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बंधुआ हालत में मिड डे मील योजना में कार्य करने वाली महिलाएं, अपनी मांगों को लेकर लखनऊ में भरी हुंकार

मिड डे मील योजना में काम करने वाली रसोइयों का आक्रोश उस समय सामने आया जब वे अपनी मांगों के साथ 29 नवम्बर को लखनऊ के इको गार्डेन में "उत्तर प्रदेश मिड डे मील वर्कर्स यूनियन" के बैनर तले एक दिवसीय धरने में शामिल होने आईं।
 Mid Day Meal Workers

"वर्षों से हम बेहद अपमानजनक और कठिन परिस्थितियों में अपना काम पूरी निष्ठा से कर रहे हैं, रसोइया के काम के आलावा विद्यालय के सफाई कर्मचारी, चपरासी का भी काम हम से ही लिया जाता है। घास काटने से लेकर शौचालय साफ करने तक का काम रसोइया कर रही हैं,  देश को धुआँ मुक्त करने का दावा करने वाली सरकार अपने विद्यालयों में अभी भी कई जगह जुगाड़ की लकड़ी से रसोइयों से खाना बनवा रही है।

हजार, डेढ़ हजार मामूली भर मानदेय मिलता है उसमें भी समय से भुगतान करने में सरकार का पसीना छूट जाता है, अगर सरकार के पास हमारे लिए पैसा नहीं तो बन्द कर दे इस योजना को....." मिड डे मील योजना में काम करने वाली रसोइयों का यह आक्रोश उस समय सामने आया जब वे अपनी मांगों के साथ 29 नवम्बर को लखनऊ के इको गार्डेन में  "उत्तर प्रदेश मिड डे मील वर्कर्स यूनियन"  (एक्टू सम्बद्ध) के बैनर तले एक दिवसीय धरने में शामिल होने आईं। धरने में राज्य के विभिन्न जिलों, लखनऊ, गोरखपुर, देवरिया, जौनपुर, सोनभद्र, रायबरेली, सीतापुर, कानपुर आदि से सैकड़ों रसोइया शामिल हुईं।

इस एक दिवसीय धरने में कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय की रसोइया भी शामिल हुईं। इन आवासीय विद्यालयों में काम करने वाली रसोइयों को चौबीस घंटे वहीं रहना पड़ता है, जब कभी छुट्टी मिल पाती है तभी वे अपने परिवार से मिलने जा पाती हैं। ये कहती हैं इनकी समस्या और विकराल है। रायबरेली जिले के जगतपुर ब्लॉक से आईं आवासीय विद्यालय की रसोइया उमा देवी अपनी समस्या बताते-बताते रो पड़ीं।

वे कहती हैं चौबीस घंटे हम आवासीय विद्यालय की रसोइया कार्यरत रहती हैं, बमुश्किल कभी हमें जरुरत पड़ने पर महीने में एक या दो दिन की छुट्टी मिल पाती है , हमारे लिए विद्यालय में रहने के लिए बेहतर व्यवस्था भी नहीं होती। यहां तक कि हमें अपने भोजन का इंतजाम भी खुद करना पड़ता है। यदि कभी विद्यालय में बनाए खाने से कुछ बच जाता है तभी हम उसमें से खा पाते हैं अन्यथा हमारे लिए यह निश्चित तक नहीं कि हम जो भोजन बना रहे हैं उसमें हमारा भी हिस्सा है। 

उमा कहती हैं विद्यालय में हम जहां रहते हैं वहां बरसात में छत टपकती है किसी तरह बिस्तर को प्लास्टिक से ढककर रखा जाता है ताकि बिस्तर गीला न हो जाए। उनके मुताबिक तमाम परेशानियों और बेइंतहा काम के बाद क्या मिलता है। केवल चार हजार, पांच हजार रूपए, जो कुछ पुरानी रसोइया है उन्हें छह हजार तक, बस उस पर भी वेतन कभी पूरा नहीं मिलता, हमेशा कुछ न कुछ तो कट ही जाता है।

आवासीय विद्यालय की अन्य रसोइया सरोजनी देवी कहती हैं मात्र चार हजार में इसी उम्मीद में खट रही हूं कि शायद सरकार हमारे लिए भी कुछ सोचेगी और हमारी स्थिति बेहतर करने के लिए हमारे लिए भी एक सम्मानजनक वेतन तय करेगी।

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बक्शी का तालाब, लखनऊ की रहने वाली 53 वर्षीय मधु शुक्ला मिड डे मील के तहत रसोइया थीं। मधु के पति की मौत हो चुकी है। गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली मधु कहती हैं रसोइया की नौकरी करते वक्त थोड़ा बहुत जो भी मानदेय मिलता था उससे घर चलाने में कुछ मदद मिल ही जाती थी लेकिन पिछले एक साल से बेरोजगार हो गई हूं। नौकरी चली गई, कसूर केवल इतना था कि रिश्तेदारी में किसी की मौत होने पर अचानक वहां जाना पड़ा, क्योंकि उन्होंने पहले से छुट्टी नहीं मांगी थी तो इसी बात से गुस्साए प्रधानाचार्य ने उनकी सेवा समाप्त कर दी। 

मधु के गांव में रहने वाली अन्य रसोइयों के मुताबिक मधु को नियम के विरुद्ध निकला गया है लिखित रूप से कुछ नहीं दिया गया बस मौखिक तौर पर सेवा समाप्त कर दी गई। जबकि एक साल से उसकी जगह किसी अन्य रसोइए को भी नहीं रखा। बार-बार स्कूल प्रशासन से अनुरोध करने के बावजूद मधु शुक्ला को वापस काम पर नहीं रखा जा रहा। मधु के साथ की रसोइए कहती हैं काम के नाम पर लगातार हमारा शोषण जारी है, हमारा काम केवल खाना बनाना और बच्चों को खिलाना है लेकिन हमसे अन्य काम तक करवाए जाते हैं,  यहां तक जो काम सफाई कर्मचारी का है वह काम तक करना पड़ रहा है और इन सबके बदले मिलता है तो सिर्फ पन्द्रह सौ रुपए। वो भी समय पर नहीं मिलता और हद यह कि हम छुट्टी मांगने के भी हकदार नहीं”

उत्तर प्रदेश मिड डे मील वर्कर्स यूनियन की प्रदेश संयोजिका साधना पांडेय ने कहा कि दुनिया के किसी भी मुल्क में इतने कम मेहनताने पर काम नही लिया जाता। केन्द्र व प्रदेश की सरकारें सभी नियम क़ानूनों को ताक पर रख कर 1500रू में गुलामी करवा रही हैं। माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने भी अपने आदेश मे 15-12-2020 को कहा कि यह बंधुआ मजदूर नही हैं, इन्हे न्यूनतम वेतन वर्ष 2005 से एरियर सहित भुगतान किया जाए। पर सरकार ने उसके अनुपालन मे कोई रूचि नही दिखायी। उन्होने आगे कहा कि  जो सरकार मानदेय् का 6-7 माह तक भुगतान नही करती उससे कोई उम्मीद नही है, संघर्ष ही वह रास्ता है जिसपर चलकर ज़िन्दा रहने का हक हासिल किया जा सकता है। वहीं सीतापुर से आईं संगठन की सह संयोजक सरोजनी जी ने कहा कि सरकार इस काम को भी पूँजीपतियों के हवाले करने की दिशा मे बढ़ रही है, किंतु इसका निजीकरण किसी दशा मे नही होने दिया जायेगा। उन्होंने कहा हर क्षेत्र के सभी स्कीम वर्कर्स लगभग एक जैसे शोषण के शिकार हैं, इसलिये सभी स्कीम कर्मियो को साझे संघर्ष की तरफ बढ़ना होगा। उनके मुताबिक एक व्यापक एकता व संघर्ष के जरिये इस मेहनतकश विरोधी फासिस्ट सरकार से लड़ा और जीता जा सकता है। उन्होंने किसान आंदोलन की जीत का उदाहरण देते हुए कहा कि मजदूर वर्ग को भी अपने छीने जा रहे अधिकारों की हिफ़ाज़त और हक को हासिल करने के लिए उनसे एकता और संघर्ष का पाठ सीखना होगा।

मिड डे मील वर्कर्स की लखनऊ जिला संयोजिका कमला गौतम ने कहा कि इस योजना को स्थाई करने की लडाई हमें लड़नी होगी क्योंकि सरकार लगभग सभी कल्याणकारी योजनाओं को एक-एक कर बन्द कर रही है, इसलिये इसे स्थायी करने के साथ-साथ 15 वर्षों से अपना जीवन खपा रही रसोईया कर्मियों को भी स्थाई राज्य कर्मी का दर्जा हासिल करने के लिए लड़ना होगा।

धरने को  ऐक्टू के राज्य सचिव अनिल वर्मा,  अर्जुन लाल, उपाध्यक्ष प्रेम लता पांडेय, शकील जैदी,  शंभू नाथ तिवारी, राम सिंह, गौरव सिंह, एक्टू के राज्य अध्यक्ष विजय विद्रोही, अफरोज आलम आदि ने भी सम्बोधित किया। ऐक्टू लखनऊ के ज़िलाध्यक्ष चन्द्र भान, सचिव मगन, राना प्रताप सिंह, प्रेम लता पांडेय, उपाध्यक्ष ऐक्टू, कानपुर से सुमन जी (संयोजक) व अनुपमा (सह संयोजक, सीतापुर से सरोजनी जी (राज्य सह संयोजक), सोन भद्र से मो. कलीम, राय बरेली से सुशीला,(संयोजक), लखनऊ से कमला गौतम (संयोजक), उमा जी (कस्तुरबा) देवेंद्र कुमार(कस्तुरबा) के नेतृत्व मे रसोईया कर्मी धरने मे शामिल हुईं।

बाद मे जोरदार प्रदर्शन करते हुये मार्च निकाला गया और न्यूनतम वेतन के संदर्भ मे 2020 दिसम्बर के उच्च न्यायालय के आदेश के पालन के क्रम मे एरियर सहित भुगतान, सेवा नियमावली निर्मित करने, चतुर्थ श्रेणी के राज्य कर्मचारी का दर्जा देने, मातृत्व व आकस्मिक अवकाश के साथ ग्रीष्म कालीन अवकाश दिये जाने, केंद्रीयकृत रसोईया व निजीकरण न करते हुये इसे स्थायी स्वरूप दिये जाने सम्बंधित मांग पत्र मुख्यमंत्री को भेजा गया।

(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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