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लखनऊ किसान महापंचायत: "दिल्ली की राह पर चलने को हम तैयार हैं"

“न हम झुकने वाले हैं, न डरने वाले हैं और अब न ही पीछे हटने वाले हैं। जैसे दिल्ली बॉर्डर पर किसान विपरीत परिस्थितियों में रात-दिन डटे रहे, अब उसी राह पर चलना पड़े तो हम तैयार हैं।”
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“न हम झुकने वाले हैं, न हम डरने वाले हैं और अब न ही हम पीछे हटने वाले हैं, जैसे दिल्ली बॉर्डर पर किसान हर विपरीत परिस्थितियों में रात दिन डटे रहे अब उसी राह पर चलना पड़े तो हम तैयार हैं।”

ये कहना है भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) का जिसके आह्वान पर 18 सितंबर को लखनऊ के इको गार्डन में किसान महापंचायत में जुटे लाखों किसानों ने अपनी यह मंशा ज़ाहिर कर इतना तो जता दिया कि प्रदेश और केंद्र में बैठी सरकारों के साथ अब ये आर-पार की लडाई के लिए तैयार हैं।

जब किसानों का उमड़ पड़ा सैलाब

आख़िर क्या कारण था कि लखनऊ में हुई इस किसान महापंचायत में लाखों किसान जुटे। उत्तर प्रदेश के हर कोने कोने कोने से किसान आए। बुजुर्ग, युवा, महिलाएं आख़िर कौन सा ऐसा वर्ग था जिसने अपनी भागीदारी न दी हो। सच कहें तो जितनी उम्मीद थी उससे कई गुना पहुँचे। 18 सितंबर को तो मानो जैसे लखनऊ में किसानों का सैलाब ही उमड़ पड़ा  जो सरकार की नींद उड़ाने को काफी था।

यूं तो महापंचायत के लिए 18 सितंबर का दिन तय था लेकिन प्रदेश के कई जिलों से, खासकर पश्चिमी यूपी से 17 तारीख़ की रात से ही ट्रेनों, बसों मे सवार किसानों का जत्था लखनऊ पहुंचने लगा था। उत्तर प्रदेश का शायद ही कोई ऐसा जिला हो जहां से किसान बीकेयू के आह्वान पर इस महापंचायत में शामिल होने लखनऊ के इको गार्डन न पहुंचा हो। कांधे पर बीकेयू का झंडा लिए, सिर पर सफेद हरी टोपी पहने, गले पर हरा गमछा लपेटे और हाथों में हुक्का थामे, लाखों-लाख किसान जब लखनऊ पहुंच रहे थे तो संख्या इतनी की कैमरा भी कैद न कर सका।

हालांकि 12 बजते-बजते तक किसानों के कई जत्थे वापसी भी करने लगे, बावजूद इसके महापंचायत में भीड़ इतनी कि मंच कहां लगा है कुछ देर तक तो यह समझ पाना ही मुश्किल हो चला था। महापंचायत खत्म होने होने तक किसानों का जत्था गाजे-बाजे के साथ इको गार्डन पहुंच रहा था। अगस्त महीने में विभिन्न जिलों में हुई बीकेयू की ट्रैक्टर रैली के दौरान ही संगठन ने 18 सितंबर महापंचायत होने की घोषणा कर दी थी उसके बाद से ही राज्य, पुलिस और रेलवे प्रशासन मुस्तैद हो चला था। इस बीच खबर आई की मेरठ की ओर से आने वाली नौचंदी एक्सप्रेस के आरक्षित श्रेणी के डिब्बे किसानों से भर गए हैं यहां तक कि किसान एसी डिब्बों पर भी सवार हो गए हैं। रेलवे पुलिस इन्हें हटाने की पूरी कोशिश की लेकिन किसान हटने को तैयार न हुए जिसके चलते कई यात्रियों को अपना रिजर्वेशन रद्द कराना पड़ा।

बीकेयू के पश्चिमी उत्तर प्रदेश संगठन मंत्री राजकुमार करनावल ने बताया कि मेरठ से भी करीब एक हज़ार कार्यकर्ता लखनऊ के लिए रवाना हुए। उन्होंने ट्रेन में अतिरिक्त कोच बढ़ाने की भी मांग की, लेकिन उनकी मांग पूरी नहीं हुई। इस कारण ट्रेन में आम यात्रियों को परेशानी का सामना करना पड़ा। महापंचायत को सफल बनाने के लिए पिछले एक महीने से बीकेयू कार्यकर्ता और नेता रात-दिन कड़ी मेहनत करते हुए गांव-गांव जाकर हर छोटे, बड़े किसानों से महापंचायत में लाखों की संख्या में लखनऊ पहुंचकर शामिल होने का आह्वान कर रहे थे।

बड़ी संख्या में महिलाएं भी आईं नजर

महापंचायत में शामिल होने महिलाओं की एक बड़ी तादात ईको गार्डन पहुंची थी। मंच पर भी महिलाओं को जगह दी गई थी। यह अपने में एक अच्छी बात है क्योंकि हम जानते हैं कि बिना महिलाओं की भागीदारी के कोई भी आंदोलन अधूरा है और जब खेती किसानी में महिलाओं का श्रम भी शामिल हो तो उनकी आवाज़ भी सुनना ज़रूरी हो जाता है।

आख़िर वे किस विचार और मांगों के साथ इस महापंचायत में आई हैं, जब यह सवाल लेकर यह रिपोर्टर महिलाओं के बीच गई तो उनका जज़्बा देखने लायक था। लखनऊ के काकोरी से बड़ी संख्या में महिलायें पहुंची थीं। उन्होंने अपने आने का कारण यह बताया कि उनकी ज़मीनों की ज़बरदस्ती चकबंदी की जा रही है जिसमें ग्रामीणों की कोई रज़ामंदी नहीं।

काकोरी के सकरा गांव की अर्चना पाल बताती है कि "चकबंदी की ज़द में पाँच ग्राम पंचायतों के गांव हैं। चकबंदी कई सालों से चल रही है लेकिन पिछले एक साल में इसमें तेजी आई है।" वह कहती हैं कि चकबंदी से उन्हें फायदा नहीं हो रहा, उल्टे ज़मीनें चली जा रही हैं, चकबंदी रोकने के लिए गांव की महिलाएं पिछले दिनों धरने पर भी बैठी थीं जिसे प्रशासन द्वारा ज़बरदस्ती समाप्त करवा दिया गया।
तो वहीं सुशीला बताती हैं कि 20 बिस्वा की एक बीघा ज़मीन होती है जबकि उन्हें 16 बिस्वा के हिसाब से ही ज़मीन दी जा रही है। चकबंदी के चलते 4 बिस्वा का उन्हें घाटा सहना पड़ रहा है।

उन्नाव जिले से आई रूपरानी बताती हैं कि "उनका गांव जमालनगर के पास है। वहां सैलाब आया हुआ है एक जगह से दूसरी जगह आना-जाना दूभर हो गया है। बाढ़ ने ज़िंदगी कठिन कर दी पर उन्हें प्रशासन की ओर से कोई राहत या मदद नहीं मिली। एक समस्या हो तो बताएं, हमारे गांव का कोई विकास नहीं हुआ है। आज तक स्कूल नहीं बन पाया। गरीब ग्रामीणों को पक्का घर नहीं मिला जिसका वादा सरकार ने किया था। जो थोड़ी बहुत खेती है वो भी छुट्टे घूम रहे पशु चर जा रहे हैं। अब घर में बाल बच्चों को देखें या खेतों की रखवाली करें।”

रूपरानी बताती हैं, "गरीब होते हुए भी उनका लाल कार्ड नहीं बना। सफेद कार्ड है लेकिन उस पर राशन बेहद कम मिलता है तो गुजारा कैसे करें। इस महापंचायत में हम सरकार से यह कहने आए हैं कि हमारे गांव को विकास से जोड़े और बच्चों को स्कूल दे। साथ ही आवारा पशुओं से हमारी खेती बचाये।”

इन्हीं महिलाओं के बीच एक महिला, हाथों में कुछ कागजात पकड़े बैठी थी। आखिर वो कागजात क्या थे यह जानने के लिए जब इस रिपोर्टर ने उनसे बात की तो वह बेहद भावुक हो चली। वह रायबरेली जिले के चुरुवा गांव से अपने परिवार के साथ आईं, मानती थी। उन कागजातों के बारे में उन्होंने बताया कि यह उनका वह शिकायती कागजात हैं जो उन्होंने पुलिस थाने में दिया था लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई, उल्टे झूठे मामले में उन्हें फँसा दिया गया।

रुआंसे गले से मानती बताती हैं, "करीब दो महीने पहले वह, उनके पति और बेटी खेत में काम कर रही थी। उनके खेत के बगल में तालाब है और तालाब के इर्द-गिर्द उनका खेत है। जिसका तालाब है वह आए दिन उनसे झगड़ता है पर उस दिन तो हद हो गई उसने उनकी विकलांग बेटी पर हमला कर दिया। उसके बाल खींचे, गला दबाया, हाथ पकड़ा और जब इसकी शिकायत उन्होंने स्थानीय पुलिस थाने में की तो उल्टा पुलिस तालाब मालिक का यह कहते हुए साथ देने लगी कि तुम उसके तालाब में मिट्टी गिराते हो। बल्कि केस तुम लोगों पर होना चाहिए।”

मानती कहती हैं, "तालाब में मिट्टी गिराने की बात को मानते हुए पुलिस ने उनपर तो मुकदमा दर्ज कर दिया लेकिन जो उनकी विकलांग बेटी के साथ छेड़खानी हुई उसे सुनने को पुलिस तैयार नहीं, आख़िर ये कैसा न्याय है?”

किसानों ने बयां किया अपना दर्द

एटा जिले के ओर्नी गांव से आए एक किसान ने आरोप लगाया कि "उनके क्षेत्र के पांच गांवों की 600 बीघा ज़मीन सरकार ने ज़बरदस्ती अपने कब्जे में कर ली है जिसे वह उद्योगपतियों को देगी जबकि किसान अपनी ज़मीन देने को तैयार नहीं। किसानों को सरकार उन ज़मीनों के बदले उचित मुआवज़ा तक नहीं दे रही। किसान विरोध भी कर रहे हैं तो उनकी आवाज़ दबा दी जा रही है। ग्राम सभा की ज़मीन पर बसे ग्रामीणों को भी उजाड़ने का काम हो रहा है जबकि गरीब ग्रामीणों को ज़मीन देकर बसाने का काम होना चाहिए, उल्टा सरकार उजाड़ने का काम कर रही।”

एटा जिले से ही आए एक अन्य किसान रामपाल कहते हैं कि उनके यहां एक गांव है नेचलपुर, जहां आज तक लाईट नहीं पहुंची। वे बताते हैं कि "लाख कोशिशों के बाद ट्रांसफार्मर भी लग गया, खंबे भी लगे, तारें भी पड़ी लेकिन ग्रामीणों को लाईट नहीं मिली।”

तो वहीं जिला बुलंदशहर से आए किसान राजेंद्र सिंह राघव कहते हैं, "सच बताएं तो हर सरकार ने किसानों को छलने का ही काम किया है लेकिन मौजूदा सरकार ने तो पूरी उम्मीद ही तोड़ दी। सत्ता परिवर्तन इस उम्मीद में किया था कि नई सरकार किसानों का दर्द समझेगी। इस सरकार ने किसान हितैषी होने की बात कही थी लेकिन अब सरकार का रुख दूसरा ही हो चला है। MSP कानून न बनने से किसान अपना अनाज औने-पौने दामों पर बेचने को मजबूर है। आवारा पशुओं से अपनी फसल बचाने के लिए रात भर किसानों को खेतों में पहरा देना पड़ता है। यहां तक की सांड के हमले से किसानों को जान से हाथ भी धोना पड़ रहा है।"

हापुड़ जिले से आए किसान इंसाफ अली कहते हैं, "सरकार उनके गन्ने का न तो समय से भुगतान ही करा पा रही और न ही उचित मूल्य किसानों को दे पा रही। किसानों की मांग थी कि सरकर 500 रूपये प्रति क्विंटल का रेट दे तो सरकार ने 450 देने का वादा किया था और वह भी पूरा नहीं हुआ। बिजली के मामले में भी सरकार झूठी निकली। किसानों को खेती के लिए मुफ्त बिजली देने की बात कही थी लेकिन हर महीने अच्छा खासा बिल आता है।”

न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP कानून बनाने, गन्ने का दाम बढ़ाने और समय पर गन्ना किसानों का बकाया भुगतान करने, चीनी मिलों पर शिकंजा कसने, आवारा पशुओं से लगातार फसलों को हो रहे नुकसान, खेतों में जमावड़ा लगाए सांडों से किसानों पर हो रहे हमले और मौतें, बाढ़ और सूखे की चपेट  में आने से फसलों की बर्बादी और किसान को उसका उचित या बिलकुल ही मुआवज़ा न मिलना, मुफ्त बिजली का वादा कर किसानों से पैसा लेना आदि मुद्दे किसानों की चिंता में शामिल हैं।

रेलवे स्टेशन पर उतरते ही धरने पर बैठे किसान

सोमवार सुबह हज़ारों की संख्या में किसान लखनऊ पहुंचे। चारबाग रेलवे स्टेशन पर उतरते ही बीकेयू मंडल अध्यक्ष विकास शर्मा ने मौजूद किसानों को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि "लखनऊ में गन्ना मूल्य बढ़ाए जाने को लेकर आवाज़ बुलंद की जा रही है। बढ़ती महंगाई के चलते खेती किसानी अब लाभ का सौदा नहीं रहा। खाद और बीज व कीटनाशक के दाम आसमान पर पहुंच रहे हैं। जबकि गन्ना और अन्य फसलों के दाम उसके सापेक्ष नहीं बढ़ रहे हैं। बिजली की दरों में कमी लाने और ट्यूबवेल पर बिजली मीटर लगाए जाने के खिलाफ महापंचायत में आज हुंकार बुलंद की और आवारा पशुओं का मुद्दा भी जोर शोर से उठाया।" हज़ारों किसान नौचंदी और अन्य एक्सप्रेस ट्रेनों से से लखनऊ पहुंचे।

टिकैत बोले, गांव के मंदिरों पर करें बैठकें

बीकेयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने किसानों को आगामी समय में एक बड़े आंदोलन के लिए तैयार रहने का आह्वान किया। उन्होंने चेताया की हमारे बीच कुछ RSS के लोग भी घुस रहे हैं तो हमें सावधान रहने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि आपके गांवों के मंदिरों पर RSS का कब्जा हो उससे पहले आप उस पर काबिज हो जाईये। उन्होंने किसानों को गांव के मंदिरों पर बैठकें करने का सुझाव दिया।

उन्होंने कटाक्ष भरे लहजे में कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, क्या मायावती से भी कमज़ोर हैं? जब मायावती 40 रूपये बढ़ा सकती हैं तो योगी जी क्यों नहीं बढ़ा सकते? हालांकि इस बार मुख्यमंत्री के पक्ष में राकेश टिकैत के तेवर कुछ नरम दिखे। उन्होंने कहा कि दरअसल मुख्यमंत्री गन्ने का दाम तो बढ़ाना चाहते हैं लेकिन केंद्र की सरकार बढ़ाने नहीं देना चाहती।

टिकैत ने कहा कि "हमारी बड़ी मांग यही है कि देश में MSP गारंटी कानून लागू होना चाहिए। इसके साथ ही फसलों के दाम मिलने चाहिए, किसानों को भूमि का वाजिब दाम मिलना चाहिए। नौकरियों में सरकारों को पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाल करनी चाहिए। विचारधारा से सभी जुड़े हुए हैं। वैचारिक क्रांति देश में आगामी दिनों में होगी।

उन्होंने कहा कि "सनातन धर्म को लेकर भाजपा लोगों को उलझा रही है। ये सरकार धार्मिक, जातिगत आधार पर बांटना चाहती है। कृषि कानून में जीत के बाद ही सरकार किसान संगठनों को और खाप पंचायतों को बांटने में पूरी ताकत लगा रही है। देश में ऐसा कानून लाया जाए ताकि कोई किसी धर्म के खिलाफ नहीं बोल पाए। सनातन धर्म को लेकर कहा कि 80 फीसदी सनातनियों की उपेक्षा नहीं की जा सकती और उन्हें इस देश से कौन खत्म कर सकता है। उन्होंने कहा कि भाजपा के लोग देश में नये स्वरूप में हुए विपक्षी दलों के गठबंधन से डरे हुए हैं।

राकेश टिकैत ने मंच से मज़दूरों और पुरानी पेंशन बहाली का भी मुद्दा उठाया। महापंचायत में 21 सितंबर को नोएडा में आंदोलन का ऐलान किया गया है। यूनियन के कार्यकर्ताओं और किसानों से, फाॅर्मूला वन रेस ट्रैक दनकौर गौतमबुद्ध नगर में ट्रैक्टर तिरंगा यात्रा निकालने के लिए तैयारी करने की अपील की गई।

(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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