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बतकही : हद है अब आपने वैक्सीन पर सवाल उठा दिए

“अब आप देश की वैक्सीन पर भी सवाल उठाएंगे। हमारे वैज्ञानिकों पर भी सवाल उठाएंगे ...!”
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जटिल जी, आप किसी को छोड़ेंगे सवाल पूछने से। अब आप देश की वैक्सीन पर भी सवाल उठाएंगे। हमारे वैज्ञानिकों पर भी सवाल उठाएंगे !

आज तो जीना उतरते ही पड़ोसी जी ने हमें घेर लिया और व्यंग्य में नाम भी सरल से जटिल कर दिया।

नहीं, भइया, मैंने तो कोई सवाल नहीं उठाया। उनकी उलझन देखते हुए मैंने कहा।

आप नहीं तो आपके भाई-बंधुओ ने सवाल उठाए हैं। सपाइयों ने, कांग्रेसियों ने।

भाई मैं तो सपाई या कांग्रेसी नहीं।

वामपंथी तो हो...अवार्ड वापसी गैंग, टुकड़े-टुकड़े गैंग, अर्बन नक्सल।

रुको, रुको भाई, आराम से...सांस उखड़ जाएगी।

मैं तो पत्रकार ठहरा। और मेरा काम ही सवाल पूछना है। हालांकि अब पत्रकार भी सवाल कहां पूछते हैं। सवाल पूछने पर नौकरी चली जाती है। ख़ैर सवाल तो वैज्ञानिकों ने खुद उठाए हैं कि तीसरे ट्रायल के नतीजों का इंतज़ार किए बिना जल्दबाज़ी में वैक्सीन को मंज़ूरी देना ठीक नहीं।

वो वैज्ञानिक भी आपके ही गैंग से होंगे। पड़ोसी पूरे भिड़ने के मूड में थे।

अच्छा। यह बताओ की आप सवाल पूछने से इतने आहत क्यों हो जाते हो।

नहीं, आप लोग हर बात में सवाल करते हो। पहले पुलवामा, बालाकोट पर भी सवाल कर रहे थे। सर्जिकल स्ट्राइक के सुबूत मांग रहे थे।

हम तो सरकार पर सवाल कर रहे थे। उसकी मंशा पर सवाल कर रहे थे।

नहीं, आप सेना पर सवाल कर रहे थे।

वैसे सेना पर तो कोई सवाल नहीं कर रहा था। और अगर कर भी रहा था तो क्या आपके अनुसार सेना सवालों से परे है?

हां है, बिल्कुल।

फिर आपने सैनिकों के भोजन पर सवाल उठाने वाले एक सैनिक पर ही क्यों सवाल उठाए।

वो तो मोदी जी के खिलाफ चुनाव लड़ने चला था। इसलिए..

अच्छा। मोदी जी के खिलाफ चुनाव लड़ेगा तो आप किसी फ़ौजी को भी नहीं बख़्शोगे!

क्या सिपाहियों को पर्याप्त वर्दी क्यों नहीं दी जाती, उन्हें प्रॉपर जूते क्यों नहीं मिलते। ये सवाल उठाना तो ठीक है? क्यों!

फ़ौजियों की वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) की मांग का समर्थन करना तो सेना का अपमान या देशद्रोह नहीं?

अभी गुंजन सक्सेना फ़िल्म में भी कुछ सवाल उठे थे। वायुसेना पर। उसमें व्याप्त पुरुषवाद पर। क्या ऐसे सवाल उठाना भी सेना का अपमान है?

हां...नहीं...मैं नहीं जानता, बस तुम सेना पर सवाल नहीं उठा सकते।

अब पड़ोसी आप से तुम पर आ गया था।

लेकिन सवाल उठने पर ही तमाम बार सेना ने खुद जांच की है और अपने फ़ौजियों को दोषी भी पाया है, उनका कोर्ट मार्शल भी किया है। अभी सेना ने अम्शीपोरा (शोपियां) मुठभेड़ को लेकर अपनी जांच कराई है और पाया है कि ये मुठभेड़ फर्जी थी, जिसमें तीन युवा मज़दूरों को मार डाला गया था। शुरुआती जांच में जो लोग दोषी पाए गए हैं, उनके खिलाफ सेना प्रमुख ने अनुशासनात्मक कार्रवाई के आदेश दिए हैं।

यह जांच ऐसे ही नहीं हुई, जब मारे गए मज़दूरों के परिवार वालों ने सवाल उठाए, सुबूत पेश किए तब सेना ने इसे स्वीकार किया। अब अगर सवाल ही नहीं उठेंगे तो फिर जांच कैसे होगी और सच्चाई कैसे सामने आएगी।

नहीं...नहीं, ये सब मैं नहीं जानता।

मेरी बात नहीं मानते तो तमाम जगह रिपोर्ट आई है उसे ही पढ़ लो।

नहीं, मुझे कोई रिपोर्ट नहीं पढ़नी। ज़रूर तुम्हारे ही जैसे किसी पत्रकार की रिपोर्ट होगी।

अरे नहीं मेरे जैसे नहीं आप आजतक की रिपोर्ट पढ़ लो।

चलो कोई बात नहीं। सेना को छोड़ो, नोटबंदी पर तो सवाल उठा सकता हूं।

जब हमने नोटबंदी पर सवाल उठाए तब भी आपने ऐसे ही रियेक्ट किया था।

फिर 2 साल बाद आप भी कहने लगे कि कि हां यार, नोटबंदी से तो नुकसान के सिवा कुछ नहीं निकला। न कालाधन आया, न आतंकवाद रुका। और उस दिन जब आपको 200 का नकली नोट मिल गया था तो आप कैसे परेशान हो गए थे कि यार पता नहीं किसने दे दिया। नुकसान हो गया। क्या फ़ायदा हुआ नोटबंदी का। नकली नोट का धंधा भी वैसे ही चल रहा है।

हां, लेकिन...

लेकिन क्या, 200 रुपये का नुकसान होते ही आपको नोटबंदी बुरी नज़र आने लगी थी।

और आप तो व्यापारी हो, कैसे जीएसटी का रोना रोते हो। ग्राहक से हमेशा कैश ही मांगते हो। कार्ड से पेमेंट करो तो कहते हो 2 परसेंट और लगेगा? क्यों आप तो मोदी जी के डिजीटल इंडिया के बड़े हामी थे। कह रहे थे क्या मास्टर स्ट्रोक है। पहले लॉकडाउन तक को मास्टर स्ट्रोक बता रहे थे। भूख-प्यास से मजबूर होकर अपने गांव-घर जाने को सड़क पर निकले मज़दूरों तक को गरिया रहे थे। लेकिन जब अपना ही धंधा बैठ गया तो कहने लगे- वैसे लॉकडाउन की ज़रूरत नहीं थी, जब बाद में कोरोना बढ़ने पर सबकुछ खोल दिया गया तो पहले अचानक ऐसे लॉकडाउन की क्या ज़रूरत थी। इसपर क्या मैं भी कहूं कि आप देशद्रोही हैं। सरकार और उसके फ़ैसलों पर पर सवाल उठाते हैं!

आपने तो सवाल पूछने को पाप ही बना दिया। जबकि किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में सवाल पूछना सबसे अच्छी बात है।

आप तो आलू, प्याज़ भी चुन-चुनकर लेते हो और चार बार सब्ज़ीवाले से पूछते हो, भईया अच्छा है। आलू मीठा तो नहीं निकेलगा। जबकि आप भी जानते हो कि वो यही जवाब देगा, बाबूजी बेफ़िकर होकर ले जाइए। कोई शिकायत नहीं आएगी। फिर भी आप रोज़ यह सवाल पूछकर तसल्ली करते हो।

एक दिन आप भिंडी कैसी कड़ी-कड़ी ले आए थे। भाभी जी ने आपको कैसे डांटा था, मैंने सुना था, क्योंकि मेरे घर तक आवाज़ आ रही थी। आप सफ़ाई दे रहे थे कि दुकानदार ने तो कहा था कि बढ़िया हैं, बिल्कुल ताज़ा। लेकिन आपकी पत्नी ने क्या कहा था, याद है- उसने कहा और आपने मान लिया, अपनी भी कुछ अक्ल लड़ानी चाहिए या नहीं। कम से कम एक भिंडी तोड़कर ही देख लेते कि पक्की है या कच्ची।

समझ रहे हैं कि भिंडी भी आप तोड़कर चेक करेंगे, लौकी नाख़ून मार-मारकर देखेंगे। कपड़े को भी चार बार छूकर-पहनकर, रंग की गारंटी लेकर खरीदेंगे, लेकिन वैक्सीन पर कोई सवाल पूछे तो वो ग़लत है। अब तो आपके लिए किसान भी ग़लत हो गए। देशद्रोही हो गए, क्योंकि वे कह रहे हैं कि ये कृषि क़ानून हमारे हक में नहीं, हमारे हित में नहीं। दुनिया का अनुभव यही बताता है। लेकिन आपको किसी और की बात तो सुननी नहीं। क्योंकि आप और आपके मोदी जी ही परमज्ञानी हैं।

पड़ोसी अपलक मेरा मुंह ताकने लगे। मैं बोलता रहा।

आप जब अपनी बेटी के लिए रिश्ता खोज रहे थे। लड़के की तहक़ीक़ात करने आप कहां कहां नहीं गए। किस किस से नहीं पूछा। उसके दफ़्तर में, मोहल्ले में। दोस्तों से, रिश्तेदारों से। अब लड़के वाले कहने लगते कि क्या आपको हमारी बात पर विश्वास नहीं। तो आपको कैसा लगता?

तो उन्होंने भी तो हमारी लड़की के बारे में सौ लोगों से पूछताछ की थी। पड़ोसी तमतमाए।

वो तो बच्चों की ज़िंदगी का सवाल होता है, इसलिए चार जगह पूछना ही पड़ता है। इसमें क्या बुराई है। हर मां-बाप को डर रहता है कि पता नहीं कैसी जगह रिश्ता जुड़ेगा। बहू या दामाद कैसे निकलेंगे। हर मां-बाप चाहते हैं कि उसके बच्चे की ज़िंदगी अच्छी रहे। वो खुश रहें।

यही तो मैं कह रहा हूं जनाब। मैं यही तो कबसे समझा रहा हूं। तो ये भी तो स्वास्थ्य का सवाल है, ज़िंदगी का सवाल है। इसलिए सवाल पूछने में बुराई कैसी।

और वैक्सीन को लेकर डर क्यों न लगे। हमें हमारे वैज्ञानिकों पर तो भरोसा है, लेकिन अपनी सरकार पर नहीं। उसकी मंशा पर नहीं। अगर सवाल न उठते तो ये वैक्सीन तो पिछले 15 अगस्त को ही लॉन्च हो जाती।

अभी भी ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने सीरम इंस्टीट्यूट की कोविशील्ड और भारत बायोटेक की कोवैक्सीन के सिर्फ़ इमरजेंसी इस्तेमाल की अनुमति दी है। और आपको यह भी पता होना चाहिए कि जहां कोवैक्सीन पूरी तरह भारत की अपनी वैक्सीन है, वहीं कोविशील्ड असल में ऑक्सफ़ोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका का भारतीय संस्करण है।

रिपोर्ट्स हैं कि कोविशील्ड के भारत में 1,600 वॉलंटियर्स पर हुए फ़ेस-3 के ट्रायल के आँकड़ों को जारी नहीं किया गया है। वहींकोवैक्सीन के फ़ेस एक और दो के ट्रायल में 800 वॉलंटियर्स पर इसका ट्रायल हुआ था जबकि तीसरे चरण के ट्रायल में 22,500 लोगों पर इसको आज़माने की बात कही गई है। लेकिन इनके भी आँकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए हैं।

और हम कहां सवाल उठा रहे हैं। सबसे पहले तो डॉक्टर, वैज्ञानिकों ने ही सवाल उठाए। आशंका जताई।

कंपनी और डीसीजीआई ने भी कोई ऐसे आंकड़े नहीं दिए हैं जो बता पाएं कि वैक्सीन कितनी असरदार और सुरक्षित है।

दिल्ली एम्स के प्रमुख डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने एक समाचार चैनल से बातचीत में कहा है कि वो आपातकालीन स्थिति में कोवैक्सीन को एक बैकअप के रूप में देखते हैं और फ़िलहाल कोविशील्ड मुख्य वैक्सीन के रूप में इस्तेमाल होगी।

आप हमारी इस रिपोर्ट को पढ़ लीजिए- आख़िर कोवैक्सीन को लेकर सवाल क्यों उठ रहे हैं?

और भाई वैक्सीन सिर्फ़ विज्ञान का ही मामला नहीं है व्यापार का भी है। आज आपने पढ़ा और देखा ही होगा कि कैसे दोनों वैक्सीन के निर्माता भी भिड़ गए हैं। सीरम इंस्टीट्यूट के CEO अदार पूनावाला ने कोवैक्सीन को मंजूरी दिए जाने पर आपत्ति जताई थी। अब भारत बायोटेक के फाउंडर और चेयरमैन कृष्ण इल्ला ने भी सीरम इंस्टिट्यूट पर पलटवार किया है। इल्ला ने कहा है कि कुछ कंपनियां हमारी वैक्सीन को पानी की तरह बता रही हैं। मैं इससे इनकार करता हूं। हम वैज्ञानिक हैं। आपको पता है कि अदार पूनावाला ने क्या कहा था। उन्होंने रविवार को एक टीवी को दिए इंटरव्यू में कहा था कि अब तक सिर्फ़ फाइजर, मॉडर्ना और ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन की प्रभावकारिता साबित हुई है और बाक़ी सभी वैक्सीन सिर्फ़ पानी की तरह सुरक्षित हैं।

अब बताइए कौन सवाल उठा रहा है। और क्यों नहीं सवाल उठाने चाहिए।

और इतना ही नहीं, भाई जब आपसे एक लेंटर न संभला तो पूछना तो पड़ेगा ही। पता है ग़ाज़ियाबाद के मुरादानगर में श्मशान का लेंटर गिरने से कितनी मौतें हुईं हैं। 25...। पच्चीस लोग मारे गए। और इससे ज़्यादा घायल हैं। समझ रहे हैं न आप, 25 जान की क़ीमत।

तो इसमें सरकार का क्या दोष?

तो फिर किसका है। मुंबई में एक हीरो आत्महत्या कर ले तो आप सरकार से इस्तीफ़ा मांगते हैं और आपके प्रदेश में एक श्मशान की छत भ्रष्टाचार की वजह से गिर जाए तो किससे इस्तीफ़ा मांगा जाए। एक पुल उद्घाटन से पहले ही बह जाए तो किससे जवाब मांगा जाए। किसकी ज़िम्मेदारी है और आपके योगी जी ने तो श्मशान और कब्रिस्तान पर ही चुनाव लड़ा था न!

आपकी प्रदेश में सरकार, ग़ाज़ियाबाद से आपके सांसद और वो तो जनरल हैं, पूर्व सेनाध्यक्ष। यही नहीं मुरादनगर में आपके विधायक, नगरपालिका में आपके अध्यक्ष। फिर भी श्मशान के लेंटर तक में भ्रष्टाचार हो गया। पहली बरसात में ही गिर पड़ा। अभी तो उसका लोकार्पण भी नहीं हुआ था।

हां, ये तो है। लेकिन आप, आपकी सरकार, आपके मोदी जी, आपके योगी जी क्यों कहते हैं। क्या ये आपके नहीं ?

आपके इसलिए कह रहा हूं क्योंकि आप भाजपाई हैं। और मैं जनता। और अगर आप जनता की सरकार, जनता के प्रधानमंत्री, जनता के मुख्यमंत्री मानते होते तो फिर किसी के भी सवाल उठाने के हक़ पर पाबंदी क्यों लगाते, आपत्ति क्यों जताते!, उसे टुकड़े-टुकड़े गैंग और देशद्रोही क्यों कहते। जनता अपनी सरकार के काम पर सवाल नहीं उठाएगी तो किस पर उठाएगी। हम मोदी जी से सवाल नहीं पूछेंगे तो क्या ट्रंप से सवाल पूछेंगे या इमरान से, बताइए! आप तो अभी तक नेहरू जी से ही सवाल पूछ रहे हैं...।

पड़ोसी को फ़िलहाल कोई जवाब नहीं सूझा। बोले- देर हो रही है, चलता हूं। बेटे के लिए ट्यूश्न टीचर खोजने जा रहा हूं।

अरे, मैंने बताया तो था एक मास्टर, पिछली गली में ही पढ़ाते हैं।

हां, मैंने उनके बारे में पता किया था, कुछ लोगों से, बता रहे थे कि उनका रिजल्ट अच्छा नहीं है। पड़ोसी ने जवाब दिया।

अच्छा। आप भी खोजबीन करने लगे, सवाल उठाने लगे। टीचर का रिजल्ट पता करने लगे। आप भी बड़े देशद्रोही निकले, टुकड़े-टुकड़े गैंग...!

अरे, आप भी, भाईसाहब... ही...ही, खिसयाते हुए पड़ोसी तेज़ी से आगे निकल गए।

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