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किसी को नहीं मालूम कि केजरीवाल की 'मेक इंडिया नंबर वन’ यात्रा कहां तक पहुंची?

दरअसल भाजपा की तरह ही आम आदमी पार्टी की भी पूरी राजनीति कांग्रेस को कमजोर करने पर केंद्रित है। यह भी कह सकते हैं कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'कांग्रेस मुक्त भारत’ अभियान में प्रमुख सहयोगी के तौर पर काम कर रही है।
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फ़ोटो साभार: पीटीआई

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की भी इस बात में गहरी आस्था है कि देश की आम जनता को किसी भी मुद्दे में उलझाया जा सकता है। इसीलिए वे आए दिन लोगों से तरह-तरह के वादे और दावे करते रहते हैं, जो जमीनी हकीकत से पूरी तरह दूर होते हैं। उनकी इस आस्था या यूं कहें कि भ्रम को बनाए रखने में वह मीडिया भी पूरी मदद करता है, जो जन सरोकारों से पूरी तरह कट कर सत्ता का दास बना हुआ है। इस सिलसिले में कई मिसालें दी जा सकती हैं।

ताजा मिसाल है अरविंद केजरीवाल की 'मेक इंडिया नंबर वन' यात्रा, जो उन्होंने करीब दो महीने पहले यानी सात सितंबर को शुरू करने का ऐलान किया था। किसी को नहीं मालूम है कि उस यात्रा का क्या हुआ, वह कहां तक पहुंची? कौन यात्रा कर रहा है, या अगर यात्रा रुकी हुई है तो किस वजह से रुकी है और फिर कब शुरू होगी?

आम आदमी पार्टी में भी किसी को इस बाबत कोई जानकारी नहीं है और न ही मीडिया में कोई चर्चा है कि केजरीवाल की 'मेक इंडिया नंबर वन’ यात्रा का क्या हुआ! यह यात्रा दिल्ली के मुख्यमंत्री ने सात सितंबर को अपने गृह प्रदेश हरियाणा में हिसार जिले के एक गांव से शुरू की थी। हालांकि उस दिन भी उन्होंने कोई यात्रा नहीं निकाली। वे दिल्ली से हिसार पहुंचे, वहां एक रैली मे भाषण दिया और वापस दिल्ली लौट गए।

'यात्रा शुरू’ करने से एक दिन पहले यानी छह सितंबर को उन्होंने कहा था- ''अगर 130 करोड़ लोग मिल जाएं तो भारत को नंबर वन देश बनने से कोई नही रोक सकता। यही लक्ष्य हासिल करने के लिए मैंने 15 अगस्त को ऐलान किया था कि मैं पूरे देश की यात्रा करूंगा। देशभर के लोगों को इस आंदोलन से जोड़ने की कोशिश करूंगा। कल मैं इस आंदोलन की शुरुआत कर रहा हूं।’’ उन्होंने कहा था- ''सबसे पहले मैं अपने जन्मस्थान हरियाणा में जा रहा हूं। वहां हिसार के पास एक गांव है सिवानी, जहां मैं पैदा हुआ। वहीं से मैं अपनी शुभ यात्रा की शुरुआत कर रहा हूं।’’

सात सितंबर को केजरीवाल हिसार गए और वहां एक रैली की। दरअसल वह रैली भी हिसार की आदमपुर विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव की तैयारियों के सिलसिले में आयोजित की गई थी। इस सीट को आम आदमी पार्टी हरियाणा में अपना गेट वे मान रही है। उस रैली को अब दो महीने पूरे होने को आ रहे हैं और किसी को नहीं मालूम कि केजरीवाल की 'मेक इंडिया नंबर वन’ यात्रा का क्या हुआ?

पिछले डेढ़ महीने के दौरान केजरीवाल कई बार चार्टर्ड हवाई जहाज से गुजरात गए हैं, जहां उन्होंने खूब चुनावी सभाएं की और बगैर सुरक्षा लिए ऑटो रिक्शा में बैठ कर घूमने, ऑटो रिक्शा चालक के घर खाना खाने जैसे कई राजनीतिक स्टंट किए। इस दौरान एक बार वे हिमाचल भी होकर आए हैं और वहां भी उन्होंने एक रैली की है। लेकिन 'मेक इंडिया नंबर वन’ की यात्रा का कहीं अता-पता नहीं है।

दरअसल केजरीवाल को ऐसी कोई यात्रा निकालनी ही नहीं थी, लेकिन चूंकि सात सितंबर से कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा शुरू हो रही थी इसलिए उन्होंने भी अपनी एक यात्रा का ऐलान कर दिया। उन्होंने ठीक उसी दिन से अपनी यात्रा शुरू करने का ऐलान किया, जिस दिन से कांग्रेस की महत्वाकांक्षी यात्रा शुरू हो रही थी। इसके पीछे उनका मकसद किसी तरह से मीडिया का और आम लोगों का ध्यान कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा से हटाना था।

गौरतलब है कि राजधानी दिल्ली के मीडिया का एक बड़ा हिस्सा यानी अखबार और टीवी चैनल कांग्रेस की बजाय आम आदमी पार्टी को ज्यादा तरजीह देते हैं, क्योंकि आम आदमी पार्टी की दिल्ली और पंजाब सरकार मिल कर कई राज्य सरकारों के बराबर विज्ञापन इन मीडिया संस्थानों को देती हैं। विज्ञापन के जरिए खरीदे गए मीडिया प्रचार के दम पर ही केजरीवाल ने सात सितंबर को यात्रा शुरू करने का ऐलान किया था और जिस समय कन्याकुमारी में राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा से जुड़े कार्यक्रमों में हिस्सा ले रहे थे उसी समय केजरीवाल हिसार में रैली कर रहे थे, जिसे ज्यादातर टीवी चैनल बिना रुके प्रमुखता से दिखा रहे थे। अगले दिन अखबारों में भी राहुल गांधी की यात्रा से ज्यादा जगह केजरीवाल की हिसार रैली को मिली थी। लेकिन अब किसी चैनल और अखबार के संवाददाता केजरीवाल से नहीं पूछ रहे हैं कि उनकी मेक इंडिया नंबर वन यात्रा क्या हुआ और वह कहां तक पहुंची है? कोई पूछ भी नहीं सकता। क्योंकि उन्हें मालूम है कि अगर पूछ लिया तो शाम होते-होते या अगले दिन उन्हें घर बैठा दिया जाएगा या किसी और काम में लगा दिया जाएगा।

यह तो हुई केजरीवाल की उस यात्रा स्टंट की बात की बात, जो उन्होंने कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत पर से मीडिया और आम लोगों का अटेंशन हटाने के लिए किया था। इसके अलावा भी आम आदमी पार्टी पिछले कुछ समय से भाजपा के खिलाफ आक्रामक दिखते हुए जिस तरह की राजनीति कर रही कर रही है, और मीडिया जिस तरह उसे महत्व दे रहा है उससे कई लोगों को लगता है कि वह भाजपा का अखिल भारतीय विकल्प बनने की दिशा में काम कर रही है। दूसरी ओर दिल्ली में आम आदमी पार्टी के मंत्रियों और विधायकों के यहां केंद्रीय एजेंसियों की छापेमारी और गिरफ्तारी के जरिए भाजपा भी यही दिखाने की कोशिश कर रही है कि आम आदमी पार्टी उसकी मुखर विरोधी है और केंद्र सरकार को उससे कोई हमदर्दी नहीं है।

लेकिन हकीकत इसके ठीक उलट है। दोनों पार्टियों के बीच यह मित्रतापूर्ण मुकाबला चल रहा है। दरअसल भाजपा की तरह ही आम आदमी पार्टी की भी पूरी राजनीति कांग्रेस को कमजोर करने पर केंद्रित है। यह भी कह सकते हैं कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'कांग्रेस मुक्त भारत’ अभियान में प्रमुख सहयोगी के तौर पर काम कर रही है। ऐसा करने में उसे भाजपा जैसा दिखने या उससे भी ज्यादा हिंदुत्ववादी और सांप्रदायिक आचरण करने से भी परहेज नहीं है। इस सिलसिले में बिलकीस बानो के बलात्कारियों और उसके परिवार के हत्यारों को जेल से छोड़े जाने पर उसकी चुप्पी भी देखी जा सकती है और करेंसी नोटों पर लक्ष्मी-गणेश के चित्र छापने की बेतुकी मांग भी। और भी कई मिसालें दी सकती हैं।

इसके अलावा केजरीवाल की चुनावी महत्वाकांक्षा भी उन्हीं राज्यों में जोर मार रही है, जहां-जहां भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होता है। मसलन अभी आम आदमी पार्टी गुजरात और हिमाचल प्रदेश में पूरे जोर-शोर से चुनाव लड़ रही है। इन दोनों ही राज्यों में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होता है। हालांकि हिमाचल प्रदेश में उनकी पार्टी को ज्यादा महत्व नहीं मिल रहा है लेकिन गुजरात में तो वे सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं। इस सिलसिले में मीडिया भी गुजरात की ऐसी राजनीतिक तस्वीर पेश कर रहा है मानो वहां कांग्रेस पूरी तरह खत्म हो चुकी है और मुख्य मुकाबला भाजपा तथा आम आदमी पार्टी के बीच ही है। खुद भाजपा की ओर से भी ऐसा ही प्रचार किया जा रहा है, जबकि भाजपा को भी मालूम है कि गुजरात के कुछ बड़े शहरों के अलावा गांवों में आम आदमी पार्टी का कहीं कोई नामलेवा नहीं है।

एक ओर जहां गुजरात में भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच जुबानी जंग चल रही है, वहीं इसी जंग के बीच पिछले दिनों पश्चिम बंगाल में भाजपा ने आम आदमी पार्टी की आमद का गर्मजोशी से स्वागत किया। बंगाल में होने वाले पंचायत चुनावों से पहले आम आदमी पार्टी ने पिछले दिनों नवरात्रि के दौरान दक्षिण कोलकाता में अपना प्रदेश कार्यालय खोला। इसके तुरंत बाद सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने उसे खारिज करते हुए कहा कि बंगाल में उसके लिए कोई जगह नहीं है। लेकिन भाजपा ने आम आदमी पार्टी का स्वागत किया। भाजपा विधायक दल के नेता शुभेंदु अधिकारी ने कहा कि बहुदलीय राजनीतिक व्यवस्था में सभी पार्टियों की मौजूदगी से राजनीतिक माहौल स्वस्थ रहता है। सवाल है कि भाजपा क्यों आम आदमी पार्टी का स्वागत कर रही है? ऐसा कौनसा काम है, जो भाजपा, कांग्रेस और वामपंथी जैसी विपक्षी पार्टियां नहीं कर पा रही हैं, जो आम आदमी पार्टी कर देगी? गौरतलब है कि आम आदमी पार्टी बहुत आक्रामक विपक्ष की भूमिका निभाती है और किसी भी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने और किसी भी तरह का आरोप लगाने में उसे कोई दिक्कत नहीं होती। यह अलग बात है कि जब आरोपों को साबित करने की नौबत आती है तो माफी मांग लेती है। इसलिए भाजपा को लग रहा है कि आम आदमी पार्टी ममता सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलेगी, उस पर आरोप लगाएगी, सड़कों पर उतरेगी तो उसका फायदा भाजपा को होगा, क्योंकि उसके पास पहले से बड़ा संगठन और नेता हैं। भाजपा को यह भी लगता है कि कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों के मुकाबले मुस्लिम मतदाताओं को आम आदमी पार्टी के रूप में एक विकल्प मिल सकता है, जिसका फायदा आखिर भाजपा को ही मिलेगा।

आम आदमी पार्टी ने इसी साल पंजाब, गोवा और उत्तराखंड में भी चुनाव लड़ा था। संयोग से या कांग्रेस के आत्मघाती राजनीतिक फैसलों की वजह से पंजाब में तो वह सरकार बनाने में सफल हो गई, लेकिन गोवा और उत्तराखंड में उसकी मौजूदगी से भाजपा को ही फायदा हुआ। अब आम आदमी पार्टी अगले वर्ष मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है, जहां भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होता है। लक्ष्य उसका वही है कि भाजपा विरोधी वोटों का बंटवारा करना और प्रकारांतर से भाजपा को फायदा पहुंचाना। दक्षिण भारत जाने का आम आदमी पार्टी कभी नाम नहीं लेती, क्योंकि वहां उसके जाने से भाजपा को कोई फायदा नहीं हो सकता। वह महाराष्ट्र में जाने का भी कभी नाम नहीं लेती क्योंकि वहां भाजपा के मुकाबले कांग्रेस के अलावा शिव सेना और एनसीपी जैसी मजबूत पार्टियां पहले से ही मौजूद हैं, इसलिए वहां भी उसके जाने से भाजपा को कोई फायदा नहीं हो सकता। पूर्वोत्तर के ज्यादातर राज्यों में इस समय भाजपा की सरकार है और वहां उसके मुकाबले क्षेत्रीय पार्टियां हैं, इसलिए आम आदमी पार्टी वहां भी चुनाव लड़ने की बात कभी नहीं करती। इसी वजह से वह बिहार का भी नाम नहीं लेती और उसने अब उत्तर प्रदेश का नाम लेना भी छोड़ दिया है। शायद यही वजह है कि उसे भाजपा की टीम कहा जाता है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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