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वृद्धावस्था पेंशन: राशि में ठहराव की स्थिति एवं लैंगिक आधार पर भेद

2007 से केंद्र सरकार की ओर से बुजुर्गों को प्रतिदिन के हिसाब से मात्र 7 रूपये से लेकर 16 रूपये दिए जा रहे हैं।
pension
प्रतीकात्मक चित्र।

हाल ही में कुछ राज्यों की ओर से वृद्धावस्था पेंशन योजना की पात्रता राशि में वृद्धि की घोषणा की गई है। उदाहरण के लिए, आंध्रप्रदेश ने वर्ष 2022 की शुरुआत में वृद्धावस्था पेंशन की राशि में लगभग 250 रूपये की वृद्धि कर इसे प्रति माह 2500 रूपये कर दिया है। अभी हाल ही में, उत्तरप्रदेश सरकार ने भी वृद्धावस्था पेंशन की राशि में वृद्धि की घोषणा की है, जिससे यह राशि अब बढ़कर 2,000 रूपये प्रति माह हो गई है। 

जैसा कि इस वर्ष के अंत तक हरियाणा में चुनाव होने हैं, ऐसे में वहां पर अभी से कई चुनावी वायदे किये जा रहे हैं। उनमें से एक है, राज्य में वृद्धावस्था पेंशन की राशि को बढ़ाकर 6,000 रूपये प्रतिमाह करने का वादा। 

हालाँकि, कुछ राज्यों द्वारा हाल में की गई वृद्धि के बावजूद वृद्धावस्था पेंशन योजना के तहत पात्रता धनराशि अभी भी बेहद कम है। जहाँ केंद्र सरकार के तहत पात्रता राशि 2007 के बाद से लगभग स्थिर बनी हुई है, वहीं राज्य सरकारों की ओर से इसमें योगदान या तो अत्यंत कम है या न के बराबर है। केंद्र और राज्य, दोनों ही स्तरों पर वृद्धावस्था पेंशन के प्रावधानों में कई खामियां मौजूद हैं।  

इसके साथ ही, वृद्धावस्था लाभार्थियों को भुगतान की जाने वाली रकम के मामले में विभिन्न राज्यों में भारी अंतर बना हुआ है। यहाँ तक कि उम्र का मानदंड भी एक राज्य से दूसरे राज्य में अलग-अलग है। वृद्धावस्था पेंशन योजना के तहत दी जाने वाली राशि जहाँ असम और मध्य प्रदेश में 300 रूपये की बेहद मामूली राशि है, वहीँ तेलंगाना में यह 2016 रूपये तक है। 

2021 में भारत में वृद्ध लोगों की संख्या को करीब 13.7 करोड़ अनुमानित किया गया था, जिसमें से 51% महिलाएं हैं। कुछ अनुमानों के मुतबिक, इसमें से करीब 8 करोड़ लोग वृद्धावस्था पेंशन की पात्रता रखते हैं। हालाँकि, इनमें से सिर्फ 2.5 करोड़ लोगों को ही पेंशन मिलती है। इसके लिए पात्र बुजुर्गों की संख्या में बढ़ोत्तरी के बाजवूद, वो भी विशेषकर कोविड-19 महामारी के बाद के दिनों को देखते हुए वृद्धावस्था पेंशन योजना के लिए केंद्र सरकार के आवंटन में कोई बढ़ोत्तरी नहीं की गई है। उदाहरण के लिए, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना के लिए बजट आवंटन 2020-21 और 2021-22 के दोनों वित्तीय वर्ष में 6,259 करोड़ रूपये था, जिसे 2022-23 के बजट में मामूली बढ़ोत्तरी के साथ 6,564 करोड़ रूपये कर दिया गया है। 

वृद्धावस्था पेशन - एक संवैधानिक आवश्यकता 

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 41 राज्य को अपने नागरिकों को “बेरोजगारी, वृद्धावस्था, बीमारी और अपंगता की स्थिति में अपनी आर्थिक क्षमता और विकास की सीमा में रहते हुए” सार्वजनिक सहायता प्रदान करने के लिए निर्देशित करता है। वृद्धावस्था पेंशन भारतीय संविधान की 7वीं अनुसूची की समवर्ती सूची के अंतर्गत आती है। इसका अर्थ यह है कि बुजुर्गों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की जिम्मेदारी केंद्र और राज्यों दोनों की है। 

जबकि केंद्र सरकार की ओर से राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यकम (एनएसएपी) के तहत वृद्धावस्था पेंशन प्रदान की जाती है, और राज्यों से भी आशा की जाती है कि वे उतनी ही राशि प्रदान करेंगे। एनएसएपी एक 100% केंद्र प्रायोजित योजना (सीएसएस) है, जिसमें राज्यों का कोई हिस्सा नहीं होता है। हालाँकि, राज्यों के द्वारा अपने खुद के संसाधनों के जरिये केंद्रीय सहायता में अलग से मदद की जाती है। 

बेसहारा लोगों को सामाजिक सहायता प्रदान करने के उद्येश्य से 1995 में एनएसएपी को शुरू किया गया था। राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना एनएसएपी के ही घटकों में से एक थी।  2007 में, एनएसएपी को गरीबी रेखा से नीचे रह रहे सभी व्यक्तियों को इसमें शामिल करने के लिए विस्तारित किया गया था और वृद्धावस्था पेंशन घटक के नाम को बदलकर इसे इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना (आईजीएनओएपीएस) कर दिया गया था। 

आईजीएनओएपीएस एक गैर-अंशदायी वृद्धावस्था पेंशन योजना है जिसमें उन भारतीयों को कवर किया जाता है, जो 60 वर्ष और उससे अधिक उम्र के हैं, और गरीबी की रेखा से नीचे रह रहे हैं। 2011 में आईजीएनओएपीएस के लिए आयु सीमा को 65 वर्ष से घटाकर 60 वर्ष कर दिया गया था। इसके साथ ही 80 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोगों के लिए मासिक पेंशन की रकम को 200 रूपये प्रति माह से बढ़ाकर 500 रूपये कर दिया गया था। इस प्रकार, इस योजना के तहत, 60 वर्ष या उससे अधिक उम्र के बीपीएल व्यक्ति 79 वर्ष की आयु तक 200 रूपये की मासिक पेंशन पाने के हकदार थे और उसके बाद उन्हें 500 रूपये मासिक पेंशन प्राप्त होंगे। 

इसका अर्थ यह है कि गरीबी रेखा से नीचे रह रहे बुजुर्गों के लिए आर्थिक सुरक्षा के नाम पर उन्हें 60 से 79 वर्ष तक प्रतिदिन सिर्फ 7 रूपये और 80 साल या उससे उपर हो जाने पर प्रतिदिन लगभग 16 रूपये प्राप्त होते हैं।

वृद्धावस्था पेंशन - लिंग के आधार पर अंतर  

हाल के आंकड़ों से पता चलता है कि कई राज्यों में आईजीएनओएपीएस पाने वाले पुरुषों का अनुपात महिलाओं की तुलना में अधिक है। यह सब इस तथ्य के बावजूद है कि इनमें से कई राज्यों में अकेली रहने वाली बुजुर्ग महिलाओं का अनुपात पुरुषों की तुलना में काफी अधिक है।

ये आंकड़े भारत में बुजुर्गों के बारे में किये गये पहले राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण - भारतीय देशांतरीय आयु सर्वेक्षण 2017-18 से निकलकर सामने आये हैं। यह दुनिया का सबसे बड़ा देशांतरीय वृद्ध होने का अध्ययन है। एलएएस वेव 1,  45 साल और उससे अधिक उम्र के 72,250 वृद्ध वयस्कों के एक वृहद जनसांख्यिकीय रेखाचित्र का गठन करता है। 

एलएएसआई के आंकड़े से पता चलता है कि हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश और ओड़िशा जैसे राज्यों में महिलाओं की तुलना में पुरुषों के एक बड़े हिस्से को आईजीएनओएपीएस के तहत लाभ प्राप्त हो रहे हैं।

इन आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि अधिकांश राज्यों में अकेला जीवन व्यतीत करने वाली बुजुर्ग महिलाओं का अनुपात पुरुषों के मुकाबले में अधिक है। 

आंध्रप्रदेश में,आईजीएनओएपीएस के तहत 48% बुजुर्ग पुरुषों को वृद्धावस्था पेंशन प्राप्त हो रही है, वहीँ इसके ठीक उलट मात्र 20% बुजुर्ग महिलाओं को ही आईजीएनओएपीस पेंशन मिलती है। इसी प्रकार ओडिशा में 48% बुजुर्ग पुरुषों के मुकाबले 37% बुजुर्ग महिलाओं को आईजीएनओएएस पेंशन प्राप्त हो रही है। यदि हम अकेले रहने वाले वृद्ध पुरुषों और महिलाओं (45 वर्ष से अधिक आयु) के अनुपात पर नजर डालें तो हम पाते हैं कि आंध्रप्रदेश में 2% पुरुषों के मुकाबले करीब 7% महिलाएं अकेले जीवनयापन कर रही हैं। वहीं ओडिशा में 5% बुजुर्ग महिलाओं की तुलना में सिर्फ 1% बुजुर्ग पुरुष ही अकेले जीवन बिता रहे हैं।

यह स्पष्ट रूप से इस बात को दर्शाता है कि केंद्र और राज्य सरकारें इस बात को सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार हैं कि बुजुर्ग महिलाओं को समुचित सामाजिक सुरक्षा प्मुहैया कराई जाये।

कई सिफारिशों के बावजूद बेहद कम और धनराशि में ठहराव  

2007 के बाद से ही एनएसएपी के तहत पात्रता धनराशि जस कि तस बनी हुई है। संसदीय स्थायी समिति की 22वीं रिपोर्ट (2021-22) में इस बात का उल्लेख किया गया है कि एनएसएपी योजना के विभिन्न घटकों के तहत सहायता राशि में बढ़ोत्तरी की ओर संशोधन का लंबे अर्से से इंतजार है। इसने इस बात को भी रिकॉर्ड में रखा है कि कमेटी ने 13वीं (2019-20) और 17वीं रिपोर्ट में भी पेंशन राशि में वृद्धि की सिफारिश की थी, लेकिन पेंशन राशि में किसी प्रकार की वृद्धि नहीं की गई। परिणामस्वरूप, अपनी नवीनतम रिपोर्ट में कमेटी ने ग्रामीण विकास विभाग को “जल्द से जल्द एनएसएपी के तहत पेंशन राशि में वृद्धि के मुद्दे को गंभीरतापूर्वक लेने और जमीनी स्तर पर इसके नतीजों को ठोस शक्ल देने” को लेकर पुरजोर सिफारिश की है।”

2013 में, भारत सरकार के समक्ष व्यापक सामाजिक सहायता कार्यक्रम पर टास्क फ़ोर्स की एक रिपोर्ट पेश की गई थी। इसकी ओर से भी मासिक पेंशन में वृद्धि करने और इसके आधार क्षेत्र को बढ़ाने की अनुशंसा की गई थी।

सर्वोच्च न्यायालय ने यह देखते हुए कि इस राशि को 2007 में तय किया गया था,  2018 में कहा था कि केंद्र और राज्यों को बुजुर्गों को प्रदान की जाने वाली पेंशन राशि पर पुनर्विचार करना चाहिए, ताकि यह ज्यादा यथार्थपरक हो।

एक सुप्रसिद्ध जमीनी स्तर के कार्यकर्ता और मजदूर किसान शक्ति संगठन के सदस्य, शंकर सिंह का इस बारे में कहना था, “इस प्रकार की मामूली रकम एक मजाक है। भले ही आप पानी की एक बोतल खरीदें, इसके लिए आपको 20 रूपये चुकाने पड़ते हैं। वृद्धावस्था पेंशन के नाम पर मिलने वाली प्रति दिन के 7 रूपये से खर्चों की पूर्ति किस प्रकार से संभव है। इसके अलावा, बीपीएल श्रेणी के अंतर्गत आने वाले वृद्ध लोग वे होते हैं जिनके पास कोई बचत या कोई अन्य सामाजिक सुरक्षा का दायरा नहीं है। यहाँ तक कि सबसे निचले स्तर पर काम करने वाले सरकारी कर्मचारी तक को प्रति दिन के हिसाब से 1000 रूपये की पेशन प्राप्त होती है। अगर सरकारी पेंशन को महंगाई भत्ते के आधार पर बढ़ाया जा सकता है तो बीपीएल श्रेणी के तहत आने वाले एक गरीब की पेंशन को कीमतों में वृद्धि के अनुसार क्यों नहीं बढ़ाया जाता है।” 

इस विषय पर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं विशेषज्ञों और पेंशन परिषद के साथ सम्बद्ध लोगों - जो कि विभिन्न संगठनों और कार्यकर्ताओं का एक व्यापक नेटवर्क है, की सबसे प्रमुख मांगों में से एक यह है - कि इस राशि को मुद्रास्फीति के साथ जोड़ा जाना चाहिए और वेतन की दरों में जिस प्रकार से नियमित रूप से संशोधन किये जाते हैं, उसी तरह इसमें भी समय-समय पर संशोधन किया जाना चाहिए। राजकोषीय दृष्टि से देखें तो, वे वर्तमान सकल घरेलू उत्पाद के 0.45% की वर्तमान मामूली राशि के स्थान पर जीडीपी के 1.45% के एक मामूली से वृद्धि आवंटन की मांग कर रहे हैं। 

उनकी ओर से यह मांग भी की जा रही है कि कार्यक्रम के दायरे में आयकर दाताओं को छोड़कर, सभी बुजुर्गों को शामिल किया जाये, ताकि वरिष्ठ नागरिकों को आयु से संबंधित समस्याओं को कुशलतापूर्वक प्रबंधित कर लेने में सक्षम बनाया जा सके। इस कार्यक्रम को कम से कम उन सभी परिवारों तक विस्तारित करने की आवश्यकता है जिनके पास सामाजिक आर्थिक जातीय जनगणना के द्वारा उल्लिखित सात में से एक भी आर्थिक तौर पर बेहतर स्थिति की कसौटी पर खरे उतरने का मानदंड नहीं है। 

शंकर का इस बारे में आगे कहना था, “आप कैसे किसी बीपीएल श्रेणी से आने वाले 80 वर्षीय बुजुर्ग से ग्रामीण रोजगार गारंटी या मनरेगा जैसी योजनाओं के तहत काम करने की उम्मीद कर सकते हैं। हमारी मांग है कि एक वृद्ध व्यक्ति को न्यूनतम मजदूरी के कम से कम आधे के बराबर का भुगतान किया जाये। यह मोटे तौर पर 4000 रूपये प्रति माह के करीब बैठता है।” श्रमिकों और आम लोगों के हक के तौर पर यथोचित पेंशन के लिए संघर्षरत कार्यकर्ताओं की लंबे अर्से से चली आ रही मांग और नारे की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए उन्होंने “बुढ़ापे में आराम दो, पेंशन और सम्मान दो!’ का आह्वान किया। 

(यह लेख आंशिक रूप से फेलोशिप फ्रॉम टेब्ल्यु फाउंडेशन और इक्वल मेजर्स 2030 द्वारा समर्थित था)

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें

Old Age Pension: Stagnant Amounts and Gender Differential

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