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लॉकडाउन से लद्दाख के 40% परिवारों की आमदनी ज़ीरो, 90% लोगों के जन धन खातों में नहीं पहुंचा पैसा

जुलाई में 106 घरों के बीच चलाए गए एक शोध के दौरान सर्वेक्षण में पाया गया है कि वास्तविक हालात यह हैं कि लोग न्यूनतम मज़दूरी के भुगतान की गारंटी के साथ अपने लिए रोज़गार की मांग कर रहे हैं।
लॉकडाउन
प्रतीकात्मक तस्वीर

25 मार्च को अचानक से लॉकडाउन की घोषणा के बाद लद्दाख में किये गए एक शोधपरक सर्वेक्षण से जानकारी मिली है कि अप्रैल से जून के बीच में 40% परिवारों की आय पूरी तरह से जीरो हो चुकी थी। वहीं जिन 106 परिवारों को इस शोध में शामिल किया गया था, उनकी प्रति व्यक्ति औसत आय लॉकडाउन से पूर्व की तुलना में मात्र एक चौथाई रह गई थी। हालाँकि इस नमूने का आकार इतना बड़ा नहीं था कि इसे समूचे लद्दाख की आबादी के प्रतिनिधित्व के तौर पर स्वीकार कर लिया जाए, लेकिन इस सर्वेक्षण से इस हिमालयी क्षेत्र में नवगठित केंद्र शासित प्रदेश की जमीनी हाकीकत की एक झलक तो अवश्य ही मिल जाती है।

फोन के माध्यम से संचालित इस सर्वेक्षण में, जिसे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के शोधार्थियों के तत्वावधान में चलाया गया, को इस बात का भी पता चला है कि लॉकडाउन के चलते तकरीबन एक-चौथाई परिवारों की आर्थिक स्थिति बेहद दयनीय बनी हुई है और वे भारी कर्जों के बोझ में इस बीच दब चुके हैं। लोगों के बीच नौकरी को लेकर गहरी असुरक्षा भाव बना हुआ है और अपनी आय के बारे में वे अनिश्चितताओं से घिरे हुए हैं। कुछ नहीं तो कम से कम 45% गरीब परिवारों से आने वालों का कहना था कि उन्हें किसी भी प्रकार का मुफ्त राशन नहीं मिला है, वहीं 80% को मुफ्त गैस सिलिंडर नहीं मिला है। जबकि 90% का कहना था कि उनके जन धन बैंक खातों में तीन महीने बीत जाने के बावजूद भी पीएम गरीब कल्याण योजना के तहत घोषित पैसा नहीं मिला है।

लद्दाख के आम लोगों की आकांक्षाओं में रोजगार सृजन और न्यूनतम मजदूरी की गारंटी, नकद हस्तातंरण (प्रत्यक्ष लाभ के हस्तांतरण या डीबीटी), ब्याज और ऋण छूट के साथ रोजगार सृजन, पर्यटन क्षेत्र और छोटे व्यवसायों को समर्थन देने और बुनियादी स्वास्थ्य सेवा के ढांचे में सुधार करना शामिल है।

टेलीफोन द्वारा इस सर्वेक्षण को इसी माह जुलाई में संचालित किया गया, जिसमें कोविड-19 के चलते अप्रैल, मई और जून माह में लॉकडाउन से उपजी स्थितियों का जायजा लेने की कोशिश की गई। इसमें 106 परिवारों के कुल 577 लोगों से सम्पर्क साधा गया। जिन लोगों से हमने बातचीत की उनमें से 18 महिलाएं और 88 पुरुष शामिल थे, जिनकी उम्र 20 वर्ष से लेकर 81 वर्ष के बीच की थी। इनमें से 53 बौद्ध, 39 मुस्लिम, 13 हिन्दू और एक ईसाई परिवार से थे। 90 परिवार अनुसूचित जनजाति (एसटी), पाँच अनुसूचित जाति और 11 परिवार अन्य (सामान्य) जाति प्रष्ठभूमि से थे। नमूने में पीएचडी धारक सहित चार लोग निरक्षर, 25 बीच में ही स्कूली शिक्षा अधूरी छोड़ चुके लोग, तो 23 लोगों की शैक्षणिक स्तर 10वीं पास, जबकि 13 लोग 12वीं पास, 29 ग्रेजुएट और 12 लोग ऐसे थे जो स्नातकोत्तर या अन्य उच्च शिक्षा ग्रहण किये हुए लोग थे।

बातचीत में शामिल लोग विभिन्न व्यावसयिक पृष्ठभूमि से थे, जिसमें एडवेंचर खेलों से जुड़े खिलाड़ी, एक बेकरी वाला, व्यवसायी, बढ़ई, केबल टीवी ऑपरेटर, केमिस्ट, क्लर्क, मोची, ड्राईवर, दुकान मालिकों, किसानों, सरकारी कर्मचारियों, गेस्टहाउस, होटल और रेस्तरां मालिक, मजदूर, राजमिस्त्री, पेंटर, सेवा निवृत सेना और सरकारी कर्मचारी, अध्यापक, ट्रेवल एजेंट, टीवी मैकेनिक, फल सब्जी विक्रेता इत्यादि शामिल थे। उनमें से अधिकतर का कहना था कि लॉकडाउन से पहले वे लोग लेह, कारगिल, द्रास आदि में काम करते थे। इनमें से 16 प्रवासी मजदूर ऐसे भी थे जो बिहार, पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, कश्मीर, नेपाल और तिब्बत से थे, जबकि बाकी सभी लोग मूल रूप से लद्दाख के ही रहने वाले थे।

लॉकडाउन से पहले इन 106 परिवारों की औसत मासिक आय 87,500 रूपये से अधिक की थी। इनमें से 27 परिवारों की मासिक आय 1 लाख रूपये से अधिक की थी, जबकि नमूनों में शामिल सिर्फ 15 परिवारों के पास ही मासिक आय 20,000 रूपये से कम थी। मौटे तौर पर हर पाँचवे परिवार की आर्थिक स्थिति लॉकडाउन पूर्व की 4,600 रूपये प्रति व्यक्ति औसत आय से कम थी, वहीँ एक अन्य पांचवे हिस्से की आय 4,600 रूपये से लेकर 7,000 रूपये प्रति व्यक्ति औसत मासिक आय थी, जबकि दूसरे पाँचवे हिस्से के परिवारों की प्रति व्यक्ति औसत आय 7,000 रूपये से लेकर 15,000 रूपये के बीच में थी। तीसरे पांचवे हिस्से की 15,000 से लेकर 25,000 रूपये के बीच, और बाकी के पांचवे हिस्से के परिवारों की प्रति व्यक्ति औसत आय 25,000 रूपये प्रति माह से अधिक की थी।

लॉकडाउन की वजह से इन 106 परिवारों की औसत आय एक तिहाई से भी कम हो चुकी है, जिसमें से 42 परिवार (40%) ऐसे हैं, जिन्होंने बताया कि अप्रैल, मई और जून के महीनों के दौरान उनकी आय शून्य हो चुकी है। इसमें शामिल परिवारों की सदस्य संख्या एक से लेकर 14 सदस्यों तक की थी।
 
प्रति व्यक्ति आय के लिहाज से इन परिवारों की मासिक आय लॉकडाउन पूर्व के दौरान 19,000 रूपये प्रति व्यक्ति थी, जोकि लॉकडाउन के दौरान महज 4,833 रूपये ही रह चुकी है। स्थानीय सब्जी विक्रेता जो रोजाना 3,000 रूपये तक की कीमत की सब्जियाँ बेचा करते थे, आज कीमतों में गिरावट के चलते उनकी कमाई मात्र 700-800 रूपये प्रति दिन की रह गई है। जबकि दूसरी तरफ लॉकडाउन के दौरान इन परिवारों की प्रति व्यक्ति औसत खर्च में सिर्फ 22.5% की ही गिरावट संभव हो सकी है। तकरीबन 25% परिवारों का कहना था कि इस दौरान अपने मासिक खर्चों में चाहकर भी वे कटौती नहीं कर पाए थे, जबकि कुछ परिवारों ने सूचित किया है कि लॉकडाउन के दौरान उनके खर्चों में बढ़ोत्तरी ही हुई है।

25% से ज्यादा परिवार ऐसे हैं जिनके यहाँ इस लॉकडाउन के दौरान ऋणग्रस्तता में इजाफा देखने को मिला है, जबकि बाकियों का कहना था कि उन्होंने किसी तरह अपनी बचत में से गुजारा चलाया। नमूने में शामिल 106 परिवारों में से सिर्फ 12 परिवार ही ऐसे थे जिन्होंने लॉकडाउन के दौरान अपनी आय को स्थिर बनाए रखने में कामयाबी हासिल की है- क्योंकि इनमें से ज्यादातर सरकारी कर्मचारी हैं।

अगले छह महीनों में संभावित आय के बारे में पूछे जाने पर सात उत्तरदाताओं का कहना था कि वे निकट भविष्य में कुछ भी कमा पाने की स्थिति में खुद को नहीं देख पा रहे हैं। जबकि 74 उत्तरदाताओं का कहना था कि उन्हें कोई अंदाजा नहीं लग पा रहा है इस बारे में। वहीँ 10 उत्तरदाता ऐसे थे जिनका मानना है कि उनकी राय में उनकी आय लॉकडाउन पूर्व से घटकर महज 40% तक ही रह जाने की आशंका है। इनमें से सात सरकारी कर्मचारियों के अलावा सिर्फ आठ अन्य लोग ऐसे मिले जिनका मानना था कि आने वाले महीनों में उनकी आय कमोबेश लॉकडाउन पूर्व वाली स्थिति में ही बने रहने की उम्मीद है।

इनमें से कई उत्तरदाता लॉकडाउन से पहले रसोइये, ड्राईवर और छोटे-मोटे रेस्तरां मालिक के तौर पर काम करते थे, जबकि आज ये लोग दिहाड़ी मजदूर के तौर पर काम करने को तैयार हैं लेकिन ये काम भी मिल पाने में काफी दिक्कत है। लोग अपने भविष्य को लेकर बेहद आशंकित हैं और उनके दिलोदिमाग में अनिश्चितता का भाव बना हुआ है। वे तय नहीं कर पा रहे हैं कि लॉकडाउन के खात्मे के बाद भी उनके जीवन में स्थिरता लौट कर आने वाली है।

करीब-करीब 40% उत्तरदाताओं मे, जिनकी प्रति व्यक्ति मासिक औसत आय लॉकडाउन से पहले 17,500 रूपये या उससे कम थी, का कहना था कि उनके परिवारों के पास मनरेगा (ग्रामीण रोजगार गारंटी स्कीम) के जॉब कार्ड बने हुए हैं। इस आय श्रेणी के तीन चौथाई से भी अधिक उत्तरदाताओं का मानना था कि शहरी क्षेत्रों में भी रोजगार के अंतिम उपाय के तौर पर इस तरह की स्कीम की आवश्यकता है। लद्दाख के बारे में बात करते हुए इस बात का ख्याल सभी के दिमाग में होना चाहिए कि भौगोलिक परिस्थितियों के चलते यहाँ पर जीवन निर्वाह के लिए किया जाने वाला खर्च देश के बाकी हिस्सों से काफी अधिक है। इसलिए लद्दाख के लिए 17,500 रूपये प्रति व्यक्ति आय काफी नहीं है।

सर्वेक्षण के दौरान जिन परिवारों में प्रति व्यक्ति औसत आय 15,000 रूपये से कम (लॉकडाउन पूर्व) थी, उनसे सवाल किया गया था कि क्या उन्हें मुफ्त राशन, मुफ्त गैस सिलिंडर और जन धन खातों में हर महीने 500 रूपये की राशि हस्तांतरित हुई थी या नहीं, जैसा कि मार्च में पीएम गरीब कल्याण योजना (पीएमजीकेवाई) के तहत घोषणा हुई थी। तकरीबन 45% परिवारों का कहना था कि पीएमजीकेवाई की घोषणा के तीन महीने से अधिक का समय बीत जाने के बावजूद उन्हें किसी भी प्रकार का मुफ्त राशन नहीं मिला था। हाँ, 20% से अधिक परिवारों को मुफ्त गैस सिलिंडर मिले थे और 10% से कम परिवारों को उनके जन धन खातों में पैसा पहुंचा था।

इससे पता चलता है कि इस नवगठित केंद्र शासित प्रदेश में पहले से ही घोषित सरकारी योजनाओं का कार्यान्वयन एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है। कहने की आवश्यकता नहीं कि लॉकडाउन की वजह से लोगों की आय में जिस मात्रा में नुकसान देखने को मिला है उसकी तुलना में पीएमजीकेवाई में किये गए प्रावधान ना के बराबर हैं। लेकिन अब चूँकि लॉकडाउन की वजह से उनकी आय पूरी तरह से खत्म हो चुकी है, ऐसे में सात (हमारे नमूने में शामिल कुल 16) प्रवासी परिवारों का कहना है कि अपने गृह राज्य नेपाल, बिहार, राजस्थान इत्यादि में जाना चाहते हैं, लेकिन फँसे हुए हैं।

जमीनी हकीकत तो यह है कि लोग न्यूनतम मजदूरी के भुगतान की गारंटी के साथ रोजगार की मांग कर रहे हैं। उनकी माँग है कि उन्हें डीबीटी और वित्तीय मदद पहुँचाई जाये। वे स्कूलों की फीस और किराये को माफ़ किये जाने की माँग के साथ-साथ कर्जों पर ब्याज माफ़ी की माँग कर रहे हैं। छोटे व्यवसायों को बुरी तरह से समर्थन की दरकार है और वे चाहते हैं कि पंजीकरण शुल्क, लाइसेंस शुल्क इत्यादि में ढील दी जाए।

लद्दाख की अर्थव्यवस्था के लिए पर्यटन बेहद अहम है और इसके माध्यम से इलाके में रोजगार की संभावनाएं काफी महत्वपूर्ण हैं। इस सेक्टर को पुनर्जीवित करने को लेकर माँग काफी मजबूत बनी हुई है। उनकी माँग है कि सरकार गाइड, कुली और सहायकों की वित्तीय मदद के लिए आगे आये, क्योंकि ये लोग अपनी थोड़ी बहुत या बिना किसी बचत के सीजनल आय पर पूरी तरह से निर्भर हैं। वहीँ ट्रेवल एजेंसीज की माँग है कि उन्हें जीएसटी में रिफंड दिया जाए जिससे कि वे उस पैसे से अपने कर्मचारियों की आथिक मदद कर सकें।

अन्य मांगों में बेहतर कनेक्टिविटी, आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति, और अधिक (कोविड-19) टेस्टिंग की सुविधाएं और पहले से कहीं अधिक लैब और सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं के क्षेत्र में बुनियादी ढांचों में बेहतरी के प्रयास मुख्य है। सरकारी योजनाओं का लाभ जरुरतमंदों, और गरीबों को कहीं बेहतर तरीके से मुहैय्या कराये जाने की आवश्यकता है। लोगों की ओर से इस बात के भी सुझाव दिए गए हैं कि कम से कम एक साल के लिए कर्जमाफी करने और ऋण को बट्टे खाते में डाला जाना चाहिए। आज इस बात की महती आवश्यकता है कि देश के कोने-कोने से देशवासियों की आवाज को सुना जाए और लोकतंत्र के तहत राष्ट्रीय एकता की खातिर उनकी समस्याओं के समाधान की महत्वपूर्ण कोशिशों को किये जाने की दरकार है।

(सुरजीत दास जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर इकोनॉमिक स्टडीज एंड प्लानिंग विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं और अदीना आरा पीएचडी स्कॉलर हैं। लेखक  श्री सादिक, श्री शाहबाज़, श्री पद्म और सुश्री वांगमो के शोध में सहयोग के प्रति आभारी हैं।) 

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Lockdown: ‘40% Families Had Zero Income in Ladakh, 90% Didn’t Get Cash in Jan Dhan’

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