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भारत
राजनीति
स्मृति शेष : मंगलेश ने वामपंथी धरातल को कभी नहीं छोड़ा
वरिष्ठ कवि अजय सिंह मंगलेश डबराल के बहुत पुराने साथी रहे हैं। क़रीब 50 साल का साथ रहा दोनों का। आज जब मंगलेश जी हम सबको अलविदा कहके जा चुके हैं, अजय सिंह उनकी यादों में डूब-उतर रहे हैं। हमारे आग्रह पर उन्होंने अपनी यादें कुछ इस तरह साझा की, पढ़िए-
अजय सिंह
10 Dec 2020
मंगलेश डबराल

हिंदी कवि व गद्यकार मंगलेश डबराल (1948-2020) के इंतकाल के साथ उससे मेरी बहुत पुरानी दोस्ती, बहुत पुराना संग-साथ एक झटके से टूट गया। हालांकि इसे टूटना भी कैसे कहा जाये! दोस्तियां ख़त्म नहीं होतीं, अगर वे पुख़्ता आधार पर हों। वे हमारी स्मृति में आवाजाही करती रहती हैं। वे प्रेम, बहस, झगड़ा, पसंद-नापसंद, झुंझलाहट, गुस्सा, विचारों व भावनाओं की शेयरिंग और टकराहट, एक-दूसरे की निजता व स्वतंत्रता का ख़याल, और अंततः सजल प्रेम के साथ चलती रहती हैं। मंगलेश के साथ मेरा रिश्ता ऐसा ही था, जहां सहमति और असहमति के लिए दोस्ताना स्पेस मौजूद था।

इस रिश्ते में पारिवारिक स्पर्श भी शामिल था। दिल्ली की तीसहज़ारी कोर्ट में मेरी और शोभा की अदालती शादी के वक़्त तीन गवाहों में एक मंगलेश था। (अन्य दो गवाह सईद शेख़ व त्रिनेत्र जोशी थे।) हम दोनों के बीच मज़बूत सूत्र थे, कविश्रेष्ठ शमशेर बहादुर सिंह।

इसी साल दिल्ली में 7 अगस्त को वरिष्ठ कवि शोभा सिंह के कविता संग्रह के विमोचन और सम्मान समारोह के अवसर पर मंगलेश डबराल (दाएं)। बीच में अजय सिंह और बाएं शोभा सिंह।   

मंगलेश से पहली बार मैं 1969 में दिल्ली में मिला था। वह बहादुरशाह जफ़र मार्ग पर लिंक हाउस में से निकलनेवाली साप्ताहिक पत्रिका ‘हिंदी पेट्रियट’ में नौकरी कर रहा था। वह उसी साल पहाड़ (उत्तराखंड) से दिल्ली पहुंचा था—अपनी पीठ पर ‘पहाड़ों की यातनाएं’ लेकर और सामने ‘मैदानों की यातनाओं’ से जूझने के लिए। मैं भी उसी साल दिल्ली पहुंचा था—इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ‘भग्न ह्रदय’ लेकर। हम दोनों की अलग-अलग यातना, पवित्र आवारागर्दी, और पुरानी, सड़ चुकी दुनिया को ध्वस्त कर नयी दुनिया बनाने के धधकते सपने के साथ हमारी दोस्ती की शुरुआत हुई।

इस दोस्ती को बढ़ाने में सी 12, मॉडल टाउन, दिल्ली का अच्छा-खासा हाथ था। इस मकान में शमशेर, मलयज, शोभा व अन्य पारिवारिक सदस्य रहते थे। इसकी मियानी/दुछत्ती में रहने के लिए मंगलेश और तिनेत्र जोशी चले आये थे। शोभा इन दोनों को बीच-बीच में चाय-नाश्ता-खाना पहुंचा देती थीं। मैं अक्सर आ जाता था मियानी में रहने के लिए।

 इसे भी पढ़े : स्मृति शेष: वह हारनेवाले कवि नहीं थे

यहां पर यह उल्लेख करना ज़रूरी है कि मंगलेश की कविता यात्रा नक्सलबाड़ी जन सशस्त्र संघर्ष की छाया व असर में शुरू हुई। यह असर ताज़िंदगी उसके चिंतन और कविता में बना रहा। जाहिर है, यह असर उसके यहां अलग रंग-रूप व बारीकियों में मौजूद है। और यह उसका बहुत अपना, बहुत खास स्वर है, जो सार्वजनिक विस्तार पाता रहा है। इसी चीज़ ने मंगलेश की कविता को विशिष्ट और लोकप्रिय बनाया।

मंगलेश बुनियादी तौर पर, दिलोदिमाग़ से, लाल झंडेवाला और लाल सलाम वाला कवि, दोस्त व कॉमरेड रहा है। अगर उसकी एक कविता से भाव उधार लिये जायें, तो वह अपनी दोस्त के लाल रुमाल को झंडे की तरह फहराना चाहता रहा है। वह उन झोलावाला बुद्धिजीवियों और लेखकों की कतार में शामिल रहा है, जिन्होंने देश में लोकतंत्र को नयी परिभाषा व नया विस्तार दिया है।

अब यह भी सही है कि मंगलेश के जीवन, चिंतन और कविता में कुछ वैचारिक समस्याएं और विचलन, भ्रम व अंतर्विरोध दिखायी देते हैं। वामपंथ को लेकर उसके यहां किंतु-परंतु अच्छा-ख़ासा मिलता है, और वह दुचित्तापन से ग्रस्त भी दिखायी देता है। आत्मसंघर्ष और आत्मालोचन उसके यहां कम है। अब ये चीज़ें एक आर्टिस्ट की ज़िंदगी में आती हैं, जिनसे उसे दो-चार होना पड़ता है। मंगलेश भी जूझता रहा—कभी क़ामयाब हुआ, कभी नाक़ामयाब रहा। हालांकि वह अपने प्रभामंडल के मोह से बाहर नहीं निकल सका।

लेकिन एक बात निर्विवाद रूप से कही जा सकती है कि मंगलेश ने वामपंथी धरातल को कभी नहीं छोड़ा। वह आजीवन वामपंथी बना रहा। हाल के वर्षों में हिंदी का जिस तरह तेज़ी से हिंदूकरण हुआ है और वह हिंदुत्व फ़ासीवाद की वाहक बनी है, मंगलेश उसका कट्टर आलोचक रहा है। इस सिलसिले में उसकी टिप्पणियों से हलचल मची, बहस हुई। नरेंद्र मोदी-अमित शाह-भाजपा-आरएसएस के नेतृत्व में भारत जिस गर्त में जा रहा है और हिटलरी जर्मनी का नया संस्करण बनने की तैयारी कर रहा है—मंगलेश ने इस पर बराबर कसकर हमला बोला। एक फ़ाइटर की तरह।

मंगलेश की कविताओं को पढ़ते हुए अक्सर मुझे लगा है कि उनमें वास्तविकता का मार्मिकीकरण ज़्यादा है। इसके बावजूद उनमें पूंजीवादी लूट-खसोट, साम्राज्यवादी हिंसा और हिंदुत्व फ़ासीवादी लंपटता की व्यंजनापरक शिनाख़्त मिलती है। मंगलेश की कविता व्यक्ति की निजता में केंद्रित आत्मपरकता के साथ गहरे वामपंथी रुझान वाले सार्वजनिक सरोकार की कविता है।

(लेखक वरिष्ठ कवि व राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

 इसे भी पढ़े : मंगलेश डबराल: लेखक, कवि, पत्रकार

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Manglesh Dabral dies
Left ideology
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journalist
Hindutva Fascism

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