Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

क्या हैं पुरानी पेंशन बहाली के रास्ते में अड़चनें?

समस्या यह है कि नई पेंशन योजना सेवा के वर्षों से कोई इत्तेफाक नहीं रखती है बल्कि यह कार्पस बेस्ड है यानी जितना फंड NPS अकाउंट में होगा उसी हिसाब से पेंशन।
PROTEST
NPS के खिलाफ और पुरानी पेंशन की मांग करते कर्मचारी (फोटो- शिवानी गुप्ता, गांव कनेक्शन)

एक जनवरी 2004 से केंद्र सरकार ने पुरानी पेंशन की जगह नई पेंशन स्कीम लागू की थी जिसे आज पश्चिम बंगाल को छोड़कर लगभग सभी राज्य अपने अपने यहां लागू कर चुके हैं। अब समस्या यह है कि नई पेंशन योजना सेवा के वर्षों से कोई इत्तेफाक नहीं रखती है बल्कि यह कार्पस बेस्ड है यानी जितना फंड NPS अकाउंट में होगा उसी हिसाब से पेंशन। लेकिन इससे उन कर्मचारियों के ऊपर संकट पैदा हो गया हैजिनकी रेगुलर बेस पर नियुक्ति के बाद सेवानिवृत्ति महज 10 से 15 वर्षों के भीतर हो रही है या जिन राज्यों में NPS का कर्मचारी अंशदान कई वर्षों तक काटा ही नहीं गया और न ही सरकारी अंशदान जमा किया गया। फलस्वरूप कोई फंड निवेशित ही नही हुआ और अब जबकि उनकी सेवानिवृत्ति या तो नजदीक है या हो गयी है।

ऐसे सभी कर्मचारियों के लिए नेशनल पेंशन स्कीमसेवानिवृत्ति पर न तो मिनिमम पेंशन की गारंटी देती है और न ही उन्हें पुरानी पेंशन की तरह अंतिम सेलरी के आधार पर पेंशन देती है। ऐसे कर्मचारियों को नाम मात्र फंड जमा होने के कारण नाम मात्र की यथा 500 रुपये से लेकर 2000 रुपये की पेंशन मिल रही है। जिसके कारण कर्मचारी खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा है।

 हालांकि पेंशनराज्य का विषय है। चूंकि नेशनल पेंशन स्कीम एक कंट्रीब्यूटरी स्कीम है जिसमें पेंशन के लिए कर्मचारी से बेसिक सेलरी और महंगाई भत्ते का 10% कर्मचारी अंशदान के रूप में काट लिया जाता है और साथ साथ सरकार स्वयं 10% के मुकाबले 14% का अंशदान जमा करती है। जिसे तीन सरकारी संस्थानों में LIC, SBI और UTI में निवेश किया जाता है ताकि कर्मचारी को मार्किट के अनुसार ब्याज मिल सके और ये संस्थान भी बेहतर परफार्म कर सकें व इन्हें मजबूत किया जा सके। इसके अलावा इसी प्लेटफॉर्म पर स्वावलंबन योजनाअटल पेंशन योजना और निजी क्षेत्र के लिए टियर नाम से योजनाएं भी चल रही हैं।

आज नेशनल पेंशन स्कीम के तहत तकरीबन लाख करोड़ से भी अधिक निवेश हो चुका है। जिसका 85% हिस्सा लॉन्ग टर्म यानी सरकारी प्रतिभूतियों में और 15% ओपन मार्किट यानी शेयर मार्किट में लगाया गया है। अब यदि NPS को खत्म कर दिया जाय तो निश्चित है कि उपरोक्त तीनों योजनाए भी बंद हो सकती हैं। साथ ही साथ इन तीनों बैंको को अगले ही महीने से जो 77 लाख कर्मचारियों की सैलरी से हर महीने एन.पी.एस. से लगभग 9000 करोड़ मिलते हैं वे भी बंद हो जाएंगे ऐसी स्थिति में यह कल्पना करना मुश्किल है कि सरकार इन्हें चला पाएगी। सम्भव है फिर सरकार इन्हें भी बेच दे।

दूसरी बात यह कि यदि कोई राज्य NPS छोड़ भी दे तो बड़े राज्य जैसे उत्तर प्रदेशराजस्थानमहाराष्ट्र जिनका NPS में 50 हजार करोड़ से भी अधिक निवेश हो चुका हैउस राशि को एकमुश्त निकाल पाना आसान नही है। यही नहीं हर राज्य ने जिसने NPS को लागू किया उसके साथ PFRDA यानी पेंशन फंड रेगुलेटरी डेवलपमेंट अथॉरिटी के साथ साथ NPS ट्रस्ट और NSDL CRA यानी नेशनल सिक्योरिटी डिपोजिटरी लिमिटेड के साथ अलग अलग अग्रीमेंट साइन किये हैं। ये अग्रीमेंट भी राज्यों की पुरानी पेंशन बहाली घोषणाओं के आड़े आ सकते हैं। सम्भव है मार्केट की लिक्विडिटी और अपने बिजनेस को बचाने के लिए ये तीनों बैंक या फिर केंद्र सरकार कोर्ट का रास्ता भी अपना सकते हैं। यदि ऐसा होता है तो सम्भव है बिना केंद्र सरकार के सहयोग से पुरानी पेंशन बहाली का मामला राज्य सरकारों के लिए बहुत चुनौती पूर्ण हो सकता है। अब समझना ये होगा कि हाल ही में कर्मचारियों के दबाव के बाद तीन राज्यों की सरकारों- राजस्थानछत्तीसगढ़पंजाब ने जो पुरानी पेंशन बहाल करने की घोषणाएं अपने बजट में की हैंउन्हें हकीकत का अमलीजामा किस तरह पहनाया जाएगा?

(लेखक, सेंट्रल एंड स्टेट गवर्मेंट एम्प्लॉयीज कन्फेडरेशन दिल्ली और नेशनल मूवमेंट फ़ॉर ओल्ड पेंशन स्कीमदिल्ली के अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

ये भी पढ़ें: एनपीएस की जगह, पुरानी पेंशन योजना बहाल करने की मांग क्यों कर रहे हैं सरकारी कर्मचारी? 

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest