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मणिपुर हिंसा : शांति बहाली की अपील को लेकर 550 से अधिक सिविल सोसाइटी के लोगों ने दिखाई एकजुटता

मणिपुर हिंसा के विनाशकारी परिणामों से जूझ रहा है, नागरिक समाज समूहों और व्यक्तियों की ये एकजुट आवाज़ें तत्काल कार्रवाई, जवाबदेही और राज्य को त्रस्त करने वाले गहरे विभाजनों को ठीक करने की प्रतिबद्धता को प्रतिध्वनि करती हैं।
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फाइल फ़ोटो। PTI

मणिपुर मे बीते एक महीने से अधिक जारी हिंसा को लेकर देश के अलग-अलग हिस्सों से 500 से अधिक सिविल सोसाइटी के लोगों ने एकजुटता दिखाते हुए बयान जारी किया है। उन्होंने आज 16 जून को अपने एक संयुक्त बयान में राज्य और सुरक्षा बलों द्वारा जारी विभाजनकारी राजनीति को तत्काल समाप्त करने का आह्वान किया और इसमें शामिल सभी पक्षों से इस हिंसा को तुरंत रोकने की अपील की है। क्योंकि इसके कारण लोगों के जीवन, आजीविका और संपत्तियों की हानि हो रही है तथा लोगों के बीच दहशत फैल रही है।

मई 2023 की शुरुआत से मणिपुर में फैली जातीय हिंसा के लिए गहरी चिंता जाहिर करते हुए प्रधानमंत्री को राज्य के पहाड़ी और घाटी क्षेत्रों में चल रहे गृह युद्ध पर अपनी चुप्पी तोड़ने पर जोर दिया है। हस्ताक्षरकर्ता हिंसा को तत्काल रोकने की मांग करते हैं, जिससे महत्वपूर्ण व्यवधान, विस्थापन और जीवन का नुकसान न हो। गौरतलब है कि 50,000 से अधिक लोग 300 से अधिक शरणार्थी शिविरों में हैं, जबकि अनगिनत अन्य लोगों को अपने घरों से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा है।

संयुक्त बयान स्पष्ट रूप से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और उसकी केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को मौजूदा स्थिति के लिए जिम्मेदार ठहराता है। 

संयुक्‍त बयान में अरामबाई तेंगगोल और मेइती लेपुन जैसे सशस्त्र मेइती बहुसंख्यक समूहों द्वारा कुकियों के खिलाफ की जा रही हिंसा पर चिंता व्यक्त की गई  है। 

बयान में मणिपुर की मौजूदा स्थिति के लिए प्रधानमंत्री की जवाबदेही सहित सरकार से कई प्रमुख कार्यों की मांग की गई है। यह तथ्यों को स्थापित करने, न्याय को बढ़ावा देने और समुदायों के बीच उपचार और शांति बढ़ावा देने के लिए एक अदालत-निगरानी न्यायाधिकरण की मांग करता है। इसके अतिरिक्त, हस्ताक्षरकर्ता वर्मा आयोग द्वारा अनुशंसित राज्य और गैर-राज्य दोनों  तरह के लोगों  द्वारा किए गए यौन हिंसा के मामलों को संबोधित करने के लिए एक फास्ट-ट्रैक कोर्ट की स्थापना पर जोर देते हैं।

इसके अलावा, बयान उन लोगों को राहत प्रदान करने के महत्व पर जोर देता है जो अपने घरों और आजीविका के पुनर्निर्माण सहित अपने घरों से भागने को मजबूर हैं और उनकी सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करने की मांग की गई है। वापसी, पुनर्वास और मुआवज़े की इस प्रक्रिया की देखरेख के लिए, हस्ताक्षरकर्ताओं ने एक पैनल के गठन का प्रस्ताव दिया है, जिसमें क्षेत्र से परिचित सेवानिवृत्त न्यायाधीश शामिल हों, जिन्हें संभावित रूप से उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त किया जाएगा।

इस बयान का समर्थन सांसद मनोज कुमार झा, सेवानिवृत्त नौकरशाह मीना गुप्ता, पी गंगटे और मीरान बोरवंकर के साथ-साथ कार्यकर्ता कविता श्रीवास्तव, मीरा संघमित्रा, बृंदा अडिगे और सेड्रिक प्रकाश ने किया। उल्लेखनीय है कि शिक्षाविदों, पत्रकारों, फिल्म निर्माताओं, लेखकों और वकीलों अपीलकर्ताओं का समर्थन किया है।

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