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मध्यप्रदेश : सरकार तो बदल गई लेकिन अतिथि शिक्षकों के हालात नहीं बदले

अतिथि शिक्षकों को संबोधित करते हुए ही ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा था कि उनके लिए सड़कों पर उतरना पड़ा, तो उतरेंगे। वे भाजपा में चले गए और भाजपा की सरकार बन गई, लेकिन अतिथि शिक्षकों के सुरक्षित भविष्य को लेकर सरकार की ओर से कोई निर्णय तो दूर, आश्वासन भी नहीं मिल पाया है।
अतिथि शिक्षक

मध्यप्रदेश में पिछले 115 दिन से अतिथि शिक्षकों का जन सत्याग्रह चल रहा है। लॉकडाउन की वजह से वे ऑनलाइन सत्याग्रह कर रहे हैं और भोपाल स्थित शाहजहांनी पार्क से उन्होंने अपना तंबू नहीं हटाया है। आर्थिक तंगी और असुरक्षित भविष्य के कारण मानसिक तनाव में जन सत्याग्रह के दरम्यान प्रदेश में 4 अतिथि शिक्षकों ने कथित तौर पर आत्महत्या कर ली है। 15 अप्रैल को मंडला जिले में छत से कूदे एक अतिथि शिक्षक की मौत हो गई। 8 अप्रैल को छतरपुर जिले में एक अतिथि शिक्षिका ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। 20 फरवरी को निवाड़ी जिले के एक शिक्षक ने ट्रेन से कटकर जान दे दी। 12 फरवरी को छतरपुर के एक शिक्षक ने पेड़ से लटककर आत्महत्या कर ली।

नियमितीकरण की मांग को लेकर सत्याग्रह पर बैठे अतिथि शिक्षकों को मानदेय भी नियमित नहीं मिल पा रहा है, कई जगहों पर जुलाई से ही मानदेय नहीं मिल पाया है।

प्रदेश में अतिथि शिक्षक 25 दिसंबर 2019 से जन सत्याग्रह पर हैं। इनका सत्याग्रह तब सुर्खियों में आया, जब 13 फरवरी को टीकमगढ़ में एक सभा को संबोधित करते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि कांग्रेस का वचन-पत्र पूरा नहीं हुआ, तो आपके साथ सड़कों पर उतरूंगा। वहां सभा में तत्कालीन स्कूल शिक्षा मंत्री भी थे और जब अतिथि शिक्षकों ने उनके खिलाफ नारे लगाते हुए वचन-पत्र यानी घोषणा-पत्र में किए वायदे को पूरा करने की मांग की, तो उसके जवाब में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ये बात कही थी।

Guest Teacher Letter to CM.jpg

उल्लेखनीय है वचन-पत्र में कांग्रेस ने अतिथि शिक्षकों के नियमितीकरण के लिए नीति बनाने की बात की थी, लेकिन इस पर अमल नहीं हो पाया था। सिंधिया द्वारा सड़क पर उतरने की बात का जवाब देते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा था कि वे सड़क पर उतर जाएं। इस घटना के बाद प्रदेश का राजनीतिक समीकरण बदलता गया और भाजपा ने इस मौके का फायदा उठाकर सिंधिया सहित कई विधायकों को अपने पाले में कर सत्ता परिवर्तन कर दिया। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भाजपा में जाने के बाद कई बार इस बात का उल्लेख किया कि अतिथि शिक्षकों के मुद्दे पर उन्हें ललकारा गया, जिससे आहत होकर उन्होंने जनसेवा के लिए भाजपा का दामन थाम लिया।

प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के एक प्रमुख कारण रहे अतिथि शिक्षकों को उम्मीद थी कि सरकार बदलते ही सबसे पहले उनकी समस्याओं का निराकरण किया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। न तो उनकी मांगों पर ठोस कार्यवाही हो पाई है और न ही उन्हें कोई आश्वासन मिल पाया है। वे आज भी आंदोलनरत हैं। इस बीच साथियों की मौत और आत्महत्या से वे विचलित हैं। प्रदेश में शिक्षा मंत्री नहीं हैं, इसलिए वे मुख्यमंत्री को पत्र लिख रहे हैं, मुख्य सचिव को पत्र लिख रहे हैं, लेकिन उन्हें कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिल पाया है। अतिथि शिक्षक समन्वय समिति के प्रदेश अध्यक्ष सुनील सिंह परिहार इस बात को लेकर चिंतित हैं कि आर्थिक तंगी और असुरक्षित भविष्य के कारण शिक्षक आत्महत्या जैसे कदम उठा रहे हैं।

File Photo - Guest Teacher Agitation.jpg

अतिथि शिक्षक समन्वय समिति के छतरपुर जिला अध्यक्ष नीरज अरझरिया का कहना है, ‘‘छतरपुर के लवकुश नगर थाना क्षेत्र के पठा गांव की 20 वर्षीय राधा राजपूत ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। उसके पिता छोटे किसान थे, जिनकी मृत्यु हो गई है। घर में बूढ़ी मां और दो भाई है। परिवार में आर्थिक तंगहाली है। अनियमित मानदेय और सुरक्षित नौकरी के अभाव में अवसाद में थी और उसने आत्मघाती कदम उठा लिया। 12 फरवरी को बिजावर विकासखंड के जैतपुर गांव के 24 वर्षीय सुरेन्द्र पटेल ने पेड़ से फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी।’’

अतिथि शिक्षक समन्वय समिति के मंडला जिला अध्यक्ष अखिलेश बेंद्रे ने बताया, ‘‘15 अप्रैल को मंडला जिले के प्राथमिक शाला पकरीटोला जंगलिया में कार्यरत अतिथि शिक्षक 41 वर्षीय सुरेश झारिया की मौत हो गई। वे आर्थिक तंगी के कारण परेशान होकर आत्महत्या के उद्देश्य से छत से कूद गए थे, जिसमें वे बच गए, लेकिन उनकी रीढ़ की हड्डी टूट गई। पैसे की कमी के कारण वे इलाज नहीं करवा सके और उनकी मौत हो गई। वे छह साल से अतिथि शिक्षक थे। उनके घर में कोई कमाने वाला नहीं है। उनके पिता की मौत पहले ही हो चुकी है। परिवार में मां, पत्नी व दो बच्चे हैं। समिति ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर पीड़ित परिवार को आर्थिक सहायता देने की मांग की है।’’

सुनील परिहार ने बताया कि 20 फरवरी को निवाड़ी जिले के ओरछा के चंदाबनी गांव के 36 वर्षीय दीपक शर्मा ने बुडपुरा रेलवे स्टेशन के पास ट्रेन से कटकर जान दे दी। जब से जन सत्याग्रह चल रहा है, तब से 4 लोगों ने आत्महत्या कर ली।

सुनील परिहार का कहना है, ‘‘मध्यप्रदेश में जितनी मौत कोरोना से नहीं हुई उससे ज्यादा मौत अतिथि शिक्षकों की हुई हैं। वे आर्थिक तंगी और असुरक्षित नौकरी के कारण तनाव की वजह से गंभीर रूप से बीमार होकर मर रहे हैं और आत्महत्या भी कर रहे हैं। पिछले 5-6 सालों में 47 शिक्षकों की मौत हो गई है। प्रदेश में अतिथि शिक्षकों की स्थिति बदतर है। भाजपा के शासनकाल में 12 सालों तक अतिथि शिक्षक स्थाई रोजगार के लिए आंदोलन करते रहे, लेकिन सिर्फ आश्वासन मिले।

कांग्रेस ने अपने वचन-पत्र में अतिथि शिक्षकों के नियमितीकरण का वायदा किया था, लेकिन साल भर बाद भी जब कोई कार्यवाही नहीं हुई, तो जन सत्याग्रह शुरू किया गया। हमारी मांग को अनसूनी करने के कारण सरकार गिर गई। हमें उम्मीद थी कि नई सरकार प्रदेश के 69 हजार अतिथि शिक्षकों के हक में कोई निर्णय लेती, लेकिन अभी तक कुछ भी नहीं हुआ है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘कोरोना के खिलाफ जंग में साथ देने के लिए अतिथि शिक्षकों ने भी एक दिन का वेतन मुख्यमंत्री राहत कोष में दिया है। इसमें हम अपनी सेवा भी देना चाहते हैं, लेकिन हमारे भविष्य को लेकर सरकार जब तक कोई सकारात्मक निर्णय नहीं लेती, तब तक हम आंदोलन जारी रखेंगे।’’

उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश में अतिथि शिक्षक वर्ग 3 का मानदेय 5000 रुपये, वर्ग 2 का मानदेय 7000 रुपये और वर्ग 1 वाले शिक्षकों का मानदेय 9000 रुपये है। छुट्टियों के दिनों के मानदेय कट जाने से कभी भी इन्हें पूरा पैसा नहीं मिलता। इनकी नियुक्ति नए सत्र यानी जुलाई से की जाती है और अप्रैल तक सेवाएं ली जाती हैं। इन्हें छुट्टियों के दिनों के मानदेय नहीं मिलते। ऐसे में फिलहाल अतिथि शिक्षकों की यह चिंता भी सता रही हे कि इन्हें मार्च एवं अप्रैल का मानदेय मिलेगा या नहीं। यद्यपि इस संबंध में इनके संगठन ने मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को पत्र लिखा है। कुछ जगहों पर इन्हें 5-6 महीने से मानदेय नहीं मिला है, तो अधिकांश जगहों पर फरवरी का मानदेय नहीं आया है। कम मानदेय, अनियमित भुगतान और हर साल चयन प्रक्रिया से गुजरने के कारण असुरक्षित भविष्य को लेकर अतिथि शिक्षकों में अवसाद बढ़ते जा रहा है।

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