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मध्‍य प्रदेश : खानापूर्ति भर बन कर रह गई प्रधानमंत्री आवास योजना

''जब लोग कहते हैं कि यह मकान तो सरकार ने बनवाकर दिया है तो गुस्सा आता है क्योंकि सरकार मकान का पूरा खर्च उठाती तो कोई बात नहीं थी लेकिन सरकार केवल मामूली सहयोग कर रही है।'’
Pradhan Mantri Awas Yojana
मंडला जिले के दुपट्टा गांव में हितग्राही ज्ञान सिंह का अधूरा आवास। फोटो—पूजा यादव

आवासहीन गरीबों के लिए शुरू की गई प्रधानमंत्री आवास योजना महंगाई के दौर में सिर दर्द बन गई है। महंगाई के कारण सीमेंट, ईंट व लोहा के दाम बीते पांच वर्षों में दोगुने तक हुए लेकिन प्रधानमंत्री आवास योजना की राशि नहीं बढ़ाई गई। हाल यह है कि इस योजना के पात्र ग्रामीण हितग्राहियों को 1 लाख 20 हजार रुपये तो तीन किश्तों में मिल जा रहे हैं लेकिन इस मामूली राशि से ये ज्यादातर हितग्राही निर्माण पूरा नहीं कर पा रहे हैं। ऐसी स्थिति में कुछ को कर्ज लेना पड़ रहा है तो कुछ को अपने मवेशी बेचने पड़ रहे हैं। चौकाने वाली बात यह है कि इन्हें कर्ज भी तभी मिल रहा है जब ये कुछ न कुछ गिरवी न रख दें। कुछ हितग्राहियों का तो कहना है कि उन्होंने महिलाओं के जेवर गिरवी रखे हैं।

मंडला जिले के दुपट्टा गांव के ग्रामीण ज्ञान सिंह बताते हैं कि वर्ष 2022 में आवास स्वीकृत हुआ था, अब तक पूरा नहीं हुआ है। सिर्फ दीवारें ही खड़ी कर पाया हूं। कर्ज मांग रहा हूं लेकिन मिल नहीं रहा है, जब तक कर्ज नहीं मिल जाएगा, तब तक छत नहीं डलेगी।

बैतूल के केकड़िया कलां गांव के मिश्रीलाल विश्वकर्मा को भी इसी सन में प्रधानमंत्री आवास स्वीकृत हुआ है। वह कहते हैं दीवारें खड़ी की है, अब छत डालने की हिम्मत नहीं है। 1 लाख रुपये ब्याज से लिए है। तब जाकर आगे का काम करवा रहा हूं।

ये दो उदाहरण ही नहीं है, बल्कि मप्र में ऐसे कई उदाहरण है लेकिन ये लोग खुलकर सामने इसलिए नहीं आ रहे हैं, क्योंकि खबर छपते ही सरकारी लोग इनके पीछे पड़ जाएंगे और अच्छे काम में भी बुराईयां निकालेंगे। अंत में बुराई निकालकर इन्हें मिलने वाले राशि भी रूकवा देंगे। हितग्राही खुद यह बात कह रहे हैं।

असल में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय का दावा है कि मध्यप्रदेश में 36 लाख 866 प्रधानमंत्री आवासों का काम पूरा हो चुका है। इसके लिए हितग्राहियों को 44934.75 करोड़ दिए जा चुके हैं।
जब इतनी बड़ी मात्रा में हितग्राहियों को आवास बनाकर दिए जाने के दावे की हकीकत जानने के लिए पड़ताल शुरू की तो चौंकाने वाले किस्से सामने आए।

मप्र की एक पंचायत के एक सचिव ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में पात्र हितग्राहियों को 1 लाख 20 हजार रुपये तीन किश्तों में नगद मिलते हैं। जिसके नाम से आवास स्वीकृत होता है, उसे 90 दिन की मजदूरी का भुगतान मनरेगा से किया जाता है, वह उक्त दिवस में मजदूरी अपने परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर कर सकता है। वर्तमान में मजदूरी की दर 224 प्रतिदिन है। इस हिसाब से 90 दिन के 20 हजार 160 रुपये होते हैं। यह राशि भी हितग्राही को मिलती है। इस तरह कुल राशि 1 लाख 40 हजार 160 रुपये होती है।

अब प्रधानमंत्री आवास योजना में नियमों की बात करें तो हितग्राही को न्यूनतम 270 वर्ग फीट में आवास बनाना होता है, जो कि 1 लाख 40 हजार 160 रुपये में बन ही नहीं सकता। इसके लिए कम से कम 3 लाख रुपये की जरूरत है क्योंकि महंगाई ही इतनी हो गई है।

एक नहीं, बल्कि कई पंचायतों के सचिव मानते हैं जिस हिसाब से महंगाई बढ़ी है, उस अनुरूप आवास की राशि में भी बढ़ोतरी की जानी चाहिए, जो कि नहीं की जा रही है।

पर सरकार समय—समय पर दावा करती हैं कि उसके द्वारा इतने प्रधानमंत्री आवास बनवाए गए हैं।

हकीकत में सरकार ग्रामीण क्षेत्रों के हितग्राहियों को मजदूरी का मिलाकर 1 लाख 40 हजार 160 रुपये और शहरी क्षेत्रों में 2 लाख 50 हजार रुपये देती है। बाकी की पूरी धनराशि हितग्राहियों को लगानी पड़ती है।

सरकार का प्रयास अच्छा, लेकिन धनराशि बढ़ाई जाए

केकड़िया गांव के मिश्रीलाल विश्वकर्मा कहते हैं कि सरकार प्रयास अच्छा कर रही है लेकिन 1 लाख 40 हजार 160 रुपये देकर यह कहना कि पूरा आवास ही बनवा दिया, यह गलत है।

कई बार सरकार ऐसा प्रस्तुत करने की कोशिश करती है जैसे पूरा आवास उसी ने बनवाया। जबकि सर्वाधिक राशि तो हितग्राही को ही लगानी पड़ रही है। ऊपर से आवास का जो आकार सरकार ने तय किया है वह बहुत छोटा है। यह राशि बढ़ाई जानी चाहिए।

लोहा, सीमेंट, गिट्टी व रेत के दाम बढ़े

सरकार द्वारा दी जाने वाली राशि को कम बताते हुए मंडला के पौड़ी के बराती सिंह कहते हैं कि महंगाई इतनी हो गई है कि कोरोना महामारी के पहले लोहे की न्यूनतम कीमत 5200 रुपये प्रति क्विंटल थी, जो अब 6500 प्रति क्विंटल हो गया है। रेत पहले प्रति ट्राली 2000 रुपये में मिलती थी जिसके दाम अब 3000 से 3500 हो गए हैं। पहले सीमेंट प्रति बोरी 250 रुपये थी जो अब 350 से लेकर 400 रुपये में मिल रही है। ईंट के दाम पहले 2500 से 3000 प्रति हजार थे जो अब 3500 से 4500 रुपये में मिल रही है। वहीं गिट्टी पूर्व में 1800 से 2000 प्रति ट्राली के दाम पर मिल जाती थी जो अब 2500 रुपये में मिल रही है।

मकान अधूरा, क्योंकि समय पर नहीं मिला कर्ज

केकड़िया कला के मिश्रीलाल विश्वकर्मा कहते हैं अभी भी मकान पूरा नहीं हुआ है क्योंकि रूपये कम पड़ गए थे। इसलिए कर्ज लेना पड़ा। वह भी समय पर नहीं मिला। टूटे मकान में परिवार के साथ रहना पड़ रहा है। वह यह बात जरूर मानते हैं कि सरकार ने सहयोग किया है जो अच्छा प्रयास है लेकिन लोग जब कहते हैं कि यह मकान तो सरकार ने बनवाकर दिया है तो गुस्सा आता है क्योंकि सरकार मकान का पूरा खर्च उठाती तो कोई बात नहीं थी लेकिन सरकार केवल मामूली सहयोग कर रही है।

मजदूरी भी समय पर नहीं दी

बैतूल की गोधना पंचायत के मुकेश यादव बताते हैं कि उन्हें भी आवास स्वीकृत हुआ था। जिसका काम जुलाई 2023 में किसी तरह पूरा कराया है लेकिन अभी भी कुछ काम बाकी है। वह बताते हैं कि आवास बनाने के लिए उन्होंने स्वयं व परिवार के सदस्यों ने 90 दिन तक मजदूरी की थी, जिसका 20 हजार 160 रुपये मिलना था, जो कि एक रुपये नहीं मिला है। यदि वह राशि मिल जाती तो उसका काफी फायदा। कम से कम आवास बनाने में जो कर्ज लिया है उसे चुकाने में मदद मिलती।
मुकेश को भी वर्ष 2022 में आवास आवंटित हुआ था। वह कहते हैं चूंकि प्रधानमंत्री आवास योजना की जो डिजाइन है, वह बहुत छोटी है, उसके अनुरूप घर बनाएंगे तो किसी दिन कोई धार्मिक, वैवाहिक कार्यक्रम करेंगे तो परिवार के सदस्यों व मेहमानों को बैठा नहीं पाएंगे, इसलिए थोड़ा बड़ा आकार का आवास बनाना जरूरी हो गया है क्योंकि शहर में मेहमानों को ठहराने का विकल्प मौजूद है, गांव में किसके घर ठहराएंगे। वह कहते है। इन सभी बातों की चिंता सरकार को भी करनी चाहिए।

अधिकारियों का तर्क— दूसरे कामों में उपयोग कर लेते हैं राशि

प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ जिन्हें दिया जाता है, उनमें से कई हितग्राहियों द्वारा समय पर काम नहीं कराने को लेकर अधिकारी चिंतित रहते हैं। चूंकि केंद्र की योजना है और रिपोर्ट हर माह ऑनलाइन देनी होती है इसलिए अधिकारी चाहते हैं कि काम कम से कम समय सीमा में पूरा हो जाए, जो कि नहीं होता है। अधिकारी इसके पीछे तर्क देते हैं कि हितग्राही उक्त राशि को आवास निर्माण की बजाए अन्य कामों में खर्च कर लेते हैं।

हाल ही में छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले में प्रधानमंत्री आवासों की प्रगति को लेकर बुलाई बैठक में अधिकारियों की ओर से यही तर्क दिया गया। यहीं नहीं, यह तक तय किया गया कि जिन्होंने आवास निर्माण समय से नहीं कराया है, उनसे दी गई राशि वसूल की जाएगी। ऐसे तर्क मप्र के कुछ जिलों में भी अधिकारी देते रहे हैं और बाद में कुछ हितग्राहियों को वसूली के नोटिस दिए गए हैं। लेकिन हितग्राही कहते हैं, जो राशि मिलती है वह पर्याप्त नहीं होती इसीलिए समय से काम नहीं होता। मंडला जिले के दुपट्टा गांव के ज्ञान सिंह वर्तमान में इसी तरह की समस्या से जूझ रहे हैं। उनका कहना है कि अधिकारी कहते हैं कि समय पर काम नहीं कराया तो दी गई राशि की वसूली होगी, लेकिन वे महंगाई का सच नहीं जानना चाहते।

केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय का दावा

केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय की वेबसाइट पर दावा किया जा रहा है कि मध्यप्रदेश को 38,02,248 आवास बनाने का लक्ष्य दिया है। जिसमें से 38,01,224 आवास स्वीकृत किए जा चुके हैं, जो कि लक्ष्य का प्रतिशत 99.97 है। इनमें से 36,00,866 आवास का निर्माण पूरा हो चुका है, जो लक्ष्य की तुलना में 92.34 प्रतिशत है। इन आवासों के लिए हितग्राहियों को 44934.75 करोड़ रुपये दिए जा चुके हैं।

मप्र सरकार का दावा

म.प्र. सरकार का दावा है कि उक्त योजना के बजट में बढ़ोतरी की। पिछले आंकड़ों के मुताबिक उक्त योजना के लिए 10 हजार करोड़ रूपये के बजट का प्रावधान किया था, जिसमें से 6 हजार करोड़ रूपये केन्द्र और 4 हजार करोड़ रूपये राज्य सरकार का था।

हितग्राहियों को आवास निर्माण सामग्री रेत, लोहा, ईंट, गिट्टी, सीमेंट, लकड़ी आदि किफायती दरों पर आसानी से उपलब्ध कराने के लिये आवास सामग्री एप बनाया है। जिस पर 15 हजार से अधिक विक्रेता और 33 हजार से अधिक सेवा-प्रदाता है।

आवासों के निर्माण में फ्लाई ऐश ईंटों का प्रयोग करने के लिए विद्युत संयंत्र वाले जिलों में राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन में फ्लाई ऐश ईंटों की निर्माण इकाइयों की स्थापना की। महिला स्व-सहायता समूहों के सदस्यों को मशीनें दी।
आवास निर्माण के लिये स्व-सहायता समूहों के हजारों सदस्यों को बैंकों से ऋण दिलवा कर सेंट्रिंग सामग्री उपलब्ध कराई। इन प्रयासों से रोजगार के साधन सृजित हुए।योजना के तहत 21 लाख हितग्राहियों को अन्य योजनाओं से लाभ दिया। जैसे— मनरेगा से मजदूरी, उज्ज्वला योजना से गैस कनेक्शन, स्वच्छ भारत मिशन से शौचालय आदि।

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