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अयोध्या के ग्रामीणों ने कहा, 'हम राम के ख़िलाफ़ नहीं, लेकिन हमारी ज़मीन ही क्यों?'

अयोध्या ज़िले के माझा बरहटा ग्राम सभा, जहाँ राम की सबसे ऊंची प्रतिमा का निर्माण किया जाना है; के लोगों का आरोप है कि उचित मुआवज़े या सामाजिक प्रभाव का उपयुक्त जायज़ा लिए बिना ही उनकी भूमि का अधिग्रहण किया जा रहा है।
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अयोध्या : "हमारे दिल में राम के ख़िलाफ़ कुछ भी नहीं है, लेकिन उनके लिए हमारी ज़मीन ही क्यों है?" ये शब्द अयोध्या जिले के मझवा बरहटा ग्राम सभा में गूंज रहे हैं, जहां हिन्दू समुदाय के भगवान राम की भव्य प्रतिमा स्थापित की जानी है।

अयोध्या ज़िला प्रशासन ने जनवरी माह में एक नोटिस जारी कर ग्रामीणों को सूचित किया था कि राम की भव्य मूर्ति और एक डिजिटल संग्रहालय बनाने के लिए लगभग 86 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया जाएगा। गाँव राम जन्मभूमि स्थल से लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर है।

उत्तर प्रदेश कैबिनेट ने लखनऊ-गोरखपुर राजमार्ग पर लगभग 251 मीटर राम की सबसे ऊंची मूर्ति बनाने का निर्णय पिछले साल नवंबर में लिया था। मूर्ति और डिजिटल संग्रहालय बनाने के लिए स्वीकृत बजट 446.46 करोड़ रुपये का है।

ग्राम प्रधान राम चंद्र यादव का कहना है कि उनकी ग्राम सभा के भीतर आने वाले सभी चार गांवों के ग्रामीणों को अपनी आजीविका कमाने में ख़ासी दिक्कत आएगी। यादव ने कहा, "हम अपनी ज़मीन को उनके कब्ज़े में नहीं जाने देंगे और हम सरकार के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देंगे।"

उन्होंने आगे आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार ने यानी प्रशासन ने उनकी भूमि के अधिग्रहण से  ग्रामीणों पर सामाजिक प्रभाव को समझने के लिए कोई अध्ययन नहीं किया है। साथ ही, भूमि अधिग्रहण पर आपत्ति दर्ज करने के लिए सामान्य 60 दिनों के समय के बजाय, ग्रामीणों को केवल 15 दिन दिए गए हैं जो भूमि अधिग्रहण के बाद पुनर्वास और पुनर्वास अधिनियम, 2013 में दिए उचित मुआवजे के अधिकार और पारदर्शिता के खिलाफ है।

अधिनियम के अनुसार, "जब भी उपयुक्त सरकार किसी सार्वजनिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए भूमि अधिग्रहण करने का इरादा रखती है, तो उसे संबंधित पंचायत, नगर पालिका या नगर निगम से परामर्श करना होगा जैसा कि प्रभावित क्षेत्र में ग्राम स्तर या वार्ड स्तर पर हो सकता है, और इस बारे में उनके साथ परामर्श करके एक सामाजिक प्रभाव आकलन के लिए अध्ययन किया जा सकता है।”

गांव के मुखिया ने कहा कि उन्होंने प्रशासन को एक पत्र लिखा था, जिसमें कहा गया था कि उनकी ज़मीन का अधिग्रहण होने के बाद ग्रामीणों को उनके भरोसे छोड़ दिया जाएगा।

विशेष तौर पर, प्रशासन ने 25 जनवरी को स्थानीय समाचार पत्र में एक नोटिस जारी किया और संबंधित ग्राम सभा में मौजूद 250 से अधिक भूमि के मालिकों को अपनी आपत्तियाँ दर्ज करने के लिए कहा था। विश्वसनीय आधिकारिक स्रोतों से मिली जानकारी के अनुसार, प्रशासन को अब तक 180 से अधिक शिकायतें मिल चुकी हैं और इन शिकायतों को दूर करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।

न्यूज़क्लिक ने इस मुद्दे पर जिला मजिस्ट्रेट अनुज कुमार झा की टिप्पणी के लिए उनके कार्यालय से संपर्क किया, लेकिन कार्यालय ने जवाब दिया कि वे अभी व्यस्त हैं और इस समय वे किसी भी प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाएंगे।

भूमि अधिग्रहण के फैसले से बेहद नाराज चल रहे माजा बरहटा के ही एक ग्रामीण अनिल यादव ने सवाल उठाया, “जब अयोध्या में इतनी जमीन है तो फिर हमारा गांव ही क्यों चुना गया? भूमि खोने के बाद हम कहां जाएंगे, हम अपने बच्चों का पेट कैसे भरेंगे? ”

यादव ने सवाल दागते हुए कहा कि “यदि उन्हौने हमारी ज़मीन ले ली तो हम किस विश्वास के साथ भगवान राम के पास जाएँगे? इस गाँव की आधी ज़मीन पहले ही महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट द्वारा अधिग्रहित कर ली गई है और अब वे हमारी ज़मीन लेने आ रहे हैं, ”उन्होंने इसके लिए गाँव के उन बुजुर्गों को दोषी ठहराया, जिन्होंने ट्रस्ट को स्कूल खोलने के लिए गाँव में ज़मीन के अधिग्रहण की अनुमति दी थी। 

लक्ष्मी शंकर, जो लेखपाल (एक भूमि और राजस्व अधिकारी) के पद पर कार्यरत हैं, ने न्यूज़क्लिक को बताया कि यह सच है कि जिस तरह से यह सब हुआ उसमें भूमि के अधिग्रहण को लेकर ग्रामीणों में असंतोष है। 

गाँव में “स्कूल और अस्पताल खोलने के नाम पर इतनी ज़मीन हासिल करने वाले ट्रस्ट के प्रति गाँव के लोग पहले से ही चिंतित थे, जिसे वे (ट्रस्ट) शुरू करने में असफल रहे। अब, उन्हें लग रहा है कि उन्हें अपनी जमीन का पर्याप्त मुआवजा नहीं मिल रहा है। ग्रामीणों की शिकायतों को हल करने के लिए अधिकारियों को लगाया गया है और जल्द ही सबकुछ ठीक हो जाएगा। ट्रस्ट के प्रति सबमें काफी गुस्सा और असंतोष है। कुछ ग्रामीणों ने अधिग्रहित भूमि के मुआवजे के साथ-साथ सरकारी नौकरी की मांग भी उठाई है। 

लेखपाल उन्होंने आगे कहा कि सरकार द्वारा दिए जाने वाले मुआवजे की दर वास्तविक लागत से बहुत अधिक है और आधी से अधिक आबादी अपनी जमीन देने के लिए सहर्ष तैयार हो गई है।

इस मुद्दे पर टिप्पणी करते हुए, शहर के एक विशेषज्ञ नौशाद आलम ने कहा कि ग्रामीण बेहतर मुआवज़े और नौकरियों की मांग कर रहे हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि एक बार परियोजना खत्म हो जाने के बाद, वे (प्रशासन) नालियों या सड़क की मरम्मत करने के लिए भी नहीं आएंगे, चाहे वे किसी भी हालत में रहे और कितनी ही शिकायतें क्यों न कर दी गई हों। उन्होंने कहा, "ग्रामीणों को उम्मीद है कि उनकी मांगों को पूरा किया जाएगा क्योंकि परियोजना की घोषणा पहले ही की जा चुकी है और सरकार इस पर वापस कदम उठाने नहीं जा रही है।"

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Not Against Ram But Why Our Land, Ask Ayodhya Villagers

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