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मीरगंज रेडलाइट एरियाः देह व्यापार में धकेली गईं 200 से ज़्यादा महिलाओं को आख़िर कैसे मिला इंसाफ़?

EXCUSIVE:  यह दुनिया में सबसे बड़ा मामला है,  जिसमें एक साथ 41 मानव तस्करों को कठोर कारावास और जुर्माने की सजा सुनाई गई है। इसी प्रकरण में आगरा के राजकीय नारी संरक्षण गृह की अधीक्षक गीता राकेश को आजीवन कारावास (सांस  चलने तक) की सजा मुकर्रर हुई है। समाज को कलंकित करने वाली गीता वो इंसान है जिसने प्रयागराज के मीरगंज रेडलाइट एरिया से आजाद कराई गईं 200 से अधिक पीड़िताओं में से 43 लड़कियों को दोबारा मानव तस्करों के हवाले कर दिया था।
Mirganj Redlight Area
प्रयागराज के मीरगंज की रेडलाइन एरिया में छापेमारी

भारत दुनिया का ऐसा देश है जो हर साल करीब पौने तीन लाख औरतों के खिलाफ होने वाले अपराध का कलंक अपने माथे पर पोत लेता है। इन्हीं में एक है इलाहाबाद के मीरगंज रेडलाइट एरिया की वह सनसनीखेज वारदात जिसमें मानव तस्करों ने करीब दौ सौ लड़कियों को वेश्यावृत्ति के दलदल में धकेल दिया गया था। करीब छह बरस पहले हुई छापेमारी के बाद 41 मानव तस्करों के खिलाफ सजा अब सुनाई गई है। इसमें 15 लोगों को चौदह-चौदह और 26 अन्य को दस-दस साल के कठोर कारावास की सजा मुकर्रर की गई है और भारी-भरकम जुर्माना भी लगाया गया है। मानव तस्करी और बलात वेश्यावृत्ति के इस चर्चित मामले में ज्यादातर अभियुक्त महिलाएं ही हैं। अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश रचना सिंह ने 25 जनवरी 2022 को उत्तर प्रदेश बनाम दुर्गा कामले आदि याचिकाओं पर सुनवाई के बाद मानव तस्करों के लिए जो सजा मुकर्रर की है, उससे उन लाखों पीड़िताओं में उम्मीद की लौ जलनी शुरू हुई है जो देश के तमाम वेश्यालयों में बंधक हैं।

मानव तस्करी को आम भाषा में ‘कबूतरबाजी’  कहा जाता है और इसे आधुनिक गुलामी के रूप में भी जाना जाता है। ह्यूमन ट्रैफिकिंग के खिलाफ पिछले तीन दशक से मुहिम चला रही बनारस की संस्था गुड़िया ने उत्तर प्रदेश के प्रयागराज स्थित मीरगंज रेडलाइट एरिया में मानव तस्करों और बलात वेश्यावृत्ति का धंधा कराने वालों से जिस तरह लोहा लिया, वह कई बार हमें यह भी सोचने पर मजबूर कर देता है कि यह लड़ाई क़ानून की है या फिर इंसाफ़ की? 

मीरगंज की पीड़िताओं को न्याय दिलाने के लिए गुड़िया को 252 मुकदमे लड़ने पड़े। सेशन कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक कई अधिवक्ताओं ने फीस भी नहीं ली, इसके बावजूद छह साल तक चले इन मुकदमों की पैरवी करने में संस्था को करीब 1.50 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े। वेश्यावृत्ति के धंधे में फंसी लड़कियों का वेरिफिकेशन करने में गुड़िया के स्वयंसेवकों को देश के कई राज्यों के हजारों गांवों में दस्तक देनी पड़ी। बंधक बनी लड़कियों का घर खोजना इसलिए चुनौती भरा कदम था, क्योंकि पुलिस ने अपने हाथ खड़े कर दिए थे। यह दुनिया में सबसे बड़ा ऐसा मामला है,  जिसमें एक साथ 41 मानव तस्करों को कठोर कारावास और जुर्माने की सजा सुनाई गई है। इसी प्रकरण में आगरा के राजकीय नारी संरक्षण गृह की अधीक्षक गीता राकेश को आजीवन कारावास (सांस  चलने तक) की सजा हुई है। समाज को कलंकित करने वाली गीता वो इंसान हैं जिन्होंने प्रयागराज के मीरगंज रेडलाइट एरिया से आजाद कराई गई  200 से अधिक पीड़िताओं में से 43 लड़कियों को दोबारा मानव तस्करों के हवाले कर दिया था।

कैसे चला था "आपरेशन फ्रीडम"

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज स्थित मीरगंज रेडलाइट एरिया में वेश्यावृत्ति के लिए तस्करी कर लाई गई लड़कियों को आजाद कराने के लिए जो पटकथा तैयार की गई थी, वह सिर्फ गंभीर ही नहीं, काफी रोचक भी है। हाईकोर्ट के निर्देश पर प्रयागराज जिला प्रशासन ने 1 मई 2016 को मीरगंज में छापेमारी की। इस छापे को नाम दिया गया था "आपरेशन फ्रीडम"। मीरगंज में वेश्याओं के कोठों से एक साथ दो सौ से अधिक लड़कियां और बच्चे बरामद हुए तो यह मामला सुर्खियों में छा गया। किसी भी रेडलाइट इलाके में एक साथ 61 वेश्यागृहों को सीज करने की यह पहली कार्रवाई थी। मानव तस्करी में एक साथ इतने अभियुक्तों को सजा भी पहली मर्तबा हुई है।

पूर्वांचल के प्रयागराज स्थित मीरगंज और वाराणसी के शिवदासपुर में पुलिस के संरक्षण में पिछले कई दशक से रेड लाइट एरिया आबाद है। गुड़िया के संचालक अजित सिंह ने करीब तीन दशक पहले मानव तस्करी और बलात वेश्यावृत्ति के खिलाफ मुहिम शुरू की थी। मीरगंज का रेड़लाइट इलाका इसलिए ज्यादा बदनाम था, क्योंकि यहां नाबालिग बच्चियों से भी वेश्यावृत्ति का धंधा कराया जा रहा था। गरीब घरों से खरीद कर लाई गई बेटियों को आजाद कराकर उन्हें पुनर्वासित करने के लिए साल 2015 में गुड़िया ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में पीआईएल दाखिल की। इस मामले में सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने 13 जनवरी 2016 को प्रयागराज जिला प्रशासन से मीरगंज इलाके में वेश्यावृत्ति उन्मूलन के संबंध में रिपोर्ट तलब की। 12 फरवरी 2016 को जिलाधिकारी संजय कुमार की अध्यक्षता में एक हाई लेवल कमेटी गठित हुई, जिसकी पहली बैठक 24 फरवरी 2016 को हुई। गुड़िया के सहयोग से मीरगंज रेडलाइट इलाके में आपरेशन फ्रीडम चलाने के लिए अफसरों ने पुख्ता रणनीति तैयार की।

प्रयागराज जिला प्रशासन ने 25 फरवरी 2016 को गुड़िया से मीरगंज रेडलाइट एरिया में वेश्यावृत्ति उन्मूलन और पीड़िताओं की पहचान के लिए एक विस्तृत कार्ययोजना मांगी। 27 फरवरी 2016 को मीरगंज रेडलाइट एरिया में रेकी आपरेशन के लिए गुड़िया के संचालक अजित सिंह को निर्देश मिला। "आपरेशन फ्रीडम" के लिए संस्था ने खुद स्पाई कैमरा, वायस रिकार्डर के अलावा जासूसी तमाम उकरणों का इस्तेमाल किया। अजित सिंह अपने सहयोगियों के साथ खुद मीरगंज के रेडलाइट एरिया गलियों में भेष बदलकर चक्रमण करते। कभी लिपिस्टिक और पाउडर बेचा तो कभी बहुरुपिया के भेष में घूमते रहे। "आरपेशन फ्रीडम" चलाने से कुछ रोज पहले प्रशासन ने गुड़िया संस्था के वालेंटियर्स को स्वास्थ्य कार्यकर्ता बनाकर एक साथ सभी कोठों में भेजा। यह अभियान 16 मार्च 2016 तक चला, जिसकी रिपोर्ट प्रयागराज के डीएम को सौंपी गई। 22 मार्च 2016 को डीएम ने अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम की धारा-सात के तहत मीरगंज समेत शहर के अन्य इलाकों में वेश्यावृत्ति को प्रतिबंधित करने के लिए विधिवत अधिसूचना जारी की। जिलाधिकारी के निर्देश पर एलआईयू, राजस्व विभाग और नगर निगम की टीमों को भी वेश्यालयों में भेजा गया। उन सभी भवनों की रेकी कराई गई और उनके मालिकों का ब्योरा जुटाया गया, जहां वेश्यालय संचालित किए जा रहे थे। कई वेश्यालयों में बड़ी संख्या में छोटी-छोटी बच्चियों से देह का धंधा कराया जा रहा था।

गुड़िया के अध्यक्ष अजित सिंह बताते हैं, "आपरेशन फ्रीडम के दौरान मानव तस्करों और वेश्यावृत्ति का धंधा संचालित करने वालों को हमारे रेकी की भनक लग गई थी। कुछ ही दिनों में उन्होंने कई लड़कियों को मुंबई, दिल्ली और बंगाल आदि में शिफ्ट कर दिया था। 19 अप्रैल 2016 को अजित सिंह के निर्देश पर गुड़िया के सोशल एक्टिविस्ट सुनील कुमार ने मीरगंज रेडलाइट एरिया में तत्काल छापेमारी करने और पीड़िताओं को बचाने के लिए डीएम संजय कुमार को चिट्ठी भेजी। आनन-फानन में 24 अप्रैल 2016 को कलेक्टर ने उन सभी भवन स्वामियों को समन जारी करते हुए आदेश दिया कि वो तत्काल प्रशासन को भरोसा दिलाएं कि उनके यहां कोई अनैतिक कार्य नहीं हो रहा है। 30 अप्रैल 2016 को प्रशासन ने उन सभी भवनों को सीज करने का निर्देश दिया जहां वेश्यालयों का संचालन किया जा रहा था। इसी आदेश के अनुपालन में 1 मई 2016 को देश का सबसे बड़ा रेस्क्यू अभियान "अपरेशन फ्रीडम" चलाया गया। इस अभियान का नेतृत्व खुद डीएम संजय कुमार और एसएसपी सुनील इमैनुवल के साथ गुड़िया के अध्यक्ष अजित सिंह ने किया। पुलिसिया छापे में कुल 48 मानव तस्करों और कोठा मालिकों की गिरफ्तारी की गई। एक ही दिन में 136 पीड़िताओं समेत 200 से अधिक बंधकों को मुक्त कराया गया, जिनमें कुछ बच्चे-बच्चियां भी शामिल थे। छापेमारी में एक ही दिन में 24 मकानों में 61 कोठों को सीज कर दिया गया। यह अभियान देश का सबसे बड़ा रेस्क्यू अभियान बना, जहां एक साथ बड़ी संख्या में पीड़िताओं की बरामदगी हुई। ये पीड़िताएं कर्नाटक, मुंबई, राजस्थान, आगरा, नेपाल, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र की थीं।" 

हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट ने दी ताकत

वेश्यावृत्ति की दलदल में फंसी लड़कियों को न्याय दिलाने में गुड़िया के चीफ लीगल एडवाइजर गोपाल कृष्ण ने लोअर कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पैरवी करने में अहम भूमिका निभाई। वह कहते हैं, "ऊपर की अदालतें सख्ती नहीं बरततीं तो "आपरेशन फ्रीडम" चलाया जाना संभव नहीं हो पाता। इस रेस्क्यू आपरेशन के बाद बरादमशुदा पीड़िताओं को अपनी कस्टडी में लेने के लिए मानव तस्करों ने हर संभव कोशिश की और पानी की तरह पैसे भी लुटाए। उन्होंने सत्र न्यायालय से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में कई याचिकाएं डाली, जिसका गुड़िया ने कड़ा विरोध किया। नतीजा, गुड़िया के अध्यक्ष अजित सिंह और उनके साथ जुड़े सभी एक्टिविस्टों और अधिवक्ताओं को धमकियां दी जाने लगीं। पैरवी करने में हम पीछे नहीं हटे, जिसके चलते सभी अभियुक्तों की जमानतें सुप्रीम कोर्ट तक ने खारिज कर दी। इस मामले का एक हैरान कर देने वाला पहलू यह भी रहा कि जिला सत्र न्यायालय में फर्जी अभिलेख लगाकर मानव तस्करों ने दस पीड़िताओं को अवैध तरीके से फिर अपने कब्जे में ले लिया। लाचारी में गुड़िया को फिऱ सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर करनी पड़ी। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर पुलिस ने इन्हें ढूंढा और दोबारा आगरा स्थित नारी संरक्षण गृह में पुनर्वासित कराया।"

अधिवक्ता गोपाल कृष्ण यह भी कहते हैं, "जिन 12 अभियुक्तों को हाईकोर्ट ने जमानत दी थी, गुड़िया ने सुप्रीम कोर्ट से उनकी जमानतें निरस्त करा दी। उसी दौरान कोर्ट ने यह भी आदेश पारित कर दिया कि हर महीने में कम से कम दस दिन इस प्रकरण की सुनवाई हो। इसी दौरान कोर्ट ने उन्हें पैरवी करने पर रोक लगा दी तो गुड़िया फिर सुप्रीम कोर्ट गई। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने संस्था के अधिवक्ता को मौखिक और लिखित दोनों बहस सत्र न्यायालय स्वीकर करने के लिए आदेश पारित किया।"

मानव तस्करी के इस संगीन मामले में गुड़िया के अधिवक्ता गोपाल कृष्ण के अलावा कौशलेश सिंह और उमाशंकर सिंह ने अभियोजन की ओर से अभियुक्तों के खिलाफ करीब दो हजार पन्नों का बयान और अन्य अभिलेख कोर्ट में पेश किया। इस मामले में लगातार 65 दिनों तक बहस चली। रोचक पक्ष यह भी रहा कि जैसे ही कोर्ट में बहस समाप्त होती थी और मामला फैसले तक पहुंचता था वैसे ही आश्चर्य ढंग से जज का तबादला हो जाता था। इस मामले की सुनवाई के दौरान कुल पांच जज बदले, तब गुड़िया ने फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। संस्था का कहना था कि मानव तस्करी जैसे संगीन मामलों में सुप्रीम कोर्ट के आदेश और न्याय की भावना का हनन हो रहा है। आखिरी मर्तबा सुप्रीम कोर्ट ने अपर जिला जज रचना सिंह को इस मामले में सुनवाई कर फैसला देने के लिए फाइल अलाट किया।

देश में पहली मर्तबा मीरगंज रेडलाइट एरिया में चलाए गए ऐतिहासित मुक्ति अभियान में आजाद कराई गई लड़कियों का पक्ष सुनने में पीठासीन अधिकारी (एडीजे) रचना सिंह को डेढ़ साल लग गए। इस दरम्यान गुड़िया को इसी प्रकरण से संबंधित विभिन्न अदालतों में करीब 252 अन्य मुकदमों का सामना करना पड़ा। सुनवाई के दौरान छह अभियुक्तों की मौत हो गई,  जबकि एक अभियुक्त लापता हो गया। सुनवाई के दौरान गुड़िया के अधिवक्ताओं ने कहा कि मानव तस्करी और बलात वेश्यावृत्ति समाज के लिए अभिशाप हैं। अभियुक्तों ने निंदनीय, घिनौना और तुच्छ कार्य किया है। जिन बालिग और नाबालिग लड़कियों को यहां लाकर उनसे उनकी इच्छा के खिलाफ व्यभिचार कराया, उससे कमाई की और उनके साथ क्रूरता का व्यवहार किया, इसके लिए अपराधियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाए।

फफक कर रोने लगे मानव तस्कर

अपर सत्र न्यायाधीश रचना सिंह ने 205 पन्ने का फैसला सुनाया तो कई आरोपी कोर्ट के अंदर ही फूट-फूटकर रोने लगे। इन्हें सजा सुनाने के लिए प्रयागराज के नैनी जेल से लाया गया था। मीरगंज में लड़कियों से देह व्यापार कराने के अपराध में जिला अदालत ने 25 जनवरी 2022 को 41 आरोपियों को सजा सुनाई, जिनमें 15 लोगों के लिए 14-14 साल और 26 को 10-10 साल के कठोर कारावास की सजा मुकर्रर की गई। इसके अलावा आरोपियों पर अलग-अलग धाराओं के अनुसार जुर्माना भी लगाया गया है। कोर्ट में कुल 37 आरोपी लाए गए थे, जबकि चार आरोपी कृष्णा, उषा, तिल्लो और शुभम अग्रहरि को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए सजा सुनाई गई। आरोपियों में अधिकांश महिलाएं हैं।

आरोपियों पर देह व्यापार निरोधक अधिनियम की धारा तीन, चार, पांच, छह, सात नौ और आईपीसी की धारा 370 और 373 के तहत आरोप तय किए गए थे। कोर्ट ने अलग-अलग धाराओं में जुर्माने के साथ अलग-अलग सजा सुनाई। मामला चर्चित होने की वजह से 25 जनवरी 2022 को न्यायालय भवन के भूतल से लेकर चतुर्थ तल तक एसपी सिटी और चार डिप्टी एसपी अपने साथ बड़ी संख्या में फोर्स के साथ मौजूद रहे। इस मामले में जिन लोगों को कारावास का दंड सुनाया गया उनमें दुर्गा कामले, मनीषा, रेखा, मीनाक्षी, सत्यभामा, कृष्णा सामंत, कांची सिंह, सचिन श्रीवास्तव, शुभम अग्रहरि, कौशल सामंत, बबलू सिंह, अभिषेक कुमार, मुन्नी देवी, शीला देवी और पिंकी को 14-14 साल की सजा के अलावा जुर्माना लगाया गया है। इनके अलावा स्वर्णलता, रागिनी, संगीता, गुलकंदी, सुमन, रीना, हसीना, कृष्णा, सुनील कुमार, राजू, आशीष कुमार सिंह, सुजाता, विमला, सुमन तंगेवार, सुमित्रा, सुभद्रा, रन्नो, मीना, रानी देवी, टिल्लो, बाबी, रजनी सामंत, उषा, पिंकी, रेखा और अरविंद कुमार को 10-10 साल की सजा काटनी होगी। अपर सत्र न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा है कि आरोपियों ने जो सजा काट ली है, उसे बाकी की सजा में समायोजित कर दिया जाए।

फैसले से संतुष्ट नहीं गुड़िया

मीरगंज रेडलाइट एरिया में बंधक बनाकर वेश्यावृत्ति कराने के मामले में जिला एवं सत्र न्यायालय के फैसले से गुड़िया के अधिवक्ता और एक्टिविस्ट संतुष्ट नहीं हैं। अधिवक्ता गोपाल कृष्ण कहते हैं, "जिला एवं सत्र न्यायालय के फैसले से सही मायने में पीड़िताओं को न न्याय मिला और न ही दोषियों को वाजिब दंड। जिन 11 धाराओं में अभियुक्तों को सजाएं हुई हैं उनमें सात ऐसी हैं जिनमें सात साल से लेकर आजीवन करावास का प्रावधान है। पीड़िताओं को क्षतिपूर्ति देने के लिए कोर्ट ने कोई आदेश पारित नहीं किया है। धारा 357 सीआरपीसी में स्पष्ट किया गया है कि इस तरह के मामलों में पीड़िताओं को अनिवार्य रूप से क्षतिपूर्ति दी जाए। सभी अभियुक्तों पर जुर्माना तो लगाया गया है, लेकिन उसका कोई भी हिस्सा पीड़िताओं को देने का आदेश पारित नहीं किया गया है। कोर्ट ने अपने आदेश में माना है कि इस केस में 150 से ज्यादा लड़कियों को अभियुक्त देश-विदेश के अलग-अलग हिस्सों से मीरगंज लेकर आए और उन्हें वेश्यागृहों में बंधक बनाकर जबरिया वेश्यावृत्ति कराई। यह सभी लड़कियां बेहद गरीब और निम्न परिवारों की हैं। गुड़िया का मानना है कि पीड़िताओं के पुनर्वासन और समाज में सम्मानजक ढंग से जीने के लिए क्षतिपूर्ति दिया जाना बेहद जरूरी है। कोर्ट ने पुलिस प्रशासन और सरकार के लिए भी कोई ऐसा आदेश पारित नहीं किया जिससे उन लड़कियों को खोजकर लाया जा सके, जिन्हें मानव तस्करों ने कहीं और बेच दिया है। हम कैसे मान लें कि सभी पीड़िताओं को न्याय मिला गया। अभियुक्तों की संपत्तियों की सीजर की कार्रवाई तक नहीं हुई। पीड़िताओं को क्षतिपूर्ति योजना से लाभान्वित कराने के लिए गुड़िया फिर से हाईकोर्ट में अपील करने जा रही है।"

महिला अफसर को ताउम्र क़ैद

एक मई 2016 को प्रयागराज के मीरगंज में चलाए गए "आपरेशन फ्रीडम" के बाद जिन लड़कियों को बरामद किया गया उनमें से 64 पीड़िताओं और 33 बच्चों को आगरा स्थित राजकीय नारी संरक्षण गृह भेजा गया था। बाद में 43 पीड़िताओं और आठ बच्चों को वहां की अधीक्षिक गीता राकेश ने मानव तस्करों के हवाले कर दिया। गीता ने इसके लिए न तो प्रार्थनापत्र लिए, न पहचान-पत्र और न ही बंधन-पत्र भरवाए। जांच के बाद महिला कल्याण विभाग के उप मुख्य परिवीक्षा अधिकारी पुनीत कुमार मिश्र ने एक जून 2017 को थाना एत्माद्दौला में मानव तस्करी, पाक्सो एक्ट में रिपोर्ट दर्ज कराई। उसी दिन गीता राकेश को गिरफ्तार कर भेज दिया गया।

नारी संरक्षण गृह की अधीक्षक गीता राकेश पर मानव तस्करी, पोक्सो एक्ट सहित कई अन्य गंभीर धाराओं में केस दर्ज हुआ था। गीता ने बिना किसी आदेश के 21, 22 और 23 मई 2017 को 43 संवासनियों और आठ बच्चों को छोड़ दिया था। चूंकि ये मामला नाबालिगों लड़कियों से जुड़ा था, इसलिए इसकी सुनवाई पोक्सो कोर्ट में हो रही थी। सुनवाई के दौरान गुड़िया के एक पैरोकार और एक अधिवक्ता की हत्या हो गई तो संस्था के अध्यक्ष अजित सिंह ने आगरा के एसएसपी को भेजे गए शिकायती-पत्र में आशंका जताई कि उनकी हत्याएं भी संभवतः मानव तस्करों ने ही कराई है।

बाद में 6 अक्टूबर 2018 को नारी संरक्षण गृह की बहुचर्चित अधीक्षक गीता राकेश के खिलाफ आखिरी सांस तक (आजीवन कारावास) की सजा सुनाई गई तो वह सहम गईं। कोर्ट ने उन पर 5.51 लाख रुपये अर्थदंड भी लगाया। गीता राकेश फ्रेंड्स कालोनी, इटावा की रहने वाली हैं। कोर्ट से अनुमति मिलने के बाद सुपुर्दगी में दी गईं 43 महिलाओं और आठ बच्चों को पुलिस खोजने के प्रयास में अभी तक जुटी हुई है।

रेडलाइट एरिया में खप गई ज़िंदगी

गुड़िया के अध्यक्ष अजित सिंह कहते हैं, "मीरगंज रेडलाइट एरिया को साफ करने में हमारा पूरा जीवन चला गया। अगर हम कफन बांधकर नहीं उतरते, तो वेश्यालयों में बंधक बनाई गई तामाम लड़कियों को न्याय नहीं मिल पाता। हमें कई बार इलाहाबाद के बादशाहबाग पुलिस चौकी में जलालत झेलनी पड़ी। पुलिस के प्रचंड असयोग के बावजूद सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने हमें ताकत दी, जिसके दम पर हमें कामयाबी मिली। गुड़िया ने अब तक 5185 लोगों को स्लेवरी से मुक्त कराया। मौजूदा समय में हम 3,168 मुकदमे लड़ रहे हैं। अब तक 802 मानव तस्करों की जमानतें खारिज कराई गई हैं और 122 को सजा दिलाने में हम कामयाब हुए। इस दौरान 321 नाबालिग लड़कियों को विटनेस प्रोटेक्शन दिलाया गया। 260 वेश्यालयों को बंद कराया गया और कोठों से मुक्त कराई गई 2,260 पीड़िताओं को रोजगार के लिए अनुदान मुहैया कराया गया।"

देश भर की कोठों में बंधक बनाकर वेश्यावृत्ति कराने वाले मानव तस्करों के खिलाफ मुहिम चला रहे अजित सिंह यह भी कहते हैं, "भारत में 12 लाख लड़किया बंधक हैं। मीरगंज की गलियों में लिपिस्टक-पाउडर बेचते हुए हमने 70 नाबालिग लड़कियों को अपने स्पाई कैमरे में कैद किया। हाईकोर्ट ने हमारे ऊपर तब विश्वास किया जब हमने बंधक बनाई गई लड़कियों के बारे में पुख्ता साक्ष्य पेश किया। हम भले ही सेक्स वर्कर्स के अधिकारों के लिए काम करते हैं, लेकिन इस धंधे से जुड़ी सभी महिलाओं तक नहीं पहुंच पा रहे हैं।"

मानव तस्करों के चंगुल में फंसी लड़कियों को आजाद कराने के लिए अजित सिंह को कई बार अपने जान की बाजी तक लगानी पड़ी। उनके हिम्मत और हौसले की सराहना करने के लिए सिने स्टार अमिताभ बच्चन ने "कौन बनेगा करोड़पति में" अजित सिंह और उनकी पत्नी को अतिथि के रूप में बुलाया। साथ ही गुड़िया की मुहिम के लिए आर्थिक मदद भी दी। पिछले साल लंदन से अजित सिंह को 21वीं सदी का आइकन अवार्ड मिला। इसके अलावा मदर टरेसा फार सोशल जस्टिस अवार्ड, सिविल लिवर्टी अवार्ड, रानी लक्ष्मी बाई अवार्ड के अलावा राष्ट्रपति के हातों से भी वह सम्मानित हो चुके हैं।

संगठित अपराध है मानव तस्करी

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, मादक पदार्थों और हथियारों की तस्करी के बाद मानव तस्करी को दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा संगठित अपराध माना गया है। अगर बात एशिया की हो तो भारत इस तरह के अपराधों का गढ़ माना जाता है। यह एक छिपा हुआ अपराध है, जो विश्वभर में लगभग हर देश में सभी तरह की पृष्ठभूमि वाले लोगों को प्रभावित करता है। अस्सी फीसदी मानव तस्करी जिस्मफरोशी के लिए ही होती है और बाकी बीस फीसदी बंधुआ मजदूरी अथवा अन्य प्रयोजनों के लिए। मानव तस्करी के मामलों में अधिकांश बच्चे भारत के पूर्वी इलाकों के बेहद गरीब व पिछड़े क्षेत्रों से होते हैं। गरीब परिवारों के पुरुष, महिलाएं या बच्चे काम की तलाश में मानव तस्करों के हत्थे आसानी से चढ़ जाते हैं। कई बार कुछ कर्ज या अग्रिम मेहनताने का लालच देकर ऐसे लोगों को बंधक बनाकर रखा जाता है।

मानव तस्करी जैसे घिनौने अपराध में संलिप्त एजेंट गांवों के बेहद गरीब परिवारों की कम उम्र की बच्चियों पर नजर रखते हैं और अवसर पाकर उनके परिजनों को कुछ रकम का लालच देकर उन्हें शहर में अथवा विदेश में अच्छी नौकरी दिलाने का झांसा देकर, बेहतर जिंदगी के सपने दिखाकर अनैतिक कार्यों में धकेल देते हैं। मानव तस्करी का यह धंधा कम से कम समय में भारी मुनाफा कमा लेने का जरिया बन गया है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार भारत में मानव तस्करी दूसरा सबसे बड़ा अपराध है, जो पिछले एक दशक में चौदह गुना बढ़ा है और सिर्फ साल 2014 में ही 65 फीसदी तक बढ़ा है। साल 2009 से लेकर साल 2014 के बीच ऐसे मामलों में 92 फीसद की बढ़ोतरी दर्ज हुई, जो बेहद चिंताजनक स्थिति है।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में हर आठ मिनट में एक बच्चा लापता हो जाता है। लगभग हर राज्य में मानव तस्करों का नेटवर्क फैला है, जहां बड़े पैमाने पर इस तरह के मामले सामने आते रहते हैं। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ को तो मानव तस्करी का मुख्य स्रोत और गढ़ माना जाता है, जहां लड़कियों को रेड लाइट एरिया के लिए खरीदा और बेचा जाता है। मानव तस्करी के दर्ज होने वाले 70 फीसदी से अधिक मामले इन्हीं राज्यों के होते हैं। वेश्यावृत्ति की दलदल में फंसने वाली ज्यादातर लड़किया दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यक परिवारों से आती हैं।

एक्टिविस्ट संत्वना मंजू कहती हैं, "महिलाओं पर जुल्म के मामले में फ़ैसले के रास्ते में सिस्टम की ऐसी धूल भरी फाइलें पड़ी हैं, जिन्हें पार करने में ही सालों-साल लग जाते हैं। औसतन हर 14वें मिनट में होते एक रेप वाले देश में ये धारा 375 बलात्कार की परिभाषा बताती है, लेकिन सज़ा जानने के लिए क़ानून का पन्ना पलटकर 376 तक आना पड़ता है। पीड़िताओं को भोगे हुए सच का दर्द और उसे साबित करने की लड़ाई आसान नहीं है। इस तरह के मामलों में पुलिस प्रशासन की घोर लापरवाही और अफसरों के अंदर बैठी पितृसत्ता किसी भी केस को आसानी से पलट देती है, क्योंकि 'त्रिया चरित्र' से नवाज़ी जाने वाली औरत जात पर भरोसा न करना हमारे संस्कारों में घुला हुआ है। हमारा मानना है कि 'सच' को हरदम सर उठाने का मौक़ा मिलना चाहिए। विश्वास का अभाव किसी भी समाज के लिए उसका अंत साबित होगा। ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का अभियान तो जोर-शोर से चलाया जा रहा है, लेकिन बेटियां कहां हैं और कैसे हालात में हैं, यह जानने में की दिशा में कोई कार्य नहीं हो रहा है?

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