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'कोई रास्ता नहीं': श्रीलंकाई जनता के सामने एक अनिश्चित भविष्य

श्रीलंका के राष्ट्रपति भवन में उठा जन-तूफान, ईंधन की कमी के कारण चल रहे आर्थिक संकट की परिणति था। लाखों श्रीलंकाई लोगों को लगता है कि अब उनके सामने कोई रास्ता नहीं है और इसलिए उन्हें भविष्य का डर सता रहा है।
Srilanka
श्रीलंका में महीनों से तेज़ विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं

श्रीलंका की राजधानी कोलंबो के ठीक बाहर रहने वाली 50 वर्षीय एकल मां शांति ने कहा, "यहां जीवन और मृत्यु की स्थिति पैदा हो गई है। कोई नौकरी नहीं, भोजन खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं और न ही देश से बाहर निकलने का कोई रास्ता बचा है।"

वे और उनके बच्चे, 9 जुलाई को हुए विरोध प्रदर्शन का हिस्सा थे, उसी दिन देश के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने इस्तीफा देने की घोषणा की जब कोलंबो में राष्ट्रपति भवन में हजारों की संख्या में लोगों ने धावा बोल दिया था। 

शांति ने डीडब्ल्यू को बताया कि, "हमें रात में नींद नहीं आती है।" "यह मेरे जीवन में अब तक का सबसे बुरा वक़्त है। मैं अपना मासिक किराया भी नहीं दे सकती हूँ।"

शांति माँ, मौजूदा आर्थिक उथल-पुथल के चलते अपने तीन बच्चों को पालने की कोशिश कर रही है। अन्य लाखों श्रीलंकाई लोगों की तरह, वे भी अपने भविष्य के बारे में अनिश्चित है।

वे कहती हैं कि, "मैं चाहती थी कि मेरा बेटा विदेश जाकर काम करे। लेकिन हमें पासपोर्ट भी नहीं मिला है। सरकारी तंत्र काम नहीं कर रहा है। मेरे बेटे ने मोटर मैकेनिक की पढ़ाई की है। लेकिन उसके पास कोई नौकरी नहीं है। हमने नौकरी पाने की हर कोशिश की। लेकिन कोई भी नौकरी देने को तैयार नहीं है। मेरी बेटी को सौभाग्य से काम मिल गया, लेकिन उसे वेतन काफी कम मिलता है।"

उसे अपनी छोटी बेटी की भी चिंता है, जो अभी हाई स्कूल में है। अधिकांश स्कूल और संस्थान बंद हैं, और बहुत कम कक्षाएं होने के कारण, उसे ट्यूशन लेने के लिए सप्ताह में दो बार 10 किलोमीटर (6 मील) चलने को मजबूर होना पड़ रहा है। शांति का कहना है कि कोई सार्वजनिक परिवहन उपलब्ध नहीं है, और उनकी बेटी के पास घर में पढ़ने के लिए कोई इंटरनेट या विश्वसनीय बिजली नहीं है।

पांच लीटर ईंधन लेने के लिए पांच दिन लगते हैं 

9 जुलाई का जन-विरोध आर्थिक मंदी का परिणाम था जिसने ईंधन, भोजन और अन्य आवश्यकताओं की तीव्र कमी को जन्म दिया था। 

कोलंबो के पास वेलम्पत्य में रहने वाले ड्राइवर मोहम्मद जाफरीन का कहना था कि, "मेरे ऑटो-रिक्शा को चलाने के लिए कोई ईंधन उपलब्ध नहीं है। मुझे चार दिनों तक कतार में लगना होता है और तब जाकर पांचवें दिन ही ईंधन मिलता है। और एक लीटर पेट्रोल की कीमत लगभग 490 श्रीलंकाई रुपये (यानि 1.33 यूरो) है।"

जाफरीन ने कहा कि वे गैस से खाना बनाते थे, फिर उन्हें मिट्टी का चूल्हा लेने पर मजबूर होना पड़ा, और अब उनके सात सदस्यों के परिवार के पास जलाऊ लकड़ी से खाना बनाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।

जाफ़रीन जिनके चार बच्चे हैं, अपने परिवार के इकलौते कमाने वाले हैं। उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "हम दिन में तीन बार खाते थे। अब हम केवल दो बार ही खा सकते हैं।"

यहां तक कि जब जाफरीन को ईंधन मिल भी जाता है और अपना वाहन बाहर निकालता है, तब भी कुछ ही लोग ऐसे हैं जो ऑटो-रिक्शा का भाड़ा दे सकते हैं। उनका कहना है कि उनके लिए पैसा कमाना कभी इतना मुश्किल नहीं रहा था।

कोलंबो के एक स्थानीय पत्रकार कृष्णास्वामी हरेंद्रन ने बताया कि, "हमारे पास कोई भंडार नहीं बचा है और यह सब राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के कुप्रबंधन के कारण हुआ है। लोग विरोध प्रदर्शन करने के लिए मीलों पैदल चले हैं। अधिकारियों का इस्तीफा एक अस्थायी जीत है।"

अंतिम बचे राजपक्षे ने दिया इस्तीफा 

हालांकि विरोध कई महीनों से चल रहा था, लेकिन स्थिति तब और गंभीर हो गई जब शनिवार को हजारों लोगों ने महल की तरफ मार्च किया। सैनिकों ने हवा में गोलियां चलाईं, गुस्साई भीड़ को राष्ट्रपति भवन पर हावी होने से रोकने की कोशिश की, लेकिन प्रदर्शनकारी अंततः महल में घुस गए। 

सोशल मीडिया पर जारी तस्वीरों में गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने बैरिकेड्स तोड़ते हुए और सरकारी घरों में आग लगाते हुए दिखाया गया है। बाद में, विभिन्न प्रसारकों के वीडियो में प्रदर्शनकारियों को महल में जिम, स्विमिंग पूल और रसोई का इस्तेमाल करते हुए भी दिखाया गया है।

पूर्व प्रधान मंत्री महिंदा राजपक्षे के इस्तीफा देने के ठीक दो महीने बाद तूफान आया है, जिससे सरकार समर्थक और सरकार विरोधी समूहों के बीच देशव्यापी हिंसा शुरू हो गई थी, जिसमें नौ लोग मारे गए थे और कई घायल हो गए थे।

ऐसी सूचना है कि, इस सप्ताह के अंत में, गोटबाया राजपक्षे अपनी सुरक्षाकर्मियों के साथ महल से गायब हो गए हैं, और वर्तमान में उनका ठिकाना अज्ञात है। लेकिन स्थानीय मीडिया ने रविवार को कहा कि राष्ट्रपति काम पर वापस आ गए हैं और उन्होंने अधिकारियों को गैस वितरण में तेजी लाने का आदेश दिया है।

रविवार सुबह राष्ट्रपति चुनाव में श्रीलंकाई तैराकी करते हुए 

'कार्रवाई करने पर मजबूर'

शनिवार के विरोध प्रदर्शन में कोलंबो के तीन सबसे महत्वपूर्ण स्थानों पर लोगों ने हंगामा किया। राष्ट्रपति भवन के अलावा, प्रधान मंत्री के निजी आवास और राष्ट्रपति सचिवालय पर भी हमले हुए, जहां से राष्ट्रपति काम करते हैं।

सामाजिक कार्यकर्ता चमीरा डेडुवागे ने डीडब्ल्यू को बताया कि, "लोगों को पुलिस, विशेष कार्यबल और सेना के प्रतिरोध को तोड़ना पड़ा। यह उन तथ्यों का परिणाम है कि लोग अपनी बुनियादी जरूरतों से वंचित हैं और बिना आकांक्षाओं के जीने को मजबूर हो गए हैं।"

उन्होंने कहा, "श्रीलंका के लोगों ने गोटबाया राजपक्षे पर से अपना भरोसा पूरी तरह खो दिया है।" "वे उसे एक विश्वासघाती के रूप में देखते हैं। हम केवल यह चाहते हैं कि कोई भी राजपक्षे परिवार का सदस्य सरकार में न रहे और उनमें से प्रत्येक को उनके अपराधों की सज़ा देने के लिए न्याय के दायरे में लाया जाना चाहिए। विशेष रूप से वित्तीय अपराध के लिए ऐसा किया जाना चाहिए।"

उन्होंने कहा, "गोटाबाया ने अभी तक इस्तीफा नहीं दिया है। और हमें यकीन नहीं है कि ऐसा  वास्तव में होगा।"

श्रीलंकाई लोगों ने रविवार सुबह राष्ट्रपति जिम में की कसरत 

शनिवार के विरोध के बाद, देश के प्रधान मंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने भी एक सर्वदलीय सरकार का मार्ग प्रशस्त करते हुए पद छोड़ने पर सहमति व्यक्त की है।

विक्रमसिंघे को केवल मई में ही नियुक्त किया गया था और वर्तमान में वह वित्त मंत्रालय भी संभाल रहे हैं।

इस बीच, रॉयटर्स ने बताया कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, श्रीलंका की राजनीतिक उथल-पुथल के समाधान की उम्मीद कर रहा है जो एक बेलआउट पैकेज पर बातचीत को फिर से शुरू करने की राह पर है। 

1948 में स्वतंत्रता हासिल करने के बाद से श्रीलंका वर्तमान में अपने सबसे खराब आर्थिक संकट से जूझ रहा है।

श्रीलंका, अप्रैल में अपने विदेशी ऋण को लौटा नहीं पाया था, और देश के 22 मिलियन लोगों को इसके दंश को तब झेलना पड़ा, जब सरकार के पास खाद्य सामग्री, ईंधन और दवा जैसे आवश्यक सामान को आयात करने के विदेशी मुद्रा भंडार खत्म हो गया था, जिससे लोगों को महीनों तक बढ़ती मुद्रास्फीति और लंबी बिजली कटौती का सामना करना पड़ा।

शांति ने कहा, "हमें अपनी शांति वापस चाहिए। हमें अपना जीवन वापस चाहिए।" "सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मैं चाहती हूं कि मेरे बच्चों का जीवन बेहतर हो।"

सौजन्य: डीडब्लू

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः

'No Way Out': Struggling Sri Lankans Face Uncertain Future

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