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'प्रेस की स्वतंत्रता पर कोई बंधन नहीं' : अदालत ने पत्रकार आसिफ़ नाइक के ख़िलाफ़ एफ़आईआर पर लताड़ा

कोर्ट ने कहा, 'इसमें कोई दो राय नहीं है कि याचिकाकर्ता पेशे से पत्रकार है और उसका काम जानकारी इकट्ठा करना और उसे समाचार पत्र या किसी अन्य मीडिया में प्रकाशित करना है।'
'प्रेस की स्वतंत्रता पर कोई बंधन नहीं' : अदालत ने पत्रकार आसिफ़ नाइक के ख़िलाफ़ एफ़आईआर को लताड़ा
फ़ाइल फ़ोटो

जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट ने पत्रकार आसिफ़ इक़बाल नाइक के ख़िलाफ़ दर्ज एफ़आईआर को प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला बताते हुए ख़ारिज कर दिया है। आसिफ़ पर हिरासत होने वाली हिंसा पर रिपोर्टिंग करने के लिए मामला दर्ज किया गया था।

कोर्ट ने कहा, "एक पत्रकार पर एफ़आईआर दर्ज कर के प्रेस स्वतंत्रता का हनन नहीं किया जा सकता, वह सिर्फ़ अपनी ड्यूटी निभाते हुए एक सूत्र के हवाले से प्राप्त जानकारी की तर्ज पर एक ख़बर प्रकाशित प्रकाशित कर रहे थे।" कोर्ट ने आगे कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता "भारत जैसे किसी भी लोकतांत्रिक देश को चलाने के लिए अहम बिंदु है।"

नाइक ने 19 अप्रैल, 2018 को जम्मू स्थित अंग्रेज़ी दैनिक अर्ली टाइम्स में किश्तवाड़ निवासी अख्तर हुसैन हाजम को पुलिस द्वारा हिरासत में प्रताड़ित करने के मामले की सूचना दी थी। 'किश्तवाड़ पुलिस द्वारा 5 बच्चों के पिता को बेरहमी से प्रताड़ित किया गया' शीर्षक वाली ख़बर में पीड़ित के चचेरे भाई इरशाद और उसके भाई अब्दुल गनी का हवाला दिया गया है। दोनों ने दावा किया कि करीब एक महीने तक अवैध रूप से बंद रहने के बाद किश्तवाड़ के एक स्थानीय पुलिस थाने में हाजम को गंभीर यातना दी गई।

रिपोर्ट के अनुसार गनी ने तत्कालीन एसपी किश्तवाड़, तत्कालीन एसपी हेडक्वार्टर किश्तवाड़ और पूर्व एसएचओ किश्तवाड़ पर उनके भाई को "प्रताड़ित" करने का आरोप लगाया है। पत्रकार पर 12 मई, 2018 को रणबीर पीनल कोड की धाराएं 500, 504 और 505 के तहत मामला दर्ज किया गया था।

अदालत ने कहा कि नाइक कि ख़िलाफ़ प्राथमिकी क़ानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है और उनके ख़िलाफ़ आरोप बेतुके हैं। अदालत ने बताया कि जिस तरीक़े से प्राथमिकी दर्ज की गई थी, वह स्पष्ट रूप से पुलिस की ओर से दुर्भावनापूर्ण इरादे को दर्शाता है, जो एक समान तरीके के माध्यम से अपनी बात कह सकती थी, लेकिन इसके बजाय "पत्रकार को चुप कराने का एक अनूठा तरीका" चुना। आदेश में कहा गया है कि "यह निस्संदेह प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला है।"

अदालत ने आगे कहा, "इसमें कोई दो राय नहीं है कि याचिकाकर्ता पेशे से पत्रकार है और उसका काम जानकारी इकट्ठा करना और उसे समाचार पत्र या किसी अन्य मीडिया में प्रकाशित करना है। ख़बर के तौर पर प्रकाशित हुई जानकारी में राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय या स्थानीय मुद्दे शामिल हो सकते हैं।"

आसिफ़ नाइक जो 20 साल से पत्रकारिता में हैं, ने न्यूज़क्लिक को बताया कि अधिकारियों द्वारा उन पर दर्ज हुआ मामला पत्रकारों को डराने-धमकाने और उन्हें क़ानूनी प्रक्रिया में फंसा कर उनकी ऊर्जा ख़त्म करने के मकसद से किया गया था।

41 साल के नाइक ने कहा, "यह मामला इस बात का उदाहरण है कि कैसे पुलिस अधिकारी बदला लेते हैं। पत्रकारिता को अपराध नहीं बनाना चाहिये।" उन्होंने आगे कहा कि उन्हें पहले भी प्रताड़ित किया गया था और दो बार डीएम के दफ़्तर में जाने से रोका गया था, इस प्रतिबंध को बाद में अदालत ने हटा दिया था।

रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) द्वारा 2021 वर्ल्ड प्रेस फ़्रीडम इंडेक्स में, भारत 180 देशों में से 42वें स्थान पर था, हाल के वर्षों में देश ने एक गंभीर गिरावट दर्ज की है। अंतर्राष्ट्रीय अधिकार निकायों और वैश्विक मीडिया अधिकार समूहों ने अधिकारियों पर, विशेष रूप से जम्मू और कश्मीर में, क्षेत्र में पत्रकारों के खिलाफ मनमाने बल का उपयोग करने का आरोप लगाया है। कई पत्रकारों ने कहा है कि उन्हें पुलिस ने पूछताछ के लिए बुलाया है, यहां तक ​​कि मौके पर अपने स्रोतों का खुलासा करने के लिए भी कहा है। यह सब मीडिया को चुप कराने और पत्रकारों को जमीन पर हो रही घटनाओं को कवर करने से हतोत्साहित करने के प्रयास के रूप में देखा गया।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

'No Fetters on Freedom of Press': J&K HC Slams FIR Against Journalist Asif Naik

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