की। टोरबंग गांव के मूल निवासी बॉबी ने कहा कि, 'दोनों समुदाय शांतिपूर्वक रहते आए हैं। हम एक दूसरे के त्योहारों में शामिल होते हैं। हिंसा खराब प्रशासन और उपद्रवियों को खुली छूट देने के कारण हुई है।”

एक वरिष्ठ नागरिक जो कैंसर के मरीज भी हैं, उन्हें किसी तरह मुहल्ले से निकाला गया।

बॉबी और उसके दोस्त भीड़ में शामिल युवा मैतई को हिंसक गतिविधियों में शामिल नहीं होने के लिए मनाने की कोशिश कर रहे हैं, और समझा रहे हैं कि इससे इलाके में "शांति भंग हो सकती है।"

मुख्यमंत्री सिंह ने, मृतकों के परिवारों को 5 लाख रुपये, गंभीर रूप से घायलों को 2 लाख रुपये और मामूली रूप से घायलों को 25,000 रुपये का मुआवजा देने का वादा किया है। सरकार ने हिंसा में घर खोने वाले लोगों को घर देने और 2 लाख रुपये के मुआवजे का भी वादा किया है।

लेकिन हमले का शिकार टोपई असहाय महसूस कर रहा है। "मुझे नहीं लगता कि हम वापस आ पाएंगे या नहीं। यदि हम वापस जाते हैं तो हम हमारी जमीन और घर बेचने के लिए जाएंगे।”

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।

No Compensation Enough for Traumatised Kukis Fleeing Manipur

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