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भारत
राजनीति
मोदी सरकार कोयला रॉयल्टी के देर से भुगतान पर जुर्माना करेगी कम 
रॉयल्टी की देर से भुगतान करने पर दंड आधा किया जाएगा। नए नियम वन भूमि कानून को डाइवर्ट करने से पहले ग्राम सभाओं को दरकिनार करने की अनुमति देते हैं।
अयस्कांत दास
30 Jul 2022
Translated by महेश कुमार
coal
'प्रतीकात्मक फ़ोटो' साभार: ANI

नई दिल्ली: यहां तक ​​कि बड़ी कॉरपोरेट संस्थाएं कोयला ब्लॉकों पर खनन का अधिकार हासिल करने के लिए कतार में खड़ी हैं, जिससे वे निकाले गए खनिजों को ऊंची कीमतों पर बेच सकें, उस पर मोदी सरकार ने रॉयल्टी का भुगतान देर से करने पर, जुर्माने की दर को आधा करने का प्रस्ताव किया है, जिस रॉयल्टी को पट्टाधारकों के लिए देना अब तक जरूरी था। कोयला खदानों से निकाले गए खनिजों के एवज़ में केंद्र सरकार को रॉयल्टी या पट्टे के भुगतान में देरी के खिलाफ जुर्माने की दर को 24 प्रतिशत से घटाकर 12 प्रतिशत किया जाएगा।

भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने उपरोक्त प्रस्तावित संशोधन इसलिए किए हैं ताकि उन क्षेत्रों में पीढ़ियों से रहने वाले स्थानीय समुदायों की सहमति के बिना जंगलों में खनिजों की खोज और खनन की सुविधा प्रदान की जा सके।

22 जुलाई को जारी एक सार्वजनिक नोटिस के माध्यम से, कोयला मंत्रालय ने खनिज रियायत नियम, 1960 में संशोधन करके खनन पट्टाधारकों के दंड की दर में ढील देने की बात की है। रॉयल्टी या पट्टे पर दिए जाने वाले खनिज ब्लॉकों की नीलामी से सरकारी खजाने को एकमात्र राजस्व मिलता है। हालांकि, सार्वजनिक नोटिस के माध्यम से, मंत्रालय ने जुर्माना दरों को कम करने की बात की है, इस तथ्य के बारे में कोई जिक्र नहीं है कि संशोधन "व्यापार करने में आसानी" के लिए किए जा रहे हैं, क्योंकि मोदी सरकार द्वारा अधिक से अधिक यह सुनिश्चित करना चाहती है कि इस नीति का सख्ती से पालन किया जाए ताकि देश के आर्थिक निज़ाम में निजी क्षेत्र की भागीदारी मजबूत हो।

“केंद्र सरकार ने ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कई पहले की हैं। विभिन्न कानूनों के तहत उलंघन या मामूली उल्लंघन का गैर-अपराधीकरण करना एक ऐसा कदम है जिससे उद्यमियों/नागरिकों को कारावास का जोखिम कम होगा। सार्वजनिक नोटिस में कहा गया है कि, कोयला मंत्रालय ने उन उल्लंघनों की पहचान करने के लिए खनिज रियायत नियम, 1960 (इसके बाद, "एमसीआर") में दंड प्रावधानों की समीक्षा की है, जिन्हें या तो अपराध से मुक्त किया जा सकता है या उल्लंघन के लिए जुर्माना कम किया जा सकता है।"

मूल या पुराने नियमों के तहत, रॉयल्टी के भुगतान में साठ दिनों से अधिक की देरी के लिए 24 प्रतिशत साधारण ब्याज/वार्षिक की दर से दंड की परिकल्पना की गई थी। केंद्र सरकार ने कोयले के अलावा अन्य खनिजों पर दिए जाने वाले पट्टों और रॉयल्टी के देर से भुगतान पर जुर्माना ब्याज दर पिछले साल पहले ही आधी कर दी थी। खनिज (परमाणु और हाइड्रो कार्बन ऊर्जा खनिज के अलावा) रियायत नियम, 2016 में संशोधन करके, केंद्र सरकार ने पहले ही विलंबित भुगतान पर देय ब्याज को पिछले वर्ष 24 प्रतिशत से घटाकर 12 प्रतिशत कर दिया था।

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ और सीसी) ने 28 जून को एक गजट अधिसूचना के माध्यम से वन संरक्षण नियमों का नया सेट जारी किया है। कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों का आरोप है कि इन कानूनों में बदलाव से अनुसूचित जाति से संबंधित समुदायों के लिए दूरगामी परिणाम होंगे। जनजातियों के साथ-साथ अन्य वनवासी, जो पिछली कई पीढ़ियों से खनिजों से समृद्ध भूमि पर रह रहे हैं वे सभी पीड़ित होंगे।

पहले, निजी कंपनियों को वन भूमि पर प्रस्तावित परियोजनाओं को मंजूरी देने से पहले केंद्र सरकार के साथ-साथ स्थानीय समुदायों की सहमति लेना अनिवार्य था। हालांकि, जून में अधिसूचित नए वन संरक्षण नियम केंद्र सरकार के लिए वन भूमि के हस्तांतरण को मंजूरी देना और संबंधित राज्य सरकार द्वारा वनवासियों की स्वीकृति प्राप्त करने से पहले ही निजी डेवलपर्स से भुगतान एकत्र करना संभव बनाते हैं।

"प्रथम दृष्टया, प्रस्तावित संशोधन ग्राम सभाओं की सहमति सहित, ऐतिहासिक कानूनों द्वारा स्थानीय समुदायों को दिए गए अधिकारों के प्रावधानों का उल्लंघन करते हैं। यदपि, किसी विशेष गांव के सभी वयस्क सदस्यों से बनी स्थानीय स्वशासी परिषदेंदों की अनुमति अनिवार्य हैं। इस प्रस्ताव के जंगलों और वन्यजीवों पर भी दूरगामी प्रतिकूल परिणाम होंगे,” रेब्बाप्रगदा रवि, अध्यक्ष, खान, खनिज और लोग (एमएम एंड पी), खनन से प्रभावित व्यक्तियों और समुदायों के एक गठबंधन ने उक्त बात कही।

पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 और अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 - जिसे लोकप्रिय रूप से वन अधिकार अधिनियम के रूप में जाना जाता है - जब भी कोई जंगल होता है तो वैध हितधारकों के रूप में स्थानीय समुदायों की सार्वजनिक भागीदारी की गारंटी देता है। भूमि को गैर-वन उपयोग के लिए डायवर्ट किया जाता है। इस मामले में केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय, उपरोक्त कानूनों के संरक्षक, एमओएईएफ और सीसी द्वारा अधिसूचित नए नियमों पर चुप्पी साध ली है जिससे कई हल्कों में आवाज़े उठ रही हैं।  

देश की पर्यावरण नियामक व्यवस्था को कमजोर करना - जिसमें स्पष्ट रूप से "मामूली" समझे जाने वाले उल्लंघनों के खिलाफ अभियोजन के प्रावधानों को हटाना शामिल है - साथ ही साथ खनिजों की खोज को नियंत्रित करने वाले कानून निजी खिलाड़ियों के लिए कोयला क्षेत्र को खोलने के साथ-साथ एक साथ बनाए जा रहे हैं वह भी अंत-उपयोग प्रतिबंधों के बिना वाणिज्यिक व्यापार के बारे में ऐसा किया जा रहा है। केंद्र सरकार ने मार्च 2022 में निजी कंपनियों द्वारा वाणिज्यिक खनन के लिए नीलामी के लिए 122 कोयला ब्लॉकों को अधिसूचित किया था, जिसके लिए बोलियों को अंतिम रूप दिया जाना अभी बाकी है।

सरकार को नीलामी के लिए अधिसूचित ब्लॉकों के लिए 38 बोलियां लगाई गई हैं, जिनमें देश के कुछ सबसे बड़े कॉरपोरेट घरानों की बोलियां भी शामिल हैं। चूंकि मोदी सरकार ने जून 2020 में वाणिज्यिक खनन के लिए कोयला क्षेत्र को निजी खिलाड़ियों के लिए खोलने के अपने फैसले की घोषणा की थी, इस प्रकार दो चरणों की बोली प्रक्रिया के बाद 47 खदानों की सफलतापूर्वक नीलामी की गई है।

यह आरोप लगाया गया है कि ग्राम सभाओं की सहमति के बिना नए नियमों के माध्यम से वन भूमि की अनुमति देने का केंद्र सरकार का निर्णय अप्रैल 2013 के सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले के खिलाफ जाता है, जिस निर्णय का मक़सद खनन से पहले स्थानीय संसाधनों पर आदिवासी समुदायों के अधिकारों को बरकरार रखना था।यह निर्णय बहु-अरबपति वेदांत समूह से संबंधित एल्यूमीनियम स्मेल्टर द्वारा ओडिशा में नियमगिरी पहाड़ियों से बॉक्साइट निकालने के मामले में दिया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला था सुनाया कि आदिवासी समुदायों के अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए अगर उन्हें लगता है कि बॉक्साइट खनन परियोजना "किसी भी तरह से उनके धार्मिक अधिकारों को प्रभावित करती है तो इसकी क़द्र की जानी चहाइए।"

खनिज रियायत नियम 1960 में प्रस्तावित संशोधन सार्वजनिक हित के मामले में हानिकारक हैं और खनन एजेंसियों के लिए लाभदायक हैं। अपने वर्तमान स्वरूप में, नियम कहता है कि यदि खनन पट्टा क्षेत्र के परिसर के भीतर उत्खनन के बाद खनिजों का प्रसंस्करण किया जाता है, तो प्रसंस्कृत खनिजों पर परियोजना प्रस्तावक को रॉयल्टी देनी होगी। हालांकि, जो संशोधन प्रस्तावित किए गए हैं, वे इसे कम करने का प्रयास करते हैं: अंतिम रॉयल्टी राशि अब संसाधित खनिज के नमूने के बाद या पट्टा क्षेत्र से हटाए गए संसाधित कोयले की गुणवत्ता पर राष्ट्रीय कोयला सूचकांक की अंतिम घोषणा के बाद निर्धारित की जाएगी।

जनजातीय और वनवासियों के एक राष्ट्रीय मंच, अभियान फॉर सर्वाइवल एंड डिग्निटी ने मंत्रालय को लिखा है कि खनिजों के खनन को आसान बनाने के उद्देश्य से नियमों का नया सेट मौजूदा वास्तविकता की ओर आंखें मूंद लेता है और वन भूमि को बड़े पैमाने पर डायवर्जन की तरफ धकेलता है, और ऐसा "एफआरए कार्यान्वयन के कपटपूर्ण प्रमाणीकरण" के सीतेमाल से यह सब देश में हो रहा है। 

भारत के सर्वोच्च न्यायालय के एक आदेश के अनुसार वन भूमि पर व्यक्तिगत और सामुदायिक अधिकारों का दावा करने वाले अस्वीकृत आवेदनों की समीक्षा करने के लिए सभी राज्यों में एक प्रक्रिया के साथ, देश भर में वन अधिकार अधिनियम, 2006 का कार्यान्वयन धीमा रहा है।

केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार, वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत कुल 16.5 लाख दावों को विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा खारिज कर दिया गया है। 5.36 लाख से अधिक आवेदनों की सुनवाई अभी भी लंबित है। औसतन, पूरे देश में वन अधिकारों के दावों के अनुमोदन की दर केवल 50 प्रतिशत है।

“नए वन संरक्षण नियमों की जरूरत है कि राज्य सरकारें और केंद्र शासित प्रदेश वन अधिकार अधिनियम, 2006 का अनुपालन सुनिश्चित करें, वास्तव में उस भूमि को सौंपने से पहले जिसे पहले ही केंद्र सरकार से डायवर्जन के लिए मंजूरी मिल चुकी है। वास्तव में, वन भूमि को पहले ही डायवर्ट कर दिए जाने से, सहमति के प्रस्ताव को संबंधित ग्राम सभाओं के समक्ष रखा जाएगा। इसलिए, राज्य सरकारें के नियमों के नए सेट को लागू करने से, उनका टकराव  आदिवासियों और अन्य वनवासियों सहित स्थानीय समुदायों होगा।” उक्त बात भुवनेश्वर स्थित एक स्वतंत्र शोधकर्ता तुषार दास ने कही।

कोयला क्षेत्र में, विशेष रूप से, कॉर्पोरेट क्षेत्र द्वारा जीवाश्म ईंधन के खनन को आसान बनाने के लिए केंद्र सरकार लगातार नियमों को कमजोर कर रही है। पिछले साल, केंद्र सरकार ने कैप्टिव कोयला ब्लॉक पट्टाधारकों को घरेलू जरूरतों को पूरा करने के बाद वाणिज्यिक व्यापार के लिए निकाले गए खनिजों में से 50 प्रतिशत के इस्तेमाल की अनुमति दी थी। यह इस धारणा पर आधारित था कि यह कोयले के आयात बिल को कम करेगा और भारत के व्यापार घाटे को पाटने में मदद करेगा।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Modi Govt to Reduce Penalty for Late Payment of Coal Royalties, Forest Diversion Rules Diluted

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